संस्मरण: वीडियो गेम्स #1- हाथ वाले वीडियो गेम

संस्मरण: विडिओ गेम्स #1- हाथ वाले विडिओ गेम
तरह तरह के वीडियो गेम्स 

कहते हैं बातों से बात निकलती है। और कई बार लेखों से लेख निकल जाता है। आज अपनी दूसरी वेबसाईट में हाल ही में पढ़ी हुई एक कॉमिक बुक के विषय में जब लिख रहा था तो एक बात समझाने के लिए वीडियो गेम्स का सहारा लेना पड़ा। और इसी बात ने मुझे अपने जीवन की कुछ चुनिंदा यादों को फिर से ताज़ा करने का मौका दे दिया। वीडियो गेम्स के प्रति बच्चों का एक विशेष आकर्षण रहा है। जब हम छोटे थे तो हमारा भी था और आजकल के बच्चों में भी यह देखने को मिल ही जाता है। वही आजकल तो बड़े भी वीडियो गेम्स को खेलना एक शौक समझते हैं।

वीडियो गेम्स की बात चल निकली है तो आपको बताता चलूँ कि कंप्युटर स्पेस दुनिया का सबसे पहला वीडियो गेम था जो कि आर्केड गेम था और लोगों के खेलने के लिए उपलब्ध था और इसका निर्माण द्वारा वर्ष 1971 में किया गया था। इससे पहले कुछ खेल बने जरूर थे लेकिन वो कमरे के आकार के कंप्युटर पर ही खेले जा सकते थे। 

पहले वीडियो गेम को आए हुए पचास वर्ष से ऊपर का समय हो चुका है और अब इतने वर्ष गुजरने के बाद वीडियो गेम का यह व्यवसाय 300 अरब डॉलर से ऊपर का हो चुका है। यही इन खेलों की लोकप्रियता दर्शाने के लिए काफी है। 

अपनी बात करूँ तो वीडियो गेम को लेकर मेरे मन में कई यादें हैं। कुछ गेम ऐसे होते थे जिन्हें हाथ में पकड़ा जा सकता था, कुछ ऐसे थे जिन्हें टीवी में लगाया जा सकता था और कुछ ऐसी दुकाने भी होती थी जहाँ ये टीवी वाले ऐसे गेम मौजूद रहते थे जिन्हें हम आम लोगों के लिए खरीदना मुश्किल होता था। तो हम बच्चे ऐसे गेम पार्लर में जाकर अपनी गेम खेलने की इस क्षुधा को मिटाते थे। वहीं मोबाईल आने के बाद उसमें भी कई खेल ऐसे हुए हैं जिन्होंने मुझे काफी आकर्षित किया है। साथ ही कंप्युटर में भी काफी गेम खेले हैं।  इस शृंखला में मैं ऐसे ही अलग-अलग तरह के गेम्स के विषय में बात करूँगा।  यहाँ ये भी साफ कर दूँ कि मैं वीडियो गेम्स को लेकर दीवाना नहीं हूँ। और अब तो इन्हें खेलना काफी कम कर दिया है। इसलिए कभी कंसोल गेम तक पहुँचा ही नहीं। लेकिन फिर भी इन्हें लेकर कुछ यादें तो हैं ही जिन्हें इस लेख में दोबारा आपसे साझा करना चाह रहा हूँ। 

हाथ में पकड़ कर खेले जा सक्ने वाले वीडियो गेम

हाथ में पकड़े जाने वाले वीडियो गेम्स को हैन्ड हेल्ड कॉनसॉल भी कहते हैं। यह आयताकार प्लास्टिक के उपकरण होते थे जिसमें फोन की तरह एक स्क्रीन लगी होती थी और कुछ बटन मुहैया करवाए होते थे जिन्हें दबाकर गेम खेले जा सकते थे।

संस्मरण: विडिओ गेम्स #1- हाथ वाले विडिओ गेम
एक हाथ से खेले जा सकने वाला वीडियो गेम 

