पिछले काफी समय से मैं किताबें नहीं मँगवा रहा था। इस बार भी किताबें मँगवाने का कोई इरादा नहीं था लेकिन फिर कुछ ऐसा मौका लग गया कि इस माह खरीदी गयी किताबों की संख्या दस तक जा पहुँची। छः किताबें तो मैं रवि पॉकेट बुक्स से ही ले आया और बाकी चार किताबों को मँगवाने के लिए मैंने अमेज़न का सहारा लिया।
इस बार खरीदी गयी किताबों की बात करूँ तो मँगवाई हुई दस किताबों में आठ उपन्यास और दो कथेतर साहित्य की किताब हैं।
उपन्यासों में चार उपन्यास अपराध साहित्य के हैं, तीन उपन्यास लोकप्रिय साहित्य की सामाजिक विधा के हैं और एक उपन्यास साहित्य अकादेमी विजेता उपन्यास का हिन्दी अनुवाद है।
कथेतर साहित्य में एक जीवनी है तो दूसरी किताब एक संस्मरणों की है।
अगर भाषा के हिसाब से देखें तो इस माह मँगवाई गयी किताबों में आठ किताबें हिन्दी और दो किताबें अंग्रेजी की है।
तो चलिए इन किताबों के विषय में और जानते हैं।
मई माह में मँगवाई गई किताबें |
चूँकि अपराध साहित्य मेरे पसंदीदा जॉनर में से एक है तो सबसे पहले अपराध साहित्य की किताबें ही देखते हैं। जैसे ऊपर बताया था कि इस बार मैंने चार उपन्यास लिए थे जो कि इस श्रेणी में आते हैं। इनमें से तीन उपन्यास मैंने रवि पॉकेट बुक्स से मँगाया था और एक उपन्यास अमेज़न से मँगवाया था। यह उपन्यास निम्न हैं:
चाल पे चाल – अमित खान
चाल पे चाल लेखक अमित खान के कमाण्डर करण सक्सेना श्रृंखला का उपन्यास है। कमाण्डर करण सक्सेना भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसी रॉ का नम्बर वन एजेंट है जो भारत के लिए कई खतरनाक मिशनों को अंजाम देता है। इस उपन्यास में भी वह अपने दूसरे उपन्यासों के जैसे ही किसी मिशन पर जा रहा है।
उपन्यास के आवरण चित्र पर ‘दुश्मन के एक बेहद खतरनाक फौजी किले की कहानी’ लिखा है जिससे यह तो साफ है कि किसी किले पर यह उपन्यास का कुछ घटनाक्रम घटित होगा। वहीं उपन्यास के पहले पृष्ठ पर ये दर्ज है:
वाकई इस बार बड़ा अजीबोगरीब मामला था। इस बार वो मिशन था ही नहीं -जो बताया गया था। सब कुछ रहस्य के गहरे महासागर में छुपा था।
ऊपर दिए गये वाक्य उपन्यास के प्रति उत्सुकता जगाने में कामयाब हो रहे हैं। इस मिशन पर कमाण्डर के साथ जाने की मेरी इच्छा भी बलवती हो गयी है।
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मर गयी रीमा – अनिल सलूजा
‘मर गयी रीमा’ लेखक अनिल सलूजा की रीमा राठौर श्रृंखला का उपन्यास है। रीमा राठौर एक वकील है जो कि अपने मुवक्किलों को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती है। यह श्रृंखला अनिल सलूजा की प्रसिद्ध श्रृंखलाओं में से एक है। परन्तु मैंने आजतक इस श्रृंखला का कोई भी उपन्यास नहीं पढ़ा है। यह उपन्यास रीमा राठौर श्रृंखला का पहला उपन्यास होने वाला है। जैसे की शीर्षक से ही जाहिर होता है कि इस उपन्यास में सभी को यह लगने लगता है कि रीमा राठौर मर चुकी है। लोगों को ऐसा क्यों लग रहा है? आखिर रीमा को मारने वाला कौन है? ये प्रश्न अभी मेरे जहन में उठ रहे हैं। जल्द ही इनके उत्तर प्राप्त करने होंगे।
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धर्मराज – अनिल सलूजा
धर्मराज अनिल सलूजा का बलराज गोगिया श्रृंखला का उपन्यास है। बलराज गोगिया के विषय में मुझे जो इस उपन्यास को पलट कर पता चला है वह यह कि वह एक अपराधी था जो कि शराफत की जिंदगी बिताना चाहता था लेकिन हालातों के चलते बार बार जुर्म की दुनिया में उसे आना ही पड़ता था। इस उपन्यास में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है।
धर्मराज बलराज गोगिया श्रृंखला का मेरे द्वारा पढ़े जाने वाला पहला उपन्यास है। इससे पहले मैं बलराज गोगिया से नहीं मिला हूँ। देखना है यह मुलाक़ात कैसी रहती है।
द साइलेंट विटनेस – शर्मिष्ठा शेनॉय
द साइलेंट विटनेस शर्मिष्ठ शेनॉय की विक्रम राणा श्रृंखला का नवीनतम उपन्यास है। विक्रम राणा कभी एक पुलिस वाला हुआ करता था लेकिन फिर जब उसे लगा कि वह सिस्टम के अन्दर रहकर काम नहीं कर सकता है तो वह पुलिस की नौकरी छोड़ एक प्राइवेट इन्वेस्टिगेटर बन जाता है।
प्रस्तुत उपन्यास की बात करें तो इसका घटनाक्रम कोलकता में बसाया गया है। जब अखिल गर्ग नामक एक रियल एस्टेट डेवलपर की कोल्ड ड्रिंक की कैन पीकर हत्या हो जाती है तो कई लोगों पर इसका शक जाता है। जब आने वाले दिनों में अखिल गर्ग से जान पहचान रखने वाले कई लोगों की एक के बाद एक हत्या हो जाती है तो हत्यारे को रोकना जरूरी हो जाता है। क्या विक्रम राणा कातिल का पता लगा पाएगा?
