सलाह | लघु-कथा | विकास नैनवाल

सलाह | लघु-कथा | विकास नैनवाल

रघुवीर जब चाय की टपरी पर पहुँचा तो उसकी पेशानी पर बल आए हुए थे। आखिर रघुबीर परेशान क्यों था? जानने के लिए पढ़िये लघु-कथा ‘सलाह’।

पेशानी पर बल लिए रघुवीर जब चाय की टपरी पर पहुँचा तो उसके साथियों ने उसकी शक्ल देखकर ही उसके मन का हाल जान लिया। काम से फारिग होकर इस टपरी पर उनकी मंडली रोज ही आकर मिलती थी। आधा एक घंटा इस चाय पी टपरी पर उनकी बातों की जलेबियाँ छना करती थीं।

“क्या हुआ, रघु भाई?”, नारायण जी ने कहा और साथ ही  एक चाय का गिलास उसके तरफ बढ़ा दिया।

“बस यार वही बच्चे की चिंता। दसवीं के परिणाम जल्द ही आने वाले हैं। समझ नहीं आ रहा आगे उससे क्या कराऊँ?”

“पीसीसीएम करवा के आई आई टी की तैयारी करवा लो”, नारायण जी ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “आई आई टी वालों को अच्छा पैकेज मिल जाता है। मेरे भाई के बड़े लड़के ने किया था। अब विदेश में सेटल है।”

“हर आई आई टी वाले को नहीं मिलता शर्मा जी”, साथ खड़े रमेश जी ने अपनी बात रखी। “रघु भाई आप तो फिजिक्स केमिस्ट्री मैथ्स और बायोलॉजी दिलवा दो। आगे उसके पास ऑप्शन रहेगा कि इंजीनियर बनना है या डॉक्टर। पी सी एम में तो इंजीनियर बनने का ही ऑप्शन रहेगा। बँध जायेगा बच्चा। वैसे भी इंजीनियर डॉक्टर से ज्यादा थोड़े न कमाते हैं।”

रमेश जी की बेटी डॉक्टर थी और अब स्पेशलाइजेशन कर रही थी।

“भाई आप तो बच्चे को कॉमर्स देकर सी ए बनवाओ। सी ए काफी अच्छा कमा लेते हैं।”, एक सलाह और रघुवीर की तरफ उछली और उसके पेशानी पर आए बल को बढ़ा गई।

रघुवीर ने चाय की चुस्की ली पर आज उसे चाय में वो स्वाद नहीं लग रहा था।

तभी किसी ने रघुवीर के कंधे पर हाथ रखा। ये रामदयाल जी थे।

रघुवीर ने उनकी तरफ देखा तो वह बोले, “चिंता मत करो। हर माँ बाप को यह चिंता होती है। तुमने अपने बच्चे से बात की?”

“नहीं तो”, रघुवीर बोला।

“उससे एक बार बात करो। उसका मन टटोलो। जानो उसे क्या बनना है।”, उन्होंने सलाह दी।

“पर। वो तो बच्चा है। वो क्या जानता है?”, रघुवीर ने कहा।

“तुम भी कहाँ जानते हो। इधर ही पूछ रहे हो। सलाह ही ले रहो।” रामदयाल  बोले तो रघुवीर को समझ नहीं आया वह क्या कहे। यह बात सही थी कि वह इतना सब नहीं जानता था। यहाँ इस मंडली में उससे ज्यादा अनुभवी और ज्यादा समझदार लोग थे इसलिए वह इन सबकी इज्जत करता था। वह खुद इतना पढ़ा लिखा भी तो नहीं था।परिवार में भी कोई ऐसा न था जिससे वो सलाह ले पाता। यही कारण था कि उसने मन की बात इधर कही थी।

उसे लगा था इधर कोई अच्छी सलाह मिलेगी लेकिन इधर इतनी सलाहें उसकी तरफ उछली थीं कि उन्होंने उसे संशय में डाल दिया था। और अब रामदयाल जी की बातों ने उसे और परेशान कर दिया था।

रामदयाल ने शायद उसके मन की बात भाँप ली थी। उन्होंने चाय का घूँट भरा और कहा, “देखो भले ही तुम्हें लगता हो कि बच्चा नवीं में है उसे दीन दुनिया का क्या पता होगा लेकिन वह अपनी पसंद नापसंद और अपने बारे में तो जानता ही है। ऐसे में पहले उससे जानना बेहतर है कि वो क्या करना चाहता है। जब पता चले कि उसका मन कहाँ लगता है तो उस हिसाब से निर्धारित करो कि उसे उसके लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए क्या करना सही रहेगा। फिर हम सब लोग तो हैं ही।”

आखिर में रामदयाल जी ने किसी अभिभावक की भाँति जोड़ा था।

मंडली के सभी सदस्य रामदयाल जी की बातें सुन रहे थे। उस मंडली में वो सबसे वृद्ध थे इसलिए सब उनकी इज्जत भी करते थे। फिर उनके दोनों बच्चे भी कामयाब थे ऐसे में उनकी बातों का प्रभाव अधिक पड़ता था। जहाँ उनका एक बेटा इंजीनियर था वहीं उनकी बेटी एक जानी मानी कलाकार थीं।

रघु ने चाय की चुस्की भरने के लिए कप होंठों पर लगाया तो पाया कि चाय खत्म हो गयी थी।

