मेरा बेहतर
नहीं मेरा बेहतर
मेरे वाले को मानो
नहीं मेरे वाले को जानो
वह चिल्ला रहा है
वह दहाड़ रहा है
वह चिंघाड़ रहा है
खून की नदिया बहा रहा है
नफरत की आग लगा रहा है
पर होता है जिस कारण यह सब
वह न दिखा है
न दिखा था
न कभी दिखेगा
थे कुछ किस्से, थीं कुछ कहानियाँ
हैं कुछ किस्से, हैं कुछ कहानियाँ
रहेंगे कुछ किस्से, रहेंगी कुछ कहानियाँ
और इन्हीं किस्से कहानियों के चक्कर में
साबित करने के लिए बेहतर खुद को
लड़ते रहे थे,
भिड़ते रहे थे,
मरते रहे थे,
कटते रहे थे,
लड़ते रहे हैं,
भिड़ते रहे हैं
मरते रहे हैं,
कटते रहे हैं
लड़ते रहेंगे
भिड़ते रहेंगे
मरते रहेंगे
कटते रहेंगे
कहलाते हैं जो
इनसान !!
और वो अगर है कहीं
तो चेहरे पर उसकी होगी बस
एक मुस्कराहट
और उस मुस्कराहट में होगी समाहित
घृणा!!
दुख!!
पीड़ा!!
झल्लाहट!!
देखकर
हालत उस स्वर्ग की
जो उपहार था उसका
अपने उपासकों के लिए
जो अब
बनाया जा रहा है नर्क
उसके उपासकों के द्वारा
– विकास नैनवाल ‘अंजान’ (मौलिक और स्वरचित)
यह कविता उत्तरांचल पत्रिका के मार्च अंक में प्रकाशित हुई थी।
ब्लॉग पर मौजूद मेरी अन्य कविताओं को पढ़ने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं:
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
मैं और मेरा ..यहीं तो है हर जगह..स्थूल और सूक्ष्म हर जगह व्याप्त । बहुत सुन्दर सृजन एवं बहुत बहुत बधाई ।
जी, सही कहा। आभार।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 19 मार्च 2020 को साझा की गई है…… "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा….धन्यवाद!
'सांध्य दैनिक मुखरित मौन में' मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार मैंम।
सभी धर्म बेहतर है- ये मान लिया जाये तो फिर लड़ाई ही किस बात की साहब.
लेकिन नही अब हमे अन्य धर्मो में कमियाँ निकाल कर उनको इस्सू बनाना है.
उसको दुःख या पीड़ा नही होगी बल्कि शर्मिंदगी महसूस होती होगी.
उम्दा रचना.
आभार रोहितास जी।