प्रकृति की गोद में बसे एक पहाड़ी गाँव की यात्रा

प्रकृति की गोद में बसे एक पहाड़ी गाँव की यात्रा
यात्रा 8 जुलाई 2020, को की गयी
प्रकृति ने अपनी प्राकृतिक सम्पदा उत्तराखंड पर कुछ इस तरह लुटाई है कि देखकर अचरज होता है। वैसे तो उत्तराखंड अपने पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाता है लेकिन इन स्थलों के इतर भी उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में आप इधर उधर टहलने निकल जायेंगे तो आपको ऐसे ऐसे नजारे देखने को मिल जायेंगे कि अच्छे अच्छे पर्यटन स्थल उनके सामने पानी भरते नजर आयेंगे। यह छोटे छोटे गाँव अभी सैलानियों के कदमो  से वंचित रहे हैं और शायद यही कारण है कि इधर कंक्रीट के जंगल नहीं खड़े हुए हैं और इन क्षेत्रों की नैसर्गिक सुन्दरता बची हुई है।

ऐसे ही एक गाँव सूना में मेरा इस बार जाना हुआ। चमोली जिला के थराली ब्लाक में स्थित यह छोटा सा गाँव अपनी खूबसूरती के साथ पहाड़ पर मौजूद किसी नग सा चमकता प्रतीत होता है। हरे भरे पहाड़ों में बसे इस गाँव के किनारे पिंडर नदी अटखेलियाँ करती हुई दिखती है। पिंडर नदी के बहने से उपजा संगीत आपको गाँव की तरफ चलते हुए और गाँव में रहते हुए भी साफ़ सुनाई देता है। दिन के वक्त नदी और उसके आस पास के हरे भरे पहाड़ आपका मन मोह लेते हैं। वहीं रात के वक्त इस नदी की घरघराहट को सुनना एक अलग सा अहसास दिलाता है। कभी ऐसा लगता है जैसे आप किसी परियों के लोक में आ गये हों। ऐसी परियाँ जो दिन में तो छुपी रहती हों पर रात होते ही जब सारे ग्रामवासी नींद के आगोश में चले जाते हैं तब वह बादलों में मौजूद अपने अपने घरों से निकलकर पिंडर नदी की धारा  में जल क्रीड़ा करने को आ जाती हों। वहीं कभी ऐसा लगता है कि कोई विशालकाय जानवर गाँव के नजदीक मौजूद रहकर गुर्रा रहा हो। मुझे बताया गया था कि बारिश जब अपने उरूज पर होती है तो नदी का पानी काफी ऊपर आ जाता है। तब यह जानवर वाला ख्याल और ज्यादा सच्चा महसूस होता होगा। पर जो भी हो इधर आकर मन प्रफुल्लित जरूर हो जाता है।
हाँ, इधर मैं एक बात साफ़ करना चाहूँगा कि पहाड़ खूबसूरत अवश्य होते हैं लेकिन जैसे हर खूबसूरत फूल अपने साथ कुछ काँटे लेकर आता है वैसे ही पहाड़ होते हैं। पहाड़ खूबसूरत तो होते हैं लेकिन पहाड़ों में रहने वालों का जीवन कठिनाइयों भरा होता है। यह कठिनाईयाँ भी अलग अलग होती हैं। उदाहरण के लिए पौड़ी में जहाँ मेरा घर है उधर कभी पानी की कमी होती थी तो हम दो ढाई किलोमीटर दूर से पानी लाते थे। कभी कभी खड़ी चढ़ाई चढ़कर पानी लाया जाता था। कठलौ के वृत्तान्त में मैंने आपको वह जगह दिखाई थी जहाँ से हम लोग पानी लाते थे। वहीं अगर थराली के इस गाँव को देखें तो यहाँ पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। गाँव  सड़क से जुड़ा भी हुआ है। बाज़ार के नजदीक भी है लेकिन जब बरसात होती है तो यहाँ अक्सर लैंड स्लाइड हो जाती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। गाँव तक की सड़क लैंड स्लाइड होने के चलते बंद थी। ग्रामवासियों की कुछ गाड़ी रस्ते के दूसरे तरफ फँस गयी थी और हमे भी अपनी गाड़ी को पीछे ही खड़े करने की हिदायत दी गयी थी। यह डर था कि कहीं रात को बारिश हुई तो सड़क का और भी हिस्सा टूट कर नीचे जा सकता था। ऐसे में गाड़ी दूर रखना ही समझदारी थी क्योंकि उतनी दूरी तो पैदल भी तय की जा सकती थी।
भूस्खलन की बात चली है तो इतना कहना चाहूँगा कि बरसात में यह भूस्खलन इस गाँव में ही नहीं बल्कि कई अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में भी देखने को मिलता है। लगातार होती बारिश पहाड़ों से काफी मलबा नीचे बहा लाती है जो कि जान माल का काफी नुकसान भी करता है। अब देखिये न जब हम गाँव से पौड़ी की तरफ लौट रहे थे तो रास्ते में इसी भूस्खलन की भेंट चढ़ी एक कार मिली। वहीं श्रीनगर से कुछ दूरी पर हमें रास्ता जाम मिला। उधर मौजूद लोगों ने बताया कि यह जाम सुबह चार या सात बजे से चल रहा है। हमारी किस्मत अच्छी थी कि हमे दस पन्द्रह मिनट से ज्यादा का इन्तजार नहीं करना पड़ा लेकिन कई लोग सुबह से ही फँसे थे। मेरा यहाँ ये सब बताने का ध्येय केवल दूसरे पक्ष को भी उजागर करना है क्योंकि कई बार मैं लोगों को कहते सुनता हूँ कि यह जगह इतनी खूबसूरत है कि मन करता है इधर बस जाऊँ। तब मन में यही सोचता हूँ कि यह जगह खूबसूरत जरूर है लेकिन इधर बसना उतना ही दुरूह है बच्चू, वरना कबके बस चुके होते।
खैर, वापिस यात्रा पर आते हैं तो अभी हमें पैदल ही गाँव तक जाना था। वैसे तो पैदल सफर एक या दो किलोमीटर ही रहा होगा लेकिन इसने मुझे एक अच्छा मौक़ा मुहैया करवाया। मुझे बहुत से खूबसूरत नज़ारों को कैमरे में कैद करने का मौक़ा दिया। परन्तु  साथ वालों को धूप में चलते हुए थोड़ी परेशानी जरूर हुई थी। नदी के किनारे होने से इस इलाके में उमस थोड़ा अधिक होती है तो पसीना ज्यादा आता है। यह पसीना भी उन्हें परेशान कर रहा था।अगर मैं अपनी बात करूँ तो मैं तो बड़ा खुश था। बड़ी दिनों बाद ऐसे चलने को जो मिला था। मेरा मन तो बाज़ार से गाँव तक पैदल ही आने का था पर मेरे साथ आने को शायद ही कोई तैयार होता। फिर यह ऐसा मौक़ा भी नहीं था।
अगली बार आऊँगा तो बाज़ार से गाँव तक पैदल ही आया जायेगा। इसके अलावा इस गाँव और आसपास के इलाके में काफी कुछ ऐसा है जो देखा जाना बाकी है। यह भ्रमण तसल्ली से किसी और दिन किया जायेगा और तब आपको इधर छुपी हुई खूबसूरती से परिचित करवाया जायेगा।
तब तक के लिए आप इस छोटी सी पैदल यात्रा में खींची गयी तस्वीरों का आनन्द लीजिये:
पौड़ी से श्रीनगर की तरफ बढ़ते हुए
पौड़ी से श्रीनगर की तरफ बढ़ते हुए: मौसम सुहावना हो रखा था
गाँव की तरफ बढ़ते हए
गाँव की तरफ बढ़ते हुए
बढ़ते जा पथिक
मुड़ मुड़ के न देख मुड़ मुड़ के
नैसर्गिक है, सुंदर हरा भरा, पहाड़ मेरा
ये हरा हरा सा दिखे, मुझे खरा खरा सा दिखे
वो दूर दिखती अपनी मंजिल
अपनी खूबसूरती पर इठलाती बलखाती नदी
आइये बैठिये
बचके रहना रे बाबा, बचके रहना रे
कर लिया पार
नजदीक आती मंजिल
इन नजारों को भर लूँ आँखों में
श्वेत पुष्प
गाँव का रास्ता
ये राह ले जाये अनजाने सफर पर, कभी जाया जाएगा इधर भी
नयनाभिराम
रात को गाँव से दिखता नजारा
पौड़ी की तरफ बढ़ते हुए चाय तो बनती है
बरसात में पहाड़ी सड़कों पर बचकर चलने में ही समझदारी है…न जाने कब क्या हो जाए
तो यह थी एक पहाड़ी गाँव की छोटी सी यात्रा। उम्मीद है यह नजारे आपको पसंद आये होंगे। अब इजाजत दीजिये। जल्द ही मिलेंगे किसी और जगह, किसी और सफर पर।
                                                                        समाप्त 
#फक्कड़_घुमक्कड़
#पढ़ते_रहिये_घूमते_रहिये
© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “प्रकृति की गोद में बसे एक पहाड़ी गाँव की यात्रा”