मंडली ने एक और चाय का राउंड पीने की सोची।

जब तक चाय आयी तब तक रघु रामदयाल जी की बातों के विषय में सोचता रहा था। उसे अपने बच्चे के बारे में कुछ बातें याद आने लगी। कौन से विषय ऐसे थे जिनमें उसके बच्चा अच्छे अंक लाता था और कौन से ऐसे थे जिसमें कड़ी मेहनत के बाद भी वह वैसे अंक न ला पाता था जिसकी उससे अपेक्षा थी। कौन सी चीजें थीं जिसमें वो अच्छा था। कौन सी चीजें थीं जिसके विषय में सुनकर उसके बच्चे की आँखें चमक सी जाया करती थी। जिसके बारे में बताते हुए उसकी आवाज उत्साह से कँपकपाने लगती थी। उसने इन सब बातों को सोचा और एक गहरी सी साँस ली।

उसे अपने कंधों और अपनी पेशानी का कसाव कम सा होता महसूस हुआ।

मंडली की बातें  करिअर और पैकेज से अब राजनीति और फिल्मी दुनिया की तरफ बढ़ चुकी थी।

चाय आई तो रघु ने चुस्की ली। इस बार चाय वाले ने चाय शायद अच्छी बनाई थी। रघु ने राम दयाल जी की तरफ देखा तो वह मुस्कराए। उसने भी उसका मुस्कराकर उनका धन्यवाद अदा किया।

27/08/2023, विकास नैनवाल


(आज बहुत दिनों बाद अचानक से एक शब्द सलाह मन में आया तो सोचा कि इस पर कुछ लिखा जाए। लिखने बैठा तो यह लघु-कथा लिखी गयी। उम्मीद है आपको अच्छी लगेगी।)

Ⓒ विकास नैनवाल ‘अंजान’  

अगर आपको मेरी लघु-कथा पसंद आयी है तो किंडल में मौजूद मेरी 19 लघुकथाओं और 9 कविताओं का संग्रह ‘एक शाम तथा अन्य रचनाएँ’ भी पसंद आ सकता है।

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(पुस्तक के प्रति आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।)

This post is a part of Blogchatter Half Marathon 2023

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “सलाह | लघु-कथा | विकास नैनवाल”

  1. बच्चों पर अपनी मर्जी न थोपें जो उन्हें पसंद हो उन्हें वही करने दें…सुंदर सीख देती सार्थक लघुकथा।

  2. एक साधारण पिता के मन के अंर्तद्वंद को कितनी सजीवता से शब्द दिया है आपने।
    बच्चों से उसके भविष्य की योजनाओं को लेकर जरूर बात करनी चाहिए… माना बच्चों में समझ कम होती है ,वो सही निर्णय नहीं ले सकते…और कुछ रक.पायें या नहीं.मुझे लगता है माता-पिता उस अपरिपक्व मन के संशय को दूर कर उचित मार्गदर्शन दे सकते है…।
    —-
    संदेशप्रद बहुत अच्छी कहानी।
    सादर

  3. जी कहानी आपको पसंद आयी यह जानकर अच्छा लगा। बच्चे भले ही छोटे होते हैं लेकिन वह किस चीज में अच्छे हैं और किस्में बुरे यह माता पिता जान ही जाते हैं। ऐसे में वह सालाना पैकेज का ध्यान न रखकर करिअर चुनते हुए इस बात ख्याल रखें तो बच्चे खुशहाल जीवन जियेंगे।

  4. बहुत ही प्रेरक और पथ निर्देशित करने वाली कहानी है, आपको बधाई।

  5. आपने मेरे ही मन की बात कथा में निरूपित की है विकास जी। मैंने स्वयं अपनी संतानों के संदर्भ में यही किया है। और मैं लोगों से सलाह मांगने वाला जो तत्व आपने कथा में रखा है, उससे भी सहमत हूँ। दस लोगों से सलाह मांगने पर दस अलग-अलग सलाहें मिल जाती हैं जो मन की दुविधा का कोई हल सुझाने की जगह मन को और भी अशांत कर देती हैं। अच्छी कथा रचने के लिए आपका अभिनन्दन।

  6. बहुत ज़्यादा सलाह मिल जाए तो मन और ज़्यादा कन्फ़्यूज़ हो जाता है, और वाकई, अपने बच्चे का मन टटोलना तो बहुत जरूरी है।

    एक सामान्य से वार्तालाप को आपने बहुत अच्छी सी कहानी के रूप में लिखा है।

  7. विकास भाई, सचमुच यह बहुत जरूरी है कि जान लिया जाए कि बच्चा क्या चाहता है। बहुत सुंदर।

  8. शानदार ! आज तो बच्चे पिता को बताते हैं कि पिताजी आप यह मत करें । कहन , प्रवाह और भाषा भी शानदार I

  9. बेहद प्रभावशाली लघुकथा । शीर्षक भी लाजवाब ।बढ़ते बच्चों की पढ़ाई को लेकर अभिभावकों की परेशानी और उसके निदान का संदेश प्रभावित करता है ।

  10. जी। बढ़ों का कर्तव्य यह परखना होता है कि उनके बच्चे का एप्टीट्यूड क्या है, वह क्या चाहता है और फिर ये सुनिश्चित करना होता है कि वह अपनी मंजिल पा सके।

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