इस बार दीवाली बहुत अच्छी मनी। इसके दो कारण थे। पहला कारण तो ये ही कि घर वाले सब साथ थे और दूसरा कारण कि काफी किताबें भी संग्रह में जुड़ीं।
बहुत दिनों बाद पापा मम्मी साथ में थे तो दीवाली बेहतरीन हो गयी। वरना हम इधर फँस जाते थे और वो पौड़ी से आ नहीं पाते थे। पर इस बार एक हफ्ते उनके साथ बिताने को मिला। उनके आने से पहले मैंने सोचा था कि श्वेतांश की जिम्मेदारी उनको देकर मैं खुद काम पर लग जाऊँगा और पेंडिग प्रोजेक्ट्स खत्म कर दूँगा लेकिन काम का मन ही नहीं करता था। मम्मी के साथ गप्पे मारने से जरूरी काम कोई नहीं लगता था बस खानापूर्ति के लिए लैपटॉप जरूर खुला रहता था। उनके साथ गप्पे मारने में बड़ा मज़ा आता है।
ऐसा नहीं था कि सब कुछ अच्छा अच्छा ही था। दीवाली की सफाई को लेकर थोड़ा बहुत बहसबाजी मेरी पापा से जरूर हुई थी । मैं आलसी आदमी हूँ और चाहता हूँ वो मेरी तरह आलस से रहे। कुछ दिनों के लिए आते हैं इधर तो आराम करें। वहाँ तो काम करते ही हैं। लेकिन वो कामकाजी लोग हैं जो काम करते रहना चाहते हैं तो थोड़ा बुरा लगता है और मुँह से फिर कुछ ऐसा निकल जाता है जो नहीं निकलना चाहिए। लेकिन ये सब तो चलता रहता है। साथ रहो और थोड़ा बहुत बहस बाजी न हो तो मज़ा भी नहीं आता।
मम्मी पापा के आने से हमें भी राहत मिली। दीवाली की खरीद में वैसे हमें श्वेतांश को लेकर जाना पड़ता है और वो थोड़ा थकावट भरा काम रहता है। इस बार उसे छोड़कर दीवाली की खरीददारी के लिए गए। खरीददारी करना मुझे बिलकुल पसंद नहीं है और मेरी कोशिश रहती है कि इससे जितना हो सके उतना बचूँ। मैं तो अपने लिए कपड़े लेने भी तब जाता हूँ जब लगता है कि अब कुछ पहनने एक लिए बचा नहीं है। पर दीवाली की खरीददारी से बचा नहीं जा सकता। पहले प्लान था कि पत्नी जी और पापा जाएंगे खरीददारी के लिए और मैंने मील भर लंबी साँस छोड़ी थी कि चलो बच गया। पर फिर पापा को सुबह से काम करता देख मेरा घोड़े बेचकर सोया जमीर जाग ही गया और मैं पत्नी जी के साथ चलने को आगे आ गया। वैसे खरीददारी तो वो ही करती हैं। मुझे तो बस साथ रहना पड़ता है और सामान उठाना होता है। यही काम इस बार भी किया। इस बार जाने का फायदा ये हुआ कि मैं, जो घर में टल्ले लगी, चप्पल में ही घूम रहा था अपने लिए एक चप्पल ले ही आया। ये जुदा बात है कि वो नई चप्पल अभी निकली नहीं है। मेरी टल्ले लगी चप्पल अभी पूरा साथ निभा रही है।
दीवाली में अक्सर पटाखे नहीं लेता हूँ। बस पत्नी जी के कहने पर एक आध फुलझड़ी ले लेते थे। इस बार पापा आये हुए थे और उन्हें पटाखे फोड़ने का शौक रहा है और वो पटाखों को लेकर मेरे उदासीन रवैये को देख थोड़ा निराश भी होते हैं। वो श्वेतांश महाराज के लिए चरखी अनार और फुलझड़ी बड़े जोश से ले आये थे। जोश इसलिए क्योंकि साथ मैं भी गया था। उन्होंने जोश से जलाए भी लेकिन जब श्वेतांश ने कोई इनमें रुचि नहीं दिखाई तो दो अनार और एक चरखी चलाने के बाद उनका जोश भी ठंडा हो गया । इसके चलते खरीदे हुए पटाखे धरे के धरे रह गए। श्वेतांश महाराज को अपने घर में पटाखे फोड़ने के बजाए गली में इधर उधर भागना ज्यादा भा रहा था। चूँकि सब जगह रोशन था और पटाखों की आवाज भी आ रही थी तो उसे दूसरों के फूटते पटाखे शायद ज्यादा पसंद आ रहे थे। पापा बाकी सामान लेकर अंदर चले गए और ये देख मुझे अच्छा लगा कि चलो थोड़ा तो प्रदूषण में योगदान कम हुआ हमारा।
