यह घुमक्कड़ी 19 सितंबर 2021 को की गयी
18 सितंबर 2021, शनिवार
शनिवार की शाम, फोन का आना, उँगलियों का ठिठकना और एक प्यारा सा प्रस्ताव
वह एक आम शनिवार की शाम थी। मैं अपने लैपटॉप पर बैठा कीबोर्ड टिपटिपा रहा था और सुजाता सामने बैठी फोन का एयरफोन कान पर लगाए किसी व्यक्ति से बातचीत कर रही थीं। चूँकि सुजाता एक फ्रीलांस राइटर और सिंगर हैं तो उन्हे अक्सर लोगों के कॉल आते रहते हैं और वह अक्सर फोन पर अपने प्रोजेक्ट्स डिस्कस करती रहती हैं। उस दिन भी जब फोन बजा था तो मैंने यही सोचा था कि किसी नये प्रोजेक्ट के बारे में बात हो रही होगी। मैं अक्सर ऐसी बातों को नजरंदाज करता हूँ लेकिन चूँकि कमरा एक ही है तो बातचीत के कुछ टुकड़ों पर ना चाहते हुए भी ध्यान चला ही जाता है। शनिवार की उस शाम भी यही हुआ। सुजाता द्वारा कहे गये कुछ शब्दों ने कीबोर्ड पर दौड़ती हुई मेरी उँगलियों को थमने पर मजबूर कर ही दिया।
उनके द्वारा कहे गए शब्दों में से जिस शब्द समूह ने मेरा ध्यान आकर्षित किया वह था – वर्ल्ड क्लीन अप डे। उसके बाद कुछ शब्द बोले गये और फिर मालदेवता कहा गया। फिर कुछ शब्द बोले गये और रविवार को सुबह छः बजे आने की हामी भरी गयी। सुजाता अक्सर गढ़वाली गीतों की शूटिंग के लिए मालदेवता जाती रही हैं तो मालदेवता शब्द बातचीत में सुनना हैरत की बात मेरे लिए तो नहीं ही थी। लेकिन वर्ल्ड क्लीनअप डे, मालदेवता और अगली सुबह छः बजे कमरे से निकलने की बात ने मेरे घुमक्कड़ कान खड़े कर दिये। वैसे भी अब तक मैं इतने जासूसी उपन्यास पढ़ चुका हूँ कि भले ही शरलॉक हॉलम्स की तरह जूतों पर लगी मिट्टी देखकर यह न बता पाऊँ कि बंदा कहाँ से आ रहा है लेकिन बातचीत के इतने टुकड़ों को जोड़कर अपने मतलब की बात तो पता लगा ही देता हूँ। पर फिर भी मैं बात कन्फर्म करना चाहता था। वो क्या है कि न हमारी अंग्रेजी की शिक्षिका ने एक बार कहा था कि व्हेन यू असयूम समथिंग, दैन यू मेक एन ऐस आउट ऑफ यू एंड मी। यानि जब आप किसी के विषय में पहले से ही कोई धारणा बना लेते हैं तो काफी हद तक संभावनाएँ रहती हैं कि वह गलत ही हों और आप बेवकूफ साबित हों। ऐसे में आप सामने वाले को जो जानकारी देंगे वो गलत होगी और उसके भी बेवकूफ दिखने की संभावना बढ़ जाएगी। और मैं बेवकूफ कम ही दिखाई देना चाहता हूँ और तब तो बिल्कुल भी नहीं जब मैं आसानी से असल बात पता कर सकता हूँ। मैंने इस मामले के तह तक जाने का विचार किया और फिर मेरी उँगलियाँ कीबॉर्ड के बटनो के ऊपर खड़ी खड़ी फोन बंद होने का इंतजार करने लगी।
घुमक्कड़ी के मौके आए तो मैं उन्हे खोना पसंद नहीं करता हूँ। और मेरी घुमंतू नाक ने इसमें एक मौका खोज लिया था। ऐसा नहीं था कि मेरी घुमक्कड़ी ठप ही पड़ी हुई थी। 11 सितंबर को मैं देव बाबू और अटल पैनयूली के साथ विकास नगर की घुमक्कड़ी कर चुका था । (इसके बारे में भी जल्द ही लिखूँगा।) परंतु अगर किसी महीने हर सप्ताहांत को घूमने का मौका मिले तो उसे गंवाना व्यर्थ ही था।
अब बस इंतजार था फोन के बंद होने का। कहते हैं जब आप किसी चीज का इंतजार करते रहते हैं तो समय काटना कठिन हो जाता है। सेकंड मिनटों में तब्दील हो जाते हैं और मिनट घण्टों में बदल जाते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही था। एक सदी बाद (जो कि असल में पाँच मिनट ही रहे होंगे) जब बातचीत खत्म हुई तो मैंने एक राहत की साँस ली। मैंने सुजाता को देखा और चेहरे पर बेचैनी के भाव छुपाने के प्रयास करते हुए उनसे फोन कॉल के विषय में पूछा।
पहले तो वह मुझे देखकर हैरान हुई लेकिन जब देखा कि मैं असल में बात जानना चाहता हूँ तो उन्होंने वह एक एन जी ओ एस डी सी (SDC) से जुड़ी हुई हैं जिसके साथ रहकर वो यदा कदा सोशल काम करती रही हैं। और अभी फोन उसी एन जी ओ से जुड़े प्यारे नौटियाल जी का आया था। चूँकि वर्ल्ड क्लीनअप डे था तो वह लोग मालदेवता में एक सफाई प्रोग्राम का आयोजन कर रहे थे जिसके लिए उन्होंने सुजाता को भी बुलाया था। साथ ही सुजाता ने ये भी बताया कि वह लोग छः बजे हमारे कमरे में उन्हें लेने आ रहे थे और दस बारह बजे तक यह ऐक्टिविटी भी निपट जानी थी। यह सब सुनकर मुझे खुशी हुई। उस वक्त तक मुझे वर्ल्ड क्लीन अप डे के विषय में कुछ पता नहीं था । शायद आप लोगों को भी न पता हो तो चलिए बता देता हूँ:
हर साल सितंबर माह के तीसरे शनिवार को विश्व सफाई दिवस यानि वर्ल्ड क्लीन अप डे के रूप में मनाया जाता है। इसका संचालन लेट्स डू इट वर्ल्ड नामक संस्था के द्वारा किया जाता है। इस संस्था का हेडक्वार्टर तल्लिन एस्टोनिया में मौजूद है। विश्व सफाई दिवस के दिन 24 घण्टों के लिए विश्व के अलग अलग कोनों में तरह तरह के संगठन सफाई अभियान चलाते हैं। हम लोग हर दिन इतना कूड़ा पैदा कर रहे है कि धरती को काफी नुकसान हो रहा है। पर्यटन स्थलों में यह कूड़ा और अधिक मात्रा में पैदा हो रहा है। इस नुकसान को कम करने के लिए संस्थाएँ इस दिवस को सफाई अभियान चलाकर लोगों को कूड़ा यहाँ वहाँ न फैलाने के लिए जागरूक करती हैं। (विस्तृत जानकारी इधर क्लिक करके जानी जा सकती है।)
वर्ल्ड क्लीन अप डे के विषय में ऊपर दी हुई जानकारी मैंने गूगल बाबा से हासिल की तो पाया कि इस साल वर्ल्ड क्लीन अप डे 18 को था और एन जी ओ प्लान 19 यानि रविवार को बन रहा था।
“आप लोग एक दिन लेट नहीं हो गये?”, जब मैंने पत्नी को कहा तो उन्होंने कंधे उचका दिया और कहा, “दिन नहीं सफाई जरूरी है।”
बात भी सही थी। फिर इंडियन स्टैन्डर्ड टाइम भी कोई चीज है जिसके हिसाब से एक दिन देर होना सही टाइम पर होना ही है। वह फिर अपने फोन पर व्यस्त हो गयी थी लेकिन मेरी उंगली अभी भी कीबोर्ड के ऊपर ठहरी हुई ही थी।
“क्या मैं भी आ सकता हूँ?”,मैंने दूसरा प्रश्न किया तो उन्होंने गौर से मेरी तरफ देखा।
“सच में?” उन्होंने हैरानी जताई। फिर कहा, “मुझे लगा आपको इसमें इंटेरेस्ट नहीं होगा।”
“इसमें भी इंटेरेस्ट है और साथ में जो छोटी सी घुमक्कड़ी हो जायेगी उसमें भी है।”, मैंने जब शर्माते कहा तो उनकी हँसी छूट गयी।
“प्यारे सर बोल रहे थे आपको भी लाने को तो मैंने उन्हे कह दिया था कि शायद आपको रुचि न हो।”, जब सुजाता ने ये कहा तो मैं यही सोच रहा था कि ये बातचीत कब हुई। लेकिन फिर हुई भी होगी तो मेरा ध्यान उस पर गया नहीं होगा क्योंकि मैं तो बातचीत में कुछ शब्दों के आने से ही ठिठका था। खैर, सुजाता खुश हुई और उन्होंने प्यारे सर को फोन लगाया और प्यारे सर ने भी प्यार प्यार में मेरा जाना कनफर्म कर लिया।
अब हम लोग सुबह होने की राह देखने लगे। हमारी योजना सुबह जल्दी उठकर चाय वगैरह पीकर निकलने की। मेरे लिए गाड़ी में जगह हो ही गयी थी और गाड़ी वाले हमें लेने कमरे के बाहर ही आने वाले थे।
19 सितंबर 2021, रविवार
घुमक्कड़ी की सुबह, मालदेवता और सफाई कार्यक्रम
सुबह पाँच – साढ़े पाँच बजे ही हम लोग उठ गये थे। यह उठना हमारे लिए अस्वाभाविक था क्योंकि जब से देहरादून आए हैं सुबह जल्दी उठना न के बराबर ही हो पाता है। लेकिन चूँकि जाना था तो सुबह उठे। नित्यकर्म से निवृत्त हुए और बैठकर एक एक घूँट चाय की मारी। चाय पीते-पीते मैं एक ब्लॉग पोस्ट पर भी काम कर रहा था। एक
पुस्तक परिचय अपनी दूसरी वेबसाईट पर डालना था तो जल्द ही वह पोस्ट तैयार करने में जुट गया। मेरी योजना ये थी कि अभी लिखकर पोस्ट को शेड्यूल करके मालदेवता निकल जाऊँगा। और इस काम को करने में सफल भी रहा। जब तक एन जी ओ वाले हमें लेने आते तब तक मैंने पोस्ट तैयार की और उसे शेड्यूल करके रख दिया।
लगभग सवा छः बजे सुजाता को एन जी ओ सदस्य सुनीत परमार का फोन आया। वही गाड़ी लेकर आ रहे थे जिसमें पहले से कुछ और लोग भी मौजूद थे। हम लोग तैयार तो पहले से ही थे। मैंने सुजाता को हैन्ड सैनीटाइज़र ले जाने को कहा तो उन्होंने गाड़ी में उसके होने की बात बोली। सुजाता ऐसे इवेंट्स पहले भी कर चुकी थी और इन लोगों से भली भाँति परिचित थीं।
गाड़ी आयी और हम लोग उस पर बैठकर मालदेवता के लिए निकल पड़े। हमारे यहाँ से मालदेवता की दूरी बीस पच्चीस मिनट की ही है। कार में हम लोग बैठ चुके थे और सुजाता और सुनीत पुराने इवेंट्स की बातें करने लगे थे। उनकी बात से काफी कुछ जानने को मिला। हमारे साथ गाड़ी में पीछे की सीट तीन युवक और थे जिनसे न सुजाता परिचित थी और न मैं ही परिचित था। यह बीस पच्चीस मिनट का सफर सुजाता का बात करते हुए और मेरा कभी कभी गाड़ी से बाहर झाँकते हुए बीता।
चूँकि आज रविवार था तो कफी लोग घूमने निकले थे। बाहर सड़क पर हमें सुबह की सैर करते लोग तो दिखे ही साथ ही साइकिल में घूमते हुए काफी समूह भी दिखे। ये बाइसिकल ग्रुप अक्सर सप्ताहांत में निकल पड़ते है और आस-पास के इलाके का सफर करते हैं।
हमारे घर से मालदेवता का सफर काफी खूबसूरत भी है। रास्ते में जंगल पड़ते रहते हैं जो कि रास्ते को मनमोहक बना देते हैं। वहीं चूँकि बारिश होकर टली थी तो एक तरह की ताजगी भी माहौल में थी। सड़क और आस पास सब गीला भी था और वातावरण में एक तरह का कुहासा भी मौजूद था। गाड़ी में गाने भी चल रहे थे तो यह सफर और अच्छा हो गया था। जल्द ही हम लोग अपनी मंजिल पर पहुँच चुके थे। प्यारे सर जिन्होंने फोन सुजाता को इस क्लीनिंग ड्राइव में शमिल होने के लिए कहा था वो हमें मालदेवता पहुँचकर ही मिलने वाले थे।
अगर आप देहरादून के हैं तो आप जानते होंगे कि मालदेवता देहरादून के लगों के लिए एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल है। सप्ताहांत में काफी लोग यहाँ आते हैं। इनमें पिकनिक मनाने वाले, मयूसिक विडिओ बनाने वाले और शादी के मौसम में प्रीवेडिंग शूट कराने वाले लोग शामिल होते हैं। चूँकि यहाँ इतने लोग आते हैं तो वह यहाँ कचरा भी फैलाते हैं और इसिलिये प्यारे जी ने यहाँ सफाई करने का विचार किया था।
जहाँ तक मेरी बात है ये दूसरी बार था जब मैं मालदेवता आ रहा था। इससे पहले मैं सुजाता के साथ ही इधर आया था और उस दिन हमने इस खूबसूरत जगह में घूमने का लुत्फ उठाया था। उस दिन के वृत्तान्त के विषय में आप
इधर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
