राकेश भाई, वीर नारायण भाई और हम वैली वाक से रूम के लिए निकले। रास्ते में बातें कर रहे थे। हम अँधेरा होने के कारण वैली वॉक पूरी तरह से कवर नहीं कर पाए थे। हमने सोचा कि क्यों न कल जल्दी उठकर इसे निपटाया जाये। हम तीनो इसके लिए तैयार थे लेकिन बात हल्की फुलकी तौर पर ही की गयी थी। होटल का कमरा एक डेढ़ किलोमीटर दूर था लेकिन हम तेज चल रह थे तो दस मिनट में उधर पहुँच गए। अब हम अपने रूम की तरफ बढ़ चले।
सारे लोग पहले ही उधर पहुँच गए थे। रात की महफ़िल शुरू होने को थी। दिन भर के चलने से और शुक्रवार के ट्रैन के सफर से मेरी चोटिल कमर थोड़ा कराह रही थी। मुझे फिजियो ने कुछ कसरते रोज दिन में दो से तीन बार करने को कहा था लेकिन शुक्रवार से अब तक एक भी बार नहीं कर पाया था। मैंने वापस आते हुए ही सोच लिया था कि उन व्यायामों को करके ही मजलिस में शामिल होऊँगा। मैं रूम में पहुंचा तो कुलदीप भाई टॉवल बांधे तैयार होने को थे।
उन्होंने कहा नीचे साथ ही जायेंगे।
मैं – मुझे एक्सरसाइज करनी है।मैं तो  वो करने के बाद जाऊँगा। कहीं आपको देर न हो जाये।
कुलदीप भाई – आपको कितना टाइम लगेगा।
मैं – दस पंद्रह मिनट
कुलदीप भाई – फिर सही है। मुझे भी तैयार होने में इतना ही वक्त लगेगा।
मैं – फिर तो साथ ही चलते हैं।
उसके बाद वो दुसरे कमरे में चले गए। मैंने एक्सरसाइज शुरू की। पहले बेड पर करने की कोशिश की लेकिन वो बहुत ज्यादा मुलायम था। होटल वालों ने एक तौलिया मुहैया करवाया था। मुझे उसकी जरूरत नहीं थी क्योंकि मेरे पास मेरा व्यक्तिगत था इसलिए उसे बिछाया और व्यायाम शुरू किया।
इधर मैंने व्यायाम निपटाया और उधर कुलदीप भाई तैयार हो गए। फिर हम नीचे पूल के तरफ निकले जिधर महफ़िल लगनी थी।
हम उधर पहुँचे तो ऐसा लग रहा था जैसे महफ़िल शुरू हो चुकी है। दौर ए जाम चालू था। कुछ टेबल्स को जोड़कर एक बड़ी टेबल बना दी गयी थी जिसके इर्द गिर्द सारे एसएमपियन्स बैठे हुए थे। बात चीत का दौर चालु था, सोमरस चुसका जा रहा था। मुझे दीपक भाई के बगल में एक सीट दिखी। वो मेरी तरह कोल्ड ड्रिंक वाली पार्टी थे तो मैं उनके निकट जाकर बैठ गया। कुलदीप भाई भी अपने लिए सीट खोजकर सेटल हो गये।
गिलास के आभाव में मैं बोतल से ही कोल्ड ड्रिक के घूँट लगाता जा रहा था और मूंगफलियाँ खाता जा रहा था। उधर नमकीन मूंगफलियाँ तो थी थी लेकिन हल्की मसाले वाली और मीठी मूंगफलियाँ भी थी। हम सबको ट्राय करते जा रहे थे।
जब सब आ गये और सेटल हो गये तो कार्यवाही शुरू हुई।  हमारे समूह के एडमिन राजीव भाई अक्सर ये काम करते थे लेकिन चूँकि वो मौजूद नहीं थे तो जी पी जी ने अपने मजबूत कन्धों के ऊपर ये जिम्मेदारी ली। उन्होंने