  1. उत्तराखंड के जगह जगह गाव गाव कही जाओ मजा ही आता है….आपकी युही औचक यात्रा के मानसून वाले उत्तराखंड के फोटो देखकर अच्छा लगा..

  2. जी आपने सही कहा… किधर भी गाँव गाँव निकल जाओ मजा ही आ जाता है…. यात्रा के दौरान खींची गयी तस्वीर आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा….

  3. उत्तराखंड की नैसर्गिक छटा की सुन्दर तस्वीरों के साथ रौचक यात्रा वृत्तांत।

  4. पहाड़ों का जीवन दुसाध्य तो है लेकिन वहाँ बसे लोग भी कर्मठ होते हैं । बहुत बढ़िया जानकारी… तस्वीरों ने प्राकृतिक सुषमा के दर्शन भी करवा दिये ।

  5. जी, आभार मैम…. आपने सही कहा कि पहाड़ों में रहने वाले लोग कर्मठ होते हैं इसलिए मुश्किलों का सामना करते है… वृत्तान्त आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा… आभार…..

  6. झूठ नहीं बोलूंगा आज पहली बार आपका वृतांत पढ़ा और पढ़ के अच्छा पहाड़ो की सुंदरता का अपना मजा है मैंने भी बहुत सुंदर सुंदर पहाड़ देखे है बहुत सी मानव निर्मित अच्चम्भित करने वाली भी जगहें है जिनमे प्रमुख है मनाली वाले रास्ते पर आने वाली मंडी जिले की टनल लगभग 2.5 किलोमीटर लंबी टनल में ड्राइव का अपना मजा है कभी जाइये घूम के बताइयेग कैसा लगा ।

  7. जी आभार..फिलहाल तो कोरोना के चलते जाना नहीं हो पा रहा है लेकिन भविष्य में जाकर एक बार देखूँगा जरूर…आपका blog पर आना अच्छा लगा…आभार…

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