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होटल संजय के बाहर खड़े एसएमपियनस : बाएँ से अल्मास भाई, योगी भाई, नवल जी, शैलेश जी, अंकुर भाई, मैं पुनीत भाई, राजीव सिंह जी,राघव भाई और अजादभारती जी |
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हमारे होटल का नाम होटल संजय था जो कि रेलवे स्टेशन से सात आठ किलोमीटर दूर था। पंद्रह बीस मिनट का रास्ता था जो कि आराम से कट गया। हम बातचीत करते रहे। कानपुर मीट में और भी एसएमपियन्स आने वाले थे। पूछने पर पता चला कि राघवेन्द्र जी अपने परिवार के साथ घूमने आये थे और वो भी इस मीट में शामिल होंगे। राघवेन्द्र जी से मैं पहले नहीं मिला था तो उनसे मिलने की उत्सुकता थी। साथ में पता चला कि शैलेश जी और राजीव जी आने वाले थे। दोनों ही लखनऊ वासी थे। राजीव जी से मैं माउंट आबू मीट के दौरान मिल चुका था। राजीव जी ने मुझे माउंट आबू में दशराजन उपन्यास दिया था। शैलेश जी को फेसबुक पे पाठकनामा के वजह से जानता था। उन्होंने पाठक साहब के उपन्यासों में आये संवादों को चित्रों के रूप में बड़ी कुशलता के साथ दर्शाया था। इन्ही खूबसूरत तस्वीरों का कलेक्शन पाठकनामा है। इसी नाम से फेसबुक पेज भी है। उनसे ये मेरी पहली मुलाक़ात होने वाली थी।
हम जल्द ही होटल में पहुँच गये। होटल में हमे मीट के दूसरे आयोजक अंकुर जी मिले। ये कानपुर में ही रहते हैं और इनसे भी मैं पहली बार मिल रहा था। अंकुर भाई बैंक में कार्यरत है। उन्होंने हमे हमारा रूम बताया और हमने उधर एंट्री की।
हम अपने कमरों में आये फोन वगेरह चार्जिंग पे लगाए और चाय पानी का आर्डर दिया गया। जब तक वो आया तब तक सब फ्रेश होने लगे। जब ये काम किया तो पता लगा कि बाथरूम की कुण्डी आगे से टूटी थी। यानी वो लग तो जाती लेकिन चूँकि उसका घुमावदार हिस्सा गायब था इसलिए दोबारा खोलना मुश्किल था। आते ही ये बात पता लग गयी थी तो सब सावधानी से इसका इस्तेमाल कर रहे थे। धीरे धीरे सब फ्रेश हो गये।
कुछ ही देर में राघवेन्द्र जी आ गये। उनसे मुलाक़ात हुई। वो हमारे होटल के बगल वाले होटल में ही ठहरे हुए थे। उनके कुछ देर बाद ही शैलेश जी और राजीव जी भी आ गये। वो अपने साथ पाठकनामा की प्रति भी लाये थे जिसे हमने ले लिया और उसके पन्ने पलट पलट कर देखने लगे और संवादों का मज़ा लेने लगे। बात चीत का दौर चल रहा था। इसी दौरान राघव भाई ने सबको एक धागा और प्रसाद भेंट किया। धागा मौली जैसा था जिसे कि हाथ पर पहनना था। वो ये दोनों चीजें काशी के संकटमोचन मंदिर से लाये थे। प्रसाद में लड्डू थे जो कि बहुत स्वादिष्ट थे और उन्होंने बताया कि ये विश्व प्रसिद्ध हैं। दोनों चीजें पाकर सारे एसएमपियंस गदगद हो गये। मैं चूँकि नास्तिक हूँ तो पहनने में झिझक रहा था लेकिन फिर मैंने भी हाथ में डाल दिया। उसमे उनका प्यार जो था। वैसे भी अब