सज्जन और सजन – ब्रजेश शर्मा

 

सज्जन और सजन - ब्रजेश शर्मा
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छत्तीसगढ़ के ब्रजेश शर्मा लेखक हैं। वह अजिंक्य शर्मा के नाम से अपराध और हॉरर साहित्य लिखते हैं। उनके उपन्यास किंडल पर प्रकाशित होते रहे हैं। आज दुई बात पर पढ़िए उनके द्वारा लिखा गया एक हास्य लेख। उम्मीद है जो वक्त चल रहा है उसमें यह आपके चेहरे पर एक मुस्कान लाने में कामयाब हो पायेगा।

ब्रजेश शर्मा का विस्तृत परिचय निम्न लिंक पर पढ़ा जा सकता है:
ब्रजेश शर्मा – परिचय 

उनके उपन्यास निम्न लिंक पर जाकर खरीदे जा सकते हैं:
उपन्यास – अजिंक्य शर्मा

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सज्जन और सजन - ब्रजेश कुमार शर्मा
ब्रजेश कुमार शर्मा 

आज के युग में सज्जन कौन है? जितने सज्जन हैं, उनसे कई गुना अधिक सजन जरूर मिल जाएंगें। सजन अर्थात सजना, साजन, प्रेमी का पर्यायवाची। लोगों की सज्जन बनने में उतनी दिलचस्पी नहीं होती, जितनी सजन बनने में होती है। 15-16 वर्ष की आयु से ही सजन बनने की अभिलाषा जोर मारना शुरू कर देती है। खेलने-कूदने की उम्र में ये बच्चे, किशोर दर्दभरे विरह के गीत गाने लगते हैं। ये नहीं चाहते कि प्यार में इन्होंने जो दर्द सहा है, वो केवल इन्हीं तक सीमित रहे। ये उस दर्द को, उस कसक को हर किसी तक पहुँचाने के लिए आतुर रहते हैं। ये मजा ये सबको देना चाहते हैं। इसी आतुरता में ये फेसबुक पर शायरियाँ पेलना शुरू कर देते हैं, जिन्हें पढ़कर ही देश में हृदयरोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। कम उम्र में प्रेम, प्यार, मोहब्बत, जुनून, कसक, इजहार, चाहत, दीवानगी, दीवानापन आदि टर्म्स से परिचित हो चुके इन प्रेमियों को ‘निब्बा-निब्बी’ कहा जाता है। अब क्यों कहा जाता है, ये मत पूछियेगा। बस कहा जाता है।

सज्जन का उपयोग पुरुषों के लिए ही किया जाता है। जबकि महिलाओं के लिए इससे मिलता-जुलता शब्द मुझे इस वक्त याद नहीं आ रहा। पता नहीं है भी या नहीं। वैसे भी जिस प्रकार मनुष्य शब्द का प्रयोग सभी के लिए किया जाता है, उस दृष्टि से देखा जाए तो महिलाएं भी सज्जन होती हैं। बल्कि ज्यादातर महिलाएं ही सज्जन होतीं हैं। पुरुषों में आपको कम ही सज्जन देखने को मिलेंगें।

अंग्रेजी की एक कहावत है- ‘आल ओर्स आर मिनरल्स बट आल मिनरल्स आर नॉट ओर्स।’ इसी की तर्ज पर नई कहावत दिमाग में आई- ‘सभी सजन सज्जन हैं, पर सभी सज्जन सजन नहीं हैं।’ पर ये कहावत सही नहीं है। इससे केवल लेखक के मानसिक दिवालिएपन का पता चलता है। न तो सभी सजन सज्जन होते हैं, न ही सभी सज्जन सजन होते हैं। कुछ सजनों का तो सज्जनता से दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नहीं होता। वे बस अपने मनोरंजन और हार्मोन्स के कारण सजन बन जाते हैं। और धूल का फूल खिलाकर गुमनामी के अंधेरों में गुम हो जाना चाहते हैं। ऐसे सजनों से सजनियों को सावधान रहने की आवश्यकता है। बहुत से सज्जन सज्जन होने के कारण सजन नहीं बन पाते। वे बस इसी उम्मीद में आस लगाए बैठे रह जाते हैं कि उनकी सज्जनता से प्रभावित होकर ही कोई उन्हें तिरछी निगाहों से देख ले लेकिन हम-आप सभी जानते हैं कि सज्जनों को आजकल कोई घास नहीं डालता।

सज्जन सहानुभूति के पात्र होते हैं। उन पर पिछड़ी सोच, लकीर का फकीर होने का आरोप लगाया जाता है। और वे सज्जन होने के कारण आरोपों को चुपचाप सहन भी कर जाते हैं। इस से आप समझ सकते हैं सज्जन होना कितना मुश्किल कार्य है। सजन होने से तो बहुत ही ज्यादा मुश्किल।

