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मैं मैं रहा,
वो वो रही
और हम बिछड़ गये,
मैं हम हुआ
वो वो रही
दिल टूट गया
मैं मैं रहा
वो हम हुई
दिल तोड़ दिया
मैं हम हुआ,
वो हम हुई
ये जहाँ स्वर्ग हुआ
थोड़ा उसकी मानी
थोड़ा उसने मानी
थोड़ी जगह दी
थोड़ा जगह मिली
ताकि ले सकें साँस
दोनों ही
और बस यूँ हुआ
क्या कमाल हुआ
जीवन सफल हुआ
(मौलिक एवं स्वरचित)
मेरी दूसरी कवितायें आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
बहुत अच्छी कविता
♥️♥️
प्रेम नाम ही है मेरा तुम, तुम्हारा मैं हो जाना.. खूब
जी, आभार….
सही कहा सर आपने…आभार…ब्लॉग पर स्वागत है…
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (13-03-2020) को भाईचारा (चर्चा अंक – 3639) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
आँचल पाण्डेय
जी, चर्चा में मेरी पोस्ट को जगह देने के लिए हार्दिक आभार।
सच कहा विकास भाई कि थोड़ी-थोड़ी एक-दुसरे की मानने से जीवन सफल हो जाता हैं। सुंदर प्रस्तुति।
जी आभार, मैम।
मैं का हम हो जाना ही घोतक है प्रेम के अंकुरित होने का या दो के मिलन से एक हो जाने का।
सुंदर रचना।
नई पोस्ट – कविता २
जी, आभार रोहितास भाई।
मैं हम हुआ
वो हम हुई
ये जहाँ स्वर्ग हुआ
बहुत खूब …,सुंदर सृजन
मैं का भेद मिटते ही जीवन सुन्दर और सरस बन जाता है ।
बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।
जी आभार,मैम।
जी आभार, मैम।