पिछली कड़ी में आपने पढ़ा:
रीमा को इंस्पेक्टर यादव से बातें ज्ञात हुई। उसने भी यादव को अभी तक जो कुछ हुआ उसके बाबत निर्देश दिये।
यादव से बात करके रीमा हटी ही थी कि चार लोगों ने उस पर हमला कर दिया। रीमा ने जान पर खेलकर उन्हें छकाया और फिर यादव को बुलाया। उन्होंने एक योजना बनाई।
इन सब मामलों से फारिग होकर अब रीमा एक होटल के कमरे में बिस्तर पर थी। वो आराम करना चाहती थी।
अब आगे:
रीमा एक अँधेरे कमरे में बंद थी। उसके हाथ पीछे को बंधे हुए थे। तभी एक दरवाजा खुला। दरवाजे पर एक विशालकाय मानवाकृति मौजूद थी। बाहर भी अँधेरा ही था लेकिन आकृति का कालापन बाकी कालेपन से ज्यादा गहरा था। वह आकृति तेजी से साँसे ले रही थी और हल्की हल्की गुर्राहट भी उसके गले से निकल रही थी।
“क…कौन है?”, रीमा ने बोला। उसे अपना हलक सूखता सा महसूस हो रहा था।
उत्तर देने के स्थान पर उस मानवाकृति के मुँह से केवल एक तीव्र गुर्राहट ही निकली।
वह मानवाकृति धीरे धीरे रीमा के तरफ बढ़ रही थी।
कुछ ही देर में वह मानवाकृति उसके नजदीक थी। उसकी ऊंचाई करीबन सात फुट थी। उसका शरीर इतना भीमकाय था कि ऐसा लग रहा था जैसे पहाड़ को काटकर मानव में तब्दील किया हो। ऐसा लग रहा था जैसे प्रोफेशनल बॉडी बिल्डर भी उसके सामने खड़े होते तो वह बच्चे ही लगते। उसके मुँह से हल्की हल्की गुर्राहट सी निकल रही थी। रीमा के पास पहुँचने पर वह झुका।
रीमा ने चेहरा उठाया तो उसकी गर्म साँसों को रीमा ने महसूस किया। एक तेज बदबू का भभका सा उस आकृति के मुँह से निकला। रीमा को उलटी होने को हुई। फिर भी अपने पर काबू पाते हुए रीमा ने उसका चेहरा देखने की कोशिश की तो उसके मुँह से चीख निकलते निकलते रह गई।
अचानक से उस आकृति ने अपने एक हाथ में पकड़ी टोर्च जलाई जिससे अँधेरे में मौजूद उसका चेहरा रोशन हो गया था।
उस आकृति का चेहरा बहुत वीभत्स था। आँख की कटोरी से एक आँख बाहर को निकल रही थी। नाक के स्थान पर केवल दो छिद्र थे। उसके होंठ और जबड़ों के ऊपर की खाल पूरी तरह से गायब थी जिससे दाँत और मसूड़े नुमाया हो रहे थे और ऐसा लग रहा था जैसे वह हँस रहा हो।
रीमा ने अपना चेहरा फेर दिया।
फिर उसे आकृति की हँसी सुनाई दी। आवाज़ इतनी खुरदरी थी कि रीमा को अपने कान बंद करने का मन हुआ लेकिन बंधे हाथों ने उसे बेबस किया हुआ था।
“क्यों पसंद नहीं आया,” उस आकृति की गुर्राहट निकली और फिर वही खुरदरी हँसी। उसने टोर्च बंद कर दी और फिर वह उठ गया।
रीमा ने चैन की साँस ली।
फिर अचानक से रीमा को अपना शरीर उठता सा महसूस हुआ।
उस विशालकाय आदमी ने एक हाथ से उसके टखने को पकड़ रखा था और कुछ ही देर में वह हवा में उलटी लटक रही थी। वह उसे हवा में झुलाता हुआ दरवाजे की तरफ बढ़ रहा था। उसने रीमा को ऐसे उठा दिया था जैसे उसका कोई भार ही न हो।
रीमा को चिल्लाने का मौका भी नहीं मिला था। रीमा कुछ समझ पाती तब तक उसे उस अँधेरी कोठरी से बाहर ले जाया जा चुका था।
