पिछली कड़ी में आपने पढ़ा:
रीमा अपने होटल पहुँचती है। रात को उसको डरावने सपने आते हैं जिनके कारण वह सुबह घबराए हुए उठती है। फिर एक अनजान व्यक्ति का उसे फोन कॉल आता है और उसी अनजान व्यक्ति की तरफ से उसके लिए एक उपहार आता है। उपहार में कुछ ऐसा होता है कि रीमा के होश फाकता हो जाते हैं। रीमा अभी अपने होश सम्भाल भी नहीं पाई होती है कि उसे चीफ खुराना का कॉल आ जाता है।
अब आगे:
रीमा ने फोन की स्क्रीन पर देखा तो चीफ खुराना का फोन था।
‘अब चीफ क्यों फोन करने लगे?’- वह बुदबुदाई।
उस अनजान व्यक्ति द्वारा दिए गये पार्सल से थोड़ी देर के लिए रीमा के होश उड़ा दिए थे। उसे लगा जैसे उसका देखा स्वप्न एक तरह का पूर्वानुमान ही था। अब खुराना क्या चाहते थे? यह वह सोचने लगी। फोन बजता रहा।
“सोचने से कुछ नहीं होगा रीमा।” रीमा ने खुद को समझाया और फोन की कॉल रिसीव की।
“हेल्लो सर!!” रीमा बुदबुदायी।
“तुम दिल्ली में क्या कर रही हो रीमा?” खुराना ने अभिवादन का जवाब दिए बिना सवाल दागा।
“वो सर…”
“और ये दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर यादव के साथ मिलकर किस लड़की को तलाश करती फिर रही हो?” खुराना ने दूसरा प्रश्न दागा।
“सर… वो मुझे फोन कॉल….” रीमा ने कहना शुरू कर ही रही थी कि खुराना ने तीसरा प्रश्न भी रीमा की तरफ उछाला।
“और ये सुनीता का क्या मसला है?”
“सर. वो..”
“सर के आगे भी बोलो, भई। मैंने तुम्हे छुट्टी मनाने के लिए बोला था कि दिल्ली की सड़कों में गोली बारी करने के लिए?”
“सर आप मुझे मेरी बात कहने देंगे या खुद का ही राग अलापते रहेंगे।” रीमा ने झुंझलाते हुए बोला। वह इस बात से हैरान नहीं थी कि रीमा के विषय में उसके चीफ को जानकारी कैसे लग गयी थी। रीमा जानती थी कि खुराना ने चीफ की जगह ऐसे ही नहीं पाई थी। वह एक काबिल एजेंट और उससे ज्यादा काबिल एडमिनिस्ट्रेटर रह चुका था। अपने एजेंट से जुडी शायद ही कोई बात ऐसी होगी जो उसे मालूम नहीं रहती थी।
“बोलो।” चीफ ने उसकी झुंझलाहट को नजरअंदाज करते हुए कहा।
रीमा ने फिर चीफ को सुनीता के कॉल के बाद से हुए सारे घटनाक्रम से वाकिफ करवा दिया।
“हम्म… अब आगे क्या इरादा है?” रीमा की बात सुनने के बाद चीफ बोला।
“सर ये केस मैं हैंडल करना चाहती हूँ। काफी प्रोग्रेस मैंने कर ली है। लेकिन इस मामले में मुझे खुली छूट चाहिए। मुझे लगता है इन सब घटनाओं के पीछे कोई बड़ा व्यक्ति है। मुझे केस को जड़ से समाप्त करने की इजाजत चाहिए।” रीमा ने कहा।
“नहीं रीमा। इस बात की इजाजत नहीं दे सकता। तुम केस के अंत तक पहुँचो। हाँ, मैं इतना कह सकता हूँ कि जब तुम्हे यह पता चल जाए कि इसके पीछे कौन है तो तुम ये बन्दोबस्त तो कर ही दो कि इसके बाद वह किसी और जुर्म के काबिल न रहे। तुम समझ रही हो न, मैं क्या कह रहा हूँ।”
“जी सर। थैंक यू।” रीमा मुस्कराई।