वापिस इस ट्रिप पर आएँ तो हम लोग मालदेवता के पुल पर पहुँचे तो हमें प्यारे जी की गाड़ी भी दिख गयी। वहाँ से हम लोग अब उस जगह पर पहुँच गये जहाँ से हमने सफाई शुरू करनी थी। गाड़ियाँ रोकी गयी और सभी लोग बाहर निकले।
सभी लोगों को इकट्ठा किया गया और फिर हमें बताया कि कि हमें मालदेवता के कुछ स्पॉटस चुनकर वहाँ से प्लास्टिक के रैपर्स, बोतले इत्यादि लेकर आनी होगी। इस ड्राइव में हम एक ऑडिट भी करने वाले थे। हम लोग सभी रैपर्स को इकट्ठा करके ये देखने वाले थे कि किस ब्रांड के प्रोडक्टस से सबसे ज्यादा कचरा फैल रहा है।
दो दो व्यक्तियों को एक एक कट्टा दिया गया और सभी कूड़ा उठाने मे लग गये। वैसे तो भी सुबह का वक्त ही था लेकिन काफी लोग उधर आ चुके थे। कुछ साइकिल वाले, कुछ प्री वेडिंग वाले और कुछ मस्ती करने वाले लोग उधर पहले से मौजूद थे। पहले हम लोग मालदेवता वाटरफाल की तरफ गये क्योंकि उधर ज्यादा लोग रहते हैं। सुजाता और मैं साथ ही थे और हमने तब तक कूड़ा उठाया जब तक हमारे पास मौजूद कट्टा भर नहीं गया। जब कट्टा भर गया तो उसे लेकर गाड़ी तक गये और फिर वापिस जाकर जिसका कट्टा खाली था उनका कट्टा भरने में मदद की।
जब हम साफ कर रहे थे लोग हमें देख रहे थे। सफाई में चिप्स के पैकेट, बीयर की बोतल, नमकीन के पैकेट, प्लास्टिक के गिलास, चाय के गिलास इत्यादि हमने उठाए। सफाई करते हुए हमें एक और बात नोटिस की और वह यह कि जो वाटरफाल तक जाने का रास्ता है और वाटरफाल के आस पास भी कोई कूड़ादान हमें दिखाई नहीं दिया।
वाटरफाल वाले इलाके में जब सभी कट्टे भर गये थे तो हम लोगों उन्हे लेकर गाड़ी तक आए।
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चलो शुरू करो सफाई अभियान, कूड़ा उठती सुजाता और थैला लिए खड़ा मैं |
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पानी के बीच से कचरा बीनती सुजाता |
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मालदेवता |
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ये पहाड़ियाँ, ये नदी और ये खूबसूरती |
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मालदेवता वॉटरफॉल |
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सफाई करते ग्रुप के लोग |
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जोरों शोरों से सफाई चालू है |
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मालदेवता की एक खूबसूरत सुबह |
गाड़ी पर पहुँचने पर पता चला आगे एक और स्पॉट है जिधर से कूड़ा उठाना है। हमने कूड़े वाले कट्टों को गाड़ी में भरा। जो ग्लव्स पहने हुए थे उन्हे उतार कर एक साथ एक कट्टे मे डाला और हाथों को सैनीटाइज़ किया। चूँकि अगली लोकेशन ज्यादा दूर नहीं थी मैंने और सुजाता ने जगह पूछकर उधर पैदल जाने का ही विचार बना दिया। अब आए थे तो थोड़ा चलना फिरना और आस पास की खूबसूरती को देखना भी होना तो चाहिए। कुछ और लोगों को यह बात पसंद आइ और वह भी पैदल ही दूसरी लोकेशन के लिए चल पड़े।
दूसरी लोकेशन पाँच दस मिनट दूर ही थी। दूरी कम थी लेकिन ऐसा टहलना भी अच्छा लग रहा था। ठंडी ठंडी हवा,कल कल बहता पानी का शोर और सुजाता का साथ सभी कुछ साथ मिलकर एक रुमानी वातावरण बना रहा था। हम दोनों बाकी लोगों से अलग अपने में ही खोए हुए और बातें करते हुए चल रहे थे।
तभी एक रोचक बात हुई। ग्रुप के कुछ लोग जिनके कट्टे आधे भरे थे वो उन्हीं कट्टों को साथ लिए आ रहे थे। वहाँ पर दो गायें हमें दिखी तो कि उन लोगों के कट्टों की तरफ बार बार आ रही थी। यह बात हम लोगों के लिए हैरानी की थी क्योंकि आस पास घास प्रचुर मात्रा में थी लेकिन फिर भी गायों के लिए आकर्षण का केंद्र वह कट्टे ही बने हुए थे। किसी तरह उन गायों को भगाया गया और वो लोग आगे बढ़ते रहे।
जल्द ही हम लोग वहाँ पर पहुँच गए जहाँ पर दूसरी लोकेशन पर जाने के लिए गाड़ियाँ पार्क करनी थी। यह जगह मुख्य लोकेशन से ऊपर थी और हमें नीचे के तरफ जाना था। यहाँ हमें खाली कट्टे तो लेकर नीचे जाना ही था साथ ही भरे कट्टे भी लेकर नीचे जाना था। ऐसा इसलिए जरूरी था क्योंकि हमें इस कूड़े का ऑडिट भी करना था। गाड़ियाँ आई और हम लोग भरे और खाली कट्टे लेकर नीचे पहुँचे।
नीचे पहुँचकर एक जगह पर एक पीली रंग का बड़ा कट्टा बिछा दिया गया। अब जो कूड़ा हमने इकट्ठा किया गया उस पीले कट्टे के ऊपर फैला दिया गया।
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अब तक इकट्ठा किया गया कूड़ा |
अब भरे हुए कट्टे चूँकि खाली हो गए थे तो अब यहाँ का कूड़ा उसमें भरा जा सकता था। फिर से दस्ताने पहने गए और लोग एक बार फिर सफाई अभियान पर जुट पड़े। अभी हम सॉन्ग नदी के एक तरफ ही सफाई कर रहे थे कि कुछ लोगों ने सॉन्ग नदी के दूसरे तरफ जाने की योजना बनाई। वह एक टापू जैसा इलाका था जो कि पानी के बीचों बीच मौजूद था। उधर मौजूद कई लोगों, जो अक्सर माल देवता आते हैं, के अनुसार वहाँ भी काफी कूड़ा मौजूद था और इसलिए कुछ लोगों का उधर जाकर सफाई करना जरूरी था।
इसके लिए एक टीम बनाई गयी और उन लोगों ने नदी पार करके वहाँ की जितनी सफाई हो सके उतनी सफाई करने का फैसला किया। चूँकि मैंने जूते पहने हुए थे और सुजाता ने चप्पल ही पहने हुए थे तो सुजाता उन लोगों के साथ नदी पार करके चली गयी। कुछ लोगों ने अपने जूते उतारे और वो भी नदी पार करके दूसरे तरफ चले गये।
अब हमारा समूह दोनो तरफ का कूड़ा बिन रहा था। हमने लगभग 1 घंटे तक यह ड्राइव जारी रखी थी। जब काफी कूड़ा इकट्ठा कर लिया तो हम लोग अब वापिस गाड़ियों तक आए।
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चल पड़े सभी फिर से |
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मैं केवल फोटो ही नहीं खींचता, सफाई भी करता हूँ |
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मालदेवता की खूबसूरती का एक दृश्य |
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मालदेवता की खूबसूरती का एक दृश्य |
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सफाई करते लोग |
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सफाई करते लोग |
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चलो नदी के पार |
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सफाई ही नहीं फोटो शूट भी जरूरी है- सुजाता उवाच |
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सफाई हो गयी , अब चलो वापिस |
अब इस ड्राइव का अगला चरण शुरू होना था। जो कूड़ा यहाँ से इकट्ठा किया गया उसे भी पहले वाले कूड़े के साथ मिला दिया गया। इसके साथ ही सुनीत और प्यारे जी ने एनजीओ की तरफ से विडिओ बनाने का काम भी शुरू किया। इस विडिओ में एक आध चीज मैंने भी बोली और सुजाता ने भी बोली थी।