सबसे पहले हाथ वाला  वीडियो गेम जो मैंने देखा था वो दिल्ली में अपने मामा के पास देखा था। हम लोग सर्दियों की छुट्टियों में पौड़ी से दिल्ली जाते थे। वहाँ मामा के यहाँ कुछ दिन रुकते थे। रजनीश मामा के पास कॉमिक का एक अच्छा खासा संग्रह हुआ करता था। आज भी मैं उनसे कॉमिक लेकर पढ़ता रहता हूँ। ऐसे में एक बार छुट्टियों में मैं उनके यहाँ गया तो एक वीडियो गेम उनके पास देखा। 

 

यह हाथ में पकड़ा जा सकने वाला गेम था जिसमें शायद एक ही गेम था। अब तो मुझे याद नहीं कि ये गेम कौन सा था लेकिन इतना जरूर याद है कि उसको हाथ में पकड़ने के बाद से एक नई दुनिया में मैं चला गया था।

 

इसके बाद हाथ में पकड़े जा वाले काफी गेमों से मैं दो चार हुआ। ज्यादातर नए गेम्स में एक से अधिक गेम्स आने लगे थे और इनमें टेटरिस, कार रेसिंग, टैंक, ब्रिक ब्रेकर मेरे पसंदीदा खेल हुआ करते थे।

 

टेटरिस मे अलग अलग आकार की चीजें (कभी आयाताकार, कभी चोकोर, कभी एक डंडी) ऊपर से नीचे गिरा करती थी और व्यक्ति को इन्हे एक लाइन में इस तरह लगाना होता था कि अगर एक रो बन जाए तो वह रो गायब हो जाती थी आपको पॉइंट्स मिलते थे। वहीं अगर गिरते गिरते ये चीजें स्क्रीन के ऊपर वाले हिस्से को छूने लगती तो आप गेम हार जाते थे।  इन गिरती चीजों को आप बटन दबाकर स्क्रीन में दायें बाएँ ले जा सकते थे और इनको बटन दबाकर घुमाया भी जा सकता था।

स्टेज पार करने के लिए आपको इन गिरती चीजों के स्क्रीन के ऊपर पहुँचने से पहले कुछ निश्चित अंक प्राप्त करने होते थे जो कि आप कितनी रो बना पाते हैं इस पर निर्भर करता था। जैसे जैसे स्टेज पार करते थे वैसे वैसे इनके गिरने की गति बढ़ती थी और  अंक हासिल करना मुश्किल हो जाता था। यकीन मानिए जितनी तेजी से ये आकृतियाँ गिरने लगते दिल की धड़कन भी उतनी ही तेज होने लगती थी। 

संस्मरण: विडिओ गेम्स #1- हाथ वाले विडिओ गेम
टेटरिस का एक गेम? क्या यह अब जीत पाएगा?

कार रेसिंग की बात करूँ तो कार रेसिंग में एक कार नुमा आकृति होती थी जो स्क्रीन के नीचे खड़ी रहती थी। इस कार को को आप केवल दायें या बायें ला सकते थे। स्क्रीन के ऊपर की तरफ से उसकी जैसी ही कारें कभी दायें, कभी बायें से आती थी और खिलाड़ी को अपनी गाड़ी इनसे टकराने से बचाना पड़ता था। हर गाड़ी से बचने के कुछ पॉइंट्स आपको मिलते थे और निश्चित संख्या में इन पॉइंट्स को अर्जित करने के बाद आप अगली स्टेज में चले जाते थे जहाँ इन गाड़ियों के आने की गति काफी तेज हो जाती थी। 

संस्मरण: विडिओ गेम्स #1- हाथ वाले विडिओ गेम
कार रेसिंग

टैंक गेम में टैंक नुमा आकृति होती थी जिसकी चोंच से गोलियाँ निकल सकती थी। हमें अपने टैंक से दुश्मन टैंक को ध्वस्त करना होता था। अगर दुश्मन टैंक आपसे टकराया तो आपकी मौत निश्चित थी। ऐसे युद्धों में मैंने शौर्य का काफी प्रदर्शन किया है और काफी टैंकस को निस्तेनाबूद किया है। 

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टैंक

ब्रिकब्रेकर गेम भी मुझे पसंद आता था। इसमें आपको एक चौकोर बाल टाइप आकृति स्क्रीन पर मंडराती रहती है। खिलाड़ी को एक डंडी मुहैया कारवाई जाती थी जिसे वो दायें बाएँ चला सकता था। एक तरफ तो  उसको इस खेल में बॉल नुमा आकृति को जमीन पर छूने से बचाना होता था और दूसरी तरफ स्क्रीन के ऊपर मौजूद अलग अलग आकार की दीवारों को बाल से टकराकर तोड़ना होता था। जब बाल दीवार के आखिरी टुकड़े को भी खत्म कर देती थी तो स्टेज खत्म हो जाता था। 

संस्मरण: विडिओ गेम्स #1- हाथ वाले विडिओ गेम
ब्रिकब्रेकर

इसके अलावा जो गेम मुझे याद है वो स्नेक है जिसे नोकिया के फोनों में भी काफी खेला है और सभी इससे वाकिफ भी होंगे। मैं इसे ज्यादा नहीं खेलता था क्योंकि एक हद के बाद वह साँप इतना लंबा हो जाता था कि खुद ही खुद के विनाश का कारण बनता था। वैसे अगर गौर करें तो वह साँप एक तरह से मनुष्य के लालच का प्रतीक है जो कि बढ़ते लालच के चलते आखिर में खुद ही खुद की बर्बादी का कारण बन जाता है। 

संस्मरण: विडिओ गेम्स #1- हाथ वाले विडिओ गेम
स्नेक

मुझे ये याद है कि मैं अक्सर ये ही  गिने चुने खले ही हैंड वीडियो गेमों में खेला करता था। इक्के दुक्के कुछ और भी रहे होंगे लेकिन वो याद नहीं। हम बड़े मजे से घंटों इन गेमों पर बिता सकते थे लेकिन मम्मी ने इन्हे इस्तेमाल करने का समय निर्धारित किया हुआ था जो कि यह सुनिश्चित करता थे कि एक तय वक्त तक ही हम इनका इस्तेमाल कर सकते हैँ। लेकिन फिर हम भी बच्चे थे और कई बार कंबल के नीचे टॉर्च जलाकर इन गेमों को साउन्ड ऑफ करके कुछ बार खेलने का साहस तो हमने किया ही था । 

मुझे लगता है गेम बनाने वालों को भी बच्चों को आने वाली इस परेशानी का अहसास था। कंबल या रजाई के नीचे टॉर्च जलाकर खेलना भी बहुत दिलेरी भरा काम होता था। 

पहले तो टॉर्च को अपने अधिकार में करने में ही काफी मुश्किले आ जाती थी। टॉर्च आ भी गयी तो अब रात को उसे ऐसे जलाना भी मुश्किल था कि बगल में सो रहे भाई बहन को इसका आभास न हो। ऐसा क्यों ये आगे बताऊँगा। फिर ये काम भी कर लिया तो भी अब बच्चा टॉर्च की रोशनी संभाले या खेल की कठिनाइयों से जूझे। कभी कभी तो मुश्किल से खड़ी की गयी टॉर्च गिर जाती और जब तक वह वापिस संभालकर खड़ी की जाती तब तक पता लगता कि हाई स्कोर बनाने के लिए की गयी पूरी मेहनत बेकार हो गयी है। और अगले दिन जो दोस्तों के सामने हाई स्कोर दिखकार हम लोग अपना प्रभुत्व स्थापित करने का सपना देख रहे थे वो भी चकनाचूर हो गया है।