“थैंक यू कि कोई बात नहीं है। उसने मेरे एजेंट पर हाथ डाला है। मेरे एजेंट पर हाथ डालने वाले को सबक तो मिलना ही चाहिए।”
रीमा के चेहरे पर अब एक मुस्कुराहट व्याप्त थी। वह मुस्कुराहट जो कि बाघिन के चेहरे पर अपने शिकार को देखकर होती है।
“और हाँ रीमा…” खुराना कुछ देर बाद बोला।
“जी सर।” रीमा ने कहा।
“इस केस के बाद तुम मेरे साथ स्वीडन जा रही हो। एक मीटिंग के सिलसिले में मुझे उधर जाना है। मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूँ कि तुम्हे जो छुट्टी दी गयी है वह तुम लो। स्वीडेन में तुम्हारे ऐसी किसी पचड़े में फँसने की सम्भावना नहीं है।”
“ओके सर।” रीमा बस यही कह पाई।
खुराना ने फोन काट दिया।
अब रीमा को आगे की योजना तैयार करनी थी।
****
सबसे पहले रीमा ने इंस्पेक्टर यादव को फोन किया।
“हाँ यादव साहब कैसे हैं?” रीमा बोली।
“ठीक हूँ मैडम। वो पिछली रिपोर्ट्स पर अभी काम हो रहा है।” उसने अपडेट देते हुए कहा।
“ठीक है लेकिन और काम आ गया है। मैं तुम्हे एक नम्बर मेसेज करती हूँ। इस नम्बर की डिटेल्स मुझे चाहिए। साथ ही यह भी कि यह नम्बर आखिर बार कहाँ पर एक्टिव था।”
“ठीक है मैडम। मैं देखता हूँ। शाम तक आपको यह डिटेल मिल जाएगी।”
“ठीक है। और मैं तुम्हे एक एड्रेस भेज रही हूँ। वहाँ पर जाकर आस पास के सी सी टी वी फुटेज के विषय में मुझे जानकारी चाहिए। इस केस से जुड़े एक और व्यक्ति का अपहरण हो चुका है। हो सकता है फुटेज से कुछ डिटेल मिल जाए। मैं भी इसी पते पर पहुँच रही हूँ। तुम भी घर के आस पास के फुटेज निकलवाओ।”
“ठीक है मैडम।”
“मैं शाम तक आकर सारी रिपोर्ट तुमसे लेती हूँ।”
“ओके मैडम।” यादव ने कहा और फिर रीमा ने फोन काट दिया।
****
रीमा ने फोन बिस्तर पर फेंका। वह सिम बदलने के अपने निर्णय को छोड़ चुकी थी। कम से कम यह नम्बर उसके पास रहेगा तो वह व्यक्ति अपने बड़बोलेपन के कारण उससे बात करता रहेगा। रीमा को इस चूहे बिल्ली के खेल में मजा आ रहा था।
रीमा बिस्तर की तरफ गयी। उसने होटल की रूम सर्विस को फोन किया और एक दो चाय का आर्डर किया। दूसरी चाय उसने उन्हें थर्मस में लाने को बोला।
सुबह के सपने और फिर मिले झटके के बाद उसे थोड़ा सुकून चाहिए था।
चाय आई तो उसने उसकी चुस्की ली और फिर सुकून से अपनी आँखें बंद कर दी। वैसे तो रीमा को ब्लैक कॉफ़ी पीना पसंद था लेकिन जब वह परेशान रहती थी तो अदरक वाली चाय उसे सुकून देती थी। चाय खत्म करके वह तैयार होने लगी।
कुछ ही देर में वो रेडी थी और उसने अपनी योजना का एक छोटा सा प्रारूप भी तैयार कर लिया था।
तैयार होने के बाद रीमा ने दूसरी चाय खत्म करी और होटल से उतरी।
उसे शक था कि शायद उस पर इधर नजर रखी जा रही हो लेकिन वह होटल छोड़ना नहीं चाहती थी। उसे इतना तो पता था कि उस व्यक्ति को अभी अपने पर इतना भरोसा था कि वह खुल्ले आम उस पर हमला नहीं करने वाला है। इसलिए फिलहाल होटल के नजर आने के बाद भी रीमा को इधर कोई खतरा नहीं था।
