जोधपुर जैसलमेर की घुमक्कड़ी #3: जैसलमेर से कुलधरा की तरफ

जोधपुर जैसलमेर की घुमक्कड़ी
यह यात्रा 28/12/2018 से 01/01/2019 के बीच की गई थी


30/12/2018  रविवार 


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जोधपुर जैसलमेर की घुमक्कड़ी #1



पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि कैसे मैं जोधपुर पहुँचा था और उधर पहुँचकर मुझे राकेश भाई ने सरप्राईज दिया था। उसके बाद हमने जोधपुर में अपना काम निपटाया था और उसके पश्चात शाम को जोधपुर से बस लेकर हमें जैसलमेर आना पड़ा था। यह सब कुछ अप्रत्याशित सा था। लेकिन फिर ज़िन्दगी वैसे तो चलती नहीं है जैसे हम अक्सर सोचते हैं। हमारे साथ भी ऐसे ही हुआ था। अब आगे:

सुबह नींद खुली तो देखा राकेश भाई फोन पर कुछ टिपटिपा रहे थे। मैंने वक्त पूछा और फिर सो गया। फिर साढ़े आठ बजे नींद खुली। राकेश भाई नहा-धोकर रेडी थे। मुझे एक चाय चाहिए थी। मैंने एक चाय के लिए बाहर किसी बन्धु से कहा। कुछ देर में चाय आई और चाय पीते हुए मैंने उपन्यास के कुछ पृष्ठ पढ़े।


चाय खत्म की और फिर नहाने धोने के लिए बाथरूम गया। बाथरूम में गर्म पानी की व्यवस्था थी तो चिंता की कोई बात नहीं थी। आराम से नहाया। नहाकर आया और आज की घुमक्कड़ी के तैयार हुआ। राकेश भाई ने बार बार सभी सामान याद से ले लेने को कहा और मैं उन्हें तसल्ली देता हुआ होटल के कमरे से बाहर आ गया।

सुबह नींद खुलने के बाद क्या चाहिए: एक अच्छा उपन्यास और एक चाय का कप
होटल का कमरा 

सामान पैक करते राकेश भाई 

आज जैसलमेर की स्थानीय जगह देखने का विचार था। हम लोग  सोनार किले के निकट पहुँचे। हम  दस बजे अपने होटल से निकले थे और सवा दस बजे के करीब सोनार किला के आगे थे। गेट के निकट ही कई दुकाने थी जहाँ ठेले भी लगे थे। हमने उधर से पोहा खाने का विचार बनाया। लेकिन इससे अलावा  भी एक जरूरी काम करना हमे उधर करना था। मैंने जब  सत्यजीत राय का उपन्यास सोनार किला लिया था तो फैसला किया था कि इसे सोनार किले में आकर पढूंगा। इसको लेकर किले के सामने फोटो खिंचवाऊँगा। अब फिलहाल तो मैं कोई दूसरा उपन्यास पढ़ रहा था लेकिन फोटो तो मैं खिंचवा ही सकता था। उसमे तो कोई मनाही नहीं थी। यह काम मुझे करना था। लेकिन उससे पहले थोडा पेट में कुछ डालने का निर्णय लिया। वैसे भी कहा गया है कि पहले पेट पूजा और फिर काम दूजा।

हमारे सामने ही एक ठेले वाले भाई थे जो पोहा दे रहे थे। हमने उनसे  कहकर दो प्लेट पोहा लगवाये और आराम से उसे ग्रहण किया। उन्ही भाई साहब के पास गुलाब जामुन भी थे तो राकेश भाई ने गुलाब जामुन भी लिए।
अब पेट में कुछ चले गया था तो मैंने राकेश भाई को अपनी फोटो खींचने के लिए कहा। वो भी तैयार हो गये और उन्होंने मेरी फोटो खींची।मैं अब खुश था। मैंने एक दो पन्ने उपन्यास के भी पढ़े। पूरा उपन्यास मैंने इस ट्रिप से आने के बाद पढ़ा था।

