अगर कॉमिक बुक के स्वर्ण युग की बात की जाए तो यह 80 से 2000 तक का समय स्वर्ण युग की कहा जायेगा। यह वह वक्त था जब लगातार कॉमिक बुक आ रही थीं। कई प्रकाशक भी इस क्षेत्र में आ रहे थे। माहवार सेट आया करते थे। वहीं कॉमिक बुक की बिक्री भी हजारों में होती थी।
इसके बनिस्पत आज के वक्त की बात की जाए तो शायद ही कोई प्रकाशक होगा जो माहवार किताबें प्रकाशित कर रहे होंगे। किताबें अकसर चार छह महीने या साल भर के अंतराल के बाद आती हैं। कई प्रकाशकों द्वारा अपनी दुकान बंद भी कर दी गई है।
यह सब कुछ मन में कुछ सवाल पैदा करता है। आज उन्हीं सवालों को देखेंगे और मुझे जो उनके पीछे कारण समझ आता है उसके विषय में बात करेंगे।
कॉमिक बुक के आने की फ्रीक्वेंसी कम क्यों हुई?
इसका सबसे बड़ा कारण जो मेरी समझ में आता है वह यह है कि कॉमिक बुक के बड़े प्रकाशक भी अब कलाकारों को नौकरी पर न रखकर फ्रीलांस काम करवाते हैं। यह इसलिए हुआ है क्योंकि कॉमिक बुक की बिक्री उतनी नहीं रह गई है।
कॉमिक बुक बनाना एक खर्चीला माध्यम है जिसके चलते प्रकाशक भी उतनी इन्वेस्टमेंट इसमें नहीं करना चाहता है।
पहले के समय में हर प्रकाशक की अपनी टीम होती थी और वह एक बार में कई कॉमिक बुक पर काम कर पाता था। यही कारण था कि एक सेट में मौजूद अलग अलग कॉमिक बुक में अलग अलग टीम भी होती थी। यह टीम समानांतर रूप से कार्य करती थी। अब बड़े प्रकाशकों के लिए भी ऐसा करना मुमकिन नहीं रहा है। वह कम प्रोजेक्टों पर कार्य कर रहे हैं और आर्टिस्ट भी फुल टाइम इस काम को करने के बजाए पार्ट टाइम ही ये काम कर रहे हैं।
कॉमिक बुक कम क्यों बिक रही हैं?
कॉमिक बुक के कम बिकने के कुछ कारण मुझे समझ आते हैं। पहला कारण तो यह है कि पाठक हर तरफ से कम हो रहे हैं।
पाठकों के कम होने का एक कारण है कि अब मनोरंजन के लिए कई साधन मौजूद हैं। 90 और 2000 के दशक में यह साधन कम हुआ करते थे। ऐसे में पढ़ने की सामग्री की तरफ सभी का रुझान हुआ करता था। पर अब ऐसा नहीं है।
इसके साथ साथ जो पाठक मौजूद भी हैं उनमें से नए पाठकों के बीच भारतीय कॉमिक अपना वो स्थान नहीं बना पाई है। इसका एक कारण तो यह है कि उनका सीधा सामना पश्चिम के उन किरदारों से है जो कि फिल्मों, टीवी शो या एनिमेशन शो के चलते पहले ही पाठकों से जुड़ जाते हैं। एक बार पाठक इन्हें देख लेता है तो इनके मूल स्रोत यानी कॉमिक बुक की तरफ बढ़ता है और वही पढ़ने लगता है।
भारतीय किरदारों के लिए ऐसा कम ही हो पाता है। मुझे लगता है कि कॉमिक बुक प्रकाशकों को नए पाठक डेवलप करने के प्रति भी मेहनत करनी पड़ेगी। बड़े प्रकाशक हों या ज्यादातर नवीन प्रकाशक वो अभी बच्चों के ऊपर उतना ध्यान नहीं दे रहे हैं। वह उन्हीं लोगों को ध्यान में रखकर कॉमिक बुक बना रहे हैं जो कि यह पढ़ा करते थे। अगर नए पाठकों को भी ध्यान में रखेंगे तो बेहतर होगा।
नए पाठकों तो कॉमिक बुक को कम मिल रहे हैं पर इसके साथ साथ पुराने पाठक जिन्हें कॉमिक बुक पढ़ना पसंद है वह भी यह करना बंद कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण बड़ी हुई कीमतें भी हैं।