रीमा होटल से बाहर निकली और उसने गैरेज में फोन लगया। खुश खबरी थी। उसकी बाइक रिपेयर हो चुकी थी। रीमा ने एक ऑटो लिया और फिर गैरेज पहुँची। वहाँ से उसने बाइक उठाई और अपनी अगली मंज़िल के लिए बढ़ चली।
****
बाइक लेकर सबसे पहले रीमा रीना के घर पर गयी। डेढ़ घंटे के सफर के बाद वह रीमा के घर के दरवाजे के सामने थी।
यह एक छोटा एक मंजिला मकान था।
उसने दरवाजा खटखटाया तो पाया कि दरवाजा लगा हुआ था। उसने इधर उधर देखा और फिर बालों से एक पिन निकालकर दरवाजे को खोल दिया। किस्मत से ताला पुराने किस्म का था जिसे खोलना उसके लिए बेहद आसान था।
वह अंदर दाखिल हुई। रीना शायद यहाँ अकेली रहती थी। अंदर का मुयाना करने के बाद रीमा को कुछ ख़ास नहीं दिखा। ऐसा लगता था जैसे रीना ने बिना लड़े ही हथियार डाल दिए थे और उनके साथ चली गयी थी। संघर्ष के कोई निशान उधर मौजूद नहीं थे।
रीमा हताश होकर लौट ही रही थी कि उसकी नज़र कोने में पड़े एक कंप्यूटर पर गयी। कंप्यूटर की लाइट उसे जलती बुझती सी लगी। कंप्यूटर एक टेबल पर रखा हुआ था जिसके साथ की कुर्सी टेबल से दूर एक कलेंडर के सामने मौजूद थी। ये कुर्सी इधर क्या कर रही है? रीमा ने सोचा। वह कुर्सी लेने गयी और कैलंडर पर उसने देखा तो उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट तैर गयी। केलिन्डर में रीना का नाम लिखा था और साथ में कुछ तारीकों के नीचे रेखाएं भी खींची गयी थी। यह रेखाए और नाम एक हरी रंग की स्याही वाली पेन से लिखा हुआ था।
“शाबाश रीना।” रीमा बुदबुदाई। रीमा के मन में एक उम्मीद जागी थी।
रीमा ने कुर्सी ली और उसे लेकर कंप्यूटर पर गयी। कंप्यूटर का मॉनिटर ही खाली ऑफ किया गया था। रीमा ने मॉनिटर खोला और उस पर एक स्क्रीन दिखाई देने लगी। कंप्यूटर आगे बढ़ने के लिए पासवर्ड मांग रहा था जो कि रीना के सदके रीमा के पास पहले से ही मौजूद था। रीमा ने पासवर्ड डाला और उधर उसे डेस्कटॉप दिखा। एक स्क्रीन मिनीमाइज हो रखी थी जिसे उसने खोला तो पाया कि वह सिक्योरिटी कैमरा का एप्लीकेशन था। इस एप्लीकेशन में कंप्यूटर की स्क्रीन कई छोटे छोटे हिस्सों में विभाजित हो रखी थी और हर हिस्से में एक कैमरे की फीड आ रही थी।
रीना जासूस थी इसलिए अपने घर के मुख्य हिस्सों को उसने निगरानी में रखा था। ऐसा ही एक एप्लीकेशन रीमा ने अपने फ्लैट पर भी लगाया था इसलिए रीमा को पता था कि इन कैमरों से आती फीड्स कंप्यूटर की मेमोरी में एक जगह स्टोर होती थी। रीमा ने सेटिंग में जाकर वह पाथ देखा जहाँ वीडियोस रिकॉर्ड हो रखे थे। पाथ मिलते ही वह एक दिन पहले के फीड्स के फोल्डर में मौजूद थी। एक तरीक के अंदर कई फाइल्स थे और फाइल्स के नाम कैमरे की पोजीशन के हिसाब से थे। रीमा ने बाहर और लिविंग रूम वाले फीड्स चालू कर दिए। कुछ देर तक सब कुछ सही था तो रीमा ने फीड को वहाँ तक फॉरवर्ड किया जहाँ तक उसके काम की बात न आ जाए। जैसे ही उसके काम की बात विडियो में दिखने लगी तो उसने स्पीड को नोर्मल कर दिया और विडियो देखने लगी।