विर्दोह वाली और सिम्बल वाली नास्तिकता मेरे मन में समाप्त होती जा रही है। इसलिए अगर मंदिर खूबसूरत हो तो उसकी खूबसूरती देखने के लिए अन्दर चले जाता हूँ। पहले नास्तिकता दर्शाने के लिए किसी भी धार्मिक स्थल में जाने से कतराता था। लेकिन जैसे जैसे उम्र बढ़ रही अपने आप को पहचान पा रहा हूँ और अपने आप से कम्फ़र्टेबल भी होता जा रहा हूँ। खैर, वापस मीट में आते हैं। बातचीत का मुख्य विषय पाठकनामा और नवल जी के फेसबुक पोस्ट ही थे। नवल जी अक्सर फेसबुक पे अपनी तस्वीर के साथ कुछ न कुछ पोस्ट्स करते रहते हैं जो कि बेहतरीन होता है। वो किस तरह ऐसा कर पाते हैं यही जानने के इच्छुक थे। क्योंकि पोस्ट के कोट्स और उनकी तस्वीर एक दूसरे को कॉम्प्लीमेंट करती है। उन्होंने ये राज उजागर किया कि इस कार्य में वो अक्सर अपनी बेटी की राय लेते हैं और उसी पर अमल करते हैं।
इसी दौरान पुनीत भाई ने रात के खाने और सुबह के नाश्ते के मेनू के विषय में पूछा। सबकी राय ली और फिर अल्मास भाई, योगी भाई, पुनीत भाई और मैं नीचे गये। उधर खाना क्या होगा ये निर्धारित हुया। इसके ऊपर थोड़ा बातचीत हुई। शायद कैटरर भाई ने एक पर्ची पर सब लिखकर दिया था जो कि पुनीत भाई के घर में ही रह गयी थी। कैटरर भाई कह रहा था वो होता तो ज्यादा मदद मिलती क्योंकि उसी हिसाब से मेनू को निर्धारित करते। फिर भी थोड़ा बहुत बात करके नाश्ता और रात के खाने का निर्धारण हो ही गया। ये काम निपटाकर हम लोग ऊपर आ गये। ऊपर बातों का सिलसिला जारी था।
अब थोडा भूख भी लग गयी थी तो नाश्ते का इंतजाम करने की सोची गयी। चाय कॉफ़ी का दौर तो चल ही रहा था। कुछ पराठे मंगाए गये और वो अचार के साथ खाए गये। उनको निपटाने के बाद भी जब भूख शांत न हुई तो अंकुर भाई पैटीस लेकर आ गये जिसे की चाय और कॉफ़ी के साथ निपटाया गया। अब सबकी भूख शांत हो चुकी थी। काफी कुछ खा लिया था। सब तैयार भी हो गये थे तो अब वक्त था कानपुर भ्रमण पर निकलने का।
सब निकलने के लिए तैयार ही थे कि अचानक से बाथरूम का दरवाजा खटखटाया जाने लगा। जिस बात का डर था वही हुआ। हम लोग सावधानी पूर्वक बाथरूम की चटकनी का इस्तेमाल कर रहे थे लेकिन ऐसा लग रहा था कि सावधानी हट गयी थी और दुर्घटना घाट गयी थी। आसपास चेहरे चेक किये तो पता लगा कि शैलेश भाई खुद को बाथरूम में बंद करने में सफल हो गये थे।
वो दरवाजा खींचते और बजाते लेकिन चटकिनी को खोलना एक टेढ़ी खीर हो गया था। अगर मेरे उम्र के दोस्त होते तो शायद मैं पेट पकड कर हँसता क्योंकि हम आपस में ऐसी बकैती करते रहते हैं लेकिन क्योंकि उम्र का फर्क था तो संजीदा बने रहे। सारे एसएमपियंस इकठ्ठा हो गये और अपने अपने सुझाव बाथरूम के ओर पहुंचाने के लिए लालायित दिखने लगे। इससे हुआ ये कि एक कनफूजन सा उत्पन्न हो गया। शोर गुल में कौन क्या कह रहा था ये पता ही नहीं चल रहा था