इस दौरान कूड़े को अलग अलग करने की प्रक्रिया चालू थी और जल्द ही अलग अलग कंपनियों के पैकेट हम लोग अलग अलग ढेर में बना चुके थे। इनका भी विडिओ लिया गया और इनके विषय में कुछ बोला गया।
जो गायें हमें रास्ते में मिली थी वह भी यहाँ पहुँच चुकी थी जिनसे इस कूड़े की रक्षा भी हमने करी। किसी तरह उन्हे उन्हें कूड़े से दूर रखा गया था। मैं तब यही सोच रहा था कि अभी तो हम इन्हें इस कूड़े से दूर कर रहे हैँ लेकिन जब हम नहीं होते होंगे तो ये लोग कितना प्लास्टिक खा लेती होंगी क्योंकि ये कूड़ा तो ऐसे ही पड़ा रहता है और तब इन्हे रोकने वाला भी कोई नहीं है। कूड़े से यह भी एक नुकसान है। जीवों पर भी यह बुरा असर डालता है।
जब विडिओग्राफी और फोटोग्राफी समाप्त हो गयी तो हम लोगो ने इस कूड़े को इकट्ठा किया और उन्हे थैलों में भरा। हम लोगों को प्लास्टिक की बोतल और काँच की बोतल अलग रखनी थी क्योंकि नजदीक ही एक जगह पर कबाड़ इकट्ठा करने वाले लोग थे जिन्हे ये चीजें दी जा सकती थी। बाकी चीजें इकट्ठा करके हमें वापिस गाड़ी में डालनी थी जिसका बाद में निस्तारण किया जाना चाहिए। यह लगभग चालीस पैंतालीस किलो का कूड़ा था। इसमें नमकीन, कुरकुरे इत्यादि के पैकेट तो थे ही साथ में काँच और प्लास्टिक की बोतल और ग्लास इत्यादि भी मौजूद थे। हम लोग इसे इकट्ठा कर रहे थे लेकिन सबके दिमाग में ये भी था कि अगले एक दो घंटे में जब लोग यहाँ आना शुरू होंगे तब इससे ज्यादा कूड़ा एक ही घंटे में ये लोग फैला देंगे। खैर, उसको तो हम रोक नहीं सकते थे लेकिन सुमुद्र से अपनी हैसियत अनुसार एक बूँद तो हम कर ही सकते थे। यह हमने आज किया भी था।
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ऑडिट शुरू |
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बातचीत और ऑडिट |
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गायें जिन्हे भगाया गया |
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ऑडिट के बाद पैक किया हुआ कूड़ा |
कूड़ा पैक कर हम लोगों को अब नाश्ता करना था और फोटो ग्राफी भी करनी थी । हम लोगों ने यह काम मालदेवता वाटरफाल पर करने का विचार बनाया। कट्टे भर चुके थे तो एक एक कट्टा सबने उठाया और उसे ऊपर गाड़ी तक हम ले गए।
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आ गए ऊपर कूड़ा लेकर |
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पहले फोटो होगी, फिर कूड़ा रखा जाएगा |
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अरे जल्दी खींचो फोटो, कूड़ा भी रखना है |
गाड़ियों के पास पहुँचकर कट्टों को गाड़ी में डाला गाड़ी में डाला। मैंने और सुजाता ने यहाँ से वापिस पैदल जाने का निर्णय किया। कुछ और लोग भी पैदल ही वापिस बढ़े। गाड़ी सामान लेकर आगे बढ़ गयी और बोतल वाला कट्टा उन लोगों ने कबाड़ इकट्ठा करने वालों को आगे जाकर दे दिया था। इसके बाद गाड़ी पार्क की गयी और सब लोग अब वॉटरफॉल की तरफ बढ़ गए।
वहाँ चहल पहल बढ़ गयी थी। फोटोशूट वाले, पिकनिक वाले, वलॉग वाले सभी वहाँ पर मौजूद थे। कूड़ा भी फैलाया ही जा रहा था। मैं सोच रहा था कि अगर यहाँ कूड़ादान होता तो क्या लोग उसका इस्तेमाल करते। शायद कुछ प्रतिशत तो करते। लेकिन क्या किया जा सकता था?