कल रात एक पिज़्ज़ा बॉय कुछ सामान लेकर रीना के दरवाजे के बाहर आया था। उसने घंटी बजाई और दरवाजा खुला। कुछ देर तक पिज़्ज़ा वाला बात करता रहा और फिर अंदर दाखिल हुआ। कुछ देर दरवाजा बंद रहा। फिर वो व्यक्ति घर से बाहर निकला और बाइक लेकर आगे बढ़ गया।
इसके पाँच दस मिनट बाद वही बाइक रीना के घर के सामने रुकी। उस बाइक में पिज़ा वाला और उसका साथी मौजूद था। पिज़्ज़ा वाले के हाथ में कुछ पैकेट थे। उसका साथी बाइक में इधर उधर ऐसे देख रहा था जैसे उसे कुछ होने का अंदाजा हो।
इस बार भी पैकेट उठाये वह व्यक्ति अंदर दाखिल हुआ लेकिन दस पन्द्रह मिनट तक वापस नहीं आया। वहीं इसके विपरीत बाइक के सामने मौजूद व्यक्ति को एक कॉल आया। उसने एक दो सेकंड कॉल पर बात की और फिर कहीं और कॉल लगाया। उसके कॉल लगाने के बाद वह रीना के घर की तरफ बढ़ गया। उसने अपनी कमर में कुछ खोंस रखा था तो चलते चलते उसने उसे निकाल दिया था। वह एक गन थी जिसमें साइलेंसर लगा हुआ था। वह दरवाजे के भीतर दाखिल हो गया।
उसके दरवाजे के भीतर दाखिल होने के पाँच मिनट बाद एक गाड़ी बाइक के सामने रुकी। यह एक अम्बुलेंस लग रही थी। वर्दी में कुछ लोग दो स्ट्रेचर लेकर अम्बुलेंस से उतरे और रीना के घर के भीतर दाखिल हुए। दो मिनट पश्चात ही वो दोनों लड़कियों को स्ट्रेचर में लेकर बाहर निकलते दिख रहे थे।
अम्बुलेंस वालो के साथ साथ बाइक वाले भी दरवाजे से बाहर निकले। उन्होने दरवाजा बंद किया। और वहाँ से रफूचक्कर हो गये। पूरा काम को करने के लिए बामुश्क्ल दस पन्द्रह मिनट लगे होंगे।
आखिर उस पिज़्ज़ा वाले ने अंदर जाकर ऐसा क्या किया था? रीमा के दिमाग में यह सवाल हथोड़े की तरह बज रहा था। उसने देर ने करते हुए लिविंग रूम की फीड चला दी।
पहली बार जब वह व्यक्ति अंदर आया तो जैसे ही उसने पैकेट सामने रखे रीना और काम्या ने उससे कुछ बोला। थोड़ी देर उनमें बहस हुई और वह बाहर निकल गया। शायद उनके आर्डर में कुछ सामान रह गया था।
वे दोनों आपस में बातें करते रहे और पाँच मिनट बाद जब दुबारा घंटी बजी तो वही व्यक्ति कुछ और पैकेट्स के साथ मौजूद था। उसने पैकेट्स को मेज पर रखा और रीना से कुछ कहा। रीना उसकी बात सुनकर किचेन की तरफ बढ़ गयी। तभी उस व्यक्ति ने फुर्ती से एक काम किया।
काम्या खाने के पैकेट्स में बीजी थी। उस व्यक्ति ने अपने पीछे से एक बंदूक निकाली और काम्या को शूट कर दिया। शूट होते ही काम्या के चेहरे पर हैरानी दिखाई दी लेकिन कुछ बोलने से पहले ही वह किसी कटे वृक्ष की भाँती सोफे पर लुढ़क गयी। उस व्यक्ति ने गन पीछे छुपाली।
