चलो महफ़िल जमाते हैं,
थोडा हँसते हैं ,इठलाते हैं ,
चलो महफ़िल जमाते हैं,
दिन भर की थकान को ,
दोस्ती के दरिये में डुबाते हैं,
चलो महफ़िल जमाते है,
अपने अपने दिन के किस्से
एक दूसरे को बतलाते हैं,
चलो महफ़िल जमाते है,
इस भागती दौड़ती ज़िंदगी में ,
ठहरकर कहीं चाय की चुस्कियाँ लगाते है ,
चलो महफ़िल जमाते हैं,
न जाने ये पल फिर आये न आये,
इनको मिलके साथ बिताते हैं,
चलो महफ़िल जमाते हैं।
-विकास ‘अंजान’
नोट : copyright © २०१४ विकास नैनवाल ‘अंजान’