समूह के लोग भी अब इन्जॉय करने लगे थे। सभी वॉटरफॉल में जाकर फोटो खींचने लगे। पंद्रह बीस मिनट सभी ने पाने में जमकर वक्त बिताया और जितना फोटो हो सकती थीं उतनी खींची। इसके बाद हम लोगों ने एक ग्रुप फोटो खींची और फिर नाश्ता करने चले गए।
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ग्रुप फोटो |
नाश्ता चल रहा था कि सुनीत ने बताया कि उनका अगला प्लान द्वारा गाँव में जाकर सफाई करने का है। उनके अनुसार द्वारा गाँव काफी रमणीय जगह थी। जब वह यह बात सुजाता को बता रहे थे तो मेरे कान एक बार फिर खड़े हो गये। रमणीय जगहों पर जाने का तो मुझे भी शौक है। मैंने ये बात नोट कर ली और अगली बार उधर का टूर लगाने का मन बना दिया। उस वक्त मैं कहाँ जानते था कि यह अगली बार अगले सप्ताहांत पर ही आ जाएगा।
हम सभी ने नाश्ता किया जिसमें सैंडविच और जूस शामिल था। नाश्ते के बाद हम लोग जिन गाड़ियों में आए थे उसकी तरफ बढ़ने लगे। गाड़ियों तक जाने के रास्ते के दोनों तरफ झाड़ियाँ उगी हुई थी और उसमें छोटे छोटे फूल खिले हुए थे। ये फूल मनमोहक लग रहे थे तो मैं इनकी तस्वीर उतारने का लोभ संवरण नहीं कर पाया और कुछ उनकी फोटो भी मैंने उतार ली।
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रास्ते के किनारे खिले फूलों का कोलाज |
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रास्ते के किनारे खिले हुए फूल |
गाड़ियाँ ज्यादा दूर नहीं थी तो कुछ ही देर में हम लोग गाड़ियों तक पहुँच गए थे । अब वापिस जाना था तो हम लोग गाड़ी में बैठे और गाड़ी हमे लेकर आगे बढ़ चली। बारह बजे तक हम लोग अपने कमरे के पहुँच गए थे।
मेरे लिए यह एक अच्छा अनुभव था। क्लीनिंग ड्राइव के साथ ही घुमक्कड़ी भी हो गयी थी तो रविवार का दिन अच्छा लग रहा था। इसके साथ एक और फायदा हो गया था। मुझे एक नई जगह के बारे में पता जो चल गया था। वो जगह जहाँ अगले हफ्ते ही मैं हो आया। द्वारा गाँव की यह घुमक्कड़ी भी बड़ी रोचक थी लेकिन इसके विषय में किसी दूसरी पोस्ट में बताऊँगा।
अब पोस्ट समाप्त करने का वक्त आ गया है तो एक बार कहना चाहूँगा। प्रकृति ने अपनी अकूत संपदा से हमें काफी कुछ दिया है। यह खूबसूरती देखकर मन तो मोह लेती है लेकिन जाने अनजाने में हम मनुष्य इसको नुकसान भी पहुँचा देते हैं। हमें कोशिश करनी चाहिए कि कम से कम नुकसान हम इन खूबसूरत पर्यटक स्थलों को पहुंचाए।
सही बताऊँ तो मुझे नहीं लगता कि इस क्लीनिंग ड्राइव का कोई फायदा हुआ होगा। जितना कूड़ा हमने एक घंटे में उठाया था उतना तो पब्लिक ने दस पंद्रह मिनट में फैला दिया होगा। जब आप लोग इन स्थलों का ध्यान नहीं रखेंगे तब तक ऐसी क्लीनिंग ड्राइव कुछ काम नहीं कर पाएगी और यकीन मानिए जिस दिन आप लोग छोटी छोटी बातों का ध्यान देने लगे तो ऐसी किसी क्लीनिंग ड्राइव की जरूरत भी नहीं रह जाएगी।