फिर हम बगल में मौजूद चाय की दुकान में चले गये जहाँ हमने दो चाय का आर्डर दिया। चाय का एक घूँट लिया तो मुझे मज़ा आ गया। चाय मेरे हिसाब से बनी थी। तगड़ी! एक दम। गले में जाकर चाय लगी थी। चाय मुझे इतनी पसंद आई थी कि मैंने एक और चाय माँगी थी। चाय पीने के बाद हमने पोहे और चाय दोनों के पैसे अदा किये।

सोने का किला 

पोहा का नाश्ता 

सोनार किला के सामने सत्यजित राय के सोने के किले के साथ

चाय पीते पीते हमने आज के दिन की योजना बना ली थी। आज हम लोगों ने जैसलमेर शहर से बाहर स्थित जगहें यानी कुल्धारा गाँव और सम में मौजूद रेत के टीले देखने का विचार बनाया था। अगले दिन हमे जोधपुर जाना था तो सोचा था कि उस दिन जैसलमेर में स्थानीय जगहों पर ही घूमेंगे। इससे दूर से जल्दी आने की हड़बड़ी नहीं रहेगी और हम आराम से चीजें देख पाएंगे। यह विचार राकेश भाई का था और मुझे जचा था।

हमारे पास सम, कुल्धारा वगेरह जाने के दो रास्ते थे। या तो कोई टैक्सी वगेरह लें या कोई बाइक लें। चूँकि राकेश भाई बाइक चलाने में दक्ष हैं तो बाइक लेने का ही विचार बनाया। चाय पीते पीते ही चाय वाले भाई साहब से इस विषय में पूछा तो उन्होंने हाथ के इशारे से बता दिया कि आगे जाकर बाइक रेंट पर देने वाली दुकाने हमे मिल जाएँगी।

चाय के पैसे हमने दे दिये थे तो अब हम लोग  बाइक किराए पर लेने के लिए चल पड़े । कुछ दूर जाकर ही दूकान थी। हम उधर पहुँचे और उनसे बाइक के विषय में पूछा। सब देखा परखा और एक पल्सर लेने का निर्णय लिया। वो पल्सर का रेट हजार रूपये बता रहे थे। थोड़ा मोल भाव किया तो 900 में आये। हमने अपना एक बैग उधर छोड़ा, एक छोटा बैग अपने पास रख लिया और उसमें राकेश भाई ने अपना पॉवर बैंक रख दिया। इस कारण मैंने अपना पॉवर बैंक निकालने की नहीं सोची। हमने 1500 रूपये (900 किराया और 600 सिक्योरिटी) जमा कराकर बाइक लेकर जैसलमेर से बाहर की तरफ निकल पड़े।

हमे अब बाइक में तेल डलवाना था। निकलने से पहले बाइक वाले भाई ने हमे सुझाव दिया था कि हम लोग पानी वगेरह यहीं से खरीद कर चले क्योंकि सम में ये सब चीजें बड़ी महँगी मिलती हैं। हमने उनका सुझाव मानने का निर्णय ले  लिया था।

गूगल माप में हमने कुलधारा फीड किया और रास्ते की ओर बढ़ चले। कुछ ही दूर में हमे पेट्रोल पम्प मिला तो उधर हमने बाइक में 400 का तेल डलवाया। अब हम आगे बढ़ रहे थे। तभी हमे याद आया कि हमने तो पानी लिया ही नहीं है। वापस जाने की बजाय हमने सोचा कि रास्ते में जो चाय की टापरी मिलेगी हम लोग उधर खरीद लेंगे। वैसे भी उधर रुक कर चाय तो पीनी ही थी।

बाइक का सफर चल रहा था। मौसम इतना ठंडा नहीं था लेकिन बाइक पर मैंने हुड डाला हुआ था। अगर बाइक पर न होता तो हुड शायद न डाला होता। गर्मी थी। सामने सड़क थी और चारो और मरुस्थल दिख रहा था। रास्ते में एक दो चाय की टपरी हमे दिखी लेकिन उधर हमने नहीं रोकी। फिर एक जगह एक बोर्ड दिखा जो कि रेगिस्तान की तरफ इशारा करके बता रहा था कि उधर से जायेंगे तो कुल्धारा पाँच किलोमीटर पड़ेगा। वहीं सड़क वाला रास्ता दिखा रहा था कि अट्ठारह उन्नीस किलोमटर पड़ेगा क्योंकि सड़क से हमे घूमकर चलना होता।

