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11 दिसंबर दो हज़ार सोलह
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होटल के सामने का दृश्य |
आज धर्मशाला घूमने का प्लान था। पहले तो दो दिन के लिए एक बुलेट और एक स्कूटी लेने का प्लान था लेकिन सुबह होने तक इस प्लान में बदलाव हो चुका था। अब हम एक ही दिन के लिए एक स्कूटी और एक बुलेट लेने वाले थे। हमने नाश्ता किया और गाड़ी वाले से बात कर ली। सारी बातें प्रशान्त और मनन ने कर ली थी। फिर नाश्ता(जिसमे आलू के पराठे, आमलेट और चाय थीं) करने के बाद वो गाडी लेकर आ गये। पहले हमारा प्लान पैरा ग्लाइडिंग करने का भी था लेकिन फिर जब पता किया तो मालूम हुआ उसके लिए हमे सत्तर किलोमीटर दूर बीर जाना पड़ेगा। फिर पैराग्लाइडिंग करने में भी दो घंटे तक लग ही जाने थे। इतना वक्त हमारे पास नहीं था इसलिए हमने सोचा कि पैराग्लाइडिंग फिर कभी कर लेंगे और हम आसपास ही घूम लेंगे।
मनन और अनीषा स्कूटी में जाने वाले थे और प्रशांत और मैं बुलेट में जाने वाले थे। मनन के लिए जो हेलमेट आया था वो गुलाबी रंग का था। वो उसे पहनने में आना कानी कर रहा था। हमने उसकी टांग भी खींची। उस समय खूब हँसी मज़ाक हुआ। फिर उसे कहा कि स्कूटी लेकर वो निकले तो सही। हम बाज़ार में गाड़ी वाले से बात करके इसे बदलवाने की कोशिश करेंगे। वो मान गया। हमने गाड़ी वाले से बात भी की लेकिन उसके पास दूसरा हेलमेट नहीं था और मनन को पूरा दिन इसी गुलाबी हेलमेट में बिताना पड़ा।
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मनन अपने हेलमेट के साथ |
फिर हम घूमने निकल गए। सबसे पहले हमने धर्मशाला के स्टेडियम जाने की सोची और उधर गये। स्टेडियम देखने में मुझे तो ज्यादा उत्साह नहीं था। हमारी योजना ये थी कि आज मैक्लोडगंज के आस पास की जगह आज देख लेंगे क्योंकि मैक्लोडगंज के मैन व्यू पॉइंट्स तो हम कल कवर ही कर लेंगे। इसलिए स्टेडियम गये। उधर जाते वक्त कॉलेज भी पड़ता है जिधर आज काफी भीड़ थी। रास्ते में एक बाइक वाला भाई जा रहा था तो उसने बताया कि वो पोस्ट ग्रेजुएट टीचर के टेस्ट के लिए जा रहा था। फिर स्टेडियम गये और थोड़ा वक्त उधर काटा। उधर एक लोकल क्रिकेट मैच भी हो रहा था। लोग उनका उत्साह वर्धन भी कर रहे थे। लेकिन मामला ठंडा ही था।
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मनन,प्रशांत और मैं – पिक्चर अनीषा ने खींची है |
फिर हम पालमपुर के लिए निकल गये। कल एक भाई ने बताया था कि उधर अच्छा व्यू पॉइंट है तो हम उसी तरफ जा रहे थे। पालमपुर स्टेडियम से लगभग 30-40 किलोमीटर दूर था। हम उस तरफ जा रहे थे तो बीच में कई खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य देखने को मिले।
एक जगह तो जंगल के बीच में कुछ खाली जगह थी और उधर ही लोग पिकनिक मना रहे थे। उधर गाडी रोकी और बाकी लोगों ने मोमो खाये।(मुझे मोमो पसन्द नहीं आते हैं। इसलिए मैंने आजतक खाये नहीं हैं।) फिर उधर की तरफ गये और बीस पच्चीस मिनट बिताये। यह जगह सरकारी थी और इधर कई पेड़ लगे थे। इन पेड़ों में रेसिन इकठ्ठा करने के लिए कुप्पियाँ भी लगा रखी थी। मोमो वाले भाई ने हमे बताया कि ये सरकारी जमीन है लेकिन लोग इधर पिकनिक वगेरह मनाते है। उसी ने हमे ये भी बताया कि इस जगह के पार जो गाँव था वो जिया नाम का था।
