
तुम क्या समझोगे
इस रचना की बात की जाए तो इस रचना की शुरुआत तब हुई थी जब 23 मई 2025 को ये अपना कॉमिक्स ग्रुप नामक व्हाट्सएप ग्रुप में ये बतकही के दौरान लिखी थी। उस समय ग़ज़ल के मकता (आखिरी शेर) से मैं संतुष्ट नहीं था।
तुम क्या समझोगे Read Moreकिस बात की जल्दी है तू ठहर जरा, बैठ चाय पीते हैं दो बातें करते हैं
इस रचना की बात की जाए तो इस रचना की शुरुआत तब हुई थी जब 23 मई 2025 को ये अपना कॉमिक्स ग्रुप नामक व्हाट्सएप ग्रुप में ये बतकही के दौरान लिखी थी। उस समय ग़ज़ल के मकता (आखिरी शेर) से मैं संतुष्ट नहीं था।
तुम क्या समझोगे Read Moreहिंदी हाइकु के विषय में काफी जगह देखा और जो परिभाषा समक्ष आई उससे ज्ञात हुआ कि हिंदी हाइकु 17 अक्षरों और तीन पंक्तियों में लिखी जाने वाली कविता है। …
हाइकु #5 Read MoreImage by brigachtal from Pixabay कल (8/7/2023) घर से निकला तो बारिश होकर थमी थी। किसी काम से बाहर जाना पड़ा तो मन में कुछ पंक्तियाँ आ गईं। बहुत दिनों …
हाइकु #4 Read Moreवरिष्ठ लेखक योगेश मित्तल की पहली कविता व कहानी 1964 में कलकत्ता के सन्मार्ग में प्रकाशित हुई थी। तब से लेकर आजतक वह लेखन क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। कविता, …
गाँव चलूँगा…! | हिंदी कविता | योगेश मित्तल Read Moreगर्मियाँ शुरू हो चुकी हैं और इस वक्त बच्चों की छुट्टियाँ भी पड़ चुकी हैं। चूँकि ये छुट्टियाँ परीक्षाओं के बाद आती हैं तो एक अलग तरह का उत्साह बच्चों में देखने को मिलता है। अपने उन्हीं दिनों को याद करते हुए यह पंक्तियाँ लिखी हैं। उम्मीद है पसंद आएगी।
आई छुट्टी – आई छुट्टी | हिन्दी कविता | विकास नैनवाल ‘अंजान’ Read Moreएक छोटी सी कविता
मंजिल Read Moreअकेले हैं इधर, बुलाएँ हम किसको Image by Pam Patterson from Pixabay जी रहे हैं कैसे ये बताएँ हम किसको घाव अपने ये दिखाएँ हम किसको रात है काली, और दिखता कुछ …
अकेले हैं इधर, बुलाएँ हम किसको Read MoreImage by Iatya Prunkova from Pixabay एक हसीं अफसाना लिख रहा हूँ, दिल का एक तराना लिख रहा हूँ, दिल के टुकड़े तो कई हो चुके मेरे, मैं दिल …
लिख रहा हूँ Read MoreImage by Kranich17</a> from Pixabay हिंदी हाइकु के विषय में काफी जगह देखा और जो परिभाषा समक्ष आई उससे ज्ञात हुआ कि हिंदी हाइकु 17 अक्षरों और तीन पंक्तियों में …
हाइकु #3 Read MoreImage by Papa Smurf from Pixabay वरिष्ठ लेखक योगेश मित्तल की पहली कविता व कहानी 1964 में कलकत्ता के सन्मार्ग में प्रकाशित हुई थी। तब से लेकर आजतक वह लेखन …
धरती माँ ने पकड़े कान | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल Read More