(‘तोताराम’ और ‘इलाइची’ मेरे जेहन से निकले दो किरदार हैं। कभी कभी मन के किसी कोने से उभर कर आ जाते हैं और अपनी दुनिया की झलक सी दिखा जाते हैं। यह झलक कुछ पल, कुछ दृश्यों तक रहती हैं। मैं उस झलक को दस्तावेज़ में उकेर लेता हूँ। ये मेरे प्रिय पात्र हैं और मैं नहीं चाहता कि इन्हे लगे कि मैं इन्हे नज़र-अंदाज कर रहा हूँ। यही झलक इधर प्रकाशित की है। उम्मीद है कभी ज्यादा वक्त के लिए ये मुझे अपने साथ ले जाएंगे ताकि इन दोनों के जीवन से जुड़े कई किस्सों को दर्ज कर सकूँ।तब तक के लिए आपको इन टुकड़ों से ही काम चलाना पड़ेगा।)
तोताराम दरवाजे के चौखट के बगल में दुबक सा रखा था। दरवाजे शीशा का था और उसके आर पार देखा जा सकता था। तोताराम ने दरवाजे के बगल से मुंडी निकालकर दरवाजे के अन्दर झाँका । वैसे आपको या मुझको अभी इन सब बातों का पता नहीं चल सकता था क्योंकि तोताराम अदृशय था। उसे कोई देख नहीं सकता था। वो अदृश्य था लेकिन फिर भी सावधानी बरतने में क्या जाता था।
आखिरकार इतने वर्षो बाद सेना ने अपने सनिकों के लिए ऐसी पोशाक तैयार कर ली थी जिसको पहनकर लोग अदृश्य हो जाते थे। यही नहीं इंसान इन्फ्रारेड से पहचान में न आये इसलिए यह पोशाक वातावरण के हिसाब से उनके बदन के तापमान को भी बदल देता था। पोशाक पहने आदमी के शरीर का तापमान वातावरण के बराबर ही होता जिससे इंफ़्रारेड की पकड़ में वो नहीं आता क्योंकि शरीर कोई गर्मी छोड़ता ही प्रतीत नहीं होता था। इस पोशाक पर सेना का ही नियन्त्रण था। और सेना ही विशेष मिशन के तहत इसे लोगों को देती थी। अगर कभी कोई सैनिक पकड़ा जाता तो उसे हिदायत थी कि खुद को अदृश्य से दृश्य कर सकता था जिसके बाद इस सूट में इस तरह के बदलाव होते कि यह एक आम सूट ही रह जाता।एक बार अदृश्य से दृश्य होने के बाद न वापस बदला जा सकता था और न ही कोई कितना भी चाहे वो इसमें इस्तेमाल की तकनीक को चुरा सकता था। सैनिकों को यही हिदायत दी जाती कि अगर किसी तरह पकड़े गए तो सूट की तकनीक की सुरक्षा ही उनका पहला कर्तव्य था।
तोताराम यूनाइटेड नेशनस का एक आला कमांडो था। उसे यह फक्र कैसे हासिल हुआ था यह जुदा मसला था। उस पर फिर कभी आयेंगे। अभी के लिए तो कॉस्टयूम उसे दिया गया था जिसके बदौलत वो इस अन्तरिक्ष यान में दाखिल हो पाया था और अपने मिशन पर लगा हुआ था। तोताराम दरवाजे से अन्दर की चीजों को देखने लगा।
अन्दर एक टेबल लगी हुई थी। टेबल में कुछ खाने पीने का सामान था। टेबल पर पूरी आकाशगंगा के अपराधी बैठे हुए थे। आपस वो कुछ बातचीत कर रहे थे। इस मीटिंग की अध्यक्ष के रूप में इलाइची बैठी हुई थी। हरे बाल और सांवले चेहरे वाली इलाइची कमाल की सुन्दर लग रही थी। न चाहते हुये भी तोताराम एक ठंडी आह भरकर रह गया। उसने अपने सिर को झटका। पुराने प्रेम के चक्कर में फर्ज से वो मुंह नहीं मोड़ सकता था। यह काम का वक्त था न कि प्रेम की पींगे बढाने का या उनकी यादों में खोने का।
उसने अपने जेब से एक छोटा सा उपकरण निकाला जो कि मकड़ी की तरह दिखता था। कुछ देर तक यह मकड़ी हवा में रही और फिर यान के फर्श पर आ गई। अब मकड़ी चलते हुई शीशे के दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी। थोड़ा ही वक्त हुआ था कि मकड़ी ने अपनी जगह चुन ली।
तोताराम के कानों में अब कुछ ध्वनियाँ आने लगी। लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह चल क्या रहा है। आवाज़ का सिर या पैर उसके पल्ले नहीं पड़ रहा था। उसने अपना सिर खुजाया और फिर अपने हियरिंग ऐड को निकालकर उसमें कुछ बदलाव किये।
उसका हियरिंग ऐड असल में एक सुपर कंप्यूटर भी था जो कि ऐसी एन्क्रिप्शन को तोड़ने में महारत हासिल करता था।
यह वह वक्त था जब गुप्त मीटिंग में बोला नहीं जाता था। मीटिंग में हिस्सा लेने वाले एक माइक में बोलते थे जो कि उस चीज को एन्क्रिप्ट करके दूसरे लोगों को भेजता था और सुनने वाले के कान में वो चीजें डिक्रिप्ट होती और वो फिर बात को समझ पाता। यह सब पलक झपकते ही हो जाता। बिना माइक और हियरिंग ऐड वाले व्यक्ति को जो आवाज़ सुनाई देती वो खाली एक ऐसी आवाज़ होती जिसका वो अर्थ जन्म जन्मान्तर में भी नहीं जान सकता था।
तोताराम का हियरिंग ऐड मिलिट्री ग्रेड था। यानी आम लोगों की पहुँच से बाहर। उसने कुछ ही पलों में एन्क्रिप्शन को क्रैक कर दिया। और अब उसे इलाइची की शोख आवाज़ सुनाई दे रही थी।
“मेरे दोस्तों! हम सब ने एक चीज का फैसला तो कर दिया है। अब एक और महत्वपूर्ण मसले पर बातचीत करने का वक्त आ गया है।”
“अब आई ऊँटनी पहाड़ के नीचे।”, तोताराम बुदबुदाया।
तोताराम पूरे ध्यान से बातें सुनने की कोशिश करने लगा कि तभी उसे लगा किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा है।
“जाओ न काम करने दो”, तोताराम धीरे से फुसफुसाया। और फिर जीभ को दाँतों के बीच रखकर बोला-“धत तेरी की। पकड़ा गया।”
तभी उसके पीछे से वैसे ही फुसफुसाहट उभरी – “सही फरमाया तोतु। आखिर पकड़े ही गये। ” तोताराम की अदृशय आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गई।
उसने पीछे मुड़कर देखा। और फिर शीशे के दरवाजे की ओर देखा।
वही हरे बाल और वही सांवला चेहरा। पीछे वाली की आँखों में चश्मे थे जिसे अब वो निकाल रही थी। हैरत से तोताराम के मुँह से निकला-“दो दो।”
इलाइची ने चश्मा उतारा और आँखें मटकाते हुए बोली -“दो दो नहीं। अभी तो और भी रहस्य खुलेंगे, मेरे तोतु। पहले तुम तो अपना चेहरा दिखाओ,प्यारे। कई दिनों से नहीं देखा है तुम्हे। देखूँ तो सही मेरी याद में कितने दुबले हुए हो।”
तोताराम फँस चुका था। अब कुछ नहीं हो सकता था। उसने सूट का एक बटन दबाया और अब वो दिखाई देने लगा।
“लेकिन कैसे? उसने कहा।” और अन्दर की तरफ इशारा करते हुए कहा -“ये क्या गोरख धंधा है।”
“ए आई और रोबोटिक्स का अनूठा मिश्रण है, बौड़मदास। मीटिंग से रिलेटेड बातें उसमें फीड कर दी थी। उससे वो जरूरी चीजें खुद हैंडल कर सकती है। चीजें मुझे भी रिले होती रहती है ताकि जब वो फंसे तो मैं कण्ट्रोल ले सकूं।”
तोताराम हैरान सा खड़ा था।
इलाइची ने फिर बोलना शुरू किया -“ज्यादा खुश न हो। तुम्हे छोड़ने से पहले तुम्हारी याददाश्त मिटा दी जाएगी। ताकि यह राज राज ही रहे।”
“और तुमने मुझे पहचान कैसे लिया? मैं तो अदृशय था।” तोताराम ने बोला।
यह सुनकर इलाइची मुस्कराने लगी और गुनगुनाते हुए बोली
“शब-ए–फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तों अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब, आहिस्ता आहिस्ता**
इतनी भी क्या जल्दी है तोतु। अभी तो आये हो। वी आर गोइंग टू हेव फन।”
यह सुनना था कि तोताराम ने कहा – “हाथ आऊंगा तो न बच्चू।” और कहने के साथ तोताराम ने एक राउंड हाउस किक इलाइची के जड़ दी।सब कुछ बहुत तेजी से हुआ था। होना तो यह चाहिए था कि इलाइची को उछलकर दूर जा गिरना था लेकिन जो होना चाहिए अक्सर ऐसा होता थोड़े न है।
तोताराम ने खुद को एक टांग पर खड़ा पाया। दूसरी टांग एक मजबूत पकड़ में फँस चुकी थी। उसने सामने देखा।
इलाइची ने दोनों हाथों से उसकी टाँग पकड ली थी। इलाइची ने तोताराम की एड़ी को हल्के एक तरफ को मोड़ा और कुछ देर में तोता राम जमीन पर था।
फिर इलाइची ने उसे टाँग से अपनी तरफ खींचा और झटके से उसे उछालकर उसके गिरेबान से पकड़ कर उसे हवा में उठा दिया। यह सब इतना अप्रत्याशित और इतना जल्दी हुआ था कि तोताराम को पता ही नहीं लगा कि कब वो जमीन पर था और दूसरे ही पल कब उसे इलाइची ने जमीन के ऊपर उठा रखा था।
तोताराम आँखे फाड़फाड़कर उसे देख रहा था। उसकी होंठ खुल और बंद हो रहे थे।
लड़खड़ाती आवाज़ में उसके मुँह से निकला -“कैसे?”
