आलोक कुमार पेशे से इंजीनियर हैं लेकिन पैशन से लेखक और अनुवादक हैं। उन्होंने ‘आओ बच्चों तुम्हें सुनाएँ’, ‘मिशन टू मार्स’, ‘द चिरकुटस’ जैसी रचनाएँ लिखी हैं और जर्नी टू द सेंटर ऑफ द अर्थ, दौलत का खेल (जेम्स हेडली चेज के उपन्यास ‘यू आर डेड विदाउट मनी’) जैसे अनुवाद किए हैं।
तीन वर्ष पहले उनके यूट्यूब चैनल पर एक पाठक के तौर पर तचीत करने का मौका मिला था। इस बातचीत में उन्होंने काफी अच्छे प्रश्न पूछे थे जिनका जवाब देने में मज़ा आया था। हाँ, चूँकि पहला साक्षत्कार था तो शायद नर्वसनेस में काफी बोल लिया था। मुझे ये भी याद आता है उस दौरान शायद मेरे गले में खराश थी और इसलिए बोलते बोलते काफी खरखराहट भी होती थी गले में लेकिन फिर भी निरंतर एक घंटे बोला था। इतना मैंने शायद एक माह में भी न बोला। बशर्ते कोई फेव रेट टॉपिक बोलने के लिए न मिल गया हो तो। ऐसा होता है तो मैं घर वालों को उसके बारे कह कहकर पका देता हूँ।
खैर, कुछ दिनों पहले इस साक्षात्कार की याद फेसबुक ने दिलाई तो सोचा इसे इधर भी साझा कर देता हूँ। उस समय यह साक्षात्कार इधर साझा करना रह गया था। आप भी देखिए।
इन तीन वर्षों में काफी कुछ बदल गया है लेकिन मैं अब भी खुद को एक पाठक ही मानता हूँ और आज भी पढ़ने में मुझे इतना ही मजा आता है। और किताबों पर बात करने की बारी आए तो निरंतर बोल भी सकता हूँ।
Interesting conversation. I totally agree with the way you described the difference between a reader and a reviewer. I review books but now I mostly read what I want to read. I am a very impatient reader.
Didn't know about your fanfiction! I wrote a fanfiction for Me Before You, just to change the ending.
And your first Ghummakadi tale is very interesting and funny (and a bit scary too).
Thank you… Yeah, now that i have a son now i can relate to what my parents would have felt then. My fan-fiction is in this blog only. Here is the link to the first episode:मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #1