मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #1

मच्छर मारेगा हाथी को - अ रीमा भारती फैन फिक्शन

भूमिका 

वैसे तो हिन्दी पल्प साहित्य में बहुत किरदार हुए हैं जो कि मुझे पसंद आये हैं लेकिन रीमा भारती का मेरे लिए अपना एक अलग चार्म रहा है।  मुझे पता है कि रीमा भारती का उपयोग कई बार लेखकों ने यौन फंतासियाँ परोसने के लिए किया है परन्तु एक किरदार के रूप में रीमा भारती मुझे हमेशा से पसंद आई है।
अगर मूल रूप से देखा जाये तो रीमा भारती जेम्स बांड का फीमेल वर्शन ही है। जेम्स बांड की तरह वो अलग अलग मिशन में खतरों से खेलती है। जैसे जेम्स बांड औरतों को अपने मोह पाश में बाँध सकता है वैसे ही रीमा भारती भी मर्दों को रिझाकर अपना काम निकलवाने में माहिर है। अपने देश और अपने फर्ज के लिए जान न्यौछावर करने के लिए रीमा भारती हमेशा तत्पर रहती है।
अगर आप रीमा भारती से परिचित नहीं हैं तो रीमा एक भारतीय खूफिया एजेंसी इंडियन सीक्रेट कोर की सबसे होनहार एजेंट है।  एजेंट के तौर पर उसे कई मिशन मिलते  हैं और वो जान की बाज़ी लगाकर उसे पूरा करके ही लौटती है। यही फॉर्मेट रीमा भारती के लिए असंख्य सम्भावनाएं भी खोल सकता है। यही कारण है कि लेखिका ने रीमा को लेकर अपने कल्पनाओं के घोड़ों को बेलगाम दौड़ाया है और रीमा से कई हैरतअंगेज कारनामे करवाये  हैं।
रीमा भारती के प्रति मेरे आकर्षण का कारण भी यही है कि उसके पेशे के चलते उसके केस स्थानीय भी हो सकता है और अंतरराष्ट्रीय भी। अपनी मर्जी से विषय चुना जा सकता है। यही कारण है कि मैं बहुत दिनों से रीमा भारती का फैन फिक्शन लिखना चाहता था।
फैन फिक्शन की बात आई है तो इसके नाम के ऊपर भी बात करनी जरूरी है। इस फैन फिक्शन के नाम के पीछे बस एक चुहुल है। मेरे एक मित्र हैं अमीर सिंह जी, वो घोस्ट लेखन और घोस्ट लेखन की प्रवृत्ति से काफी चिढ़ते हैं। यह समझा जाता है कि रीमा भारती के उपन्यास भी इसी श्रेणी में आते हैं। और ऊपर से रीमा भारती के उपन्यास में सेक्स ज्यादा होता तो उससे और ज्यादा चिढ़ते हैं। यही कारण है मैं उन्हें रीमा भारती के नाम से चिढाता रहता हूँ और उन्हें रीमा भारती का दीवाना कहता हूँ। फेसबुक पर हमारी एक दूसरे की टांग खिंचाई चलती ही रहती है। ऐसे ही फेसबुक पर उनके किसी पोस्ट पर मैं उन्हें चिढ़ा रहा था कि उन्होंने इस काल्पनिक शीर्षक को लेकर मुझे चिढाने की कोशिश की थी। मैंने सोचा क्यों नहीं इसी को लेकर फैन फिक्शन लिखा जाये। और इसलिए यह पहला अध्याय मैंने लिखा।
अब कहानी आगे कैसे जायेगी ये तो मुझे नहीं पता लेकिन उम्मीद करता हूँ कि इस फैन फिक्शन को पूरा करूँगा। विचार दस से पंद्रह अध्याय लिखने का है। देखता हूँ कि यह कितना पूरा होता है। हाँ, हर नई कड़ी सोमवार को प्रकाशित होगी।

1) 

वक्त : रात के एक बजे
जगह : एन सी आर में मौजूद एक आधे अधूरी इमारत का एक फ्लोर

‘चटाक’ –  थप्पड़ की गूँज ने उस वीरान इमारत की स्तब्धता को भंग कर दिया था।

थप्पड़ इतना जोर से पड़ा था कि रीमा को अपने दाँत हिलते हुए महसूस हुये। उसका निचला होंठ फट गया था और रक्त बह निकला था। रीमा ने दाँत पीसते हुए अपने हमलावर को देखा। रीमा इस समय घुटनों के बल जमीन पर बिठाई गई थी। उसके हाथ रस्सी से बंधे हुए थे। उसके दोनों और दो मुस्टंडे बंदूक लेकर खड़े थे। दो और लोग उस कमरे  के दरवाजे के बाहर पहरा दे रहे थे और दो बंदे नीचे बिल्डिंग के बाहर पहरा दे रहे थे।

यह एक खाली ईमारत थी जो प्रॉपर्टी बूम के वक्त बिल्डर ने बना तो दी थी लेकिन अब खाली पड़ी भूतों का अड्डा बन चुकी थी। बिल्डर को लगा था कि उसे इससे मुनाफा होगा लेकिन खरीदार न मिलने से उसे इतना नुकसान हो गया था। आजकल वह जेल की हवा खा रहा था और ईमारत नशेड़ियों और असामजिक गतिविधियों का अड्डा बनी हुई थी।

