इस शृंखला की पिछली पोस्ट में हमने समुद्रतल में पाये जाने वाले एक जीव के विषय में जाना। इस लेख में हम लोग ऐसे जीवों के विषय में जानेंगे जो हवा में विचरण करते थे। यह जीव टिरैनोडॉन (Pteranodon) कहलाते थे।
क्या होते थे टिरैनोडॉन (Pteranodon)?
टिरैनोडॉन (Pteranodon) उड़ने वाले सरीसर्पों टेरोसोर (pterosaur) का एक वंश हुआ करते थे। टिरैनोडॉन (Pteranodon) ग्रीक भाषा के दो शब्दों टेरोन (pteron) और ऐनोडोन (anodon) से बना है जिसमें का टेरोन (pteron) अर्थ पंख होता है और ऐनोडोन (anodon) का अर्थ बिना दाँत वाला होता है। इस वंश में उड़ने वाले सरीसर्पों (reptiles) में पाये जाने वाले सबसे बड़े सरीसर्प (reptile) मौजूद थे।
आजतक टिरैनोडॉन (Pteranodon) के जीवाश्म के 1200 से भी ज्यादा नमूने इकट्ठा किये जा चुके है जो कि किसी भी तरह के टेरोसोर (pterosaur) की तुलना में सबसे ज्यादा है।
चूँकि यह टेरोसोर (pterosaur) हैं तो यही यह बात साफ करता है यह जीव डायनोसौर नहीं हुआ करते थे। डायनोसौर एक अलग प्रजाति थी और टेरोसौर एक अलग प्रजाति है। हाँ, ये दोनों ही प्रजातियाँ एवमेटाटारसेलिया (Avemetatarsalia) से उपजे हैं।
टिरैनोडॉन (Pteranodon) का कंकाल, स्रोत: ब्रिटेनिका |
टिरैनोडॉन (Pteranodon) चूँकि उड़ने वाले सरीसर्पों की प्रजाति थी तो इनके शरीर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा इनके पंख हुआ करते थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि एक औसत नर टिरैनोडॉन (Pteranodon) का विंगस्पैन (दो पंखों के फैलाने पर उनके बीच की दूरी) 18 फीट और औसत मादा टिरैनोडॉन (Pteranodon) का विंगस्पैन 12 फीट तक होता था। जहाँ तक सबसे विशालकाय टिरैनोडॉन (Pteranodon) की बात है तो यह टिरैनोडॉन लॉन्गीसिप्स (Pteranodon Longiceps) था जिसका विंगस्पैन 23 फीट तक लंबा होता था।
मनुष्य की तुलना में टिरैनोडॉन (Pteranodon), स्रोत: विकिपीडिया |
हाँ,अगर पंखों की तुलना में इनके धड़ की बात की जाए तो यह काफी छोटा होता था। वहीं इनके चार पैर होते थे जिनमें से पिछली जोड़ी काफी बड़ी होती थी।
वजन की बात आए तो 22 फीट लंबे विंगस्पैन वाले टिरैनोडॉन (Pteranodon) का वजन 200-250 किलो तक हो सकता था।
ऊपर हम जान ही चुके हैं कि मादा और नर दोनो अलग अलग आकार के होते थे। वहीं इन जीवों के शरीर पर कलगियाँ (cranial crest) भी होती थी। कहा जाता है कि यह कलगियाँ भी उड़ने की दिशा निर्धारित करने में मदद करती थीं। मादा टिरैनोडॉन (Pteranodon) में यह कलगी छोटी और गोलाकार होती थी वहीं नर में यह बड़ी होती थी। जहाँ मादा के पीछे का हिस्सा चौड़ा होता था, ताकि वह अंडे दे सकें वहीं नर का यह हिस्सा संकरा होता था। इन जीवों की पूँछ भी होती थी जो कि शरीर के मुकाबले काफी छोटी होती थी। वैज्ञानिकों की माने तो एक सबसे विशालकाय व्यस्क नर टिरैनोडॉन (Pteranodon) की पूँछ भी केवल 9.8 इंच तक ही होती थी।
टिरैनोडॉन (Pteranodon) , स्रोत: जुरासिक पार्क फैनडम |
कब और कहाँ पाये जाते थे टिरैनोडॉन (Pteranodon)?
टिरैनोडॉन (Pteranodon) आज से लगभग 80 से 84 करोड़ साल पहले तक धरती पर उड़ते हुए पाये जाते थे। कई जगह यह वक्त 9 करोड़ से 10 करोड़ साल पहले तक भी बताया गया है। जीवाश्मों के मिलने के कारण वैज्ञानिकों का मानना है कि यह जीव आज के उत्तर अमेरिकी इलाको जैसे कन्सास, एलाबामा, नेबरास्का, वायोमिंग और दक्षिण डकोटा में पाये जाते थे। यह पहले टेरोसोर (pterosaur) थे जो कि यूरोप से बाहर मिले थे।
क्या खाते थे टिरैनोडॉन (Pteranodon)?
विशेषज्ञों के अनुसार टिरैनोडॉन (Pteranodon) मछलियाँ खाते थे। ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि एक टिरैनोडॉन (Pteranodon) के जीवाश्मों में से मछलियों के जीवाश्म मिले हैं। यह अपना भोजन कैसे हासिल करते थे इसे लेकर कई बातें चलती हैं। कुछ वैज्ञानिक ये मानते थे कि यह उड़ते हुए आते थे और समुद्र में गोता लगाते हुए मछलियाँ पकड़ कर उड़ जाते थे लेकिन यह मानने का कारण यह है कि हम नहीं जानते कि यह जीव समुद्र के सतह पर तैर सकता था या नहीं या उधर से उड़ने की काबिलियत रखता था या नहीं। अगर यह सतह पर तैरने और वहाँ से उड़ने की काबिलियत रखता था तो शायद यह तैरते हुए मछलियों का शिकार किया करते रहे होंगे। इनकी लंबी गर्दने इस तरह बनी हुई थी कि काफी नीचे तक जाकर यह शिकार ला सकते थे।
कब हुए टिरैनोडॉन (Pteranodon) विलुप्त?
यह वंश 40 लाख सालों तक जीवित रहा था और फिर विलुप्त हो गया था। यह विलुप्त कैसे हुई इसे लेकर कोई साफ धारणा मौजूद नहीं है।
स्रोत:
तो यह थी एक ऐसी प्रजाति के विषय में जानकारी जो कि मनुष्यों से पहले धरती पर रहा करते थे। उम्मीद है यह जानकारी आपको पसंद आई होगी।
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चर्चा अंक में मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार।
वाह!! बहुत बढ़िया अनुज टिरैनोडॉन के बारे में जानकारी
कभी किसी कहानी में इनका प्रयोग करना हो तो अच्छा प्रयोग रहेगा। बहुत बढ़िया लिखा है।
सराहनीय 👌
जी आभार…
टिरैनोडॉन के बारे में बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख ।
जी आभार मैम।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-04-2022) को चर्चा मंच “धर्म व्यापारी का तराजू बन गया है, उड़ने लगा है मेरा भी मन” (चर्चा अंक-4406) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ —