मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #2

मच्छर मारेगा हाथी को - अ रीमा भारती फैन फिक्शन

2)

चार दिन पहले, आईएससी हेड क्वार्टर 

मैं चीफ खुराना के समक्ष उनके ऑफिस में बैठी थी।

“रीमा, मैंने तुम्हे कहा था न कि तुम्हे अभी आराम करना चाहिए।” चीफ खुराना ने कहा।

“पर सर मैं एक दम फिट हूँ। मुझे कुछ नहीं हुआ है। आई एम रेडी फॉर वर्क।” मैंने कहा।

असल में पिछले मिशन में मुझे कुछ चोटें आ गई थी। डॉक्टर ने मुझे एक महीना आराम करने के लिए कहा था लेकिन मुझे हॉस्पिटल में ऊब सी होने लगी थी। यही कारण था कि मैं दो हफ़्तों में ही हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर अपने घर आ गई थी और अब अपने चीफ के मना करने के बाद भी ऑफिस में थी। बहुत दिनों से कोई रोमांचक कार्य मैंने नहीं किया था इसलिए किसी नये मिशन में जाने के लिए मैंने खुराना साहब से बात करने की ठानी थी लेकिन वो तो मुझे कोई मिशन देने को तैयार नहीं थे।

“देखो, रीमा तुम मेरी सबसे बेहतरीन एसेट हो। मैं नहीं चाहता कि तुम्हे कुछ लॉन्ग टर्म इश्यूज हों” खुराना साहब कह रहे थे।

मैंने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि उन्होंने हाथ उठाकर मुझे चुप रहने का इशारा करते हुए कहा, “बेटा मेरी बात पूरी होने दो। मैं नहीं चाहता कि तुम्हे कोई नुकसान हो। तुम्हे अभी पूरा आराम करना पड़ेगा। एक बार तुम पूरी तरह से स्वस्थ हो जाओगी तो मैं तुम्हे खुद एक मिशन पर भेजूँगा।”

“पर सर मैं एकदम ठीक हूँ।”, मैंने अपनी बात दोहराई थी।

खुराना केवल मुझे देखते रहे। उनके आँखों में मौजूद प्रश्न मैं साफ पढ़ सकती थी।

यह सच था कि कुछ दिनों से मुझे बुरे बुरे सपने आ रहे थे। उन बच्चियों की सूनी सूनी आँखें मुझे सपने में दिखती थी। वो मुझसे सवाल करती सी प्रतीत होती थी कि मैं उन्हें क्यों नहीं बचा पाई। मैं अक्सर रात को इन सपनों से डर तक उठ जाया करती थी। मैं हाँफते हुए उठकर बैठती तो खुद को पसीने से लथपथ पाती थी। मुझे पता था कि मैं यूं ही खाली बैठी रही तो मेरी नाकामियाबियाँ मुझे यूँ ही कचोटती रहेंगी। मेरे नाकामयाबियों के राक्षस यूं ही अपने दाँत मेरे दिमाग में गाढ़ते रहेंगे और मैं यूं ही तड़पती रहूँगी। इन सब चीजों से मुझे कोई मिशन ही निजाद दिला सकता था। मिशन की प्लानिंग और उसे पूरे करने का जोश ही इन भूतों से मेरा पीछा छुड़ा सकता था।

“सर, आई एम फाइन” मैंने झिझकते हुए कहा।

“नो यू आर नोट रीमा।” खुराना साहब ने अपना फैसला सुनाया था। “मुझे पता है तुम ठीक नहीं हो। कुछ चीजें हैं जो तुम्हे परेशान कर रही हैं।  इतने साल साथ काम करने के बाद मुझे इतना तो पता चल जाता है कि मेरा कौन सा एसेट किस स्थिति में है। कितने दिन से ठीक से सोयी नहीं हो?”

“सर वो!!”

“प्लीज रीमा। आई नो यू वांट सम एडवेंचर। तुम्हे एडरेनालिन रश की नहीं अपितु आराम की जरूरत है। तुम्हे अभी दो हफ्ते और आराम करना है। तब तक तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है। तुम जाओ। घूमो फिरो और अपने दोस्तों से मिलो।” खुराना ने अपना फैसला सुनाया था।

“ओके सर” मैंने जवाब दिया था। अब बहस करना बेमानी था। मैं उठकर चलने लगी तो खुराना ने कहा-“और रीमा!” मैं मुड़ी और उन्हें देखा,”एन्जॉय योर वैकेशन डिअर। तुम इसे डिसर्व करती हो।”

“जी सर” मैं जबरन मुस्कराई और ऑफिस से बाहर आ गई।

****

मैं अपने फ्लैट में मौजूद थी। रात के बारह बज गये थे और मेरा सोने का इरादा नहीं था। मैं सोना नहीं चाहती थी। उन आँखों का सामना नहीं करना चाहती थी।
सामने टीवी चल रहा था लेकिन मेरा उस पर कोई ध्यान नहीं था। उसके शोर में मैं अपनी बेचैनियों को नहीं छुपा पा रही थी। क्या किया जाये? कहीं बाहर चला जाये? हर रोज क्लब जाकर भी मैं उकता गई थी लेकिन इसके अलावा चारा क्या था? सोना मुझे नहीं था। इधर कमरे में कोई नहीं था। कम से कम क्लब जाकर टाइम पास तो हो सकता था। ऐसे ही विचार मेरे मन में आ रहे थे।

