पौड़ी में जॉगिंग

 इस बार घर (पौड़ी गढ़वाल) गया तो दो दिन जॉगिंग के लिए भी  गया। ये पहली बार नहीं है कि पौड़ी में जॉगिंग की हो लेकिन अगर हिसाब लगाऊँ तो कॉलेज से निकलने के बाद ये पहली बार था कि जब मैं पौड़ी में  और जॉग करके आया था। कॉलेज मैंने २०१२ में छोड़ दिया था। यानी चार सालों बाद मैं एक बार फिर उन सड़कों पर दौड़ रहा था।

ये अनुभव काफी अच्छा था। इससे पहले मैं जब भी घर जाता था कसरत खाली घर में ही करता था। जब मैं कॉलेज में हुआ करता था तो अक्सर सुबह चार सवा चार बजे करीब जॉगिंग के लिए निकल जाया करता था। इस बार जब मैंने मम्मी को बताया तो उन्होंने हिदायत दी कि चूँकि चार बजे करीब काफी अँधेरा होगा तो मैं पाँच बजे करीब जॉगिंग के लिए निकलूँ। मैंने उनकी बात मानी और उसी वक्त निकलने का फैसला किया।

मैं पौड़ी तीन दिन रहा था। शनिवार 29 तरीक की सुबह पहुंचा था तो उस दिन भागने नहीं जा सकता था लेकिन ३० और ३१ को भागने जरूर गया। मैं लोअर बाज़ार में रहता हूँ तो लोअर बाज़ार से लेकर बुवा खाल तक मेरा भागने का रूट था।

इस दौरान काफी तसवीरें मैंने ली थी। वो आपके लिए हैं। मुझे फोटोग्राफी के विषय में कुछ मालूम नहीं है बस फोन को पॉइंट करके शूट कर देता हूँ।   इसमें सबसे पहली तस्वीर ३० तरीक की सुबह 5:23 मिनट की और आखिरी ३० की सुबह 6 बजे के करीब की है।

सुबह सवेरे ऐसे माहोल कई बार डरावना भी हो जाता है क्योंकि सड़क के ऊपर जंगल होता है और नीचे भी जंगल होता है। लेकिन ये भी भागने में रोमांच पैदा कर देता है। मैं ऐसी जगह पर जब भी भागता हूँ तो अपने फोन में गाने की आवाज़ तेज कर देता हूँ।  ताकि कोई जंगली जानवर हो तो दूर चला जाए। कई लोग हाथ में छड़ी रख लेते हैं और बिजली के खम्बों को खटखटाते हुए जाते हैं।

डांडा पानी के एक मोड़ से पौड़ी का नज़ारा। वक्त सुबह के साढ़े पांच बजे
उसी मोड़ से दूसरे कोण से तस्वीर
वापस आते हुए जब पौ फट गयी थी

पहाड़ों में जॉगिंग करने का अपना अलग मज़ा है। जब भागना शुरू किया तो इस बात का अनुभव किया। गुडगाँव में रहकर ट्रीडमिल में भागना या पार्क में भागना इसके आगे नहीं ठहर सकता है। आगे घर जाऊँगा तो भागने जरूर जाऊँगा।

आप लोगों का क्या ख्याल है?

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *