10 अगस्त 2020 को की गयी
नौ की रात को सबके द्वारा यह निर्धारित किया गया कि दस की सुबह हम लोग कण्डोलिया जायेंगे। सावन का आखिरी सोमवार था और मेरे धर्मपत्नी सुजाता मुझे अपने साथ मन्दिर ले जाना चाहती थीं। फिर पौड़ी में यह प्रथा भी है कि नया नया शादी शुदा जोड़ा कण्डोलिया के दर्शन के लिए जाता है और हम लोग अब तक नहीं जा पाए थे तो उन्हें इस प्रथा को भी पूरा करने का मन था। सच बताऊँ तो मेरा जाने का मन नहीं था लेकिन फिर सुजाता के कहने को मैं टाल नहीं पाया और जाने को तैयार हो गया। अब यात्रा हो गयी है तो सोचता हूँ कि अच्छा हुआ जो जाने को राजी हो गया।
दस की सुबह मैं जल्दी उठ गया था और अपनी ट्रेनिंग के लिए चला गया था। आजकल मैं कार चलाना सीख रहा हूँ और इसकी आखिरी स्टेज पर हूँ। कार संभाल लेता हूँ लेकिन हाथ साफ नहीं है। फिर सँकरी सड़क पर गाड़ी क्रॉस हो पायेगी या नहीं इसका अंदाजा करने में भी थोड़ी परेशानी होती है। ऐसे में सुबह सुबह एक बार ट्रेनर साहब के साथ चक्कर मार आता हूँ। दस की सुबह को भी यही किया और फिर कार चलाकर 7 बजे कारीब लौट आया।
आने के बाद चाय पी और अपना काम करने लगा। हमारी योजना यह बनी थी कि मैं, बहन रूचि और सुजाता साथ ही मन्दिर तक जायेंगे। मुझे उनके तैयार होने का इन्तजार था। वो तैयार हुए तो मैं भी तैयार हो गया और हम तीनों ही मंदिर को निकल पड़े।
जब हम घर से निकले थे तो आसमान में बादल थे, कोहरा छाया हुआ था और बारिश होने के आसार थे। इस कारण हम लोग छाता लेकर चल पड़े। थोड़ा दूर ही गये होंगे कि हल्की हल्की बारिश होने लगी। छाता लाना काम आया और अब छाता लिए हुए हम लोग अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते जा रहे थे।
हम तीनों बतियाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। पौड़ी के लोअर मार्किट से पहले हम लोग पॉवर हाउस गये, फिर उधर से जिला अस्पताल होते हुए हमने कण्डोलिया जाने की सड़क पकड़ ली। यह जिस रस्ते से हम लोग पिछले बार गये थे उससे कदरन आसान था। रूचि और सुजाता का व्रत था और इस कारण वो सीधी चढ़ाई वाले रास्ते पर बढ़ते चले जाने का इच्छुक नहीं थे। रास्ता हल्की बारिश और कोहरे के कारण खूबसूरत हो रखा था। मैं उस वक्त सोच रहा था कि बारिश में पहाड़ इश्क सा हो जाता है। जैसे इश्क खूबसूरत तो होता है लेकिन जीना भी दुश्वार कर देता है वैसे ही बारिश में पहाड़ की खूबसूरती देखते तो बनती है लेकिन इसके चलते यहाँ के लोगों को कई परेशानियाँ का सामना करना पड़ता है। आप बारिश के मौसम का अखबार उठायेंगे तो बारिश से होने वाले इन नुकसानों से अखबार भरा रहता है।
हम भी इश्क से खूबसूरत इस पहाड़ की खूबसूरती को निहारते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। कभी कभी ठहरकर इसे अपने कैमरे में भी कैद कर लेते। चलते हुए मैं यही सोच रहा था कि अच्छा हुआ जाने को तैयार हो गया वरना इन नजारों से महरूम रह जाता।
