मेरे इश्क़ का सब हिसाब दे जा तू,
बेवफा सही फक़त ख़िताब दे जा तू,
आया दिसंबर, ठिठुर रहा हूँ मैं,
गर्म साँसों का अपने अलाव दे जा तू,
हो चुका धुँआ धुँआ अब ये शहर
जीने भर को मुझे एक नक़ाब दे जा तू
तबाह कर गुलिस्ताँ मेरा, हँस रहा वो,
गुनाहों का उसके उसे हिसाब दे जा तू
जो सीख ले दुनिया की झूठी रिवायते “अंजान”,
हाथों में मेरी एक ऐसी किताब दे जा तू
©विकास नैनवाल ‘अंजान’
नोट: यह ग़ज़ल उत्तरांचल पत्रिके के दिसंबर 2019 अंक में भी प्रकाशित हुई थी।
बहुत सुंदर रचना
जी, आभार मैम।