रविवार, 21 मई 2017
मेरी नींद छः सात बजे के करीब खुल गयी थी। मैं उठा और थोड़ी देर उपन्यास पढने लग गया। फिर धीरे धीरे सब उठने लगे। हम बातचीत करने लग गये। मेरा चाय पीने का मन कर रहा था। मैंने दीपक भाई से बोला कि वो चाय पियेंगे तो उन्होंने हाँ कहा। हमने अपने लिए चाय मंगवाई। इसके इलावा सब धीरे धीरे करके तैयार होने का भी निर्णय किया। हमे सुबह नौ बजे तक निकलना था। इतने में ठाकुर महेश जी हमारे रूम में आये। हमने उनके लिए भी एक चाय मंगवाई।
जब तक दीपक भाई तैयार होने जाते तब तक चाय वाला भी आ गया था। हम चाय पीने लग गये। इसी दौरान विद्याधर भाई आये और उन्होने हमे बुक मार्क्स दिए। मुझे पहले लगा था कि बुकमार्क्स शनिवार दिन में मिले थे लेकिन विद्याधर भाई और दीपक भाई ने ही बताया कि इस वक्त ये हुआ था। इन बुकमार्क्स की खासियत ये थी कि इनके एक तरफ सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब के उपन्यासों के कवर थे और दूसरे तरफ उस उपन्यास से जुदा एक कोट था। ये उपहार देखकर मन बहुत खुश हो गया।
फिर धीरे धीरे करके सब तैयार हो गये। हमने अपना सामान पैक किया और कमरे से निकल गये। कमरे से निकलने पहले दीपक भाई ने कहा कमरे की भी कोई फोटो ले लो तो मैंने जल्दबाजी में एक दो निकाल ली। लेकिन उनको निकालना न निकालना बराबर ही था क्योंकि वो जल्दबाजी में ब्लर आई है। इसके बाद हम बाहर जा रहे थे तो होटल की एक नारंगी रंग की दीवार थी जो बहुत खूबसूरत लग रही थी। एक दो फोटो उसके सामने भी ली। (वो फोटो दीपक भाई के पास हैं। जब देंगे तो इधर अपडेट कर दूंगा।)
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होटल की नारंगी दीवार |
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दीपक भाई |
अब हमने नाश्ता करने नीचे हॉल में जाना था। हम नीचे जाने लगे तो मुझे राकेश भाई मिले। उन्होंने कहा कि वो सुबह सुबह सनसेट पॉइंट की तरफ गये थे। हमने सुबह जाने का निश्चय किया था और उनकी बात सुनकर ही मुझे ये याद आया। मैंने कहा मुझे भी बता देते। उन्होंने कहा कि उन्हें मेरा रूम नहीं पता था और ढूँढते तो काफी लोगों को डिस्टर्ब करना पड़ता। उनका कहना भी सही था। बहरहाल मैं एक जगह जाने का मौका खो चुका था। वैली वॉक अब अगली बार ही हो पायेगा।
खैर, हम नीचे गये, सामान रखा और नाश्ता किया। नाश्ता बेहतरीन था। बुफ्फे सिस्टम था तो सबने जमकर खाया। उसके बाद सामान को हमने एक स्टोर रूम में डाला और अब गाड़ी आने का इन्तजार करने लगे। जब तक इन्तजार हुआ तब तक फोटो सेशन निकला। इस बार तो जी पी सर का कैमरा जो शनिवार को नहीं निकला था निकल चुका था। अब हमारे पास दो दो फोटोग्राफर थे।
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सैंडी भाई की फोटोग्राफी का नमूना। मैं और ठाकुर साहब। |
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नवल जी , संदीप जी , पुनीत भाई , ठाकुर महेश जी |
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योगी भाई (पिक क्रेडिट : सैंडी भाई) |
थोड़े देर में गाड़ी आ गयी और हम सब एक एक गाड़ी में हो गये। हमारी गाड़ी में राकेश भाई, अमीर सर, जीपी सर, संदीप अग्रवाल जी, योगी भाई और मैं थे। हम सब अब अचलगढ़ मंदिर की तरफ जा रहे थे। हम चलना शुरू कर ही रहे थे कि थोड़ी दूर चलकर हमे पता चला कि पीछे से आ रही हमारे ग्रुप की एक गाड़ी वापस होटल की तरफ मुड़ गयी थी। थोड़ा बहुत पूछा कि क्या हुआ तो पता चला कि विद्या भाई और शिव भाई होटल में ही रह गये थे। उनको लेने गाड़ी वापस गयी। फिर बाकी का सफ़र बिना किसी विघ्न के बीता।