90 के दशक में कॉमिक बुक के प्रसिद्ध होने का एक कारण उनका जनसुलभ होना भी था। कॉमिक बुक किराये पर लेकर पढ़ी जा सकती थी और किराया बहुत कम हुआ करता था अक्सर बच्चे ऐसे ही कॉमिक बुक पढ़ा करते थे। वहीं खरीदना भी हो तो खरीदते हुए भी इतना सोचना नहीं पड़ता था।
पर अब कॉमिक बुक न तो किराये पर मिलती हैं और इनकेदाम इतने ऊपर हो गए हैं कि कॉमिक बुक हार्ड कोर कॉमिक बुक फैन ही ले पाते हैं। 32 पृष्ठ के कॉमिक बुक 200 से 300 रुपये के बीच में आते हैं जबकि यह कुछ सालों तक पहले तक 30-40 या 50 रुपये तक आते थे। 32 पृष्ठ की अमर चित्र कथा भी 100 रुपये की आती है जो कि बाकी प्रकाशकों से बेहतर है लेकिन पहले की तुलना में ज्यादा ही है।
इससे होता ये है कि पहले कई लोग यात्राओं पर यूँ ही बच्चों के लिए कॉमिक बुक ले लिया करते थे। वो बच्चे एक कॉमिक पढ़ते तो फिर बार बार कॉमिक बुक लेते या किराये पर पढ़ते। लेकिन अब कॉमिक बुक यूँ ही लेने वाली आइटम नहीं रह गई है। ऐसे में नए पाठक का इनके प्रति एक्सपोजर कम हो गया है।
मैंने देखा है कॉमिक बुक ग्रुप में कई बार लोग भारतीय कॉमिक बुक की कीमतों की अमेरिकी कॉमिक बुक की कीमतों से तुलना करते हैं और कहते हैं कि उनसे ये सही हैं लेकिन वो भूल जाते हैं कि अमेरिकी मार्केट अलग है। वहाँ 32 पृष्ठ की कॉमिक बुक आज भी 4 या पाँच डॉलर की है। अगर रुपये में इसे बदलेंगे तो 32 पृष्ठ की कॉमिक 350 रुपये 450 रुपए के बीच पड़ेगी। ऐसे में भारतीय कॉमिक बुक सस्ती लग सकती हैं। पर अगर आप देखें तो पाएंगे कि उधर प्रतिघंटा न्यूनम आय 7-13 डॉलर यानी 550 से 1000 रुपये के बीच होती है। ऐसे में जो व्यक्ति कम से कम आय ले रहा है वो भी अपने एक घंटे के कार्य के बदले एक से दो कॉमिक बुक यूँ ही खरीद सकता है। वहीं भारत में ऐसा व्यक्ति जो दिन के 1000 रुपये कमा रहा है और घंटे के 125 रुपये कमा रहा है उसके लिए यह कॉमिक बुक अफोर्ड करना मुश्किल ही होगा।
ऐसे में बढ़ी हुई कीमतें भी पाठकों के कम होने के पीछे का कारण हैं। क्योंकि अब यह धनाढ्य वर्ग के लिए ही उपलब्ध होगा और धनाढ्य वर्ग के पास चूँकि विकल्प अधिक है तो जाहिर सी बात है कि वह दूसरे विकल्पों पर अधिक ध्यान देगा। वह भारतीय कॉमिक बुक के साथ विदेशी कॉमिक बुक भी ले सकता है और ये तो सब जानते हैं कि ज्यादातर भारतीय व्यक्ति के मन में यह धारणा रहती ही है कि विदेशी चीजें भारतीय से बेहतर होती हैं। ऐसे में जब उन्हें विदेशी चीजें हासिल होंगी तो भारतीय की तरफ तवज्जो कम हो जाएगी।
मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि अगर प्रकाशक किसी तरह कीमतें नीचे ले आयें तो पाठकों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है। अमर चित्र कथा के 99 रुपये वाले स्तर तक भी 32 पृष्ठ के कॉमिक बुक आ जाएँ तो शायद काफी फर्क पड़ जाएगा।
इसके अलावा कंटनेट भी पाठकों के कम होने के पीछे का एक कारण हो सकता है लेकिन नवीन प्रकाशक इस पर काम कर रहे हैं। वो अच्छा कंटेन्ट और अच्छी क्वालिटी का आर्टवर्क दे रहे हैं लेकिन चूँकि कीमतें इतनी अधिक हैं तो शायद वह उतनी आसानी से लोगों तक नहीं पहुँच पा रहा है जितना कि पहले संभव था।
कॉमिक बुक इतनी महंगी क्यों है?