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रवि पॉकेट बुक्स से इस बार मैंने तीन सामाजिक उपन्यास भी मँगवाये हैं। इनमें से दो लेखक राजहंस के उपन्यास हैं और एक लेखक सुरेश चौधरी का लिखा हुआ उपन्यास है। मैं अक्सर सामाजिक उपन्यास पढ़ने से बचता रहा हूँ लेकिन इस सोचा है कि इस जौनर को पढ़कर भी देखते हैं। यहाँ ये बताना भी जरूरी है कि जो तीन उपन्यास मँगवाये हैं उनके कथानकों के विषय में कोई आईडिया नहीं था। मैंने इन्हें केवल नाम देखकर ही मँगवाया है।
देखना है कि इनको पढ़ने का अनुभव कैसा रहता है। यह उपन्यास निम्न है:
आखिरी सौगंध – राजहंस
अगर आखिरी सौगंध की बाद करूँ तो उपन्यास के पहले पृष्ठ पर निम्न चीज दर्ज है:
वैशाली ने प्रकाश को पूर्ण समर्पण भाव से चाहा था, उसकी हर खुशी में उसे अपनी खुशी महसूस होती थी… पर वो क्या जानती थी कि वो एक छलिये से दिल लगा बैठी है। पति-पत्नी प्रेम की पराकाष्ठा से पूर्ण एक बेहद मर्मस्पर्शी कथा!
टूटे खिलौने – राजहंस
टूटे खिलौने भी राजहंस का एक सामाजिक उपन्यास है। इसके प्रथम पृष्ठ पर उपन्यास का विवरण कुछ यूँ है:
अमित आभा को दिल की गहराइयों से चाहता था। उसकी हर ख़ुशी को पूरा करना ही जैसे उसकी जिंदगी का मकसद था…. पर वही अमित जैसे टूट कर बिखर गया जब उसने आभा को अपने से दूर जाते पाया…..
राजहंस के दोनों उपन्यासों का विवरण उत्सुकता जगाता है। विवरण पढ़कर कहानी के विषय में काफी कुछ पता चल जाता है। मैंने ऐसे उपन्यास पहले पढ़े तो नहीं हैं लेकिन पति पत्नी के रिश्ते और उनमें मौजूद परेशानियों को दर्शाते कई गम्भीर साहित्य की श्रेंणी में आने वाले उपन्यास जैसे उसके हिस्से की धूप, चित्त्कोबरा, सपनों की होम डिलीवरी, चाक इत्यादि को पढ़ा है।
ऐसे में इन उपन्यासों को पढ़ना रोचक रहेगा ताकि इनके ट्रीट मेंट के फर्क को समझ सकूँ।
प्रतिशोध – सुरेश चौधरी
प्रतिशोध लेखक सुरेश चौधरी का तीसरा उपन्यास है। यह उपन्यास रवि पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है। सुरेश चौधरी सामाजिक उपन्यास लिखते हैं।
प्रतिशोध के विषय में अभी तक जो आपको मैं बता सकता हूँ वह यह है कि यह ठाकुर चन्दन सिंह और सब इंस्पेक्टर राजन की कहानी है। ठाकुर चन्दन सिंह हालातों के चलते एक खूँखार डाकू बेरहन सिंह बन गया था। उसकी दहशत कई दशकों से आस पास के इलाके में कायम है। राजन जब इधर आता है तो वह डाकूबेरहन सिंह को पकड़ने का मन बना लेता है।
आखिर ठाकुर चन्दन सिंह क्यों डाकू बेरहन सिंह बना? इस टकराव का क्या नतीजा होता है? इन्हीं प्रश्नों के उत्तर यह कथानक देता है।
उपन्यास मँगवाने से पहले मुझे इसके कथानक के विषय में ज्यादा जानकारी नहीं थी। अभी जितनी मिली है उससे यह कई पुरानी हिन्दी फिल्मों की याद दिलाता है। इसे पढ़ना रोचक रहेगा।
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उल्लास की नाव – विकास कुमार झा