जब तक उधर पहुँचते हैं तब तक अचलेश्वर मंदिर के विषय में कुछ बातें :
१ . अचलेश्वर महादेव मंदिर शिव जी का मन्दिर है, जिसका निर्माण ऐसा माना जाता है, 9 वीं शताब्दी में परमार वंश के राजाओ ने किया था। ये मंदिर अचलगढ़ किले के बाहर है जिसका निर्माण भी परमार वंश के राजाओं ने ही किया था।
२.एक किम्वदंती के अनुसार यह मंदिर शिव जी के अंगूठे के निशान के आस पास बना है। इधर शिव जी के अंगूठे की पूजा भी होती है। इसके पीछे कहानी ये है कि एक बार अबुर्द पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन हिलने लगा तो हिमालय में मौजूद शिवजी की तपस्या भंग हो गयी। इधर उनका वाहन नंदी भी रहता था तो शिव जी ने उसकी रक्षा के लिए हिमालय से ही अपना अंगूठा फैलाया और पर्वत को स्थिर कर दिया। इससे पर्वत स्थिर हो गया और उनके अंगूठे का निशान इधर आ गया।
३. ऐसा भी कहा जाता है कि यहाँ मौजूद शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है।
४. शिव लिंग के इलावा इधर शिव जी का वाहन नंदी की मूर्ती भी है जो पंचधातु के मिश्रण से बनी हुई है। कहा ये भी जाता है कि मुग़ल काल में इसी मूर्ती ने मुस्लिम आक्रमणकारियों से इस मंदिर की रक्षा की थी।
स्रोत : १,२
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चित्र गूगल से साभार। स्रोत |
हम अपने गंतव्य स्थान पर साढ़े दस बजे के करीब पहुँचे। हम गाड़ी से उतरे। मैं इधर उधर देख ही रहा था कि मेरी नज़र ऊपर चोटी पर मौजूद एक चीज पर पड़ी। वो एक मंदिर जैसा लग रहा था। मुझे मालूम था उधर तक पहुँचने के लिए अच्छी खासी ट्रेकिंग करनी होगी तो मेरे अन्दर उधर जाने की इच्छा कुलांचे मारने लगी। राकेश भाई ही उधर जाने के लिए तैयार होते तो मैंने उनसे कहा कि उधर चला जाए। उन्होंने उधर देखा और बोला शायद उधर जाने का रास्ता न हो। मैंने कहा किसी से पूछने में क्या हर्ज है। उन्होंने हामी भरी और पास ही मौजूद एक भाई से पूछा। उन्होंने हमे बताया कि सामने से एक रास्ता जो था वो उधर तक जाता था। ये सुनकर मेरी बांछे खिल गयी। सुबह सुबह ही ट्रेकिंग हो रही थी यानी आगे का दिन अच्छा गुजरना था।
राकेश भाई ने पानी के लिए बोला तो मैंने कहा कि इधर ही ले लेते हैं। फिर हमने एक एक बोतल पानी ली और ऊपर चोटी में चढ़ने लगे।
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नीचे से दिखती गोपी चन्द गुफा जिसने मेरा ध्यान आकर्षित किया था |
उधर तक पहुँचने के लिए रास्ता निर्मित था इसलिए हमे कोई कठिन चढ़ाई नहीं चढ़नी थी। हम आराम से चले जा रहे थे। इसके इलावा उधर आप टैक्सी से भी जा सकते हैं। नीचे से ऊपर टैक्सी आराम से ऊपर जा रही है। बीस-तीस रूपये में वो आपको ऊपर पहुँचा देंगे। रास्ते के अगल बगल दुकाने बनी थी जो कि डेकोरेशन का सामान बेच रही थी। कुछ बच्चे कैरियाँ बेच रहे थे। उन्होंने हमसे लेने के लिए आग्रह किया तो हमने वापस आने पर लेने का वादा किया और आगे बढ़ गये।
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ऊपर जाता गेट |
(बोर्ड पर लिखा है :अब आप विश्व विख्यात चामुंडा जैन मंदिर को देखने जा रहे हैं। जहाँ पर १४४४ मण की पंचधातुओं की विशालकाय प्रतिमाओं के दर्शन करेंगे। एवम् चामुंडा के मंदिर,मीरा बाई की झोपडी,श्रावण भादौ तालाब, राजा गोपीचंद के गुफा के दर्शन। )
रास्ता सीधा था और कहीं खोने का खतरा नहीं था। हम चल रहे थे कि रस्ते के बगल में एक सरोवर दिखा। उसके बगल एक बोर्ड था जो दर्शा रहा था कि सरोवर के बगल में सन राइज पॉइंट भी है। सन राइज हुए तो काफी वक्त हो चुका था लेकिन फिर भी हम उस पॉइंट को देखना चाहते थे। हमने सोचा कि एक बार नीचे से जिस चीज को देखकर आये थे उधर पहुँच जाए तो वापस आते हुए इस पॉइंट को देखेंगे। सरोवर को भी उसी वक्त देखेंगे। हमने सरोवर की कुछ तस्वीरें ली और रास्ते में बढ़ चले। सरोवर के बगल में उजाड़ गाँव से मुझे दिखा जिसने मेरी जिज्ञासा जागृत की। मैं उधर की तरफ बढ़ा तो पाया ज्यादातर घर टूटे हुए तो थे लेकिन उनकी दीवारों में उपले चिपकाए हुए थे जो दर्शाता था कि वो काम में लाये जाते हैं। फिर मैंने और अंदर जाने का विचार त्याग दिया। एक फोटो ली और आगे बढ़ गया।
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सरोवर |
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सनराइज व्यू पॉइंट की तरफ इशारा करता बोर्ड |
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रास्ते में मौजूद कुछ घर जो एक दृष्टि से देखने में खाली लग रहे थे। लेकिन जब पास जाकर देखा तो उनका पता चल उनका उपयोग किया जाता था |
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थोड़ा ऊँचाई से सरोवर की तस्वीर |
हमारे रास्ते में एक जैन मंदिर पड़ा। इधर रहने के लिए धर्मशाला भी थी। हम मंदिर देखने तो आये नहीं थे इसलिए आगे बढ़ गये। इधर कुछ बच्चे भीख मांग रहे थे। हमको देखकर वो गुजराती में बोलने लगे। मुझे इस चीज ने विस्मित किया। मैंने राकेश भाई से पूछा कि राजस्थान में मौजूद मंदिर में गुजराती भाषा का उपयोग क्यों कर रहे हैं। कायदे से तो राजस्थानी बोलना चाहिए इन्हें तो उन्होने बताया कि इस मंदिर में ज्यादातर गुजरती आते होंगे शायद इसलिए उन्हीं की भाषा बोल रहे हैं। मुझे ये बात जंची। वैसे मन में ये ख्याल आया कि कैसी विडम्बना थी कि इतना बड़ा मंदिर है फिर भी इंसान उसके सामने भिक्षा मांग रहा है। अपने घर में मौजूद इन्सानों की पीड़ा से जो भगवान आँखें मूंदे बैठा है उसी के दर्शन के लिए लोग बाग़ कहाँ कहाँ से चले आते हैं।
मन में ये ख्याल आया तो इसे झटका और आगे बढ़ गये। सामने सीढ़ियाँ दिखी तो उसमे चढ़ने लगे।
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ऊपर को जाती सीढ़ियाँ। ऐसी सीढ़ियों में चढ़ने में मज़ा आता है। |
फिर एक गेट आया। ये गेट चामुंडा माता मंदिर का था। उसके बगल में एक रास्ता बायें तरफ जाता था। उधर एक रेवोल्विंग गेट था। मैं ऊपर जाने लगा तो उधर आम लोगो का प्रवेश निषेध था। वो शायद कोई रेडियो स्टेशन या पॉवर हाउस था। हम फिर सीधा गेट की तरफ बढ़ गये । रास्ता बना ही हुआ था। हमे सीढ़ियों पर ही चढ़ना था। गेट क्रॉस किया तो रास्ते के बगल में एक छोटा सा मंदिर बना। ये मीरा बाई का मंदिर था। मैंने इसकी फोटो ली फिर आगे बढ़ गया। आगे एक पत्थर पर महाकाली माँ गुफा की तरफ जाने के लिए निर्देश थे। शायद यही वो चीज थी जो हमने नीचे से देखी। हम उसकी तरफ बढ़ गये। इधर रास्ते के बगल में एक छोटा सा तलाब बना हुआ था। मैंने उसके भी फोटो ली। शायद यही सावन भादौ तालाब रहा होगा। फिर आगे बढ़ गये गुफा की ओर।उधर एक झाड़ी थी जिसमे गुलाबी रंग के छोटे छोटे पुष्प खिले हुए थे। ये उस जगह को और मनोरम बना रहे थे। मैंने इसकी भी कुछ तसवीरें ली और आगे बढ़ गया। हम गुफा के निकट पहुँचे तो एक थोड़ा समतल जगह थी जिसके दुसरे छोर पर गुफा में जाने का रास्ता था। इस समतल जगह पर चट्टान के ऊपर और यहाँ वहाँ पत्थर एक तरीके से एक के ऊपर एक रखे हुए थे जैसे चिंडा या पिट्ठू के खेल के दौरान हम रखते थे। ऐसे ही पत्थर मैंने अपनी लद्दाक यात्रा के दौरान मोनेस्ट्री के आस पास देखे थे। मुझे आज तक इतना मतलब समझ नहीं आया। अगर आप लोगों में से किसी को जानकारी हो तो कमेंट में लिखकर बताइयेगा जरूर।
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चामुंडा मंदिर गेट |
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मीरा बाई की झोपडी /मंदिर |
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सावन भादौ तालाब |
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गुफा को जाता रास्ता |
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गुफा को जाता रास्ता |
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रास्ते में खिले पुष्प जो रास्ते की खूबसूरती बड़ा रहे थे |
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एक के ऊपर एक पत्थर जिनके रहस्य से मैं आजतक नावाकिफ हूँ |
फिर हम नीचे उतरे और गुफा तक पहुँचे। उधर जूते उतार कर लोग गुफा के अन्दर बने मंदिर में जा रहे थे। हमे मंदिर तो जाना नहीं था। मैंने राकेश भाई से पूछा कि मंदिर जाओगे तो उन्होंने भी मना कर दिया। हमने दो तीन फोटो ली। ये गोपीचंद गुफा थी जिसमे महाकाली कैलाश पति मंदिर था। मंदिर के बाहर इसका नाम दर्शाता बोर्ड तो था लेकिन उसमे काफी हिस्सा पढने में नहीं आ रहा था। हमने इधर थोड़ा वक्त बिताया और फोटो वगेरह खींची। हम नीचे से 10:32 पे चले थे और इधर 10:55 पर पहुच गये थे। यानी लगभग बीस बाईस मिनट लगे।
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राकेश भाई गोपीचंद गुफा के सामने |
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गुफा से एक पैनोरमा शॉट। साथ में राकेश भाई भी फोटो खींचते हुए आ गये |
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गुफा से नीचे पार्किंग का दृश्य। उधर ही हमारी गाड़ी खड़ी थीं। |
फिर ग्यारह बजे के करीब हम इधर से नीचे को बढे। हमने नीचे जाने के लिए दूसरा रास्ता चुना। इसमें साधारण सीढ़ियाँ नहीं थी बल्कि चट्टान थी। एक दो बार मैं हल्के से फिसलने को हुआ लेकिन अपने को संभाल लिया। अब सात आठ मिनट चलने के बाद ही हम सरोवर पर पहुँच गये थे।
इसमें कुछ महिलाएं आपने कपडे धो रही थी। हमे तो सनसेट पॉइंट जाना था तो हम उस तरफ बढ़ गये।
हम उधर जा रहे थे कि राकेश भाई का फोन बजने लगा। मेरा बज नहीं सकता था क्योंकि मैंने फ्लाइट मोड में डाला हुआ था। 😝😝😝😝 मुझे पता था कि ये नीचे से बुलावा होगा। उन्होंने फोन उठाया तो मैंने उनसे कहा कि बोले कि कुछ देर में आ रहे हैं। मुझे पता था हमे गाली पड़ रही होगी लेकिन अब इतना आये थे तो सन राइज पॉइंट देखकर जाते। गाली और डाँट तो हम बचपन से खा ही रहे हैं। 😜😜😜😜
