सोशल मीडिया में आजकल चिल्लाने का चलन बढ़ चुका है। कभी कभी अपनी फीड देखता हूँ तो हर कोई चिल्लाता ही मालूम होता है। ऐसा नहीं है कि एक ही पार्टी ऐसा करती है या एक पार्टी के समर्थक ही ऐसा करते हैं। हर कोई एक जैसा ही है। स्तर अगल अलग हो सकता है और अलग अलग वक्त में अलग अलग पार्टियों ने अलग अलग स्तर पर यह काम किया है। यही सब सोच रहा था कि निम्न पंक्तियों ने मन में जन्म लिया। उम्मीद है हम लोग इस उन्माद से बाहर आयेंगे और चीखने चिल्लाने के जगह बातचीत करके अपने मसले और अपने बीच के मतभेद सुलझाने की कोशिश करेंगे।
हुआँ हुआँ वो देख हमे चिल्लाता है,
न करो परवाह तो गुर्राता है,कसमसाता है,
उड़ेल के ज़माने में ज़हर नफरतों का,
वो वफ़ा-ए-वतन कह इसे इतराता है,
गर साथ हो तुम उसके तो ही हो इस देश के,
नहीं तो दुश्मन-ए-वतन वो तुम्हे बतलाता है,
नापने के मोहब्बत के उसके अपने पैमाने हैं,
गर न मानो तो दाँत नोकीले दिखलाता है,
कान फोडू शोर के बीच सिसक रही इनसानियत,
वो देख मंजर चारो तरफ का कहकहे लगाता है,
झूम रहा हैं न जाने किस नशे में वो,
साथी को अपने, बैरियों में वो गिनाता है
ये वक्त है शोर मचाने का ए अंजान,
जो न चिल्लाए वो देशद्रोही कहलाता है
विकास नैनवाल ‘अंजान’
सटीक
जी आभार सर।