अपने विचारों को अमलीजामा पहनाने के खातिर मैं अपने बेडरूम की तरफ जा ही रही थी  कि मेरे फोन ने मेरे बढ़ते कदमो को रोका। मेरी नज़र दोबारा घड़ी पर पड़ी। साढ़े बारह बज रहे थे। इतनी रात को किसका कॉल होगा। मैंने सोचा और फोन की तरफ बढ़ी।

मैंने  स्क्रीन को देखा तो पाया अनजान नम्बर से कॉल था।

मैंने फोन रिसीव किया और कान पर लगाया था कि किसी लड़की का घबराया हुआ स्वर मेरे कान में पड़ा -“हेल्लो, इस दिस मिस रीमा भारती स्पीकिंग?”

“येस, व्हूस देयर?” मैं सवाल दागा। अनजान नम्बरों से मुझे कॉल कम ही आते थे। इस नंबर पर किसी का कॉल करना और वो भी मेरा नाम लेकर कॉल करना ऐसी घटना थी जिसने मेरी जासूसी इंद्री को सक्रिय कर दिया था।

“दीदी मैं सुनीता नेगी। प्रियंका जोशी ने आपका नम्बर दिया था।” उधर से एक ही साँस में बोला गया। एक पल के लिए तो मुझे ठिठकना पड़ा। कौन प्रियंका जोशी? मेरे मुँह से यह सवाल निकलने वाला था कि मुझे पिछली घटनाएं याद आ गयीं।

प्रियंका जोशी एक पत्रकार थी जिसने एक केस में मेरी मदद की थी। ऑर्गन हार्वेस्टिंग का केस था जिससे मैं जुड़ गई थी। उस केस के तार फिर आगे जाकर आतंकवादी संगठन की फंडिंग से जुड़ गये थे। और फिर प्रियंका की रिसर्च की मदद के साथ मैंने  इस रैकेट को खत्म कर दिया था। इसके सरगनाओं को मौत के घाट उतारने में मैं कामयाब हुई थी।

इस केस में प्रियंका की जान भी जाते जाते बची थी। मैंने प्रियंका  की जान भी बचाई थी और इस कारण जब मैं वापिस आई थी तो उसे अपना नंबर देकर आई थी। मैं उसे कहा था कि जब जरूरत हो वो बेहिचक मुझे बता सकती है। और अब जाकर पूरे दो साल बाद उधर से कॉल आया था। और कॉल भी प्रियंका का नहीं, उसकी एक दोस्त का था।

“हाँ, बोलो।” मैंने कहा।

“दीदी प्लीज सेव मी। मेरी जान खतरे में है। आप ही मुझे बचा सकती हो” उधर से कहा गया।

“मुझे तफसील से बताओ,क्या हुआ?” मैंने कहा।

“दीदी वो…वो आ गये” उधर से कहा गया और फिर दरवाजा भड़भड़ाने की आवाज़ आने लगी।

“तुम किधर हो? मैंने उससे पूछा।”

उसने अपना पता बताया।

“घर में छुपने की जगह है।” मैंने पूछा।

उसने बताया।

“दरवाजे को किसी भारी चीज से बन्द कर दो और छुप जाओ। और बाहर मत निकलना। मैं इधर से कुछ करती हूँ।” कहकर मैंने फोन काटा और दिल्ली फोन मिलाया।

दिल्ली पुलिस में मेरे अपने कांटेक्ट थे और मेरे कहने पर वो सुनीता की मदद कर ही सकते थे। मैंने उन्हें पता बताया और जल्द से जल्द उधर पहुँचने के लिए कहा। कुछ देर बाद मुझे उस अफसर का नम्बर मिल गया जो टीम लेकर सुनीता के घर के लिए निकला था। उनसे बात करके मैंने वो नम्बर सुनीता से उनकी बात करवा ली थी। पाँच मिनट में वो लोग सुनीता के घर में होते। अब मुझे दिल्ली के लिए निकलना था।

ऊपर वाले के भी खेल निराले हैं। मैंने सोचा।

मुझे मुंबई से दिल्ली पहुँचने में वक्त लगना था। मैंने अगली फ्लाइट, जो कि दो बजे की थी और जिसने साढ़े चार बजे के करीब मुझे दिल्ली पहुँचा देना था, का टिकेट मैंने बुक करवा लिया था। मिशन के कारण मेरा इधर से उधर जाना इतना होता है कि सूटकेस और बैग हमेशा तैयार होते ही हैं। मैं बेडरूम की तरफ गई और तैयार होने लगी। दस मिनट में मैं तैयार हो गई थी।

एअरपोर्ट पहुँचने में मुझे मुश्किल से आधा घंटा लगना था। मैंने अपना बैग उठाया और एअरपोर्ट के लिए निकल पड़ी।

क्रमशः

फैन फिक्शन की सभी कड़ियाँ:

  1. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #1
  2. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #2
  3. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन  #3 
  4. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #4
  5. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #5
  6. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #6
  7. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #7
  8. मच्छर मारेगा हाथी को -अ रीमा भारती फैन फिक्शन #8
  9. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #9

©विकास नैनवाल ‘अंजान’ 

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #2”

  1. बेहद खूबसूरत…., अच्छा लगा । सोमवार को अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी ।

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