क्यों पढ़ते हो? क्या मिलता है पढ़कर?
यह सवाल अक्सर मुझसे पूछा जाता है। न जाने कितनी बार मुझसे न जाने कितने लोगों ने यही सवाल किया है। मैं उनसे क्या कहूँ, यही मन में सोचता रहता हूँ। क्या वो समझ पाएंगे? शायद या शायद नहीं। इसी भाव के तहत इसे लिखा है। आपसे भी ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं? ऐसी कौन सी बात है जो दूसरे समझ नहीं पाते हैं। बताइये।
क्यों पढ़ते हो तुम? क्या मिलता है पढ़कर?
अक्सर पूछा जाता है मुझसे,
मैं उन्हें देखता हूँ,
फिर देखता हूँ उस सफ़हे वो जिस पर मैं उस वक्त होता हूँ,
ढूंढता हूँ बुक मार्क और रख कर उसे उन सफ़हों के बीच,
कर देता हूँ बंद किताब,
मैं देखता हूँ उनकी सवालिया आँखों को और लेता हूँ गहरी साँस,
दुनिया में न जाने कितनी ज़िन्दगी है और है न जाने कितनी जगह,
मैं जीना चाहता हूँ सबको,
देखना चाहता हूँ सब कुछ,
पर है क्या ये मुमकिन?
नहीं- वो कह कर हिलाते हैं गर्दन
है-मैं कहता हूँ
शब्दों के उड़न खटोले पर बैठकर मैं पहुँच जाता हूँ दूर देश में,
शब्दों के ज़रिये अनुभव कर सकता हूँ मैं कई ज़िंदगियाँ,
उनके चेहरे पर कायम रहता है सवाल,
पागल है साला! उनके होंठ बुदबुदाते हैं,
वो परे देखने लगते हैं,
मैं मुस्कराता हूँ, थोड़ी देर तक देखता हूँ उनको
फिर खोल लेता हूँ किताब,
जो चीज रुक गयी थी वो चलने लगती है,
किरदार बोलने लगते हैं,
मैं भी उनमे से एक हो जाता हूँ,
रोमांच,रहस्य, प्रेम,विरह,सुख दुःख- सभी को महसूस कर पाता हूँ
वो कनखियों से मुझे देख रहे है,
मैं बस मुस्कराकर रह जाता हूँ
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
एक आदत सी है पढने की, बिना पढे रहा नहीं जाता, चैन नहीं आता।
– गुरप्रीत सिंह
जी, सही कहा अपना।
पढ़ना भी एक आदत है जो हर किसी के बस की बात नहीं होती ।
जी,सही कहा। लेकिन अगर रुचिकर मिले तो लोग पढ़ते हैं। मेरे भाई हैं वो उपन्यास नहीं पढ़ पाते हैं लेकिन क्रिकेट या स्पोर्ट्स से जुड़ी किताबें वो चट कर जाते हैं।ये किताबें भी तभी पढ़ते हैं जब उन्हें कोई दे वरना इनके बिना भी ले लेंगे। अब सोच रहा हूँ अगर कोई उपन्यास हो जिसके केंद्र में कोई खेल हो तो क्या वो उसे पढ़ेंगे? ये प्रयोग जल्द ही करूँगा।
विशी सिन्हा जी की कितने सिकंदर रेकमेंड कर दीजिये. उपन्यास जैसा कसाव है और खेल पर है.
ई-बुक वाला मामला उन्हें जमता नहीं है। खैर,कोशिश करूँगा।
बहुत सही लिखा है आपने । मेरे साथ भी इस तरह का वाकया आए दिन होता रहता है मुझे भी पढ़ने का जबरदस्त शौक है और बिना पढे कोई दिन नहीं निकलता है ।लोग मुझे शाॅप पर बुक्स पढते हुए देखते हैं तो मुझसे कहते हैं कि आज के जमाने में मनोरंजन के अत्याधुनिक साधन उपलब्ध है उसके बाद भी बुक पढ रहे हो। व ओर भी बहुत कुछ कहते है। तो मै उनसे कहता हूँ कि जिंदगी के कई रंग किताबों में ही मिलेंगे ।किताबें सबसे अच्छी दोस्त और मार्गदर्शक होती है।
किताब पढ़ने का मजा ही कुछ और होता है है।जिसका लुफ्त हर व्यक्ति को उठाना चाहिए।
जी सही कह रहे हैं। मेरे घर में तो इसे एक नशे की तरह देखा जाता था। ताश खेलना और पढ़ना एक ही बात समझी जाती थी। अब माहौल थोड़ा बदला है। अब घर में किताबे रहती हैं तो मम्मी और पापा भी गाहे बगाहे पढ़ लेते हैं।