वो हँसा है जो मुझे दर्द ए दिल देकर ,
खून बढ़ा उसका, मैं हूँ खुश बस यही सोचकर
फ़िज़ाओं में जो ये खुशबू सी है आ बसी,
क्या गुजरा था मेरा महबूब कहीं इधर से होकर
आज आसमाँ से गायब हुआ है जो क़मर,
शायद रात छत पर मुस्कराया था वो आकर
बालो में फिराके उंगलियाँ इतने न इतराओ अंजान,
कहना है उसका, दिखते हो तुम पूरे जोकर
©विकास नैनवाल ‘अंजान’
बहुत खूबसूरत …., एक से बढ़ कर एक अशआर…, सुन्दर सृजनात्मकता ।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/02/2019 की बुलेटिन, " निदा फ़जली साहब को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
हार्दिक आभार, मैम।
बुलेटिन में मुझे शामिल करने के लिए आभार शिवम जी।
बहुत सच लिखा आपने
शुक्रिया संजय जी।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 08 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी …. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा … धन्यवाद! !
रचना को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
आभार मैम…