11/3/2017
किले से घूमकर (किले के विषय में जानने के लिए इधर क्लिक करें ) बाहर निकला तो उसके अगल बगल दो पार्क बने हुए थे। मैंने उधर जाने की सोची।
वैसे मैं एक बार किले में जाने से पहले भी एक पार्क में जा चुका था लेकिन उस वक्त मूर्ती की तस्वीर नहीं उतार पाया था। इस बार तस्वीर उतारने का पूरा ख्याल था। मैंने पार्क के अन्दर किले की तरफ से जाने का फैसला किया।
पार्क में जाते हुए मैंने जो बात नोट की वो ये कि आईटीओ की तरफ से इस पार्क का अलग नाम था और पार्क की तरफ से जाते हुए अलग नाम। हो सकता है ये दोनों अलग पार्क हों लेकिन एक में घुसकर आप दूसरे से बाहर निकल जाते हो इसलिए इधर मैंने इसे एक ही पार्क कहा है।
इस पार्क में शहीद-ए-आज़म भगत सिंह जी और उनके साथियों की मूर्ती लगी हुई है।
आई टी ओ की तरफ से आते हुए ये बोर्ड लगा है |
पार्क के गेट के बाहर लगा ये जानकारी देता है कि किसने किसके कार्यकाल में इसका शिलान्यास किया |
ये बोर्ड किले के साइड लगा हुआ है |
पार्क में लगी मूर्ती |
शहीदी पार्क में घूमने के बाद मैं दूसरे पार्क की ओर निकल गया। इस पार्क का नाम लोक नायक जय प्रकाश नारायण उद्द्यान है। इसमें जय प्रकाश नारायण साहब की एक बड़ी सी मूर्ती लगी हुई है। मूर्ती के आसपास बैठने के बेंच बनी हुई है। इसके आगे पीछे खेलने के लिए मैदान है और घूमने के लिए पेवमेंट इसके इलावा बच्चों के लिए झूले भी बने हैं।
जय प्रकाश नारायण उद्द्यान |
पार्क में लगी जय प्रकाश नारायण जी की मूर्ती |
फ़िरोज़ शाह कोटला के भ्रमण से थक जायें तो आप इधर भी आराम फरमा सकते हैं। वैसे किले के अन्दर भी बैठने के लिए काफी जगह है लेकिन उधर जाने के लिए 15 रूपये का टिकेट जो लगता है। इन दोनों पार्क में काफी लोग आराम फरमा रहे थे। कुछ लोग क्रिकेट खेल रहे थे। क्योंकि होली का माहोल था तो कुछ लोग आपस में होली भी खेल रहे थे। शाम के वक्त इधर घूमा जा सकता है।
जब मैं फ़िरोज़ शाह के अन्दर था उधर बने नक़्शे में खूनी दरवाजा का जिक्र भी था। इस नाम ने मुझे आकर्षित किया तो उधर चले गया। आखिर क्यों कहते थे इसे खूनी दरवाजा? क्या थी इसके पीछे की कहानी? ये सब प्रश्न मेरे मन में उठ रहे थे। उधर जाकर पता चला कि वैसे इसे लाल दरवाजा भी कहते हैं लेकिन चूँकि इससे जुड़ा इतिहास इतना हिंसात्मक है तो उसे खूनी दरवाज़ा नाम दे दिया गया है। यह साढ़े पन्द्रह मीटर लंबा। इसके अन्दर सीढिया है जो इसके अलग अलग लेवल तक पहुँचाती हैं। लेकिन आप इसके अन्दर नहीं जा सकते हो क्योंकि इसको ग्रिल से घेरा हुआ है।
खूनी दरवाजे के नाम के पीछे एक दिलचस्प कहानी है जो कि उधर एक शिलालेख पर अंकित है। कहानी ये है:
कैप्टेन हडसन ने मिर्ज़ा मुगल, खिज्र सुल्तान और मिर्ज़ा अबूबकर तीन राज कुमारों को हुमायूँ के मकबरे पर दिनाँक 22 सितम्बर १८५७ को हिरासत में लिया और बैलगाड़ी में दिल्ली भेज दिया। कैप्टेन हडसन उनके पीछे आये और इस स्थान पर उन्हें मिले। चारों ओर बहुत भीड़ थी। इस भय से कि भीड़ कहीं राजकुमारों को मुक्त न करवा ले कैप्टेन हडसन ने उनके ऊपरी वस्त्र उतरवा लिए और एक एक करके तीनों को गोली मार दी।
विकिपीडिया पेज पढ़े तो इससे जुडी कई और कहानियाँ पढने को मिलती हैं। उधर ऊपर लिखी कहानी को भी थोडा मसाले दार बनाय गया है। उसे आप इधर पढ़ सकते हैं। बाकी कहानियों में कुछ का पूर्णतः सच होने का कोई सबूत तो नहीं है लेकिन ये इसकी बदनामी में वृद्धि करती ही हैं और पढने में रोचक हैं तो लीजिये आप भी पढ़िए:
१. जहाँगीर ने जब राज काज संभाला तो अकबर के कुछ नव रत्नों ने उसका विरोध किया था। ऐसे में जहाँगीर ने अब्दुर रहीम खान के दो बेटो को मारने का हुक्म दिया था। उनको इधर ही मरकर उनकी लाश को इधर ही छोड़ दिया गया था।
२. औरेंगज़ेब ने जब दारा शिकोह को जब हराया तो उसका सर काटकर इधर ही टांगा था
३. ऐसे भी कहते है कि १७३९ में जब नादिर शाह ने दिल्ली में हमला किया था तो इधर काफी कत्ले आम मचा था।
४. कहते हैं मुग़ल सल्तनत के दौरान भी इसे खूनी दरवाजा कहते हैं लेकिन १८५७ से पहले ऐसा कोई सबूत इधर नहीं मिलता
५. १९४७ के दंगों में पुराना किले की ओर जाते हुए कई रिफ्यूजियों को इधर मार दिया गया था
६. इसकी बदनामी तब और बढ़ गयी जब एक युवती का इधर बलात्कार हो गया था और तब से इसे आम जनता के लिए बंद कर दिया गया।(यह सत्य है)
यह दरवाजा पेड़ो से घिरा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे उसका संरक्षण ठीक ढंग से नहीं हो रहा था। पेड़ो की झुरमुट से वो दुखी से झांकता हुआ लग रहा था कि कोई मुझे भी देखो। मुझे अकेला क्यों छोड़ा हुआ है।
मैंने थोड़ा वक्त उधर बिताया। आगे पीछे से फोटो खींची।
अब मैं काफी घूम चुका था। अब वापस जाने का मन कर रहा था तो इस बार मैंने आई टी ओ से वापस जाने की सोची और उधर की तरफ मुड़ गया। वहाँ से केन्द्रीय सचिवालय के लिए मेट्रो पकड़ी और सचिवालय से हुडा के लिए मेट्रो पकड़ी।
आज का सफ़र अच्छा रहा था। मैं एक चीज़ देखने गया था और काफी कुछ देखकर आ गया था। ऐसा घूमना भी अच्छा होता है। अब देखना ये है कि अगला दिल्ली में क्या देखने को मिलता है। तलाश जारी रहेगी और घूमना लगा रहेगा।
समाप्त
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
Badhiya jaankari
जी, शुक्रिया।