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फरवरी 2022 में संग्रह में जुड़ी पुस्तकें |
फरवरी 2022 में मेरे संग्रह में कुल छः पुस्तकें जुड़ी। इनमें से दो पुस्तकें तो पत्नी द्वारा उपहारस्वरूप दी गईं और बाकी चार पुस्तकों को मैंने खरीदा था। आपका तो नहीं पता लेकिन मुझे जब भी कोई व्यक्ति उपहारस्वरूप पुस्तक देता है तो मुझे तो बड़ा मज़ा आता है। इस बार पत्नी जी की तरफ से ये दो पुस्तकें उपहार स्वरूप मिली थी तो दिल गार्डन-गार्डन हो गया था।
इस माह जो पुस्तकें संग्रह में जुड़ी उनमें से पाँच उपन्यास हैं और एक यात्रा वृत्तान्त है। चलिए देखते हैं कि यह पुस्तकें कौन सी थीं:
नीले परिंदे
नीले परिंदे इब्ने सफी की इमरान शृंखला का छठवाँ उपन्यास है। यह उपन्यास मुझे पत्नी जी की तरफ से उपहार स्वरूप मिला था। इब्ने सफी की जब बात आती है तो मुझे उनकी लिखी जासूसी दुनिया शृंखला के उपन्यास ज्यादा पसंद आते हैं। इमरान शृंखला के उपन्यासों के साथ मेरा हिट और मिस का रिश्ता है। कुछ पसंद आए हैं और कुछ पसंद नहीं आए हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कई बार इमरान की अहमकों जैसी हरकतें हास्य के बजाय कोफ्त पैदा करने लगती हैं और उपन्यास का मज़ा किरकिरा हो जाता है। वहीं जासूसी दुनिया में हमीद भले ही हास्य पैदा करे लेकिन फरीदी की संजीदगी उसे संतुलित कर देती है। खैर, हार्पर कॉलिन्स द्वारा इमरान शृंखला के जो सात उपन्यास छपे थे उनमें से नीले परिंदे और खौफ का सौदागर ही मेरे संग्रह में नहीं थे तो सोचा जब गिफ्ट मिल रहा है तो क्यों न एक उपन्यास संग्रह में जुड़वा लिया जाए।
किताब परिचय
वह एक नीला परिंदा था जिसने हॉल में बैठे जमील पर हमला कर दिया था। इस हमले का यह नतीजा निकला कि जमील के बदन पर अब सफेद दाग उभर आए थे। डॉक्टरो का कहना था कि यह एक नया किस्म का वायरस है। वहीं जमील के खानदान को इसमें किसी साजिश की बू आ रही थी। यही कारण था कि उन्होंने डिपार्टमेंट ऑफ इंवेस्टिगेशन को यह मामला सौंपा था और फ़ैयाज ने इमरान को इसकी तह में जाने का काम दिया था।
नीले परिंदों की हकीकत क्या है? जमील पर हमला करने का कारण क्या था? क्या इमरान रहस्यों का पता लगा पाया?
पुस्तक लिंक: अमेज़न
पिशाच
पिशाच वह दूसरी पुस्तक थी जो मुझे पत्नी जी द्वारा उपहार स्वरूप दी गई। हिंदी अपराध साहित्य में संजीव पालीवाल एक नया नाम बनकर उभरे हैं। उनका प्रथम उपन्यास नैना चर्चा का केंद्र रहा है। नैना मेरे पास पहले से ही मौजूद था। ऐसे में जब उनका नवीन उपन्यास पिशाच आया तो इसे भी लेने का मन था लेकिन पहले मैं नैना पढ़ना चाहता था। पर फिर जब देखा कि पिशाच अमेज़न में लिमिटेड टाइम डील के अंदर 140 के करीब मिल रहा था तो मैंने उन्हें इस उपन्यास को लेने के लिए कह दिया। और इस माह ये उपन्यास मेरे संग्रह में जुड़ गया।
पिशाच की कहानी नैना के आगे ही बढ़ती है तो अगर आपने नैना नहीं पढ़ा है तो इसे पढ़ने से पहले नैना जरूर पढ़िएगा।
किताब परिचय
जाने-माने कवि, विचारक और पेंटर गजानन स्वामी नहीं रहे।
दिल्ली के आईपी एक्सटेंशन स्थित एक सोसाइटी में उनका क़त्ल होता है। कौन कर गया एक बुज़ुर्ग का क़त्ल? क़ातिल का क्या मक़सद था? और आख़िर क्यों क़त्ल के बाद क़ातिल दीवार पर ख़ून से बड़े-बड़े अक्षरों में लिख गया—‘पिशाच’?
क्या संदेश छिपा है इसमें?
उनकी हैरतअंगेज़ हत्या की ख़बर पूरे देश में आग की तरह फैल गयी। पुलिस अभी इसी गुत्थी को सुलझाने में मशक्कत कर रही थी कि सिलसिलेवार तरीक़े से कुछ और मशहूर लोगों का क़त्ल हो जाता है।
कौन है रहस्यमयी क़ातिल?
