शंकर अन्तर्राष्ट्रीय गुड़िया संग्रहालय

शंकर अन्तर्राष्ट्रीय गुड़िया संग्रहालय
11/3/2017

पिछली बार जब घूमने गया था तो देहरादून में दोस्त की शादी में गया था। देहरादून जाने के साथ सोचा था कहीं और भी घूम आऊँगा लेकिन फिर ऐसा मौका नहीं लगा। इसके बाद वापस आया और रोज की दिनचर्या चालू हो गयी। होली में पहले बाहर जाने का प्लान था लेकिन वो भी नहीं बना। फिर घर जाने की योजना बनी तो सही  लेकिन चूँकि छुट्टी कम थी तो वो स्थगित कर दिया और सोचा इन दो तीन दिनों में काफी घूमा जाएगा। अब शुक्रवार की रात को गूगल में दिल्ली में ही देखने की जगह खोज रहा था तो संग्राहलयों में देखते हुए शंकर डॉल म्यूजियम के नाम ने अपने ओर सहसा ध्यान आकृष्ट किया।

‘गुड़ियों का म्यूजियम’ ये क्या है? मैंने सोचा। इसके विषय में पहले सुना नहीं था लेकिन अब उधर जाने का इच्छुक हो गया था। मैंने गूगल में देखा कि वो किधर है और उधर जाने के दिशा निर्देश नोट कर लिए। अब बस सुबह होने का इंतजार था ताकि मैं भी इस म्यूजियम को देखने का लुत्फ़ उठा सकूँ।

गुड़ियों के साथ मेरा रिश्ता इतना रहा है कि बचपन में बहन उनसे खेला करती थी और मैं गुड्डों से। थोड़ा बड़ा हुआ तो ज़ी हॉरर शो  के एक एपिसोड में गुड़िया को देखा तो वो मेरे डर का दूसरा नाम बन गयी। उसके बाद गुड़ियों के ऊपर काफी हॉरर फिल्मे देखीं।  इन गुड़ियों को देख कर बचपन कि खुशनुमा यादे ताज़ा होंगी या बड़े होते हुए देखी गयी हॉरर फिल्मो की यादें , ये प्रश्न मेरे मन के किसी कोने में जरूर उठ रहा था। खैर, मैंने मन में उठते इन सवालों को दरकिनार किया और बाकी काम में व्यस्त हो गया। अब जो होता सुबह ही होता।

रात को देर से सोया था तो सुबह देर से ही उठा। उठकर नाश्ता वगेरह किया और जाने की तैयारी की। एक बार फिर गूगल से दिशा निर्देश देखे और साढ़े दस बजे करीब रूम से निकल गया।

गूगल से मिले दिशा निर्देश काफी सरल थे :
१. एम जी रोड मेट्रो स्टेशन से नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन पहुँचों
२. उधर से कमला मार्किट की तरफ से एग्जिट करो और  आई एस बी टी वाली बस पकड़ो जो तुम्हे दिल्ली गेट बस स्टॉप  पे उतारो
३. दिल्ली गेट बस स्टॉप से सवा किलोमीटर दूर ही यह संग्रहालय था

मैं नई दिल्ली पहुँचा और मेट्रो स्टेशन से बाहर निकला तो रिक्शों की भीड़ और ट्रैफिक ने सकते में डाल दिया। गुडगाँव में रहते हुए मुझे ट्रैफिक का कम ही सामना करना पड़ता है।  सामने बड़े बड़े अक्षरों में कमला मार्किट लिखा हुआ दिखाई तो दे रहा था लेकिन दिल्ली गेट किस दिशा में पड़ेगा ये बात मुझे कंफ्यूज कर रही थी। एक दो रिक्शे वाले भाइयों से दिल्ली गेट के विषय में पुछा तो उन्होंने रोड क्रॉस करने की सलाह दी।