राकेश भाई ने उसने कहा हम पाँच मिनट में पहुँच रहे हैं क्योंकि हम काफी आ चुके थे और हम सन राइज पॉइंट की तरफ बढे।
इधर का रास्ता थोड़ा कठिन था और जब हम ऊपर तक पहुँचे तो थोड़ा बहुत साँस तेज चलने लगी थी और पेशानी से पसीना चूने लगा था। यानी कहूँ तो आना सफल हुआ था। ट्रेकिंग में साँसे न चढ़े और पसीना न आये तो फिर मज़ा नहीं आता। हमने इधर थोड़ा वक्त बिताया। उधर एक छोटा सा मंदिर टाइप का था। एक जगह से एक लम्बे बांस के डंडे पे झंडा भी लटका था जिसपे मैंने बाहुबली टाइप पोज़ भी दिया। मन्दिर जाने का विचार नहीं था तो ऐसे ही थोड़ा बहुत फोटो खींचा। फिर नीचे की ओर आ गये।
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गुफा से उतरने का रास्ता |
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गुफा से उतरने का रास्ता |
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सनराइज पॉइंट की तरफ जाते हुए |
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सनराइज पॉइंट की तरफ जाते हुए पीछे मुड़े तो ऐसा दृश्य दिखा। सामने मंदिर दिखाई दे रहे हैं। |
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चट्टानों के सीने पर खड़े राकेश भाई |
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मस्ती के दो पल |
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सन राइज पॉइंट से दिखता एक नज़ारा |
हम करीब साढ़े ग्यारह बजे करीब नीचे पहुँचे। यानी लग भग घंटा हम घूमते रहे थे।
जी पी सर जी काफी नाराज होंगे ये हमें पता था। अब हम अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गये। हम इतने जल्दी में थे कि जिस मंदिर को देखने आये थे उसी को देखे बिना जाने लग गये थे। हमने बाहर से ही नंदी की मूर्ती देखी। अन्दर जाने का विचार त्याग दिया। फोटो खींचना तो दूर की बात थी। अब और लेट करते तो मार भी पड़ने की संभावनाएं थी। 😜😜😜😜 इस उम्मीद में कि जी पी जी का त्रिनेत्र अभी भी बंद होगे और हमे वी आर गेटिंग लेट सुनने को नहीं मिलेगा हम अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गये। हम उधर पहुचे तो थोड़ा माफ़ी मांगी और गाड़ी में बैठ गये।
अब हमे दूसरे पर्यटन स्थल के लिए जाना था। मेरी ट्रेकिंग तो हो गयी थी। यानी मेरा घूमना तो हो गया था। अब जो होता और अच्छा ही होता।
क्रमशः
पूरी ट्रिप के लिंकस
माउंट आबू मीट #१: शुक्रवार का सफ़र
माउंट आबू मीट #२ : उदय पुर से होटल सवेरा तक
माउंट आबू #3 (शनिवार): नक्की झील, टोड रोक और बोटिंग
माउंट आबू #4: सनसेट पॉइंट, वैली वाक
माउंट आबू मीट #5: रात की महफ़िल
माउंट आबू मीट #6 : अचलेश्वर महादेव मंदिर और आस पास के पॉइंट्स
माउंट आबू #7:गुरुशिखर
माउंट आबू मीट #8: दिलवाड़ा के मंदिर, होटल में वापसी,दाल बाटी की पार्टी
माउंट आबू मीट #9: होटल भाग्यलक्ष्मी और वापसी के ट्रेन का सफ़र
बढ़िया घुमक्कडी आबू की
शुक्रिया, प्रतीक भाई…
बहुत ही बढ़िया विवरण , वहां जाने वालों को बहुत मदद मिलेगी इस पोस्ट से
शुक्रिया,अभयानंद जी।
जब तक आबू नहीं जा पाता, तब तक आपके लेख के फोटो यहाँ की याद दिलाते रहेंगे।
वहाँ जाने पर यह लेख बहुत काम आयेगा।
लिखते रहे, आगे बढते रहे।