वैसे तो पच्चीस जून को मैं रूचि और पापा मम्मी कण्डोलिया तक गये थे और उस यात्रा का विवरण मैंने आपसे साझा किया तो एक बार को मन था कि इसे साझा नहीं करूँगा लेकिन फिर बारिश के मौसम में कोहरे की चादर में लिपटा यह रास्ता इतना खूबसूरत लग रहा था कि मैं खुद को उसकी तसवीरें आपके साथ साझा करने से नहीं रोक पाया।
धुंध के कारण हर चीज रहस्यमय लग रही थी। मौसम में हल्की ठंडक थी जिसके कारण चलते हुए शरीर से पैदा हुई गर्मी परेशान करने के जगह सुकून दे रही थी। चूँकि बारिश भी हो रही थी तो जितना दृश्य दिखाई देता वह ताजा ताजा सा ही दिखाई दे रहा था। पानी में भीगे पौधों से टपकती पानी की बूँदे ऐसे लग रही थी जैसे उन पौधों से मोती टपक रहे हों।
पिछली बार मेरी बहन रूचि जब हमारे साथ आई थी तो वह सीढ़ियों वाले रास्ते से नहीं आई थी लेकिन इस बार मेरे कहने पर वो सीढ़ियों वाले रास्ते से आने को तैयार हुई और पिछली बार जिन नजारों से वह महरूम रह गयी थी इस बार उसने उनका आनन्द लिया।
आप भी इन तस्वीरों को देखिये।
इसी खूबसूरत रस्ते को निहारते हुए और इसे अपने कैमरे में कैद करते हुए हम आखिरकार मंदिर पहुँच ही गये।कण्डोलिया मन्दिर शिव जी का मन्दिर है। मन्दिर के विषय में मैं विस्तृत विवरण पिछली पोस्ट में ही दे चुका हूँ। तो आप मन्दिर की जानकारी निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
कण्डोलिया मंदिर: एक छोटी सी घुमक्कड़ी
चूँकि सावन का आखिरी सोमवार था तो कई लोग मन्दिर में आ रखे थे। सुजाता और रूचि ने उधर पूजा अर्चना की और मैं तब तक इधर उधर की तस्वीरें उतारता रहा। पूजा करी गयी, जल चढ़ाया गया और फिर हम लोग मन्दिर से वापस घर की तरफ मुड़ गये।
हम मन्दिर से नीचे उतर रहे थे तो काफी कोहरा छट चुका था। ऐसे में मैंने उतरते ही बगल के जंगल की एक दो तस्वीरें उतारी। मन्दिर के गेट पर हमने थोड़ा फोटो खिंचाई और फिर हम आगे बढ़ गये। हमने थोड़ा दूर ही गये थे कि रूचि ने कहा कि वो ल्वली रोड तक जाना चाहती है। रुचि उधर सुबह मोर्निंग वाक के लिए आती है। सुबह बारिश के चलते वाक पे जाना नहीं हो पाया था तो अब हमने उधर जाने की योजना बना ली। इसी दौरान कोहरा फिर सड़क पर वापस आने लगा।
मन्दिर से इस जगह की दूरी एक आधा किलोमीटर ही होगी। सड़क पर हम लोग एक डेढ़ किलोमीटर तक चले। यहाँ कुछ तसवीरें भी हमने खींची और फिर चूँकि मुझे ऑफिस का काम करना था तो हम लोग घर की तरफ मुड़ गये।
कुछ ही देर में हम घर में थे। चूँकि थोड़ी ठंड हो गयी थी तो हमने चाय पीने का मन बना लिया और चाय चुसकते हुए इस पहाड़ी मौसम का आनन्द लेने लगे। फिर हम सभी अपने अपने कार्यों में व्यस्त हो गये।
तो यह थी बारिश के मौसम में की गयी कण्डोलिया की घुमक्कड़ी।
अब इजाजत दीजीये। फिर मिलेंगे किसी दूसरे सफर पर। तब तक के लिए पढ़ते रहिये घूमते रहिये।
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जी आभार सर…. आपको भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ…
जी, आभार सर…
Such a detailed travel article and lovely photos.
Thank you…