राकेश भाई ने पूछा- “क्या करना है? इधर से चले या सीधे से?”
मैंने अपने बायें तरफ के रास्ते को देखा। दूर दूर तक सड़क का नामो निशाँ नहीं था। केवल रेत ही रेत थी। एक पल को ‘द मम्मी’ के किरदार इमोटेप का ख्याल आया। लेकिन फिर वो रेत की आकृति की तरह भुरभुराते हुए गिर गया और मैं वर्तमान में आने वाली परेशानियों के विषय में सोचने लगा। मैंने राकेश भाई को प्रश्न किया-”बाइक चल लेगी क्या उधर?”
राकेश भाई-”मुश्किल है।”
मैं – “फिर क्यों रिस्क लेना है।”
मुझे रिस्क लेने का कोई तुक समझ नहीं आया। भले ही तेरह किलोमटर का फर्क था लेकिन रेतीली जमीन में बाइक चलाना काफी मुश्किल होता। फिर वो इलाका बियाबान ही लग रहा था। बीच में कुछ हो जाता तो लेने के देने पड़ जाते। हमने सोचा कि अभी पानी भी लेना है और इधर सड़क है ही तो हम सड़क के माध्यम से ही जायेंगे।

उधर से हम थोड़ा ही आगे बढे होंगे कि एक चाय की टपरी हमे मिल गई। हमने साढ़े दस बजे करीब नाश्ता किया था। और सवा ग्यारह बजे हम इस टपरी पर रुक रहे हैं। राकेश भाई ने साइड में बाइक रोकी। मैं चाह रहा था कि वो चाय की टपरी की तरफ जाकर रोकें। लेकिन हम सीधा जा रहे थे और चाय की टपरी हमारे दायें तरफ थी। इधर से हमे रोड क्रॉस करके ही टपरी तक जाना होता।

 क्योंकि ये हाईवे ही था तो गाड़ियाँ इधर तेजी से आ जा रही थीं। मुझे रह रह कर राकेश भाई के साथ घटित होने वाले हादसे की याद आ रही थी। मैंने राकेश भाई को बोला कि आराम से लगाना। उधर भी साइड में लगाई थी आपने। उन्होंने कहा “छोड़ो इधर ही।” मैंने कहा – “उधर भी ऐसा ही छोड़ा था।”

राकेश भाई ने कंधे उचकाये और बोला – “कुछ भी होने की सम्भावना बहुत कम है। और हो भी जाता है तो क्या कर सकते हैं। यह कहकर उन्होंने बाइक को किनारे पर खड़े किया और हम उतर कर चाय की टपरी पर पहुँचे।”

चारों तरफ रेत थी और बीच में ये चाय की टपरी थी। वहीं पर एक अंडे वाला और दूसरी चीजों वाला ठेला सा था। ठेले से बादशाह के गाने डी जे वाले बाबू की धुन पर कोई राजस्थानी गाने की स्वर लहरियाँ आ रही थी। यह धुन काफी प्रसिद्ध हुई थी और अलग अलग भाषाओँ में इस पर गीत बने थे। एक तो गढ़वाली में भी है। हमने चाय ली और एक दो लीटर की पानी की बोतल ली। चाय चुसकते हुए मैं गीत के बोलों पर ध्यान देने लगा तो पता चला कि यह कोई भजन था जो डीजे वाले बाबू के संगीत पर बैठाया गया था। बोल राजस्थानी ही थे। हमने चाय खत्म की। फिर राकेश भाई ने चाय देने वाले लड़के से कुल्धारा के विषय में पूछा कि कितना दूर है। उसने भी स्तरह अट्ठारह बताया। वो राजस्थानी में ही बात कर रहा था लेकिन हमे उसकी बातें समझ आ जा रही थीं। फिर उससे पीछे वाले रास्ते के विषय में पूछा जहाँ कुल्धारा 5 किलोमीटर था। हमारा विचार था कि पूछ लेते हैं रास्ता सेफ है या नहीं। सेफ हुआ तो मुड़कर देखने में क्या हर्ज है। उसने हाथ के इशारे से बताया कि वो पाँच नहीं पंद्रह है और किसी खुराफाती ने 1 मिटा दिया है। हमने एक दूसरे को देखा और हँसे। फिर उसने कहा कि उधर सड़क भी नहीं है। ऐसे में अगर हम उधर से जाते तो शायद वो पंद्रह हमे सीधे रास्ते  से ज्यादा ही पड़ता। हमने उसका शुक्रियादा अदा किया। पानी की बोतल के उसने चालीस रूपये लिए और यह भी बताया कि सम में इसी के साठ हो जायेंगे। हमने कहा कोई नहीं और पैसे अदा करके हम बाइक की तरफ बढ़े। गाड़ियाँ सड़क पर आ जा रही थीं तो लग ही रहा था कि पर्यटक तो हैं।