मैंने रोड क्रॉस की और एक ई रिक्शा वाले भाई से पूछा तो उन्होंने मुझे दिल्ली गेट छोड़ने के लिए हामी भर दी। मैंने जब से दिल्ली गेट का नाम सुना था तो मेरे मन में ये सवाल भी था कि ये कौन सा गेट है। फिर रिक्शा का सफ़र खत्म हुआ तो दिल्ली गेट के दर्शन हुए। ये देखकर मैं हैरान था कि ये तो वही गेट है जिसके आगे किताबों की प्रसिद्द सन्डे मार्किट लगती है। मैं कई बार इधर से किताबें ले चुका हूँ। और इस इमारत को देख चुका हूँ। लेकिन उस वक्त किताबों में इतना मसरूफ रहता था कि इसके विषय में जानने इच्छा भी नहीं हुई।

रिक्शे से खींची दिल्ली गेट की फोटो

खैर, उधर पहुंचकर मैंने रिक्शा रुकवाया।

और उधर गूगल बाबा की शरण में दोबारा नतमस्तक हो गया। मैंने
रिक्शे में बैठकर उनके पहले दिए  निर्देश से भटक चुका था और इसका कारण ये था कि अब दिल्ली गेट में खड़ा बौड़मों की तरह सोच रहा था कि कौन सी रोड संग्राहलय की तरफ जाएगी। मैंने उधर ही फोन खोला और निर्देश के लिए गूगल के आगे गुहार लगाईं। उन्होंने सुनी और बहादुरशह जफ़र मार्ग की तरफ जाने को कहा। एक दो व्यक्तियों से पूछा तो पता नहीं लगा। फिर उनको ही अपना मार्गदर्शक नियुक्त किया और उन्होंने मुझे आंबेडकर स्टेडियम के सामने लाकर बताया की अब तो बच्चू सीधा ही जाओ। फिर आंबेडकर स्टेडियम के आगे से होते हुए मैंने सीधा चलने लगा। जब जा रहा था तो चलते हुए बगल में ऐतिहासिक खंडर जैसे कुछ दिखे। मैं उधर पहले नहीं गया था इसलिए सोचा पहले संग्राहलय देख लूं फिर वापस आते वक्त इधर का रुख करूँगा।
उसके बाद तो किधर भी मुड़ना नहीं था। जल्द ही 4,नेहरु हाउस आ गया जहाँ कि ये संग्राहलय स्थित है। उधर जब पहुँचा तो ये देखकर हैरान था कि एक मेट्रो स्टेशन उधर ही है। ये मेट्रो स्टेशन आई टी ओ था। अब अपनी बेवकूफी पे हैरानी हो रही थी। मैं नई दिल्ली की तरफ न जाकर केन्द्रीय सचिवालय से आई टी ओ आ सकता था।
मैं अब संग्राहलय की बिल्डिंग में गया और मैंने टिकेट लिया। 15 रूपये का टिकेट था लेकिन टैक्स वगेरह लगाकर 18 रूपये कटे।  बच्चों का टिकेट 5 रूपये का था। जब अंदर गया तो एक निराशाजनक बात हुई। संग्राहलय के सामने एक निर्देश था कि उधर फोटोग्राफी वर्जित है। थोडा दुःख हुआ कि फोटो नहीं तो मज़ा कैसे आएगा लेकिन फिर इस संग्रहालय को देखने का जो उत्साह था इसने इस दुःख को कम कर दिया।

चूँकि हम गुड़ियों को बच्चो से ही जोड़कर देखते हैं तो कई अभिभावक अपने बच्चों के साथ ही इधर आ रखे थे।  फिर मेरा टूर शुरू हुआ जो एक डेढ़ घंटे चला।

यहाँ कई तरह की गुड़ियां देखने को मिली। संग्राहलय को मुख्यतः दो हिस्सों में बाँटा गया है। जब आप प्रवेश करते है तो सामने ऑस्ट्रेलिया का केस है जिसमे ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड की गुड़िया रखी गईं हैं। इस कमरे में कई यूरोपीय देश जैसे हंगरी,रोमानिया,पुर्तगाल,स्पेन, कॉमन वेल्थ देश समूह  इत्यादि की गुड़िया देखने को मिलती हैं।