इसके साथ ही मम्मी पापा के अचानक जागकर रजाई, चादर या कंबल (जो भी उस वक्त बच्चे ने ओढा रहता) खींच कर इस जोखिम भरे कार्य में खलल डालकर बच्चों की कुटाई करने की भी संभावना बनी रहती थी तो आधा ध्यान उस पर भी रहता था। यानि यह समझ लीजिए ये कार्य करते हुए बच्चा काफी तनाव की स्थिति में रहता था। ऐसे में कंपनी वाले बच्चों के माँ बाप या घर परिवार तो नहीं बदल सकते थे इसलिए जो उनके हाथ में था उन्होंने वो किया। और इसका पता भी हमें रोचक अंदाज में लगा।

तो हुआ यूँ कि उस दिन हम सभी दोस्त अपने अपने वीडियो गेम लेकर इकट्ठा हो रखे थे। किसी का वीडियो गेम काला रंग था था जिसके बटन पीले थे, किसी का काले रंग का नीले बटन वाला और किसी का कोई दूसरे रंग का। ऐसे में मुझे याद है कि हमारा एक दोस्त (दोस्त का नाम अब याद नहीं) एक सफेद रंग का वीडियो गेम लेकर आया था। अगर आपने कंचे खेले हैं तो आपको याद होगा कि रंग बिरंगे कंचों में दूधिया कंचा (ऐसा कंचा जो एकदम दूध के समान सफेद होता था) का बड़ा महत्व होता था। सभी कंचे धारक उसे रश्क से ऐसे देखते थे जैसे कोई महबूब अपनी माशूका को देखता है। इस समय वही हाल हमारा उस गेम को देखकर था। जहाँ हमारे वीडियो गेम बड़े साइज़ के थे और उनका रंग फीका सा था वहीं उसका गेम चमक रहा था। उस पर मेटल कोटिंग हो रखी थी और फिर उसने जो करिश्मा उससे करके दिखाया तो भाई साहब जलन के मारे सभी बच्चे थोड़े काले पड़ गए थे। 

बात की शुरुआत ऐसे हुई कि किसी ने उससे उस गेम की कीमत पूछी तो वह आम गेम से थोड़ी अधिक थी। खूबसूरत तो वह था लेकिन जहाँ बच्चों को रो धोकर माँ बाप गेम देते थे वहाँ पर केवल खूबसूरती के ज्यादा पैसे देना सभी बच्चों को बुद्धिमता नहीं लगती थी। यह बात सबने उससे कही भी। कुछ तो जल रहे थे इसलिए कही और कुछ सच में ये मानते थे।  यह सुन वह ऐसे मुस्कराया जैसे कोई जादूगर अपने आम से जादू पर जनता को दीवानों की तरह ताली पीटते हुए मुस्कराता है। क्योंकि वह जानता है असली खेल तो अब होने वाला है। वह जानता था कि गेम की खूबसूरती का प्रभाव तो हम पर पड़ चुका है। उसे शायद उम्मीद नहीं थी कि हम गेम की खूसबूरती से इतने प्रभावित होंगे और असल बात बताने से पहले ही फुक कर काले हो जाएंगे। अब वह किसी राजा की तरह मुस्कराया और उसने हम लोगों को एक साथ समूह बनाने के लिए कहा। हम लोग साथ में आकर इस तरह खड़े हो गए कि हमारी मुंडियाँ आपस मे जुड़ गयी और हमारे बीच का स्थान अंधकार मय हो गया। उसने अब हमें अपने अपने गेम चालू करने को कहा तो हमने उसकी तरफ ऐसी नज़रों से देखा जैसे वो बारह साल की उम्र में ही सठिया गया है। वो अलग बात है कि अंधेरे में हमारी नजर उसने भाँपी नहीं होंगी। जब उसने इसरार करना न छोड़ा तो हमने अपने अपने गेम चला लिए लेकिन सिवाय आवाज के और धुंधली स्क्रीन के हमें कुछ दिखाई देना नसीब न हुआ। और फिर चमत्कार हुआ। आचनक से वह अंधेरी जगह रोशन हो गयी और एक गेम की स्क्रीन अब दिखने लगी और हम बाकियों की जुबान से एक आह सी निकल गयी। यह उसी लड़के का खूबसूरत गेम था जिसकी स्क्रीन अब रोशन थी। 