जवाब में इलाइची केवल मुस्करा दी।
तभी उसे इलाइची की आवाज़ सुनाई दी। “बचपन से जानते हो मुझे।जब पुलिस बनती थी तो भी तुम्हे पकड लेती थी। और जब चोर बनती थी तो भी तुम्हे ही पकड़ लेती थी। इतना तो समझना चाहिए।” इलाइची के होंठ नहीं हिल रहे थे। आवाज़ उसके दाईं तरफ से आई थी।
उसने उधर देखा तो उसे एक और झटका लगा।
इलाइची खड़ी थी। हरे बाल,सांवला रंग और चेहरे पर वो मुस्कराहट जो बचपन से लेकर आजतक तोताराम को हिलाकर रख देती थी। इलाइची को इस बात का पता था और इसलिए अपनी आवाज़ में और शोखी घोलते हुए वो बोली- “तोतु! जो एक एंड्राइड बना सकती है, वो दो या तीन क्यों नहीं।”कहकर इलाइची मुस्कराने लगी।
इलाइची ने दूसरी इलाइची को देखा और कहा – “इन्हें चैम्बर में ले जाईये। उधर ही इनका ख्याल रखा जायेगा।”
दूसरी इलाइची ने सिर को जुम्बिश दी। और हवा में लटकते हुए तोताराम को लेकर चैम्बर की और बढ़ चली।
न जाने क्या गोरखधंधा था। तोताराम से कुछ सोचते नहीं बन रहा था। इलाइची ने उसे फिर मात दे दी थी।
“मैं तुम्हे देख लूँगा” वो लटके हुए बुदबुदाया।
“शौक से!” उसको जिस इलाइची ने उठाया था उसने मुस्कुराते हुए कहा।
तोताराम ने अपनी आँखें भींच ली वरना वो उस किस को देख लेता जो इस इलाइची ने उसकी तरफ उछाला था। उसे ऐसे देख इलाइची फिर मुस्कराने लगी।
समाप्त
**’अमीर मिनाई जी’ की गजल से. पूरी गज़ल आप इधर इधर पढ़ सकते हैं:
#तोताराम_ब्रह्मांड_का_रक्षक
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
यह किस्सा मेरी ई बुक एक शाम तथा अन्य रचनाएं में भी संकलित है।
विकास जी
नमस्कार
मै विजय पांडे सुसनेर जिला आगर मालवा मध्य प्रदेश से हूँ। पिछले 2 माह से आपका ब्लॉग दुई बात पढ रहा हूँ । वाह मजा आ गया । अभी आपकी कुछ ही रचनाएँ पढी है । दिल्ली बुक फेयर, मेकलाडगंज ट्रिप, विश्व पुस्तक मेला, कानपुर मीट, माऊंटआबू फेन मीट पढते पढते ऐसा एहसास होने लगा जैसे मै स्वयं आपके साथ उन जगह और घटनाओं में मौजूद हूँ । इतना सजीव वर्णन आपके शब्दों में जादू है । माऊंटआबू फेन मीट ,कानपुर मीट और मेकलाडगंज ट्रिप तो मैंने तीन बार पढी । मैं भी पाठक साहब का जबरदस्त फेन हूँ । और पाठक साहब को पिछले 18 सालो से पढ़ रहा हूँ ।
मिस एडवेंचर आफ तोताराम बहुत बढ़िया लगा । आपकी कल्पना शक्ति बहुत जबरदस्त है । ऐसे ही लिखते रहिये।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
शुक्रिया सर। आपने अपना बहुमूल्य समय निकालकर इधर कमेंट किया। आपके लिए विचारों को पढ़कर मैं फूला नहीं समा रहा हूँ। इसी तरह अपना प्यार बनाकर रखियेगा। आगे और फैन मीट्स, यात्रा वृत्तांत और कहानियों को आपके समक्ष लाता रहूंगा।
Badhiya aur unique kahani. I liked it.
वाह, बहुत बढ़िया, सारी सिरीज़ पढ़ने का मन हो गया।
शुक्रिया हितेश जी।
शुक्रिया,नृपेंद्र जी। मैं भी इन्तजार में हूँ कि कब तोताराम मुझे अपने साथ दोबारा लेकर जाये। ब्लॉग पर आते रहियेगा।
बेहद सराहनीय लेखन है विकास जी, संवाद संप्रेषण,भावाव्यक्ति, कथानक,पात्र,घटनाक्रम सबका तारतम्य बहुत अच्छा है।
मेरी हार्दिक शुभेच्छाएँ स्वीकार करें।
आपको पसंद आया इसके लिए हार्दिक आभार।मुझे स्पेस, टाइम ट्रेवल,विज्ञान गल्प में रूचि है तो कुछ उस हिसाब से लेकिन मजाकिया लिखना चाह रहा था। अभी इन्ही किरदारों को लेकर एक विस्तृत लघु उपन्यास लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। अगर लिख सका तो इधर डाला करूंगा उसे।