घनघोर था अँधेरा, था चहूँ ओर सन्नाटा गहरा | कविता | विकास नैनवाल 'अंजान'

घनघोर था अँधेरा, था चहूँ ओर सन्नाटा गहरा

घनघोर था अँधेरा, था चहूँ और सन्नाटा गहराआकाश पे उड़ते चमगादड़ जाने किसका दे रहे थे पहरा,आसमान में छाए थे बादल ,और हमें सुनाई दी कुछ हलचल , अभी  खोया …

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