दीवाली के अच्छे होने का दूसरा कारण किताबें थी जो संग्रह में जुड़ीं। दीवाली की आम खरीददारी के अलावा इस बार मैंने किताबों की खरीददारी करी। वैसे तो कुछ महीने पहले ये सोचा था कि अब अधिक किताबें नहीं खरीदूँगा लेकिन दीवाली की सेल में किताबें ऐसे आकर्षक दामों में मिल रही थी कि मैंने अपने उस पुराने विचार को झाड़ पोंछ कर गर्मियों के कपड़ों के साथ आलमारी में डाला और खूब सारी किताबें खरीद ली। न जाने इन दामों पर ये किताबें मिले न मिलें। यह किताबें 28 अक्टूबर से लेकर 31 अक्टूबर के बीच लीं थी। इनमें से कुछ किताबें ऐसी थीं जो विशलिस्ट में काफी समय से थीं तो लेनी ही थी लेकिन काफी ऐसी भी थीं जिन्हें उनके ऊपर मौजूद आकर्षक छूट ने लेने पर मजबूर कर दिया।
चूँकि दीवाली थी और ऑनलाइन डिलिवरी देर से हो रही थी तो इस दौरान किये गए अधिकतर ऑर्डर 7 नवंबर तक मेरे पास अलग अलग खेपों में पहुँचे। दीवाली के जोश में 25 किताबें संग्रह में जुड़ गयीं।
भाषा की बात करें तो इस बार मैंने अंग्रेजी और हिंदी मिक्स किताबें खरीदी। जहाँ अंग्रेजी की 15 किताबें ऑर्डर की वहीं हिंदी की 10 किताबें ऑर्डर की।
आज कल मेरा कहानियाँ पढ़ने का मन कर रहा है तो मैंने काफी संकलन भी खरीदे। 11 संकलन थे जिनमें से 8 कहानी संग्रह थे और बाकी तीन लेख संग्रह थे। उपन्यास 13 खरीदे और आत्मकथा एक खरीदी।
तो चलिए ज्यादा देर न करते हुए वो किताबें देखते हैं जो कि दीवाली की खुशी में खरीदी गयी:
उपन्यास
- द मिस्टरी ऑफ सिल्क अंबरेला – आशा नेमियाह (बाल उपन्यास ) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- सीक्रिट ऑफ कैंडललाइट इन – कैरोलीन कीन (किशोर उपन्यास ) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- वेयर द सन नेवर सेट्स – स्तुति चांगले | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- द क्रूएल स्टार्स – जॉन बिरमिंगहैम (विज्ञान गल्प) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- द शैटर्र्ड स्काइज – जॉन बिरमिंगहैम (विज्ञान गल्प) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- एंटी क्लॉक – वी जे जेम्स | अनुवाद: मिनिस्थी एस (मलयालम से अंग्रेजी में ) पुस्तक लिंक: अमेज़न
- थीयूर क्रोनिकल्स – एन प्रभाकरण | अनुवाद: जयश्री कलाथिल (मलयालम से अंग्रेजी में) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- फ्रांसिस इट्टी कोरा – टी डी रामाकृष्णन, अनुवाद: प्रिया के नायर (मलयालम से अंग्रेजी में अनूदित) | पुस्तक लिंक:अमेज़न
- द सेवन मून्स ऑफ माली एलमीडा – शेहान करुणातिलका (2022 बुकर विजेता) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- इश्क बाकी – पंकज दुबे | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- उफ्फ़ मन्नू! – अमिता ठाकुर | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- आखिरी दाँव – भगवतीचरण वर्मा | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- रिश्ता – दत्त भारती (सामाजिक उपन्यास ) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
संकलन
- रिलिविंग सुजाता: हिस बेस्ट स्टोरीस इन इंग्लिश – सुजाता | अनुवाद: विमला बालाकृष्णन (तमिल से अंग्रेजी में अनुवाद )(कहानी संग्रह) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- बेस्ट अमेरिकन मिस्टरी एंड सस्पेंस 2023| संपादक: लीजा अंगर (कहानी संग्रह) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- बेस्ट अमेरिकन शॉर्ट स्टोरीस 2023 | संपादक: मिन जिन ली (कहानी संग्रह) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- बायो पिक्यूलियर: स्टोरीस ऑफ अनसर्टन वर्ल्ड – गिगी गांगुली (स्पेकुलेटिव फिक्शन के अंतर्गत आने वाली कहानियों का संग्रह) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- द बर्थ लॉट्री एंड अदर सरप्राइसेज – शेहान करुणातिलका (कहानी संग्रह) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- द मैमथ बुक ऑफ कायजू, सम्पादन: शॉन वॉलेस (दैत्याकार जीवों को लेकर लिखी गयी कहानियों का संग्रह) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- ये जासूस महिलायें – सत्य देव नारायण सिन्हा (महिला जासूसों के किस्से बयान करते लेखों का संग्रह) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- अक्षरों की अजमात – अमृता प्रीतम, सम्पादन: इमरोज़ (अमृता प्रीतम के विभिन्न मंचों में दिए भाषणों का संकलन) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- अमृता प्रीतम की यादगारी कहानियाँ -अमृता प्रीतम (कहानी संग्रह) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- असाधारण वीरता और बलिदान की नई सैन्य गाथाएँ – शिव अरूर और राहुल सिंह (भारतीय सैनिकों की वीर गाथाएँ) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
- बाहर भीतर: आचार्य चतुरसेन की संपूर्ण कहानियाँ भाग 1 (कहानी संग्रह) | पुस्तक लिंक: अमेज़न
आत्मकथा
- मेरी फिल्मी आत्मकथा – बलराज साहनी, सम्पादन: श्रीमती संतोष साहनी | पुस्तक लिंक: अमेज़न
किताबों के विषय में मैं इधर लिख नहीं रहा हूँ। लिखता हूँ तो पोस्ट काफी बढ़ी हो जाती है। पढ़ने के बाद जब इन पर लिखूँगा तो शीर्षक को उन लेखों से लिंक कर लूँगा। अभी तो अमेज़न लिंक दे रहा हूँ जिनके विषय में आप जानना चाहें लिंक पर क्लिक करके अमेज़न पर दिए विवरण से जान सकते हैं।
तो यह थी दीवाली की खरीद।
कुछ मिलाकर सब अच्छा सा रहा। किताबें ऑर्डर करीं, घरवाले आये, पत्नी जी और पापा ने मिलकर सब सजाया, मैंने लड़ी लगाई (सबसे सरल काम ये ही था) और मिठाई भी आई। हाँ, इस बार सोनपापड़ी नहीं थी। मुझे तो बहुत पसंद आती हैं और मैं अपने लिए ले ही लेता हूँ। पर क्योंकि पतिशा आ रखा था तो सोन पापड़ी नहीं ही ली। बाद में ले लेंगे कभी। सोनपापड़ी कहाँ ही जा रही हैं।
बस दीवाली के बाद हवा की गुणवत्ता तो बहुत नीची आ गयी है। अब ये ठीक कब होती है ये देखना पड़ेगा। मुझे लगता है लोग दीवाली में पटाखे जलाने से बाज तो आने से रहे। इसके बजाए दीवाली के एक आध हफ्ते पहले और एक आध हफ्ते बाद तक यदि लॉकडाउन लगा दी जाए तो शायद पटाखों पर बैन नहीं लगाना पड़ेगा। इतना प्रदूषण नियंत्रित हो जाना चाहिए कि दीवाली के पटाखों और पराली का उस पर असर न पड़े। फिर दीवाली के आसपास काम करने का मन वैसे भी नहीं करता तो छुट्टी मिले तो मज़ा आए। पर ऐसा करे जाने की संभावना तो नगण्य है। होता तो मेरे अंदर का आलसी बड़ा खुश हो जाता। खैर, जब तक ठीक नहीं होता तब तक ये धुआँ ही लेना है। मैं तो घर से बाहर कम ही निकलता हूँ। आप भी जितना हो सकें कम ही निकलें। हल्की फुलकी बारिश हो जाए तो शायद राहत मिले।
उम्मीद है आपकी दीवाली भी अच्छी रही होगी।
क्या आपने दीवाली में कोई पुस्तक खरीदी? अगर हाँ, तो वो कौन सी थी?
जब पढ़ने के लिए बहुत ज्यादा किताबें होती हैं तो अक्सर पहली सिटींग में पढ़ी जाने वाली किताब का नम्बर भी अक्सर साल दो साल बाद आता है।
जी सही कहा। पर ये दिल है की मानता नहीं। अच्छी किताब देखकर लेने का मन करने लगता है। फिर अगर डिस्काउंट काफी ज्यादा हो तो लपक ही लेनी पड़ती है।
आपकी दीवाली वाक़ई बहुत अच्छी मनी विकास जी। विवरण जानकर बड़ा अच्छा लगा। आपके द्वारा ख़रीदी गई पुस्तकों में से ‘आख़िरी दांव’ मैंने पढ़ी थी। मुझे यह भगवती बाबू के स्तर से कहीं नीचे की रचना लगी। आपके विचार तो आप स्वयं पढ़ने के उपरांत ही बताएंगे (जब आपको पढ़ने का समय मिलेगा)। दत्त भारती के उपन्यास ‘रिश्ता’ की बाबत आपने विचार (या आपकी पुस्तक-समीक्षा) जानने की आतुरता रहेगी क्योंकि दत्त भारती उपन्यास-जगत में अपने समय के एक प्रतिष्ठित नाम थे।