पहले होस्ट विद्याधर  भाई और शिव भाई का शुक्रियादा किया। और सर्व सम्मति से ये निर्धारित हुआ कि टेबल में मौजूद सभी लोग अपना परिचय देंगे और अपने अपने पसंदीदा उपन्यासों के विषय में बतायेंगे।  अगर हो सके तो ये भी बतायेंगे कि वो उपन्यास उन्हें क्यों पसंद आये थे।
ये प्रक्रिया चालू हुई। लगभग सबने ही इसमें पार्टिसिपेट किया। लगभग इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि जब ये प्रक्रिया तीन चौथाई से थोड़ा ज्यादा हुई थी तो ये पता चला कि रात का खाना लग चुका था और होटल में खाना दस बजे तक सर्व होता था। वक्त इससे ऊपर होने को था। फिर ये निर्णय हुआ कि बाकि बचे लोग खाने के बाद इस विषय पर बोलेंगे।
इस प्रक्रिया के दौरान अल्मास भाई ने हमारे होस्ट राजीव भाई को याद करते हुए उनके नाम का टोस्ट किया। उनकी बुलंद आवाज़ और बुलंद हो गयी थी और इसका कारण खुराफाती सैंडी भाई थे जिन्होंने एक के बाद एक कई जाम उन्हें सरका दिए थे। वो अपने वक्तव्य देते और तेज आवाज़ में विशेषणों का प्रयोग करते। फिर उन्हें बोला जाता कि पीछे परिवार वाले और महिलाएं है तो वो विशेषणों पे लगाम लगाते लेकिन वो टोकने वाले को विशेषणों से नवाजे जाने के बाद ही होता। पुनीत भाई ने शायद सबसे ज्यादा विशेषणों के तमगे अर्जित किये होंगे।
इसी दौरान वीर नारायण भाई की कही एक बात भी महत्वपूर्ण थी। वो कैलाश सत्यार्थी ग्रुप से जुड़े हैं। उन्होंने पाठक साहब के शायद एक भी उपन्यास नहीं पढ़े थे लेकिन वो लोकप्रिय उपन्यासों के असर से वाकिफ थे। उन्होंने सुझाया कि पाठक साहब को या ऐसे ही दूसरे उपन्यासकारों को एक बार बाल शोषण को अपने उपन्यास की विषय वस्तु बनाना चाहिए ताकि ज्यादातर पाठक समाज की इस बुराई से रूबरू हो सके। उनका ये ख्याल वाकई काबिले तारीफ़ था। और सबने इसकी तारीफ़ की।
इसके इलावा विद्याधर भाई के साथ आये उनके एक दोस्त ने भी अपने विचार प्रकट किये। मुझे इतना अच्छा तरह याद नहीं था लेकिन शिव भाई ने इसके विषय में लिखकर बताया तो उन्ही की जुबान में पढ़िए।
‘विधाधर भाई के एक दोस्त जिसने पाठक साहेब का सिर्फ नाम ही सुना था, उसने कहा था की , मेरी जिंदगी मे पहली बार ऐसे लोगों से पाला पड़ा हे कि इतने जबर फैन, इतने मस्तमोला , कमाल के बंदे है। लेखक मे ज़रूर कोई बात है कि लोग उनके पीछे पागल है। ऐसा तो पहले किसी फिल्म स्टार के लिए ही देखा ओर सुना है।’-शिवकुमार चेचानी भाई
बाकी अब एक सूची आपको देता हूँ कि सदस्यों के पसंदीदा उपन्यास कौन से हैं और क्यों। अगर आपने इन उपन्यासों को पढ़ा है तो अपनी राय जरूर दीजियेगा। अगर नहीं पढ़ा है तो आशा है सूची पढने के बाद जरूर पढेंगे।
- शिव भाई 
 उपन्यास : डायल 100, मेरी जान के दुश्मन