और उधर शैलेश जी दरवाजे के साथ कुश्ती लड़ रहे थे। माहौल में तनाव बढ़ता जा रहा था। मैं सोच रहा था इधर दया होता तो उससे ही दरवाजा तुड़वा देते लेकिन दया था नहीं तो क्या किया जा सकता था। शोर गुल को बढ़ता देख पुनीत भाई ने सबको शांत करने के लिए तेज आवाज़ में झिड़का और मामले को समझने की कोशिश की। नवल भाई के पास एक कील टाइप की थी जिसका प्रयोग तो खैर वो ही जानते हैं कि क्या है(वैसे जानता तो मैं भी हूँ लेकिन छोड़िये इधर क्या बताना) लेकिन उन्होंने वो कील ही बाथरूम के दरवाजे के नीचे से शैलेश जी को पकड़ाई और उसकी मदद से शैलेश भाई ने बाथरूम का दरवाजा खोलने में सफलता प्राप्त की।
अब चूँकि शैलेश भाई बाहर आ गये थे तो हँसी ठट्ठा होना था और वो हुआ भी। अगर ऐसा होता तो क्या होता? अगर दरवाजा न खुलता तो क्या होता? ऐसे ही कई फनी सिनेरियो सोचे जा रहे थे और उनमे क्या क्या होता ये सोचकर हँसा जा रहा था। और ऐसे ही हँसते हँसाते हम लोग नीचे होटल के सामने गाड़ी में पहुँच गये।
हमारे पास दो गाड़ियाँ थी। एक गाड़ी में वो लोग बैठे जिन्हें स्मोकर या सोम्किंग से परहेज नहीं था और दूसरी में ऐसे जिन्हें तकलीफ हो सकती थी। लेकिन गाड़ी में बैठे से पहले थोड़ी सेल्फियाँ और फोटो ली गयी और उसके बाद हम लोग कानपुर के भ्रमण के लिए निकल पड़े।
होटल के बाहर फोटो खींचने में मसरूफ सुमोपाई |
हमे सबसे पहले ब्रह्मावर्त घाट जाना था। ये घाट बिठूर में पड़ता है और हम अब इधर ही जा रहे थे। हमारे होटल से ये लगभग 20-25 किलोमीटर दूर था। इसलिए मानकर ये चले कि हमे पहुँचने में कम से कम आधा पौना घंटा तो लगना ही था। मैं जिस गाड़ी में ट्रेवल कर रहा था उसमे योगी भाई, मैं ,पुनीत भाई, अल्मास भाई,नवल भाई और राघव भाई थे। बाकी लोग दूसरी गाड़ी में थे।
गाड़ी अपने रास्ते में बढ़ रही थी कि नवल जी ने आईडिया दिया। उन्होंने कहा क्यों न शाम की महफ़िल में एक केक काटा जाए। ये केक पाठक जी के नये उपन्यास हीरा फेरी के उपलक्ष में हो और एक तरीके से उस उपन्यास के रिलीज़ होने का सेलिब्रेशन हो। और केक पे हीरा फेरी लिखा हो। आईडिया उम्दा था और सबको जंच गया। तुरन्त ही पुनीत भाई ने फोन खड़काया और केक का आर्डर दिया। नवल जी ये सब रांची से ही सोच कर आये थे। ऐसे ही हैं हमारे एसएमपियन्स। तभी तो मीट में जाने की उत्सुकता रहती है। ऐसे आइडियाज ही मीट में चार चाँद लगाते हैं।
हमारी गाड़ी अपने गंतव्य स्थान की तरफ बढती जा रही थी। बातों की जलेबियाँ छनती जा रही थी। बातें अलग अलग विषयों पर होती जा रही थी जैसा कि अक्सर समूह में होता है। जैसे कहीं चलते चलते एक स्कूल दिख गया जो स्कूल कम एक आलिशान होटल दिख रहा था तो उसके ऊपर बातचीत होने लगी। किस तरह से आजकल के स्कूल पढाई के स्थल कम और आलिशान होटल ज्यादा लगते हैं। फिर कहीं पे ब्लू वर्ल्ड वाटर पार्क का बोर्ड दिख गया तो हमे बताया गया कि अगले दिन इधर ही घूमने जाने का प्लान है। बातें करते करते सबको प्यास भी लग गयी तो हमने पानी लेने के लिए एक जगह गाड़ी रोकी। इस जगह पे रानी लक्ष्मी बाई जी की मूर्ती थी। जब तक बाकी पानी वगेरह ले रहे थे तब तक हमने इधर ही फोटो वगेरह खींची।