इसके इलावा संग्राहलय का दूसरा हिस्सा है जहाँ एशियाई और अफ्रीकी देशों से लायी गयी गुड़िया हैं जैसे जापान, चाइना, नेपाल, इंडोनेशिया इत्यादि। ये सारे गुड़ियाएं आकर्षक थी। इसके इलावा भारत के कई राज्यों की गुड़ियाएं भी इधर हैं। एक जगह अलग अलग राज्यों के नयी दुल्हनों को दर्शाती गुड़ियाँ थी तो एक जगह अलग अलग राज्यों के पारंपरिक परिधानों को दर्शाती गुड़ियाँ। इसके इलावा विष्णु के दशावतार, दांडी मार्च, राम द्वारा ताड़का वध दर्शाती गुड़िया भी आकर्षण का केंद्र थी।

बाकि देशों की कुछ गुड़ियाएं उस देश के किसी संस्कृतिक गतिविधि जैसे नाच या नाटक को दर्शा रही थी तो कुछ गुड़ियाएं अपने देश के परम्परागत पौशाकों में थी। कुछ गुड़िया मुझे सुन्दर और भोली लगी लेकिन कुछ को देखकर डर भी लगा। कुल मिलाकर एक अच्छा अनुभव था।

संग्राहलय के विषय में मुझे उधर निम्न बातें पता चलीं :
१. यह संग्रहालय मशहूर राजनितिक कार्टूनिस्ट  शंकर पिल्लई ने १९६५ में स्थापित किया था।
२. उनको एक हंगेरियन राजनायिक ने एक गुड़िया तोहफे में दी थी जिसने गुड़ियों के प्रति उनका आकर्षण जागृत किया। इसके पश्चात वो अपने विदेश दौरों पर गुड़ियाएं इकट्ठी करने लगे। और इनकी प्रदर्शनी लगाने लगे। लेकिन इसमें गुड़ियों को क्षति पहुँचती थी। उन्होंने अपनी इस चिंता को जब इंदिरा गाँधी से साझा किया तो उन्होंने शंकर जी को इस संग्राहलय को बनाने का आईडिया दिया।
३. यहाँ 85 देशों से लायीं गयी तकरीबन ६५०० से ऊपर गुड़ियाएं हैं। कई गुड़िया विशिष्ठ लोगों ने तोहफे में भी दी हैं।

संग्रहालय के अंदर तो कुछ तसवीरें नहीं खींच पाया। जो बाहर खींची थी वो  ही इधर लगा रहा हूँ।

इधर ही तक फोटो खींच सकता तो यहीं तक फोटो खींची। इसके आगे फोटो खींचना वर्जित है।
इसके इलावा गूगल से ये तसवीरें मिली तो इन्हें भी एन्जॉय करें :
सोर्स
सोर्स
सोर्स
सोर्स

ये तो कुछ ही गूगल से मिले हैं। उधर इतनी सारी गुड़ियाएं हैं कि वो आपको ओवरवेह्ल्म कर देते हैं। मुझे अब भी इस बात का दुःख है कि उन्होंने फोटो खींचने अनुमति नहीं दे रखी है। खैर,आप लोग जाइये और उधर होकर आईये। एक बार तो जाना बनता है।

बाकी संग्राहलय के विषय में संक्षिप्त जानकारी:
पता: 4, Nehru House, Bahadur Shah Zafar Road, New Delhi, Delhi 110002
संग्राहलय सोमवार को बंद रहता है।
नजदीकी मेट्रो स्टेशन: आई टी ओ
टिकेट : व्यस्क 15, बच्चे 5(टैक्स लगा कर कीमत बढ़ जाती है)
फोटोग्राफी : वर्जित
टाइमिंग : सुबह दस से छः बजे तक

टूर खत्म करने के बाद मुझे भूख लग चुकी थी। मैं संग्राहलय से बाहर आया और उधर ही स्थित उडुपी कैफ़े में चले गया। उधर कोकोनट मसाला डोसा और फ़िल्टर कॉफ़ी पी कर अपनी भूख शांत की।

अब पेट भर चुका था और मैं निकल पड़ा फ़िरोज़ शाह कोटला किला के लिए। उधर का विवरण अगले पोस्ट में दूँगा।

क्रमशः

अगली कड़ी:
फिरोज शाह कोटला

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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