उल्लास की नाव विकास कुमार झा द्वारा लिखी गयी गायिका उषा उत्थुप की जीवनी है। यह राजकमल पेपरबैक्स द्वारा प्रकाशित की गयी है। उषा उत्थुप से मैं उनकी गायकी ही नहीं वरन उनके व्यक्तिव से भी आकर्षित होता हूँ। उनका स्टाइल अलग है। उनके विषय में मैंने कादम्बनी में जब एक लेख पढ़ा था तो उसने मुझे उनके विषय में और जानने के लिए प्रेरित किया था। हाल में अमेज़न में घूमते हुए इस किताब पर नजर पड़ी थी और इस महीने आखिरकार इसे ले ही लिया। अब इसे पढ़ने के लिए उत्साहित हूँ।
किताब लिंक: पेपरबैक | किंडल | हार्डकवर
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लद्दाख की छाया – भवानी भट्टाचार्य
हिन्द पॉकेट बुक्स को पेंगुइन रैंडम हाउस द्वारा खरीदे जाने के बाद हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा कई ऐसे उपन्यास पुनः प्रकाशित किये गये हैं जो कि काफी वक्त से आउट ऑफ़ प्रिंट थे। ऐसे ही अमेज़न में घूमते हुए मुझे लद्दाख की छाया दिख गयी थी। हिन्द द्वारा प्रकाशित उपन्यासों की एक खासियत उनका आवरण चित्र भी होती है और इस उपन्यास पर उसी ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया था। इसके बाद उपन्यास के विवरण ने मेरा ध्यान भी आकर्षित किया।
भवानी भट्टाचार्य द्वारा लिखा गया यह उपन्यास भारत चीन संघर्ष की पृष्ठ भूमि पर लिखा गया है। इस पृष्ठभूमि पर मैंने ज्यादा उपन्यास नहीं पढ़े हैं। अगर याद करने की कोशिश करूँ तो मनोहर मंगाओकर का अंग्रेजी उपन्यास द स्पाई इन एम्बर ही याद आता है जिसमें भारत और चीन के जासूस दिखाई दिए थे। ऐसे में इस उपन्यास को पढ़ना रोचक रहेगा।
यह उपन्यास भवानी भट्टाचार्य के अंग्रेजी उपन्यास शैडो फ्रॉम लद्दाख का हिन्दी अनुवाद है। इसका अनुवाद प्रभाकर माचवे ने किया। उपन्यास को 1967 का साहित्य अकादेमी अवार्ड भी मिल चुका है।
अमेज़न में उपन्यास का निम्न विवरण मौजूद है:
इस उपन्यास में लेखक ने भारत-चीन संघर्ष की पृष्ठभूमि पर देश की प्रमुख समस्याओं का ऐसा मार्मिक चित्रण किया है कि पाठक भाव-विभोर हो उठता है। इसके रूपांतरकार प्रभाकर माचवे हैं। सफेद खादी में लिपटी सुमिता और भास्कर की यह कहानी, सहज शालीनता भरी ऐसी कहानी है जो संस्कारों की विजय दास्तान से पाठकों केा रूबरू कराती है।
किताब लिंक: पेपरबैक
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द डेडमैन टेल टेल्स – डॉक्टर डी उमादाथान
द डेडमैन टेल टेल्स केरल के सबसे प्रसिद्ध पुलिस फोरेंसिक सर्जन डॉक्टर डी उमादाथान की संस्मरणों की किताब है। यह किताब सबसे पहले मलयालम में 2010 में प्रकाशित हुई थी। अब उसका अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया गया है।
अपराध साहित्य मेरे सबसे पसंदीदा जौनर में से एक है और पुलिस प्रोसीजरल इस तरह के साहित्य की उपश्रेणी है। वहीं मैं कई पुलिस प्रोसीजरल धारावाहिक जैसे एन सी आई एस, सी एस आई इत्यादि भी देखता रहता हूँ। अगर आप भी अपराध साहित्य में रूचि रखते है तो जानते होंगे कि अक्सर इन धारावाहिकों या उपन्यासों में एक फोरेसिंक सर्जन की काफी महत्ता होती है। वह सबूतों को देखकर मामले को अक्सर सुलझा देते हैं। यह सब कुछ किसी करिश्मा जैसा लगता है। यह सब देखकर मैं अक्सर सोचा करता था कि क्या यह असल जिंदगी में मुमकिन है? मुझे इतना तो पता था कि इनमें कुछ चीजों के साथ आर्टिस्टिक लिबर्टी ली होती है लेकिन फिर असल लोगों के अनुभव जानने की इच्छा थी। ऐसे में जब पता लगा कि एक असल फोरेंसिंक सर्जन ने अपने केसेस से हुए अनुभव को लेकर एक किताब ली है तो मुझे यह लेनी ही थी। अब किताब आ गयी है तो इसे जल्द ही पढ़ने का विचार है।