कमबख्त किस्मत वाला था!! हमने सोचा इसे रात को गेम खेलने से पहले टॉर्च का जुगाड़ करने की जरूरत न थी। वरना हमें तो पहले टॉर्च इस तरह से पार करनी होती थी कि न तो  मम्मी पापा को पता चले और न छोटे भाई बहनो को। जहाँ मम्मी पापा से पिटने का खतरा होता वहीं भाई बहन को पता चलने पर उन्हें छोटे होते हुए भी हम पर धौंस जमाने का एक जरिया मिल जाता और फिर वह गेम तो खेलते ही साथ ही अपनी जी हुजूरी कराने से नहीं चूकते। उसने हमको दिखाते हुए उसी अंधेरे में गेम की एक स्टेज पार की और फिर खुश होकर अलग हो गया। हम लोगों ने उस दिन गेम तो खेला लेकिन अपने गेम्स में उतना मज़ा अब नहीं रह गया था। 

इस घटना के कई दिनों बाद तक मुझे उस लाइट वाले हैन्ड वीडियो गेम के सपने आते रहे। यही इच्छा मन में रही कि ऐसा कोई गेम मुझे भी मिलेगा लेकिन कोई माँ बाप जानते बूझते ऐसा खेल अपने बच्चों को नहीं देता है। और ज्यादा कीमत देखने पर वह दुकानदार को जरूर पूछते कि इसकी कीमत ज्यादा क्यों है और जो दुकानदार बताता तो गेम भले ही हमें न मिलता हमारी धृष्टता के लिए तो हमारी कुटाई जरूर हो जाती। इसलिए गेम वाला ऑप्शन तो हो नहीं सकता था। ऐसे में एक बार तो मन में ये भी आया उस बच्चे के पिता जी को गेम की लाइट वाली खूबी बता दूँ लेकिन मन में एक डर यह भी था कि टॉर्च वाली बात उसे पता थी और वह इस बात का राज हमारे घर पर भी फ़ाश कर सकता था। ऐसे में ये खतरा लेना ठीक नहीं था। अच्छा यही था जो मिला है उससे संतुष्ट रहे हैं और कभी कभी टॉर्च के सहारे से एक दो स्टेज रात के अँधियारे में भी पार कर लें। 

पर यह सब ज्यादा दिन तक नहीं चला। जल्द ही मेरी वह गेम खराब हो गयी और घर वालों ने नई गेम लेने से मना कर दिया। उन दिनों मैं काफी दुखी था लेकिन मुझे क्या पता था कि कुछ नया मेरा इंतजार कर रहा था। 

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वैसे अगर इस लेख को पढ़कर आपकी यादें भी ताज़ा हो गयी हैं तो आप इन खेलों को अपने मोबाईल पर भी खेल सकते हैं। पेगासस गेम्स के द्वारा एक ऐप्लकैशन लॉन्च किया है जिसमें इन सभी खेलों को खेला जा सकता है। एप निम्न लिंक पर जाकर डाउनलोड किया जा सकता है:

क्लासिक ब्रिक गेम

वही अगर आप इन कंसोल पर ही गेम का लुत्फ लेना चाहते हैं तो इन्हे ऑनलाइन विक्रेताओं से मँगवाया जा सकता है। अमेज़न का लिंक निम्न  है:

अमेजन

आगे की बात अगली कड़ी में बताऊँगा।  तब तक आप बताइए? हैन्ड हेल्ड वीडियो गेम में आपका पसंदीदा गेम कौन सा था? 

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “संस्मरण: वीडियो गेम्स #1- हाथ वाले वीडियो गेम”

  1. बहुत सारी बातें याद आती चली गई आपका यह लेख पढ़ कर । अपने घर के सदस्यों को पहले भी और आज भी इन नये नये गेम्स के साथ जुड़ा पाती हूँ बहुत बढ़िया संस्मरण ।

  2. विकास भाई, आपने बचपन मे वीडियो गेम खेले और उनके संस्मरण बहुत बढ़िया। मुझे तो वीडियो गेम के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है।

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