कीमतों का कॉमिक बुक के पाठक वर्ग के संकुचित होने पर जो असर पड़ता है वह तो हम देख चुके हैं। लेकिन यह देखना भी बनता है कि कॉमिक बुक महंगी क्यों हैं?
असल में कॉमिक बुक एक खर्चीला माध्यम है। एक कॉमिक बुक को बनाने में लेखक, पेंसिलर, इंकर, लेटर्र लगते हैं। कॉमिक बुक में प्रकाशक अक्सर प्रति पेज कलाकारों को पैसा देते हैं। यह दर 1000 रुपये प्रति पेज से चार पाँच हजार रुपये प्रति पेज भी हो सकती है। यह दर निर्भर कलाकार की क्वालिटी पर निर्भर करती है। अगर 1000 रुपये प्रति पेज भी कीमत रखी जाए तो एक 32 पृष्ठ की कॉमिक में कलाकारों का खर्चा एक से डेढ़ लाख तक हो जाता है।इसके बाद प्रिंटिंग का खर्चा अलग से आता है।
अब चूँकि पाठक कम हो चुके हैं तो प्रकाशक हजार से दो हजार प्रतियाँ ही प्रकाशित करवाती हैं। ऐसे में प्रकाशक इतने में ही अपना खर्चा निकलवाने की सोचता है। अगर इस हिसाब से देखें तो 32 रुपये की कॉमिक प्रकाशक को प्रिंटिंग के बाद कम से कम 100 रुपये तक की पड़ती है। ऐसे में वह कीमत 200 से 250 रुपये तक रखते हैं क्योंकि सेलर का मार्जिन भी 30 से 40 प्रतिशत रहता ही है।
फिर एक चक्र का निर्माण हो जाता है। कीमतें ऊँची होने के चलते पाठक कम होते हैं और पाठक कम होने के चलते कीमती ऊँची होती चली जाती है।
अगर इस चक्र को तोड़ना है तो मेरे ख्याल से प्रकाशकों को कीमतें कम करने के विषय में सोचना होगा। वह प्रतियों की संख्या बढ़ाकर ये काम कर सकती हैं। हो सकता है कि इससे प्रॉफ़िट थोड़ी देर में आए लेकिन अगर इसके चलते पाठक बढ़ने लगे तो आगे जाकर उन्हें काफी फायदा होगा।
इसके साथ साथ सुलभता का भी काम करना होगा। कई प्रकाशकों ने किंडल पर अपने कॉमिक बुक डालकर उन्हें सुलभ बनाया है। किंडल अनलिमिटेड पर यह कॉमिक पढ़ने के लिए और खरीदने के लिए भी उपलब्ध हैं। ऐसे में अगर ई संस्करणों या वेब संस्करण प्रसिद्ध होते हैं तो पेपरबैक की बिक्री भी शायद बढ़ेगी।
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अंत में यह देखा जा सकता है कि कॉमिक बुक की अधिकतर समस्याएँ उनकी कम बिक्री और प्रकाशकों के सीमित फंड से जुड़ी हैं और यह दोनों आपस में जुड़े हैं। अगर प्रकाशक फंड बढ़ाकर, नए माध्यमों को चुनकर कॉमिक बुक पढ़ने की कीमतें नीचे ले आयें तो पाठक बढ़ सकते हैं।
आपका क्या ख्याल है?
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A very detailed and interesting post
Thank you…
कॉमिक्स के प्रकाशन में आई परेशानियों और बुक्स के प्रति रूझान में कमी का उल्लेख गहनता से किया है आपने । लाजवाब पोस्ट ।
जी आभार…