आप पर्यटन स्थल की सुंदरता को बनाए रखने के लिए निम्न कुछ बिन्दुओ का पालन करके कर सकते हैं:
- जब घूमने जाए तो अपने साथ घर से की बोतल लेकर चलें। हो सके तो स्टील की यह बोतल हो ताकि आप उसका ख्याल रखें और प्लास्टिक की बोतल आपको खरीदनी न पड़े। लोग घूमने जाते तो दुकानो से पीने के लिए प्लास्टिक की बोतल खरीद तो लेते हैं लेकिन फिर उसे यूँ ही फेंक देते हैं जो कि कचरा ही फैलाता है।
- अगर आप पिकनिक करने ऐसी जगह जा रहे हैं जहाँ पर कूड़ेदान इत्यादि की सुविधा नहीं है तो अपने साथ एक पॉलीबाग लेकर चलें। आप पिकनिक करते हुए अगर प्लास्टिक इत्यादि की चीजों का इस्तेमाल करते हैं तो आप उसे और बचे हुए कूड़े को प्लास्टिक के बैग में डाल सकते हैं। फिर जहाँ पर कूड़ादान दिखे वहाँ पर इस बैग को डाल सकते हैं। ऐसा करने से आप पिकनिक का लुत्फ भी ले पाएंगे और पर्यटन स्थल को भी नुकसान नहीं पहुँचेगा
- एक और विशेष बात। अगर आप बियर, शराब इत्यादि पीते हैं तो बोतल को ऊपर दिये तरीके से कूड़े मे डालने की कोशिश करें। वहीं ये भी कोशिश करें कि बोतलों को तोड़े फोड़े न। आप बोतल तोड़ते हैं तो कई बार लोग इन काँच के टुकड़ों से घायल भी हो जाते हैं। आपका इन्जॉइमन्ट किसी के लिए परेशानी का सबब न बने इसका ध्यान रखें।
आप देखेंगे कि ऊपर दिये तीन बिंदुओं का पालन करेंगे तो पर्यटन स्थल काफी साफ हो जाएंगे। चलिए अब आप लोगों से विदा लेता हूँ। जल्द ही मिलेंगे किसी नये वृत्तान्त के साथ। तब तक लिए पढ़ते रहिए घूमते रहिए और अपना ख्याल रखिए।
ड्राइव के विषय में एस डी सी की वेबसाईट में मौजूद लेख:मालदेवता क्लीनिंग ड्राइव
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जी आभार मैम…
बहुत रोचक विवरण, सार्थक लेखन
जी आभार मैम…
आपका लेख पढ़कर आनंद आ गया विकास जी। सचमुच आप, आपकी अर्द्धांगिनी तथा आपसे जुड़े हुए अन्य व्यक्ति बहुत ही अच्छे नागरिक हैं, बहुत ही अच्छे मनुष्य हैं। मैं देहरादून तो गया हुआ हूँ किंतु मालदेवता जाना नहीं हुआ। अब कभी अवसर मिला तो अवश्य जाऊंगा। मैं और मेरी धर्मपत्नी भी पर्यटन स्थलों के सौंदर्य तथा पर्यावरण के अनुरक्षण के प्रति सजग हैं तथा जो तीन बिन्दु आपने अपने संस्मरण के अंत में सुझाए हैं, हम उन पर पूर्णतः अमल करते हैं। आप ऐसे ही अपने जीवन के रोचक एवं प्रेरक अनुभव सदा साझा करते रहें। अभिनंदन आपका।
जी आभार सर। अवसर मिलने पर जाइएगा। बहुत ही सुंदर जगह है मालदेवता। घुमक्कड़ी के ऐसे वृत्तान्त साझा करता रहूँगा।
अति सुन्दर ।