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रात को
जब सो जाते हैं सारे,
और मैं लेटा होता हूँ बिस्तर पर,
नहीं होता कुछ भी करने को,
न होता है कोई दिल बहलाने का साधन,
तब मेरे एकाकीपन को तोड़ता हुआ आता है,
तुम्हारा ख्याल, दिल के किसी कोने से,
ख्याल जो तुम्हारी ही तरह है,शर्मीला
ख्याल जो तुम्हारी ही तरह है,चंचल
जब भी जाता हूँ उसे पकड़ने को मैं,
वो हो जाता है गायब,
जैसे तुम हो गयी थी कभी मेरी ज़िंदगी से,
बस फर्क है तो इतना,
तुम न मिलोगी मुझे कभी,
पर ख्याल आ जाता है गाहे बगाहे
मुझे चिढ़ाने को,खेलने को मेरे दिल से
रात को
जब सो जाते हैं लोग सारे और सो जाती है ये दुनिया,
जब ढह जाती हैं वो दीवारें जो खड़ी करी है
मैंने खुद को बचाने को,
तब लगता है मुझको डर
इस एकाकीपन से,
अपनी सोच से
अपने अंदर के खालीपन से
शायद इसलिए मोड़ लेता हूँ मैं खुद को,
हवस की तरफ,
जहाँ न तुम होगी, न होगा तुम्हारा ख्याल,
बस होगा गहन अँधेरा,
जहाँ खो जाऊँगा मैं,
दोबारा उठने को,दोबारा जीने को
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
जी शुक्रिया,सर।
बहुत सुंदर रचना।
जी आभार।
बहुत सुन्दर सृजन ।
जी आभार, मैम।
सुन्दर