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शब्द मेरे
शमशीर से हैं,
उठते हैं मन की जमीन को चीरकर
दर्द देते हैं मुझे
फिर बिंधते हैं पढ़ने वालों के मन को
ये चुभन पैदा करना ही है
उनकी नियति
पर मैं लिखता जाता हूँ
इस उम्मीद से
के कभी
ये बनेंगे मलहम
मेरे लिए
और पढ़ने वालों के लिए भी
कभी बदलेगी
ये दुनिया
कभी बदलेंगे
ये इनसान
कभी देने लगेंगे वरीयता
प्रेम को
रंग के ऊपर
रूप के ऊपर
रुतबे के ऊपर
जाति के ऊपर
राष्ट्रीयता के ऊपर
फिर शायद जो शब्द
निकलेंगे मेरे मन से
वो होंगे फूल से कोमल
और बनेंगे मलहम
मेरे लिए
और पढ़ने वालों के लिए भी
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
बेहतरीन सृजन ।
मानना पड़ेगा आपकी लेखनी को…शब्द आपके किन्तु बातें सबके मन की
जी, आभार।
जी, आभार मैम।