पुनरावृत्ति | लघु-कथा | विकास नैनवाल ‘अंजान’

पुनरावृत्ति | लघु-कथा | विकास नैनवाल 'अंजान'

संजना परेशान सी घर के फर्श पर इधर से उधर घूम रही थी। रह रहकर संजना की नजर दरवाजे के तरफ चली जाती और फिर घड़ी की तरफ उठ जाती जिसकी सुई यह बता रही थी कि साढ़े छः बज चुके थे।

“साढ़े छः हो गये… किधर रह गये आज ये?? और दिन तो सवा छः बजे ही पहुँच जाते हैं।” संजना बुदबुदाई और फिर फर्श पर इधर से उधर चक्कर मारने लगी

अचानक जब दरवाजे की घंटी बजी तो संजना ने तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़कर बिना रुके दरवाजा खोल दिया।

सामने अपने पति को देखकर उसने अपने पति से कहा -” जानते हो आज क्या हुआ?”

रमेश ने उसे एक नजर देखा और फिर भीतर आकर बोला -“पानी पिलाओ। बहुत प्यास लग रही है।”

अपने पति की प्रकृति पर उसे पहले से ही नाज़ था। उसका पति उससे ज्यादा कुछ नहीं कहता था और अक्सर उसकी सभी बातों को मान लेता था। मायके में उसकी बहुत तारीफ होती थी की उसे ऐसा पति मिला है जो उसकी उँगलियों पर नाचता है। वहीं उसके ससुराल वाले लोगों से यह कहते नहीं थकते कि उनके सीधे बेटे को उनकी बहु दबाकर रखती है। संजना को ससुराल का यह कहना हमेशा से ही खलता था।

“मैं क्या कोई डायन हूँ जो उनके भोले भाले बच्चे का खून चूस रही हूँ।”,परेशान होकर वह अपने मायके वालों से कहती। “मैं जो करती हूँ उनके भले के लिए ही तो करती हूँ। अगर मैं ये न करूँ तो सभी उनका नाजायज फायदा उठाएं वह हाथ नचाते हुए अक्सर कहती।”

“पानी।”- रमेश ने बोला तो संजना अपने ख्यालो से बाहर निकली।

वह किचन में गयी और वापस लौटी तो रमेश को उसने हॉल में मौजूद सोफे पर बैठे हुए पाया। वह कोई अखबार उलट पलट रहे थे। पानी का गिलास लेकर उसने टेबल पर रमेश के सामने रखा और उनके बगल में जाकर बैठ गयी।

रमेश ने पानी का गिलास उठाया, एक घूँट पानी पिया और फिर एक गहरी साँस लेकर बोला – “अब बोलो..क्या हुआ है? तुम इतनी परेशान क्यों हो?”

“राघव तो बिल्कुल तुम्हारे ऊपर गया है। आजकल इतना सीधा बनकर कोई रह सकता है? आज के जमाने में तेज तर्रार होना ही जरूरी है।” संजना ने बिना रुके बोला।

“अब क्या कर दिया तुम्हारे लाडले ने?”- रमेश उसे देखकर बोला।

राघव बिल्कुल अपने बाप पर गया था। बिना वजह की तू तड़ाक चिल्ल पौ उसे पसंद नहीं थी। वह जियो और जीने दो के फलसफे में विश्वास रखता था और इस कारण उसकी सभी से पटती थी। अपनी माँ की भी ज्यादा बातें वह आसानी से मान जाता था और रमेश के साथ भी उसका दोस्ताना रिश्ता ही था। माँ बाप उसे कुछ कहने की कभी आवश्यकता नहीं पड़ी थी।

न जाने क्यों संजना को लगा कि रमेश के चेहरे पर एक तरह की मुस्कराहट खेल रही थी।

“वह घर से अलग जाने की बात कर रहा है।”- वह बेटे की शिकायत करते हुए बोली।

“ठीक है।”- रमेश बोला।

“ठीक है!!ठीक है!!”- संजना गुस्से से बोली-“तुम्हारा बेटा घर से जा रहा है और तुम्हे यह ‘ठीक’ लग रहा  है।” वह चिल्लाई।

“दो बीएचके के फ्लैट में कहाँ इतने लोगों का गुजारा होगा”- रमेश बिना किसी भाव के बोला-“अच्छा है जो वो जा रहा है।”

“ऐसा तुम कैसे कह सकते हो?”- वह बोली। “यह सब उसी का किया धरा है। मैं तो उससे राघव की शादी के पक्ष में बिल्कुल नहीं थी। उसी के कारण यह हुआ है।”

रमेश ने संजना को केवल देखता रहा और फिर कुछ देर बाद बोला-“तुम बात का बतंगड बना रही हो। यह आम बात है।”

“मतलब?” संजना समझकर भी अनजान बनकर बोली। वह उठकर संजना के बगल में गया और उसके नजदीक बैठकर उसके हाथों को पकड़कर बोला।

“क्या तुमने आजतक मेरा कभी बुरा चाहा है?”- रमेश ने  संजना से प्यार से प्रश्न किया।

“नहीं मैं क्यों भला ऐसा चाहूंगी। मैं न होती तो न जाने तुम्हारा क्या होता। लेकिन यहाँ मेरी बात नहीं हो रही है।”संजना अपनी ही रौ में बोलती चली गयी।

“सही कहा।” रमेश ने कहा-“जब तुम मेरा बुरा नहीं चाहती तो तुम्हें क्यों लगता है की शर्मिष्टा राघव का बुरा चाहेगी। तुम बेवजह परेशान हो रही हो। राघव से मेरी बात हो गयी है। वो पास की ही एक इमारत में रहने जा रहे हैं। यहाँ आते जाते रहेंगे। चिंता न करो।” रमेश ने कहा।

कुछ देर तक संजना केवल रमेश को देखती रही।

“मैं चाय लेकर आती हूँ।”- वह सिर्फ इतना ही बोल पाई।

“और इसका एक फायदा भी है।”- रमेश बोला।

“क्या?”

“हमे भी कुछ वक्त मिल जायेगा और उन्हें भी।” रमेश ने कहा तो संजना ने अपनी आँखें ऐसे घुमाई जैसे रमेश के बचपने पर परेशान हो रही हो और फिर बोली – “तुम भी बस। “

रमेश जो न कहकर भी कह गया था वह वो समझ गयी थी। यह घटनाओं की पुनरावृत्ति ही तो थी केवल किरदार बदल गये थे।

रमेश वहाँ बैठा मुस्करा रहा था।

समाप्त


यह लघु कथा उत्तरांचल पत्रिका के मार्च 2020 अंक में छपी थी।

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “पुनरावृत्ति | लघु-कथा | विकास नैनवाल ‘अंजान’”

  1. बेहद अच्छी और सीख भरी लघुकथा । बहुत बहुत बधाई विकास जी उत्तरांचल पत्रिका में लघुकथा प्रकाशन हेतु ।

  2. वाह!!
    बहुत ही सुन्दर, सार्थक लघुकथा
    सही कहा इतिहास स्वयं को दोहराता है।

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