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हम न चाहते हैं
सुनना किसी को,
बस तैयार
बैठे हैं अपनी कुर्सियों पर
कमीजों की आस्तीन चढ़ाकर
कोहनियों तक
सुनाने को फैसला
हम भिनभिनाते हैं
चीखते हैं, चिल्लाते है
दिखाना चाहते हैं के कमजोर नहीं हैं हम
हुई कैसी हिम्मत किसी के कुछ कहने की
हमारे बारे में
हमारी भाषा के बारे में
हमारे देश के बारे में
हमारी संस्कृति के बारे में
हम मिटाना चाहते हैं उसकी हस्ती
करना चाहते हैं बॉयकॉट
देते हैं सलाह उसे मर जाने की
लेकिन हम नहीं जानते हैं
हमारा चीखना,चिल्लाना, बिलबिलाना
ही दर्शाता है कि
कितने कमजोर हैं हम
कितनी कमजोर है हमारी भाषा
कितनी कमजोर है हमारी संस्कृति
क्योंकि लगता है हमें कि
कि किसी के शब्दों से
वो चटक कर बिखर जाएंगे
कुछ ऐसे
जैसे उनके ही कंधों पर अभी तलक टिकी हुई थी वो
या उनके कहते ही छोड़ देंगे
सभी अपनी भाषा को
अपनी संस्कृति को
अपने देश को
मैं देखता हूँ सब कुछ
और मुस्कराता हूँ सोचकर
के अंजान होने में
मज़ा कुछ अलग सा ही है
और सोचता हूँ
जो डर है उन्हें
वो मैं क्यों नहीं महसूसता
क्यों मुझे विश्वास है
अपने देश पर
अपनी भाषा पर
अपनी संस्कृति पर
क्यों मानता हूँ मैं
कि किसी के कह भर देने से
न होगा उनका नुक्सान
ये थीं मेरे होने से पहले भी
रहेंगी मेरे होने की बाद भी
क्योंकि इनका होना न होना
निर्भर करता है बस
मुझ पर और मेरे जैसे असंख्य अन्य लोगों पर
हम पर
और सोचता हूँ
जो डर है उन्हें
वो मैं क्यों नहीं महसूसता
क्यों मुझे विश्वास है
अपने देश पर
अपनी भाषा पर
अपनी संस्कृति पर
क्यों मानता हूँ मैं
कि किसी के कह भर देने से
न होगा उनका नुक्सान
ये थीं मेरे होने से पहले भी
रहेंगी मेरे होने की बाद भी
क्योंकि इनका होना न होना
निर्भर करता है बस
मुझ पर और मेरे जैसे असंख्य अन्य लोगों पर
हम पर
मेरी दूसरी कविताओं को आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
©विकास नैनवाल ‘अंजान’
Wah
सटीक विश्वास से भरी रचना ।
अद्भूत रचनी रची है आपने। सराहनीय।
शुरूआत से जो विषय को आपने पकड़ा…अंत भी प्रभावशाली तरिके से किया आपने।
जी आभार।
जी आभार।
जी, आभार।
जी, आभार।
वाह !बेहतरीन सृजन सर
सादर
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन
भरोसा दिल में हो तो कुछ कहने की जरूरत ही नहीं होती
दार्शनिक कविता अद्भुत अभिव्यक्ति ने निशब्द कर दिया
जी, आभार मैम।
जी, आभार।
जी सही कहा मैम। हमारी प्रतिक्रिया जब अतिवादी हो जाती है तो वो हमारी कमजोरी ही दिखाती है।
जी, आभार।
सुंदर रचना।
जी, आभार।
Wah lajawaab
जी आभार।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" मंगलवार 30जुलाई 2019 को साझा की गई है……… "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा….धन्यवाद!