साइड में खड़ी हमारी बाइक

चाय की टपरी

हम बाइक पर बैठे। बाइक स्टार्ट हुई और हम लोग आगे बढ़ने लगे। सामने सड़क थी और उसे रौंदते हुए हम अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते जा रहे थे। चारो तरफ रेत ही रेत थी। मैं पीछे बैठा हुआ था और मेरे दिमाग में बैठे बैठे कई तरह के ख्याल आते जा रहे थे।

कुछ दूर जाकर हमे विंडमिल भी दिखे।उनमें एक आध हल्के हल्के घूम रहे थे। उसे देखकर हम ये कयास लगाने लगे कि इससे पर्याप्त बिजली उत्पन्न हो पाती होगी या नहीं। वहीं मैं सोचने लगा कि मंथर गति से घूमता इतना बड़ा विंडमिल अगर कभी पंखे के समान तेजी से घूमेगा तो क्या होगा? इनसान तो उस दौरान उड़ ही जायेगा। मेरे दिमाग में फाइनल डेस्टिनेशन फिल्म के सीक्वेंस की तरह एक सीक्वेंस चलने लगा।

कुछ लोग एक गाड़ी में सम की तरफ बढ़ रहे हैं। मौसम खराब है। तेज हवाएं उठ रही हैं। बालू चारो तरफ उड़ रही है। बादल छाने के कारण दिन के बारह बजे भी ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे शाम के सात बजे हों।  लोगों के मना करने के बाद भी वो जिद करके इधर आते हैं। फिर हवाएं एकदम से बड़ जाती हैं। ड्राईवर जो कि उसी समूह का सदस्य है हवाओं के थपेड़े गाड़ी पर महसूस कर रहा है। गाड़ी का संतुलन बनाने में उसे दिक्कत हो रही है। और फिर वो इन विंडमिल की तरफ पहुँचते हैं जो कि द्रुत गति से घूम रहे हैं। वो इसे देखकर ऐसे ही विस्मित हो जाते हैं जिस प्रकार शेर को देखकर शिकार। गाड़ी बढती जा रही है और सब आश्चर्य से विंडमिल का घूमना देख रहे हैं। गाड़ी विंडमिल के करीब पहुँचने वाली होती है काले बादल आसमान को अपने गिरफ्त में ले लेते हैं। चारो तरफ अँधेरा है। हवा की सांय सांय के बीच विंडमिल से उत्पन्न होने वाली आवाज़ ही सुनाई दे रही है। सभी अपने इष्ट देवताओं को याद करके दुआएं मांग रहे हैं। ऐसे में अचानक विंडमिल में कुछ होता है और उसका एक हिस्सा टूट कर तेजी से गाड़ी की तरफ बढ़ता है और उसे चीरता हुआ आगे निकल जाता है। यह टकराव इतनी तेजी से होता है कि गाड़ी भी उछल कर रेतीले हिस्से की तरफ गिर जाती है। परन्तु इतना सब कुछ होने के पश्चात भी एक चमत्कार होता है। समूह के पाँचों सदस्य जीवित हैं। वो घायल हैं परन्तु जीवित हैं। वो अपने खुदा को दुआएं देने वाले होते ही हैं कि एक चिंघाड़ उन्हें सुनाई देती है और उनकी चूले हिल जाती हैं। और फिर वो चीज उन्हें अपने समक्ष दिखती है वो उन्हें ये सोचने पर मजबूर कर देती है कि वो मर ही गये होते तो कितना अच्छा होता।

