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मैं देखता हूँ,
ठहरता हूँ
सोचता हूँ
फिर चलने लगता हूँ,
सोचकर
कि मुझे क्या,
वो देखता है,
वो ठहरता है
वो सोचता है
फिर चलने लगता है
सोचकर
कि उसे क्या,
और
फिर मैं
सड़कर पर गिरा
तड़पता रह जाता हूँ
– विकास नैनवाल ‘अंजान’
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© विकास नैनवाल ‘अंजान’
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 24 सितंबर 2019 को साझा की गई है……… "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा….धन्यवाद!
जी, मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।
शानदार !
वाह शानदार, आखिर ऐसा होने तक सभी बचकर निकल ने का रास्ता अपनाते हैं।
संवेदना हीन मानव।
अप्रतिम।
जी आभार।
जी धन्यवाद।
एक-एक शब्द भावपूर्ण
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता.
धन्यवाद संजय जी।
लाजवाब भावाभिव्यक्ति ।
जी, आभार मैम।