फिर अचानक उसे कोठरी से निकलने के बाद उस व्यक्ति ने ऐसे उछाला जैसे कोई गुड्डे को उछालता है।
वह धड़ाम से जमीन पर गिरी तो उसका पोर पोर दर्द से कराह उठा।
“तुम मुझे किधर लाये हो? कहाँ हूँ मैं।” वह चिल्लाई।
जवाब में तेज चलती साँसों और गुर्राहट के सिवा उसे कुछ सुनाई न दिया।
इस जगह में भी अँधेरा कोठरी की तरह ही व्याप्त था। वह आदमी उसे फेंक कर एक तरफ को बढ़ा और कुछ देर में खट की आवाज़ हुई और कमरा रोशनी से नहा गया।
रीमा की आँखें कुछ देर के लिए चौंधिया गई। उसने अपनी आँखें बंद कर दी और फिर तब ही जाकर आँखें खोली जब उसे लगा उसकी आँखें इतनी तेज़ रोशनी बर्दाश्त कर सकेगी।
आँखें खोलने के बाद उसे ऐसा मंजर दिखाई दिया कि उसके होश फाकता हो चुके थे। वह चिल्लाना चाहती थी लेकिन उसके हलक से आवाज़ नहीं निकल रही थी।
रीमा ने देखा। वह एक बड़ा सा हॉल था जिसमे कई सारी बेड़ियाँ लटकी हुई थी। उन बेड़ियों के झूलते सिरे पर कई हुक्स लगे हुए थे। और हर एक हुक से एक कराहता हुआ इनसान झूल रहा था।
चीफ खुराना, रीना, काम्या,इंस्पेक्टर यादव, सभी उन बेड़ियों से लटके हुए थे। यह हॉल अनंत तक जा रहा था। सभी शरीर ऐसे व्यक्तियों की थी जिन्हें वह जानती थी। हर एक आदमी के नीचे कुछ बाल्टियां थी जिनमें उनके शरीर से टपकता खून जमा हो रहा था।
वह व्यक्ति उधर खड़ा मुस्करा रहा था। उसने रीमा को देखा और फिर वह गुर्राया।
रीमा ने अपनी आँखें मूँद ली थी। वह अपने कान बंद करना चाहती थी। उन इनसानों का चिल्लाना उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
तभी उसे एक कम्पन अपने नजदीक आते हुए महसूस हुए। उसने अपनी आँखें खोली तो वह आदमी दो बाल्टियों के साथ खड़ा था। उसने एक बाल्टी रीमा के नजदीक रखी। और फिर उसने एक बाल्टी उठाकर उसमे मौजूद खून रीमा पर उडेलना शुरू कर दिया।
वह नरक में थी और यही उसकी सजा थी। खून उस पर पड़ने लगा तो उसने आँखे बंद कर दी। वह यह नहीं देख पायी थी कि किसके शरीर का खून उस पर उड़ेला जा रहा था।
वह चिल्लाई और अचानक से कमरे में एक तेज आवाज घनघना उठी। रीमा को लगा जैसे उसके कान के पर्दे फट जायेंगे। वह तेजी से चिल्लाई और अचानक से उसके बंधन टूट गए।
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मैं झटके से उठी और मैंने अपने आप को छूकर देखा। मेरा बदन गीला जरूर था लेकिन यह चिपचिपाहट खून की नहीं मेरे खुद के पसीने की थी। मैंने इधर उधर नज़र फिराई तो मैं एक अजनबी से कमरे में थी। मेरी साँस तेजी से चल रही थी और घबराहट के मारे मेरा बुरा हाल था।
मेरा फोन घनघना रहा था और इसी कारण मेरी नींद टूट गई थी। मैंने अपनी धौंकनी सी चलती साँसों को नियंत्रित किया, टेबल पर मौजूद पानी की बोतल से एक घूँट पानी पिया और फिर फोन को देखा।
फोन किसी अनजान नम्बर से था। मैंने फोन उठाया और बोली – “हेल्लो, कौन?”
