डर है
कि वो न निगल जाए हमें
डर है कि वो न चबा जाये हमें
न हथिया ले हमारी सम्प्पति
न मार दे वो हमारे जवानों को
न लूट ले हमारी बहु बेटियों की अस्मत,
ये डर है हम सभी को
और इसलिए हम करते हैं वार उन पर ,
हम हथिया लेते हैं उनकी सम्प्पति,
लूट लेते हैं अस्मत उनकी बहू बेटियों की,
मार देते हैं उनके जवान आदमी
हम हैं इनसान,
रहे हैं सदियों से ऐसे ही
जिस से डरते हैं
अंत में हो जाते हैं
उनके जैसे ही
©विकास नैनवाल ‘अंजान’
दुखद।
जी। पर शायद यही हमारा स्वभाव है।