रुके हुए तो सोचा फोटो ही खिंचवा लें। योगी भाई कैमरे के पीछे हैं। |
योगी भाई अपनी निर्मल-निश्छल मुस्कान के साथ। साथ में पुनीत जी, नवल जी और मैं |
अंकुर भाई, राजीव सिंहजी, नवल जी, शैलेश जी और योगी भाई |
अंकुर भाई, राजीव सिंह जी और नवल जी |
इधर कुछ देर विश्राम करने के बाद हम आगे ब्रह्मावर्त घाट की तरफ बढ़ गये। ये एक गाँव वाला इलाका था। रास्ते भी ऐसे ही थे संकरे से। हम उधर पहुँचे तो उधर काफी गाड़ियाँ वगेरह थी। पर्यटक काफी आये हुए थे। हम उम्मीद कर रहे थे कि बस बारिश न हो क्योंकि आसमान में बादल छाये हुए थे। हमने भी अपनी गाड़ियाँ पार्किंग में लगाईं और घाट की तरफ बढ़ चले। घाट की तरफ जाते हुए जो रास्ता है उधर काफी दुकाने पड़ती हैं। अगर आप किसी धर्मिक स्थल पर गये होंगे तो उधर जिस तरह की दुकाने अक्सर दिखती हैं वैसी ही दुकाने इधर भी थी। दुकानों में पूजा का सामान बिक रहा था।
सामने दिखते द्वार के पार घाट है। आस पास की दुकानों में पूजा का सामान बिकता है। |
घाट का मुख्य आकर्षण ब्रह्मा खूँटी मंदिर है। पूरे भारतवर्ष में ये दूसरी जगह है जहाँ ब्रह्मा से जुडी किसी चीज की पूजा की जाती है। इसके इलावा पुष्कर में ही ब्रह्मा का मंदिर है। कहा जाता है कि इधर ही सृष्टी की रचना करने पहले ब्रह्मा जी ने कई यज्ञ किये थे। यज्ञ खत्म करने के बाद जब वो जाने के लिए उठे तो उनके दाहिने पैर की खड़ाव जमीन में धंस गयी। उन्होंने निकालने की कोशिश की लेकिन फिर भी वो खडाव न निकला। मान्यता ये है कि खड़ाव पाताल तक चला गया और खड़ाव के अंगूठे और उसके बगल वाले ऊँगली के बीच जो कील थी वो धरती के ऊपर रह गयी। इसी कील को इधर पूजा जाता है। कहा जाता है इसी यज्ञ से मनु की सृष्टि भी हुई थी। उनका आधा शरीर नारी का था जिसे अलग करके ब्रह्मा ने रानी शकुन्तला को बनाया था। और फिर उन दोनों को सृष्टि को रचने का आदेश दिया था। (स्रोत)
रोचक कहानी है न। जो भी हो मुझे तो पढकर मज़ा आया।
घाट की बात करें तो घाट में पानी का स्तर कम लग रहा था। उधर कई श्रद्धालु डुबकी लगा रहे थे। कुछ बच्चे थे जो हमसे बोल रहे थे कि हम सिक्के उछाले और वो उसे घाट के तल से लेकर आयेंगे। हममे से कुछ ने सिक्का उछाला और बच्चे उसे लेने के लिए लपके। कुछ देर बाद वो एक सिक्का लिए ऊपर आये। अब वो हमारा सिक्का था या किसी और का ये कहना मुश्किल था। लेकिन उनके हाथ में सिक्का जरूर था।
