खुद ही ज़ख्म देके मरहम लगाते हो ,
मेरी जान क्यूँ मुझ पर गजब ढाते हो ,
मेरी हालत देख कर जब तुम मुस्कुराते हो ,
पता है कितना मुझ पर गज़ब ढाते हो ,
जब भी मेरे इश्क ए इकरार को तुम नकारते हो ,
मेरी जान मुझ पर गज़ब ढाते हो ,
जानता हूँ जानबूझकर तुम मुझे चिढ़ाते हो ,
पर सोचा है कभी कितना मुझ पर गज़ब ढाते हो ,
मेरे सपनो में आकर मुझे जगाते हो ,
जाने क्यूँ मुझ पर इतना ग़जब ढाते हो।
विकास ‘अंजान’
© २०१४ विकास नैनवाल