ये अनुभव काफी अच्छा था। इससे पहले मैं जब भी घर जाता था कसरत खाली घर में ही करता था। जब मैं कॉलेज में हुआ करता था तो अक्सर सुबह चार सवा चार बजे करीब जॉगिंग के लिए निकल जाया करता था। इस बार जब मैंने मम्मी को बताया तो उन्होंने हिदायत दी कि चूँकि चार बजे करीब काफी अँधेरा होगा तो मैं पाँच बजे करीब जॉगिंग के लिए निकलूँ। मैंने उनकी बात मानी और उसी वक्त निकलने का फैसला किया।
मैं पौड़ी तीन दिन रहा था। शनिवार 29 तरीक की सुबह पहुंचा था तो उस दिन भागने नहीं जा सकता था लेकिन ३० और ३१ को भागने जरूर गया। मैं लोअर बाज़ार में रहता हूँ तो लोअर बाज़ार से लेकर बुवा खाल तक मेरा भागने का रूट था।
इस दौरान काफी तसवीरें मैंने ली थी। वो आपके लिए हैं। मुझे फोटोग्राफी के विषय में कुछ मालूम नहीं है बस फोन को पॉइंट करके शूट कर देता हूँ। इसमें सबसे पहली तस्वीर ३० तरीक की सुबह 5:23 मिनट की और आखिरी ३० की सुबह 6 बजे के करीब की है।
सुबह सवेरे ऐसे माहोल कई बार डरावना भी हो जाता है क्योंकि सड़क के ऊपर जंगल होता है और नीचे भी जंगल होता है। लेकिन ये भी भागने में रोमांच पैदा कर देता है। मैं ऐसी जगह पर जब भी भागता हूँ तो अपने फोन में गाने की आवाज़ तेज कर देता हूँ। ताकि कोई जंगली जानवर हो तो दूर चला जाए। कई लोग हाथ में छड़ी रख लेते हैं और बिजली के खम्बों को खटखटाते हुए जाते हैं।
डांडा पानी के एक मोड़ से पौड़ी का नज़ारा। वक्त सुबह के साढ़े पांच बजे |
उसी मोड़ से दूसरे कोण से तस्वीर |
वापस आते हुए जब पौ फट गयी थी |
पहाड़ों में जॉगिंग करने का अपना अलग मज़ा है। जब भागना शुरू किया तो इस बात का अनुभव किया। गुडगाँव में रहकर ट्रीडमिल में भागना या पार्क में भागना इसके आगे नहीं ठहर सकता है। आगे घर जाऊँगा तो भागने जरूर जाऊँगा।
आप लोगों का क्या ख्याल है?