थप्पड़ मारने के बाद उस व्यक्ति ने रीमा को देखा और उसके चेहरे पर एक हँसी प्रकट हुई। उसके होंठ तो हँस रहे थे लेकिन उसकी आँखें इतनी भावहीन थी कि रीमा को एक पल के लिए अपने बदन में सिहरन सी महसूस हुई।

‘तो तुम हो आईएससी की नम्बर वन एजेंट।’ वह बोला। और बोलने के साथ ही उसने एक लात रीमा की छाती पर जड़ दी। रीमा को अपनी साँस रूकती सी महसूस हुई। अगर पीछे खड़े मुस्टंडे उसे न थामते तो वह पलट ही जाती।

रीमा ने किसी तरह अपनी उखड़ती साँस पर काबू पाया और फिर जबड़े भींचे उसे देखने लगी। रीमा की आँखें अंगारे बरसा रही थी। लेकिन वह व्यक्ति अपनी ताकत में मद में यह सब देख ही नहीं रहा था।

“तू मेरे से टकराने चली थी, रीमा भारती। मच्छर है तू मेरे सामने मच्छर। और इस अपराध की दुनिया में मैं एक विशालकाय हाथी हूँ। मैं जब चलता हूँ तो तेरे जैसे मच्छरों को रोंदते हुए निकल जाता हूँ। अभी भी कह रहा हूँ। जो मैं चाहता हूँ तू मुझे बता दे। तुझे जान की भीख दे दूँगा। नहीं बतायेगी तो मेरे ये आदमी तेरा वो हाल करेंगे कि तू मुझसे मौत की भीख माँगेगी।” कहते हुए उसने रीमा के माथे पर अपनी पिस्टल लगा दी।

कहते हैं मौत से पहले इनसान की ज़िन्दगी उसकी आँखों के समक्ष एक फिल्म की भाँती चलने लगती है।

रीमा के दिमाग में बस चार दिन पहले की घटना आई। चार दिन पहले वह काम्या नाम की लड़की से दिल्ली के फीनिक्स मॉल में मिली थी। और उसके बाद चीजें इतनी तेजी से घटित हुई की आज वह इस आदमी के सामने इस हालत में थी। उसके माथे पर बंदूक की नाल लगी हुई थी और कुछ ही देर में उसकी इहलीला समाप्त होने वाली थी।

तो इस तरह होगा मेरा अंत। रीमा के मन में यह ख्याल आया तो उसके होंठों पर एक बरबस एक मुस्कान सी आ गई। उसके जहन में चार दिनों की घटना किसी एच डी क्वालिटी की फिल्म की तरह चलने लगी।

क्रमशः

फैन फिक्शन की सभी कड़ियाँ:

  1. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #1
  2. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #2
  3. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन  #3 
  4. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #4
  5. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #5
  6. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #6
  7. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #7
  8. मच्छर मारेगा हाथी को -अ रीमा भारती फैन फिक्शन #8
  9. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #9
 
©विकास नैनवाल ‘अंजान’ 

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #1”

  1. नमस्कार भाई,
    रीमा भारती पर आप उपन्यास लिख रहे हैं, जानकर अच्छा लगा।
    उम्मीद है आपकी कलम से एक बेहतरीन थ्रिलर निकलेगा।
    आगामी किश्त का इंतजार है।
    धन्यवाद।

  2. ये तो पढ़ा हुआ है भाई, पहले भी कहीं पोस्ट किए थे आप। बढ़िया शुरुआत, थोड़े बड़े पार्ट्स पोस्ट कीजिये।

  3. जी, इसी को आगे बढ़ा रहा हूँ। ये किया ही इसलिए है कि आगे बढ़ाया जा सके। वरना ये भी अधूरा ही रह जाता। श्रृंखला लेखन में पार्ट्स को ऐसे लिखना होता है के आगे के लिए उत्सुकता बनी रहे। ऐसे में सीरीज में कुछ ब्रेक पॉइंट्स निर्धारित किये हैं जिसके अनुसार चैप्टर को विभाजित किया है। मेरी कोशिश है कि 1000-1500 शब्दों का एक चैप्टर हो। इसे पाठक पांच मिनट में पढ़ लेगा और ज्यादा वक्त भी उसका जाया नहीं होगा। इस पार्ट में चूँकि भूमिका थी तो पहले पार्ट को ही शामिल किया क्योंकि दूसरा पार्ट बढ़ा है और वो 1500 के हिसाब में फिट नहीं बैठता। मुझे बीच में काटना पड़ता जो और खटकता।

  4. आरम्भ बहुत अच्छा है …., हर सोमवार को प्रतीक्षा रहेगी आपकी रीमा भारती की ।

  5. हार्दिक आभार। इसकी आठ कड़ियाँ अभी तक लिख चुका हूँ। व्यक्तिगत कारणों से बाकि की कड़ियाँ लिख नहीं पाया। जल्द ही दोबारा से शुरुआत करूँगा। उम्मीद है इस रचना की अन्य कड़ियों पर भी आपकी राय मिलेगी।

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