“जी रीमा जी बोल रही हैं?” उधर से पूछा गया।
“हाँ, आप कौन?” मैंने सवाल दागा।
“साहब आपसे बात करना चाहेंगे।” उधर से कहा गया और फिर फोन किसी को पकड़ाया गया।
“हेल्लो, मिस रीमा।” उधर से कहा गया।
“कौन बोल रहा है?” मैंने वही सवाल दोहराया।
“क्या करेंगे जानकर। बस ये समझ लीजिये हम वो हैं जिसकी तलाश आपको यहाँ तक ले आई है। वो क्या है पूरे एक दिन हो गये आपको हमारे शहर में आये हुए। हमने आपका स्वागत ठीक से नहीं किया। दिल्ली में आप आये और दिल से स्वागत न हो यह तो नहीं होना चाहिए न?”
“सुनीता किधर है?” मैंने उसकी बात समझ ली थी और अपने मतलब का सवाल उससे किया।
“वो भी फिलहाल ठीक हैं। मैंने उनसे कहा है कि आपका कटा सिर उन्हें दिखाऊंगा और फिर उनकी जान लूँगा।”
“मैं तुझे नहीं छोडूंगी..” मैं गुर्राई।
“किसे नहीं छोड़ेंगी रीमा जी” उधर से शहद घुली जुबान में बोला गया।
मेरे से कुछ बोलते नहीं बना।
“एक्साक्ट्ली” उधर से कहा गया।
मेरे पास कोई जवाब नहीं था और ये उन्हें पता था ।
“आपके लिए एक गिफ्ट भेजा है। देखिये पहुँचता ही होगा।” उस व्यक्ति ने कहना जारी रखा।
तभी मेरे कमरे के दरवाजे की बेल बजी।
“देखिये आ गया।” उधर से कहा गया। “जाइए खोलिए दरवाजा।”
मैंने उठकर अपनी रिवॉल्वर सम्भाल ली और फिर उसे एक हाथ में पकडे मैंने स्पाई होल से देखा।
बाहर वेटर खड़ा था। मैंने दरवाजा खोला।
वेटर के हाथ में एक पैकेज था।
मुझे देखकर वेटर ने सिर नवाया और फिर कहा – ” गुड मोर्निंग मैडम। आपको सुबह सुबह डिस्टर्ब करने के लिए माफ़ी चाहता हूँ। पर मैडम, कोई ये पैकेज आपके लिए छोड़कर गया था। इस पर अर्जेंट लिखा हुआ था तो मैंने सोचा अभी ही दे दूँ।”
“हम्म, नीचे रख दो ” मैंने वेटर से कहा और उसने निर्देश का पालन किया।
“कौन देकर गया था?” मैंने वेटर से प्रश्न किया।
“एक जेंटलमैन थे। उन्होंने गिफ्ट देते हुए कहा था कि आप इसका ही वेट कर रही थीं। अभी वो जल्दी में थे और इस कारण बिना मिले जा रहे थे। जैसे ही उन्हें फुर्सत मिलती है तो आपसे मिलेंगे।”, वेटर ने जवाब दिया।
“कैसे दिखते थे?”, मैंने फिर सवाल किया।
“स्मार्ट। फिल्म के हीरो की तरह। शायद आपके बॉय फ्रेंड ही होंगे। सरप्राइज़ देना चाहते होंगे।” वेटर ने खुद का कयास लगाया और मुस्कारया।
“ठीक है। थैंक यू। अब तुम जाओ।” मैंने वेटर से कहा।
“जी, ओके मैडम।” वेटर सिर नवाता हुआ मुस्कराकर उधर से चले गया।
दरवाजा खोलते वक्त मैंने फोन को दरवाजे के निकट बने ड्रावर के ऊपर रख दिया था। कॉल अभी चालू थी। मैंने फोन उठाया और कहा – “क्या है ये?”