तभी रीना पानी का गिलास लेकर उधर आई। उस व्यक्ति ने एक हाथ से गिलास लिया और बहुत फुर्ती से एक हाथ में छुपाया हुआ एक इंजेक्शन रीना की जांघ में मार दिया। रीना ने उसे परे धकेला और अपनी गन निकालने की कोशिश तो की लेकिन इंजेक्शन ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। कुछ ही देर में रीना की बंदूक उसके हाथ से गिर चुकी थी और वह किसी शराबी के भाँती डोल रही थी। वह व्यक्ति रीना के नजदीक आया और रीना को पकड़ कर सोफे तक ले गया। अब रीना उसका विरोध भी नहीं कर पा रही थी। रीना को काम्या के साथ सोफे में डालने के बाद उसने अपना फोन निकाला और शायद बाहर मौजूद व्यक्ति से बात की।
इसके बाद क्या हुआ यह तो रीमा को पता था इसलिए उसने स्क्रीन को बंद कर दिया। रीमा ने इन सभी वीडियोस को एक फ़्लैश ड्राइव में कॉपी किया और विडियो फाइल लेकर रीना के घर से बाहर आ गयी। उसे काफी कुछ जानकारी इधर मिल गयी थी।
बाहर आकर उसने इंस्पेक्टर यादव को फोन किया।
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“हेल्लो यादव साहब ” यादव की आवाज़ कानों में पड़ी तो मैं बोली।
“जी मैडम। उस नम्बर का मैंने पता लगाया था। वह नम्बर कुछ ही दिनों पहले लिया गया था और कल ही सक्रिय हुआ था। जहाँ उसकी लोकेशन पाई गयी थी वो एक सुनसान इलाका है। शायद वहीं से कॉल करके उसे उधर ही फेंक दिया था क्योंकि अभी तक वह नम्बर दोबारा सक्रिय नहीं हुआ है।” यादव ने मेरे बिना पूछे ही मुझे नम्बर के विषय में बता दिया था।
यह बात तो मुझे मालूम ही थी कि ऐसा ही कुछ निकलेगा लेकिन बात पुख्ता हो जाये तो बेहतर रहता है। कई बार बड़बोलेपन में अपराधी ऐसी साधारण गलती कर देते हैं जिसके कारण ही वो बाद में पकड़े जाते हैं। खैर, नम्बर वाली कड़ी तो टूटी थी तो कई और कड़ियाँ खुल भी गयी थी।
“मैं रीना के घर पर हूँ। आपने यहाँ के सी सी टी वी फुटेज को देखने के लिये किसे भेजा है और वो मुझे किधर मिलेगा।”
“धीरेन्द्र को उधर भेजा है। मैं आपको उसका नम्बर मेसेज कर देता हूँ। वो आपको उधर मिल जायेगा।” यादव बोला।
“ठीक है। मेरे पास एक फ़्लैश ड्राइव है जिसमें कि कुछ वीडियोस हैं। इस मामले से जुड़े कुछ लोगों का अपहरण कर दिया गया है। किस्मत से उनका यह कृत्य विडियो में दिख रहा है। मुझे विडियो में मौजूद लोगों की जानकारी चाहिए।”
“जी मैडम हो जायेगा। आप धीरेन्द्र को दे दीजियेगा। मैं सुनिश्चित करता हूँ शाम तक आपके लिए यह जानकारी मौजूद हों।”
“ओके।” मैंने कहा और फोन काटने के लिए तैयार थी कि उधर से यादव की आवाज़ सुनाई दी।
“मैडम एक बात कहूँ..” वो झिझकता हुआ सा बोला।
“बोलो यादव साहब…”मैं उसका आशय समझती हुई सी बोली। मुझे पता था कि वह मुझसे यही बोलेगा कि मैंने क्यों उन लड़कियों के विषय में इसे नहीं बताया।
“वो लेडीज की जानकारी आपने हमसे क्यों छुपा कर रखी?” यादव बोला।