 कारण : ‘डायल 100′ शायद 30 -35 साल पहले लिखा नोवेल हे, लेकिन आज की परिस्थितियों से मेल खाता है। पुलिस, गुनहगारों, नेताओं के गठजोड़, मानवीय संवेदनाओं, मुल्यों, व्यक्तित्व का ऐसा चरित्र चित्रण ओर कही नही मिलेगा। “जेन्टलमेन कीलर” की तो कितने ही फिल्मों मे कापी की गई है। लेटेस्ट मे कहानी मूवी का, कांट्रैक्ट कीलर।‘मेरी जान के दुश्मन मे’ जिस तरह से एक साधारण आदमी की असाधारण कहानी बनी, कमाल कर दिया पाठक साहेब ने।
- दीपक मौर्य भाई
 उपन्यास : तीन दिन,कागज़ की नाव,कोई गवाह नहीं
 कारण : तीन दिन मुख्य किरदार राहुल के निस्वार्थ लिए। कागज़ की नाव खुर्शीद के प्रेम के लिए और कोई गवाह नहीं अपनी उम्दा प्रस्तुति लिए। आपको कोई सुराग नहीं दिखते लेकिन जब रहस्य से पर्दा उठता है तो आप हैरत में पड़ जाते हो कि सब कुछ ही आँखों के सामने था।
- पुनीत दूबे भाई
 उपन्यास : डायल १००, असफल अभियान , खाली वार
 पुनीत जी ने डायल १०० के विषय में बोला था कि इसे पुलिस ट्रेनिंग में पढना आवश्यक कर देना चाहिए।
- जी पी सिंह जी
 उपन्यास : अनोखी रात , तीन दिन, मेरी जान के दुश्मन
 कारण : मानवीय भावनाओं का सटीक चित्रण। ऐसा लगना जैसे ये पात्र हमारे ही आस पास के हों या यूं कहें पात्रों का दो आयामी न रहकर जीवंत और तीन आयामी बन जाना।
 ‘तीन दिन’ की बात करें तो राहुल, जो कि मुख्य किरदार था, की कुर्बानी। और उसके बाद का प्रसंग। (यहाँ वो लिखने में असमर्थ हूँ क्योंकि कहानी खुल जाएगी। आप पढेंगे तो समझ पाएंगे कि कौन सी कुर्बानी और कौन सा प्रसंग। )‘मेरी जान के दुश्मन’ का आखिर में मटर छीलने वाला प्रसंग।‘अनोखी रात’ क्योंकि वो एक आम आदमी की अपनी बीवी के लिए लड़ी गयी लड़ाई थी।
- अमीर सिंह जी
 उपन्यास :
 कारण :
- ठाकुर महेश सिंह जी
 उपन्यास : मेरी जान के दुश्मन , तीन दिन, कागज की नाव
 कारण : मेरी जान के दुश्मन का हर एक चीज पसंद लेकिन ख़ास तौर पर आखिर में दर्शाया गया भावनात्मक प्रसंग। तीन दिन में राहुल की कुर्बानी । कागज की नाव में धंधा करने वाली खुर्शीद का लल्लू से निश्छल प्रेम और आखिर का प्रसंग जो मन झकझोर देती है।
- राजीव सिन्हा ‘गुरु ‘जी 
 उपन्यास : बीवी का हत्यारा। वैसे गुरु जी ने तीन दिन की भी तारीफ़ करी थी।
 कारण : इमोशनस के बेहतरीन विवरण और अपने पैरेलल आर्केटेकचर के लिए।
- राजीव कुमार सिंह जी
 उपन्यास : डायल १००, दस मिनट
- संदीप अग्रवाल जी
 उपन्यास : तीन दिन
- नवल जी
 उपन्यास :
 कारण :
- कुलदीप भाई
 उपन्यास : लाश गायब , मीना मर्डर केस
 कारण : लाश गायब इसलिए क्योंकि इसमें पहली बार सुनील को कुछ करने का मौका न मिला। इस बार कोई और नायक बन गया था।
 मीना मर्डर केस एक लॉक्ड रूम मिस्ट्री होने के कारण।
- हसन अल्मास भाई
 उपन्यास : तीन दिन
 कारण : अपने भावोत्तेजक कथानक के लिए।
- संदीप ‘सैंडी’ शुक्ला भाई
 उपन्यास : निम्फोमैनियेक