फिल्मी गीतों में ‘सज्जन’ शब्द का उसी तरह बहिष्कार किया गया है, जिस तरह गांधी जी ने विदेशी कपड़ों और वस्तुओं का किया था। एक भी गाना बता दीजिए, जिसमें कहीं भी, बोल, मुखड़े, अंतरे-संतरे कहीं भी ‘सज्जन’ शब्द का उपयोग किया गया हो तो मैं आपको मान जाऊँगा। जहाँ-जहाँ आइंस्टाइन का नाम लिखा दिखेगा, उसे मिटाकर फौरन से पेश्तर आपका नाम लिख दूँगा। और ये हाल तब है, जब सजन और सज्जन काफी हद तक समान हैं। लेकिन फिर भी आपको वर्तनी और उच्चारण का पूरा ध्यान रखना पड़ता है। वरना अर्थ का अनर्थ हो जाएगा। सजन या साजन की जगह सज्जन लगा देने से गानों की पूरी भाव-भंगिमा पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है। उदाहरण के लिए-‘सज्जन मेरा उस पार है…’, ‘सज्जन रे झूठ मत बोलो…’, ‘सज्जन तुमसे प्यार की लड़ाई में…’। सजन या साजन की जगह सज्जन लगा देने से ये मधुर गीत कम और साहित्यिक सन्देश ज्यादा लगने लगते हैं। कहा जा सकता है कि सज्जन काफी साहित्यिक शब्द है।

सज्जन शब्द शिष्टाचार की धुरी है। जब हम किसी से किसी के बारे में कुछ पूछते हैं, जैसे ‘ये सज्जन कौन हैं?’ या ‘फलां सज्जन का नाम क्या है?’ तो इससे हमारे सभ्य होने का पता चलता है। वहीं अगर हम पूछें-‘ये ससुरा कौन है?’ या ‘फलां बेहूदा का नाम क्या है?’ तो तुरन्त ही सामने वाले को हमारी सिविलाइजेशन का अंदाजा हो जाता है।

हम बेहद सौभाग्यशाली हैं, जो हमने भारतवर्ष की पुण्यभूमि पर जन्म लिया। यहां हम केवल किसी को सज्जन बोलकर, उससे सज्जनता से बात कर खुद भी सज्जन बन सकते हैं। जनाब, इंग्लैंड में पैदा हुए होते तो पता चल जाता। वहां सज्जन यानी कि जेंटलमैन बनने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। आपके पास बढ़िया घर, गाड़ी, महंगा कोट या सूट, सिर पर हैट होना चाहिए, चाल में एक अकड़, पोस्चर तना हुआ होना चाहिए, लहजे में एक विनम्रता, चेहरे पर व्यापारियों जैसे भाव होने चाहिए, जैसे आप किसी से बात नहीं कर रहें हों, कोई बिजनेस डील फाइनल कर रहें हों, तब आप सज्जन कहलाने योग्य हैं अन्यथा नहीं। जबकि भारत में भले ही आपने साधारण से भी साधारण कपड़े पहने हुए हों, भले ही उन कपड़ों में भी पैबंद लगा हुआ हो लेकिन विनम्रतापूर्वक बात करके आप तुरन्त सज्जनों की कैटेगिरी में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं। याद करिए, श्री चार सौ बीस के राज कपूर अभिनीत राज के पात्र को। कोई है, जो उसे सज्जन कहने से इनकार कर दे। पूरी फिल्म में आपको उसके जैसा सज्जन दूसरा नहीं मिलेगा। वो उन महान लोगों में से था, जो सज्जन भी थे और सजन भी। जी हां, सज्जन स्वभाव से, और सजन नरगिस के। मतलब फिल्म के हिसाब से।

लेकिन सयाने लोग सही कहते हैं कि फिल्मों में जो होता है, वो हकीकत में नहीं होता। या कम ही होता है। असल जिंदगी में ऐसे बहुत कम लोग ही हैं, जो सज्जन भी हैं और सजन भी। इसका एक बड़ा कारण सजनिययाँ भी हैं, जो अपने सज्जन सजन को सज्जन रहने नहीं देतीं। बहरहाल, ये तो कहानी घर-घर की है, सुबह-दोपहर की है। जरूरत है कि सभी सज्जन बने रहें। जिन्होंने सजन बनने के लिए अपने जमीर का सौदा कर लिया है और सज्जनता का त्याग कर दिया है, वे भी अब आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में वापस लौटें और सही मायनों में सज्जन होने का सबूत दें।

© ब्रजेश शर्मा

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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26 Comments on “सज्जन और सजन – ब्रजेश शर्मा”

  1. बहुत समय बाद इतनी अच्छी और स्तरीय व्यंग्य रचना पढ़ी। बधाई।

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