“यादव साहब साफ़ साफ़ कहूँ तो मुझे आपके डिपार्टमेंट पर इतना विश्वास नहीं था। यह मैं पहले ही आपसे कह चुकी हूँ। इस मामले के पीछे कोई बड़ा व्यक्ति है जिसकी पहुँच बहुत ऊपर तक है। मैंने आप लोगों को नहीं बताया तब भी वो उनका अपहरण करके ले गया। मैं रिस्क नहीं लेना चाहती थी। मुझे यकीन है आप इस बात को पर्सनली नहीं लेंगे। अभी भी मैं आपको सारी जानकारी नही दूँगी। जो जरूरत की होगी वही दूँगी। आशा है इससे हमारे वर्किंग रिलेशनशिप पर कोई असर नही पड़ेगा।”
“नहीं नहीं वो बात नहीं है मैडम। मैं तो इसलिए कह रहा था कि हमे पता होता तो उनकी सुरक्षा मुहैया करवा देते।” यादव सफाई देता सा बोला।
“जहाँ तक मुझे याद है यादव साहब। मामले की शुरुआत सुनीता सा हुई थी और वो सबसे पहले आप लोगों के पास ही आई थी। जब उधर से निराश हुई तब मेरे पास आई। मैं समझ सकती हूँ कि आपके पास काफी लोड रहता है इसलिए हर मामले की उस संजीदगी और उतने रिसोर्सेज के साथ जाँच नहीं कर सकते। इसलिए उस बात के लिए मैं आपसे नाराज नहीं हूँ। लेकिन इस मामले में मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती हूँ। उम्मीद है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे।”
“नहीं नहीं मैडम। ऐसा नहीं है।” यादव बोला।
“मैं आपसे शाम को मिलती हूँ। मैं एक और लीड मिली है तो उसकी जाँच करनी है। उम्मीद है आप तब तक इन सभी जानकारियों से कुछ न कुछ प्रोग्रेस कर सकेंगे।”
“जी मैडम” यादव ने कहा और फिर मैंने कॉल कट कर दी।
इसके बाद मैंने धीरेन्द्र से बात की और उससे मिलने की जगह निर्धारित की। मैं कुछ देर बाद ही उसके समक्ष मौजूद थी। मैंने उसे फ़्लैश ड्राइव तो दी ही साथ में उस बाइक वाले के नम्बर और उस अम्बुलेंस का नम्बर भी दे दिया। उसने ट्रैफिक वालों से बात करके उनके विषय में जानकारी लेने की बात मुझसे कही। वहीं पर उसने यादव को फोन करके उन नम्बरों के विषय में भी बताया जिसने तुरंत उन पर काम करने का फैसला किया।
धीरेन्द्र को काम करते छोड़ मैं अब उस इमारत के तरफ बढ़ने लगी थी जहाँ से यह सारी बातें शुरू हुई थी।
बाइक चलाते हुए मैं यही सोच रही थी कि क्या इस चूहे बिल्ली के खेल का कहीं कोई अंत होगा। आखिर वो कौन था जिसने मुझे कॉल किया था। अगर मुझे उसके विषय में पता चल जाए तो मैं उसका गिरेहबान पकड़ कर उसका टेंटुआ दबा दूँ। फिर घिघियाता रहेगा। यह सब सोचते हुए मेरी बाइक बिल्डिंग की तरफ जा ही रही थी कि एक विचार मेरे मन में आया।
मैंने बाइक रोकी और अपना फोन निकाला। फोन पर मैंने एक ऑडियो रिकॉर्डिंग सुनी। मेरा फोन हर आने जाने वाली कॉल को अपने आप रिकॉर्ड कर देता था। मैंने उस व्यक्ति से अपनी कॉल सुनी और फिर उस रिकॉर्डिंग को एक नम्बर पर भेजा। रिकॉर्डिंग भेजने के बाद मैंने उसे कॉल किया।
“हेल्लो संजय मैं बोल रही हूँ।” मैंने कहा।
“हाई रीमा। आज सूरज कहाँ पश्चिम से निकला है? आज इस नाचीज को कैसे याद कर दिया?” उधर से संजय अदा से बोला।
“नाचीज को मैंने एक रिकॉर्डिंग भेजी है। उम्मीद है नाचीज उससे कुछ पता लगा सकेंगे। याद रखिये दिल्ली में मौजूद कोई बड़ा आदमी हो सकता है वो।”
“जो हुक्म मेरे आका। और कुछ?”