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तो यह थी मई 2021 के माह में मेरे मँगवाई गयी किताबें। क्या आपने इस माह क्या कोई किताब मँगवाई है? मुझे जरूर बताइयेगा।
किताबों के विषय में रोचक जानकारी।
और यह भी रोचक लगा की आप राजहंस और सुरेश चौधरी जैसे सामाजिक उपन्यासकारों को भी पढने लगे।
धन्यवाद।
– गुरप्रीत सिंह,
श्री गंगानगर, राजस्थान
बेहद उम्दा चॉइस, सामाजिक नावल मेरी रुचि नहीं जगा पाते हैं बाकी नॉवेल्स का डिस्क्रिप्शन बहुत ज्यादा रुचिपूर्ण है। हैप्पी रीडिंग
जी आभार… एक बार कोशिश करनी है….देखते हैं….
जी आभार…सही कहा विवरण किताब के प्रति उत्सुकता करते हैं..
मुझे इस बात की प्रसन्नता है विकास जी कि आप हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों ही भाषाओं में पढ़ते हैं तथा प्रत्येक श्रेणी एवं विषय-वस्तु की पुस्तकें पढ़ते हैं। एक सच्चा पाठक एवं साहित्य-प्रेमी ऐसा ही होता है। आपने रवि पॉकेट बुक्स से कई पुस्तकें मंगवाईं। अगर कंवल शर्मा की भी कोई पुस्तक मंगवा लेते तो अच्छा होता क्योंकि अब जासूसी कथाएं रचने वालों में वे ही ऐसे एकमात्र उपन्यासकार रह गए हैं जिनके उपन्यास उचित मूल्य पर उपलब्ध होते हैं और इसीलिए जिन्हें क्रय करने से पूर्व सोचना नहीं पड़ता। मैंने हाल ही में विजय सौदाई का नया उपन्यास फ़िलॉस्फ़र पढ़ा है। सुरेन्द्र मोहन पाठक, वेद प्रकाश शर्मा और गुलशन नंदा के कुछ (बहुत) पुराने उपन्यास भी (सॉफ़्ट प्रति में) पढ़े हैं। शेष आपके लिए मैं यही कहूंगा कि चूंकि आप गंभीर साहित्य भी पढ़ते हैं, अतः यदि आपने यशपाल का कालजयी उपन्यास 'झूठा-सच' अब तक नहीं पढ़ा है तो कभी ज़रूर पढ़िएगा। मेरी नज़र में यह हिंदी का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है और इसकी गणना संसार के भी सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में की जा सकती है।
जी आभार। कँवल जी की कुछ पुस्तकें मैंने मँगवाई हैं। बाकी उनके नये उपन्यासों के कथानक वो अक्सर अंग्रेजी उपन्यासों से ले रहे हैं (जिप्सी एक चेज के उपन्यास से उठाया था फिर टोपाज भी एक अन्य से उपन्यास से उठा रखा है) जो कि मुझे अब सही नहीं लगता है। नये लेखकों के उपन्यास महंगे जरूर हैं लेकिन किंडल अनलिमिटेड में मैं उन्हें पढ़ सकता हूँ तो आसानी होती है। मुझे लगता है कि अब हमें मौलिक रचनाकारों को प्रोत्साहन देना चाहिए। क्योंकि इसी से हिन्दी अपराध साहित्य में अन्तराष्ट्रीय स्तर की सामग्री आने की गुंजाइश रहेगी। आजकल संतोष पाठक अच्छा लिख रहे हैं। अच्छी बात यह है कि मौलिक लिख रहे हैं।
यशपाल का झूठा सच जल्द ही पढता हूँ।
द साइलेंट विटनेस तो दिलचस्प लग रहा है, पढ़कर बताइए कैसा है… उसके बाद ही पढ़ूँगा।
जरूर…