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रेजिन के लगाईं गयी कुप्पी |
फिर उसी पॉइंट की तलाश में हम निकले। हमे पता तो था कि हमे कुछ मिलना नहीं है। हमारे पास वक्त था, बाइक थी तो वक्त काटने के लिए उस पॉइंट रुपी मरीचिका को ढूँढ रहे थे।आगे पूछते पूछते किसी ने बताया कि सौरभ वन विहार नामक जगह थी जो दिखने में खूबसूरत थी। फिर उसी के तलाश में हम निकल गए। वही ढूँढते हुए ऐसी जगह पहुँचे जिसके आगे सड़क ही नहीं थी। उधर थोड़ा बहुत वक्त काटा, फोटो वगेरह खींची। t
फिर हम वापसी के लिए निकल पड़े। वापस आ रहे थे तो अनीषा ने वही की कुछ लेडीज से पता लगाया। उन्होंने बताया कि दूसरी तरफ एक लेक थी जहाँ बोटिंग भी होती थी। लेकिन उधर जाने का मन नहीं था तो हम वापसी के लिए निकल गये। अब सीधे हमे धर्मशाला होते हुए मैक्लोडगंज जाना था।
रास्ते में जाते हुए हमें एक जगह मिली जहाँ से नदी बह रही थी। फिर हमने थोड़ी देर उधर फोटो खिंचवाईं। फिर जब वापस आ रहे थे तो हमे उधर कुछ जली हुई लकड़ी दिखी। अनीषा ने कहा शायद वो शमशान घाट था। फिर जब सड़क के ऊपर आ रहे थे तो उधर एक अघोरी बाबा भी दिखा था। वो असल में ही शमशान घाट था। मैं उधर की ज्यादा फोटो नहीं ले पाया क्योंकि मेरा फोन डेड हो चुका था।
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प्रशांत,अनीषा और मैं – फोटो मनन ने खींची है |
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प्रशांत और मैं |
फिर हमने एक जगह रुक कर लंच किया। जगह का नाम द टेरेस(The Terrace) था। जगह खूबसूरत थी। उसके बाद हम मैक्लोडगंज पहुँचे। हमने गाड़ियां एक जगह लगाईं और मार्किट घूमने का निश्चय किया। पहले हम चौक पे पहुंचे। उधर एक पेस्ट्री की दुकान थी जहाँ हमने कुछ पेस्ट्रीज खाई। मैंने तीन पेस्ट्री खाई और एक सोफ्टी खाई। मज़ा आ गया। फिर हम मार्किट घूमने लगे।
वहाँ काफी हैण्डी क्राफ्ट्स की दुकाने थी। मैंने पहनने के लिए तो कुछ नहीं लिया लेकिन एक दुकान में मुझे एक पोस्ट कार्ड पसंद आ गया तो मैंने वो ले लिया।
फिर हम वापस होटल में आ गये। होटल आते हुए हम एक बार रास्ता भटक गये थे लेकिन फिर आधे में पहुंचकर हमे लगा कि हम गलत रास्ते आये हैं। हमने एक से पूछा और उसने हमे सही रास्ता बताया और हम फिर उधर से अपने होटल के लिए आ गये।
ट्रिप का दूसरा दिन इतना अच्छा नहीं गया था। घूमने लायक इतनी ज्यादा जगह नहीं थी। खैर, ऐसा नहीं है कि मज़ा नहीं आया। जब दोस्त साथ हों तो मज़ा तो आता ही है। इसलिए मज़ा हमने खूब किया।
अब एक दिन की ट्रिप बची थी और उसका हमें बेसब्री से इन्तजार था।
क्रमशः
मैकलॉडगंज ट्रिप की सभी कड़ियाँ:
नोट : जिन भी तस्वीरों में मेरा नाम नहीं है वो मनन, प्रशांत या अनीषा में से किसी एक ने खींची हैं।