“शालिनी को मेरा हाई कहना। और ये भी कि उसका पति बहुत बिगड़ गया है।” मैं बोली।
“अरे अरे रे… रिकॉर्डिंग के बारे में जानकारी चाहिए कि नहीं तुम्हे। शालिनी को ये बोलूँगा तो उसने मेरी हड्डी पसली एक कर देनी है। फिर जानकारी कैसी मिलेगी तुम्हे?” संजय मासूमियत से बोला और मेरी बेसाख्ता हँसी छूट गयी। संजय मेरा दोस्त था और आई एस सी के डिजिटल फोरेंसिक में काम करता था। वह यह काम आसानी से कर सकता था।
“अभी तुम किधर हो?” संजय ने पूछा।
“दिल्ली…” मैं बोली
“क्यों?” संजय ने पूछा।
“छुट्टी मना रही हूँ। चीफ की हिदायत थी।” मेरा बोलना था कि संजय को हँसी का दौरा पड़ गया।
“सही है खुद की छुट्टी पर मुझे काम पर लगा रही हो। चीफ भी सही हैं। चलो ठीक है मैं काम पर लगता हूँ तुम छुट्टी मनाओ। कुछ मिलता है तो रिपोर्ट मेल करता हूँ।” संजय ने कहा।
“ठीक है।”- मैं बोली और मैंने फोन कट कर दिया।
मैं वापिस उस इमारत की तरफ बढ़ गयी।
****
एक घंटे के सफर के बाद मैं उस बिल्डिंग काम्प्लेक्स के नजदीक थी। उस काम्प्लेक्स की कुछ इमारतें ठीक और कुछ ऐसी ही लग रही थी। काम्प्लेक्स का एक बड़ा सा गेट का जिसके सामने एक गार्ड बैठा था। मैं बाइक साइड पर रोककर उसके पास गयी।
वह मुझे देखकर मुस्करा दिया।
मैंने उसे अपना कार्ड दिखाया तो उसके चेहरे पर घबराहट के भाव नुमाया हुए और वह तन कर खड़ा हो गया। मैं बोली – ”करमसिंह तुम्ही हो?”
“नहीं मैडम” – वह डरा डरा सा बोला। क्यों क्या कर दिया करमसिंह ने?”
“कुछ नहीं। बस रूटीन पूछ ताछ है। किधर है वो? सुना है इधर ही गार्ड की नौकरी करता है।”
“करता तो है मैडम पर उसकी रात की नौकरी है। रात को आएगा। अभी तो घर पर पड़ा आराम कर रहा होगा बेचारा।”
“हूँ।” -मैं बोली।”उसका पता दो।”
उसने मुझे करम सिंह का पता दिया।
“मैडम कुछ चाय पानी लेंगी।” मैं जाने को मुड़ी तो वह गार्ड मुझसे बोला।
“नहीं फिलहाल तो नहीं लेकिन अगर इधर जो कुछ हो रहा है वो न रुका तो तुम्हे और तुम्हारे मालिक को जेल में चाय पानी न पीनी पड़े।” मैं बोलकर मुस्कराई।
“इधर क्या हो रहा है?”- वह हैरानी दर्शाता हुआ सा बोला।
“जल्द ही पता चल जायेगा।” मैं बोली और उसके बताये पते पर चल दी।
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रीमा गार्ड के नजरों से दूर हुई तो उसने जेब से एक फोन निकाला और नम्बर डायल किया।
“बोलो।” – उधर से आवाज़ आई।
“साहब जैसा आपने कहा था वैसा मैंने पता दे दिया है।” गार्ड बोला।
“ठीक है करमसिंह” – अब कुछ दिनों के लिए तुम गाँव चले जाओ। दो तीन महीने बाद ही आना।
“जो हुक्म साहब।” – कहकर करमसिंह गार्ड्स के लिए बने गेट के भीतर दाखिल हुआ। उधर पहले से ही एक व्यक्ति मौजूद था जो कि रीमा के आने पर दुबक गया था। करम सिंह ने उससे अपना सामान लिया और अपने गाँव की तरफ निकल पड़ा।
क्रमशः
फैन फिक्शन की सभी कड़ियाँ:
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©विकास नैनवाल ‘अंजान’
काफी लम्बे अन्तराल के बाद आपने इसे दुबारा शुरू किया है ।पहले की कड़ियों की तरह ही रोचक शुरुआत और सस्पेंस वैसा का वैसा । लाजवाब लेखन ।
जी आभार। कुछ व्यक्तिगत कार्य के चलते इस श्रृंखला को पूरा न कर पाया। अब इसे पुरा करने की ठानी है। बने रहिएगा ।
मैंने सभी कड़ियां पढ़ीं विकास जी। बहुत रोचक उपन्यास निकला आपकी कलम से। क्या नौवीं कड़ी से आगे आपने नहीं लिखा?
जी सर आगे लिखने का फ्लो ही टूट गया…दोबारा लिखने की कोशिश करता हूँ लेकिन दूसरे प्रोजेक्ट्स में व्यस्त हो जाता हूँ…जल्द ही इसे पूरा करता हूँ..हार्दिक आभार…