 कारण : उपन्यास के अंत का मंजुला के बहन और सुधीर कोहली के बीच का संवाद। और उपन्यास की पहला वाक्य :‘वो दिल्ली की एक सर्द रात थी। ‘
- राकेश शर्मा भाई
 उपन्यास : असफल अभियान,खाली वार
 कारण : अविस्मरणीय क्लाइमेक्स के कारण
- विद्याधर भाई :
 उपन्यास :सुनील में स्पाई श्रृंखला , पूरी विमल श्रृंखला ,एक चुनना हो तो :हज़ार हाथ
- योगेश्वर भाई :
 उपन्यास : योगी भाई को लगभग सभी उपन्यास पसंद हैं। विशेषतः जितने भी २००७-२००८ से पहले प्रकाशित हुए हैं।
- विकास नैनवाल यानी मैं 
 उपन्यास : वहशी, मकड़जाल + ग्रैंड मास्टर (वैसे मैंने अभी पाठक सर के ५० से भी कम उपन्यास पढ़े हैं तो मेरी सूची उन्हीं में से है जो मैंने पढ़े हैं। )
 कारण : ‘वहशी’ इसलिए क्योंकि भले ही इसमें कातिल के मामले कोई ट्विस्ट नहीं रहता लेकिन novel शुरू से अंत तक आपको बाँध कर रहता है।
 ‘मकड़जाल’ और ‘ग्रांडमास्टर’ की कहानी ‘मकड़जाल’ से शुरू होकर ‘ग्रांडमास्टर ‘ पे खत्म होती है और दोनों ही उपन्यासों में भरपूर थ्रिल और सस्पेंस है।
इधर ये बताना जरूरी है कि इधर कई लोगों का नंबर नहीं आया था। लेकिन चूँकि वो उधर थे तो उनकी पसंद हमने बाद में पूछ ली थी और चूँकि सूची बन रही थी तो सबको एक साथ जोड़कर ही लिखने का तुक मुझे लगा।
अब चूँकि देर हो रही थी तो हम सब खाने को निकले। हमने ये सिलसिला जितना हुआ था उतने में समेटा और इसे दुबारा जारी करने का निर्णय लेकर खाने के लिए चल पड़े। दिन में सबसे पूछा गया था कि कौन कौन वेज है और कौन कौन नॉन वेज और उसी हिसाब से टेबल भी लगी थीं। सबने अपने हिसाब से भोजन किया। और फिर धीरे धीरे करके एक सौ पाँच नंबर रूम की तरफ सब बढ़े।
उधर महफ़िल दोबारा जमनी थी। मैं पहले अपने कमरे में गया और थोड़ी देर में १०५ में पहुँचा। उधर पहले से ही लोग बाग़ अपनी अपनी जगहों में टिक गये थे। पहले जो लोग बचे थे उनसे उपन्यास के बारे में पूछना चाहा लेकिन अब वो मूड न था। अब हँसी ठट्ठा होना था। अब बारी थी स्पेशल पिरोग्राम की।
अल्मास भाई ने अपने ख़ास छंद सुनाने शुरू किये। उनके छंदों ने समा बाँधा और रूम में हँसी की फुह्हारें गूंझने लगी। अल्मास भाई छंद सुनाते सुनाते कभी कभी कुछ विशेषण किसी की तरफ उछाल देते थे। और लोग खिलखिलाकर हँस देते। वो छन्द कौन से थे इन्हें एक राज ही रहने देते हैं। ये हर मीट का स्पेशल है। पे पर व्यू टाइप। आपको शिरकत करनी पड़ेगी जानने के लिए।
इसके बाद पुनीत जी से ग़ज़ल गाने की दरख्वास्त होने लगी। उन्होंने थोड़े ना नुकुर करने के बाद गाना शुरू किया और दरख्वास्त की कि इसका विडियो न बनाया जाये और अगर बनाया जाए तो कही और साझा न किया जाए। उनके गाने से समा बाँधा। सबने उसे बहुत एन्जॉय किया। वो गाते जा रहे थे तो हम सब भी अपने अपने हिसाब से उनके साथ गा लेते थे। उन्होंने दिल में लहर सी उठी है अभी और रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का सामाँ हो गये को गाकर सबका मनोरंजन किया। सबने बहुत एन्जॉय किया।