अपने इन्ही विचारों में मैं खोया हुआ था कि हम विंडमिल के निकट पहुँच गये। उधर कुछ लोग उनके नजदीक ही खड़े होकर फोटो खिंचवा रहे थे। मैं बाइक में बैठा बैठा ही फोट खींच रहा था। दिमाग ने जो भयावह स्थिति प्रस्तुत की थी उसको देखने के बाद मैं इधर रुकना नहीं चाहता था।

बीच पढ़ा एक सनसेट पॉइंट… अब सनसेट तो हुआ नहीं था तो हम लोग इसके सामने रुके बिना ही आगे बढ़ गये

रुक कर फोटो खींचते सैलानी

वो रहे विंडमिल

विंडमिल और जैसलमेर की बात चली है तो जैसलमेर और विंडमिल से जुड़ा लोकेश गुलियानी जी का उपन्यास जे मैंने जैसलमेर से लौटने के बाद पढ़ा था। अगर मुझे पहले पता होता कि यह उपन्यास जैसलमेर के ऊपर ही लिखा गया है तो सोनार किला के साथ साथ मैं इसे भी लेकर उधर जाता और इस ट्रिप में इसे जरूर पढ़ता। हॉरर उपन्यास वैसे भी ट्रिप का मजा दोबाला कर देते हैं।

कुछ ही दूर चलने के बाद सामने ही हमे एक मोड़ दिखा जिधर  मुड़कर हमे कुलधारा जाने के लिए मुड़ना है। तीन चार किलोमीटर दूर ही कुल्धारा था। उसी के साथ एक और चीज ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया। कुलधारा के साथ उधर खाबा फोर्ट का जिक्र था जो कि 19 बीस किलोमीटर आगे था।

“ये खाबा फोर्ट क्या है?” मैंने राकेश भाई से पूछा।
“पता नहीं।” राकेश भाई ने उत्तर दिया।
“फिर तो चलेंगे उधर भी।” मैंने उत्साहित होकर कहा। विंडमिल गुजर चुके थे और अब हमे कोई खतरा नहीं था। राकेश भाई ने भी देखते हैं के अंदाज में मुंडी हिला दी। फ़िलहाल तो हम कुलधारा की तरफ ही जाने वाले थे।

रास्ता सीधा था और कुछ ही देर में हम कुलधारा पहुँच चुके थे। बाहर एक ही गाड़ी थी और द्वार के सामने एक सज्जन बैठे हुए थे। हम उनके नजदीक पहुँचे तो उन्होंने बताया कि पार्किंग अंदर जाकर ही बनी है। बस अंदर जाने के लिए बाइक का 50 रूपये और दस दस रूपये प्रतिव्यक्ति का लगेगा। हमने उन्हें 100 का नोट दिया तो उन्होंने चालीस रूपये लौटाये। मैंने कहा दस ज्यादा दे दिये आपने तो उन्होंने हँसते हुए कहा कि बाइक के साथ पायलट का जाना फ्री है। हम भी हँसते हुए और उन्हें धन्यवाद देते हुए अंदर दाखिल हुए।

सड़क से दिखता एक रिसोर्ट 

पहुँच गये कुलधारा

क्रमशः

#हिन्दी_ब्लॉगिंग
© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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8 Comments on “जोधपुर जैसलमेर की घुमक्कड़ी #3: जैसलमेर से कुलधरा की तरफ”

  1. भाई सुबह एक चाय और उपन्यास फिर किले ने सोनार किला किताब पढ़ने और उसके साथ फोटो फिर से चाय भाई कर क्या रहे हो ग़ज़ब…1 घंटे के फिर से चाय….चलो कुलधारा पहुचे रेंट के 900 आजकल रेंट काफी महंगा होते जा रहा है बढ़िया पोस्ट

  2. मेरी बैटरी तो चाय से ही चलती है। 😂😂😂 क्या कर सकते हैं। उस वक्त उधर नये साल के कारण रश ज्यादा था तो रेट भी उस हिसाब से ज्यादा थे। ऑफ सीजन में कम होंगे, शायद।

  3. उपन्यास "जे' जैसलमेर की विंडमिल्स ,कुलधरा और सोनार किला सब मिल कर ट्रिप को ऐतिहासिक कम हॉरर रूप दे ज्यादा दे रहे हैं 🙂 सुन्दर यात्रा वृत्तांत ।

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