“गिफ्ट है, मैडम। खोलिए। यकीन करिये बम नहीं है। मुझे आपको मरवाना होता तो कबका मरवा दिया होता। मैं तो चाहता हूँ कि आपसे एक मुलाकात हो और आपको मैं अपने ही हाथों से मारूँ। एन्जॉय योर गिफ्ट मैडम। और हाँ, जिसने गिफ्ट दिया उसे ढूँढने की कोशिश न कीजियेगा। वह एक भाड़े में लिया गया व्यक्ति था। वो मेरे विषय में कुछ नहीं जानता। आपका समय ही बर्बाद होगा।” कहकर मेरे जवाब की प्रतीक्षा किये बिना ही उधर से फोन काट दिया गया।
मैंने उस नम्बर पर फिर फोन लगाया तो पहले नम्बर आउट ऑफ़ कवरेज एरिया बताने लगा और उसके बाद नम्बर स्विच ऑफ बताने लगा।
“मुझे सिम बदलना होगा।” मैं बुदबुदाई।
आखिर इस पैकेज में क्या था? मैं यही सोच रही थी।
वह एक आयताकार डिब्बा था। ज्यादा भारी नहीं था।
मैंने गिफ्ट खोलना चालू किया। गिफ्ट के रैपर को हटाया और डब्बे को खोला। उसमें एक कार्ड था जिस पर लाल स्याही से दर्ज था:
“For Reema’s Eyes Only”
मैंने कार्ड उठाया तो देखा उसके नीचे कुछ फोटोग्राफ्स थी। कुल मिलाकर तीन फोटोग्राफ उसमें थी।
मैंने पहली फोटोग्राफ उठाई तो वह सुनीता की फोटो थी। वह किसी अँधेरे कमरे में बंद न जाने क्या ताक रही थी। उसके चेहरे पर निराशा और नाउम्म्दी देखी जा सकती थी।
मैंने दूसरी फोटो उठाई और उसे पलटा तो मुझे शॉक लगा। वह काम्या की फोटो थी और वह भी किसी कम रोशनी वाले कमरे में कैद थी।
मैंने तीसरी फोटो उठाई और मेरे मन का डर सही साबित हुआ। तीसरी फोटोग्राफ आईएससी की जूनियर एजेंट रीना की थी।
क्रोध से मेरी मुट्ठियाँ बिंच गई और जबड़े कस गये।
ये सब न जाने कैसे हुआ था। मुझे लगा था कि रीना और काम्या के विषय में किसी को पता नहीं लगेगा। वो सुरक्षित होंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। जरूर वो ज्यादा लोग रहे होंगे और अचानक से उन्होंने हमला बोला होगा। इसलिए रीना ने प्रतिवाद नहीं किया होगा।
अब कयास लगाने से कोई फायदा नहीं था। मुझे अब जल्द से जल्द इस आदमी का पता लगाना था। तभी कुछ हो पाता। मैंने उन तीनो फोटोग्राफ्स को डिब्बे में डाल दिया और अपने अगले कदम के विषय में सोच ही रही थी कि तभी मेरा फोन फिर से बजने लगा।
अब न जाने क्या बुरी खबर सुननी थी।
मैंने फोन की स्क्रीन पर देखा तो पाया कि चीफ खुराना का कॉल था।
खुराना मुझे इस वक्त क्यों कॉल कर रहे थे? उन्होंने ही तो मुझे छुट्टी पर भेजा था? न जाने क्या बात थी?
फैन फिक्शन की सभी कड़ियाँ:
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #1
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #2
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #3
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #4
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #5
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #6
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #7
- मच्छर मारेगा हाथी को -अ रीमा भारती फैन फिक्शन #8
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #9
©विकास नैनवाल ‘अंजान’
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 14/05/2019 की बुलेटिन, " भई, ईमेल चेक लियो – ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
रोचक लगा यह हिस्सा..पूरा पढ़ती हूँ अब!
जी बुलेटिन में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए दिल से आभार शिवम् जी।
जी आभार मैम। श्रृंखला की बाकी कड़ियों के विषय में भी आपकी राय जानने की प्रतीक्षा रहेगी।
बहुत बढ़िया। आगे की कड़ियो की उत्सुकता हैं।
सपना बहुत डरावना था .., अन्य कड़ियों की तरह यह कड़ी भी रोचकता से भरपूर है ।
जी शुक्रिया मैम।
अगली कड़ी की प्रतीक्षा है
जी अगली कड़ी तो लिखी जा चुकी है। नवाँ भाग प्रकाशित हो चुका है। इसके आगे लिखना बाकी है। जल्द ही इस श्रृंखला को पूरी करूँगा।
जी आभार, मैम।