शाम की कुछ झलकियाँ :
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| अल्मास भाई पूरे तरन्नुम में | 
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| वीर नारायण जी , ठाकुर महेश सिंहजी , पुनीत भाई और संदीप अग्रवाल जी | 
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| पुनीत जी, संदीप भाई, शिव भाई , दिनेश भाई | 
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| कुलदीप भाई और गुरूजी | 
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| नवल जी , योगी जी और जी पी जी | 
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| अमीर सिंह जी, दीपक भाई और सैंडी भाई | 
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| सैंडी भाई और मैं | 
अब रात काफी हो गयी थी। हम लोगों को सुबह सुबह माउंट आबू के दूसरे पर्यटक स्थलों पर जाना था इसलिए अब हम अपने अपने रूम की तरफ चलने लगे। ये दिन काफी यादगार बीता था। कई जगह गये थे। खूब मस्ती की थी। अब देखना था अगले दिन के लिए हमारे बेहतरीन होस्ट्स विद्याधर भाई और शिव भाई ने क्या योजना बनाई थी। वैसे कुछ भी बनाई होती, हम तो निश्चिन्त थे क्योंकि हम बहुत काबिल हाथों में थे।
हम अपने रूम में गये। कुलदीप भाई, दीपक भाई, योगी भाई और मैं एक रूम में थे। हम सभी थक चुके थे। मुझे सोने से पहले कुछ पढने की आदत है तो मैंने मुझसे बुरा कौन उठाई और उसके पृष्ठ पढने लगा। कुछ पृष्ठ पढने के बाद नींद मुझपे छाने लगी। मैंने अपनी किताब किनारे रखी और फिर सो गया। मन में ये ही उत्सुकता थी कि कल कैसे बीतेगा।
क्रमशः
पूरी ट्रिप के लिंकस
माउंट आबू मीट #१: शुक्रवार का सफ़र
माउंट आबू मीट #२ : उदय पुर से होटल सवेरा तक
माउंट आबू  #3 (शनिवार): नक्की झील, टोड रोक और बोटिंग
माउंट आबू #4: सनसेट पॉइंट, वैली वाक
माउंट आबू मीट #5: रात की महफ़िल
माउंट आबू मीट #6 : अचलेश्वर महादेव मंदिर और आस पास के पॉइंट्स
माउंट आबू #7:गुरुशिखर
माउंट आबू मीट #8: दिलवाड़ा के मंदिर, होटल में वापसी,दाल बाटी  की पार्टी 
माउंट आबू मीट #9: होटल भाग्यलक्ष्मी और वापसी के ट्रेन का सफ़र



 
                     
                     
                    
माऊंट आबू में दोस्तों की महफिल, मस्ती के पल, शानदार भाई
जी सही फरमाया, संदीप भाई…. दिन भर घूमने के बाद रात की महफ़िल ने तरो ताज़ा कर दिया था…..दोस्तों के साथ बिताये पल यादगार होते ही हैं…
यादें ताज़ा हो गई ये वृतान्त पढ़कर। बहुत शुक्रिया।
जी आभार, पुनीत भाई