घाट में कई नौकायें भी थी जो कुछ पैसे में लोगों को नदी में घुमाकर लाते थे। शायद 25 रूपये प्रति व्यक्ति रहा होगा। कुछ लोग जाना चाहते थे और कुछ नहीं। इसी के ऊपर थोड़ी बहुत बातचीत हुई और फिर सोचा कि यहाँ तक आये हैं तो एक चक्कर मार ही लिया जाए। ये अनुभव भी ले लिया जाए। फिर दोबारा जाने कब मौका मिले। हम लोग ज्यादा थे तो हमने दो नावें ली और लेकर निकल गये नौका विहार के लिए।
हम जब चक्कर काट रहे थे तो आशीष कुमार भाई जो कि हमारी बोट चला रहे थे ने हमे विभिन्न घाटों के विषय में बता रहे थे। उनके हिसाब से उधर ५२ घाट थे। इनमे से श्रवण घाट,पांडू घाट ,कौरव घाट,झाँसी रानी घाट इत्यादि।श्रवण घाट के विषय में सुना तो उनसे किसी ने प्रश्न किया कि श्रवण तो राजा थे नहीं और चूँकि बाकी घाट के नाम राजा रानियों के ऊपर पड़े हैं तो इनके नाम वाले घाट किसने और क्यों बनवाया? इस प्रश्न का उत्तर उनके पास नहीं था। सारे के सारे घाट एक कतार में ही थे। इसके इलावा इधर एक कौने पर एक मंदिर और मस्जिद भी थे। गंगा जमुना तहजीब की एक झलकी जिसे देखकर मन प्रसन्न हो गया। ऐसे ही बीस पच्चीस मिनट तक नौका विहार चला और फिर हम वापस घाट पर आ गये।
वापस आते हुए आशीष भाई को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा वो पुष्कर तक भी जाते हैं और उनके साथ एक सेल्फी खिंचवाई। फिर उनका शुक्रियादा अदा करके। हम वापस गाड़ी की तरफ जाने लगे। कुछ ही देर में हम गाड़ी के निकट थे। हम अपनी अपनी सीट्स पर बैठ गये और निकल पड़े दूसरे व्यू पॉइंट की ओर।
जब तक हम रास्ते में हैं तब तक आप कुछ और तस्वीरों का लुत्फ़ उठाइए।
श्री ब्रह्मा खूँटी मंदिर |
पानी में सिक्के डालो तो ये उसे वापस लेकर आते थे |
घाट पर सेल्फी। |
नौका पर बैठे एसएमपियन्स। अल्मास भाई, जिन्होंने इस तस्वीर को लिया है, हमारी बोट में आये थे। |
मंदिर मस्जिद एक साथ। यही तो गंगा जमुना तहजीब है। |
योगी भाई, मैं और आशीष भाई। आशीष भाई ही हमारी नैया के खैविया थे। |
क्रमशः
इस यात्रा वृत्तांत की सभी कड़ियाँ :
कानपुर मीट #१:शुक्रवार – स्टेशन रे स्टेशन बहुते कंफ्यूज़न
कानपुर मीट #२: आ गये भैया कानपुर नगरीया
कानपुर मीट #3: होटल में पदार्पण, एसएमपियंस से भेंट और ब्रह्मावर्त घाट
कानपूर मीट #4
कानपुर मीट # 5 : शाम की महफ़िल
कानपुर मीट #6 : ब्लू वर्ल्ड वाटर पार्क और वापसी
विलक्षण स्मृति भाई । तिग्माँशु धूलिया बनने की घनघोर सम्भावना आपमे ।स्मृति पटल पर समस्त यादें जैसे सजीव हो उठी ।
शानदार विश्लेषण ,अपूर्व शैली, अगली कड़ी का इंतजार l
बहुत बढिया यात्रा वर्णन . . पल पल कि बेहतरिन जानकारी
तारीफ़ का शुक्रिया, राघव जी।
शुक्रिया अंकुर, भाई। अगली कड़ी जल्द ही आपके समक्ष प्रस्तुत करूँगा।
शुक्रिया, चन्दन भाई।
bahut achha likha aur dikhaya
शुर्किया नम्मित जी। आप पहली बार ब्लॉग पर आये हैं। आते रहियेगा।
Vaah purani yaaden taza ho gayi
जी, जब चाहे इधर आ जाया कीजिये।