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कठपुतली का बदला
आर एल स्टाइन की गूज़बम्पस शृंखला से मेरा पहला परिचय दिल्ली में तब हुआ था जब मैं सर्दियों की छुट्टियों में मामा के यहाँ गया था। उन दिनों हमारे यहाँ केबल नहीं हुआ करता था और मामा के घर जाने पर कई सारे चैनल्स एक साथ मेरे लिए उपलब्ध हो जाते थे। मुझे उस वक्त इस शृंखला के एक दो एपिसोड देखने की धुंधली सी याद है। इसके बाद मैं कॉलेज गया, नौकरी लगी और इस शृंखला से नाता ही टूट गया। फिर कुछ वर्षों पहले आर एल स्टाइन की पुस्तकों पर आधारित फिल्में देखने का मौका लगा और तब से गाहे बगाहे इस शृंखला के उपन्यास मैं लेता रहता हूँ और उन्हें पढ़ता रहता हूँ। पर अब तक ये उपन्यास मैंने अंग्रेजी में ही लिए और पढ़े थे। ऐसे में जब एक दिन एक व्हाट्सएप्प ग्रुप में एक मित्र राकेश वर्मा ने आर एल स्टाइन की पुस्तकों के हिंदी संस्करण साझा किये तो इन्हे लेने का मन हो गया। अमेज़न में गया तो प्रस्तुत किताब बहुत अच्छे डिस्काउंट पर मिल रही थी और इस कारण इसे लेने का लोभ मैं संवरण न कर पाया।
‘कठपुतली का बदला’ गूजबम्प हॉररलैंड शृंखला का पहला उपन्यास है। इस शृंखला में आर एल स्टीन द्वारा 19 पुस्तकें लिखी गई थीं। जहाँ तक मुझे पता है शायद तीन का तो हुआ है। ये उपन्यास पढ़ने के बाद बाकी के मँगवाने की भी कोशिश रहेगी। बाकी के अंग्रेजी ही मँगवाए जाएंगे। सच बताऊँ आज भी बाल साहित्य पढ़ने में मुझे तो बढ़ा मज़ा आता है। उन्हें भी उतने ही लुत्फ के साथ पढ़ता हूँ जितना वयस्क साहित्य पढ़ता हूँ। और हो भी क्यों न? दिल तो बच्चा है न, जी।
किताब परिचय
ब्रिटनी क्रोस्बी जानती थी कि उसका कजिन ईथान बहुत ही शैतान है- उसका सोचना सही ही था। ईथान ब्रिटनी को अपनी वेंट्रोलोकविस्ट की मदद से बहुत सताता है, लेकिन अति तो तब हो जाती है जब वह कठपुतली भी ब्रिटनी को सताने पर आमादा हो जाती है।
हॉररलैंड में प्रवेश: क्रोस्बी परिवार को किसी की तरफ से मशहूर स्क्रीम पार्क (हॉररलैंड) में एक सप्ताह के हॉलीडे का ऑफर मिलता है, बिल्कुल फ्री? लेकिन हॉररलैंड के कुछ मेहमानों को छः दिन और सात भयावह रातें बिताने के बाद भी बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलती…
पुस्तक लिंक: अमेज़न
बीट
हिंदी अपराध साहित्य में लेखक संतोष पाठक ने कुछ ही समय में अपना ऐसा मुकाम बना लिया है कि उनकी किताबें अब नाम देखकर खरीदी जा सकती हैं। मैं भी उनकी किताबों का मुरीद रहा हूँ बस उनकी किताबें किन्डल पर पढ़ रहा था। काफी दिनों से मैंने उनकी कोई किताब पेपरबैक में नहीं खरीदी थी तो जब बीट का प्रीऑर्डर लगा तो मैंने उसे बिना वक्त गँवाए मँगवा लिया।
बीट संतोष पाठक की विराट राणा शृंखला का तीसरा उपन्यास है। इस शृंखला का पहला उपन्यास ‘छलावा’ मैंने पढ़ा था और वो मुझे पसंद आया था। अब देखना ये है कि यह उपन्यास कैसा है?
किताब परिचय
पंखे के हुक से उल्टी लटकती लाश, खून से भरे तगाड़ में जलकर बुझ चुकी आग के अवशेष, स्टील के प्लेट में रखा मकतूल का दिमाग, हड्डियों को एक दूसरे के ऊपर रखकर बनाये गये चार क्रॉस और उनके बीच मौजूद एक निर्दोष सा दिखाई देने वाला चुकंदर!
क्या था ये सब?
क्या हत्यारा पुलिस को कुछ बताने की कोशिश कर रहा था? या फिर सब धोखा था, पुलिस को भटकाने के लिए कातिल की नायाब चाल थी?
सवाल बहुतेरे थे, जवाब कोई नहीं। कत्ल दर कत्ल मामला सुलझने की बजाये निरंतर उलझता चला जा रहा था।
तुम्हारे लिए
‘तुम्हारे लिए’ हिमांशु जोशी का लिखा हुआ प्रसिद्ध उपन्यास है। यह उपन्यास मँगवाने के पीछे भी एक कहानी ही है। तो बात यह है कि मेरे एक फेसबुक मित्र हैं आशुतोष मिश्रा जी। वो कई महीनों से मुझे इस पुस्तक को पढ़ने को कह रहे थे। किसी भी किताब पर मैं पोस्ट लिखूँ उसमें गाहे बगाहे वो इस उपन्यास का जिक्र कर देते थे। यह उनकी पसंदीदा पुस्तक में से एक है और उन्होंने मन बना लिया था कि मैं इसे पढ़ूँ। लेकिन मैं इस पुस्तक को खरीदने की बात टाल रहा था। इसके दो कारण थे। एक तो मैं पहले से मौजूद पुस्तकों को पढ़ना चाहता था और दूसरा यह पुस्तक काफी वक्त तक अमेज़न पर अनुपलब्ध रही थी। मैंने सोचा हुआ था कि इस पुस्तक को खरीदूँगा जरूर लेकिन थोड़ा ठहरकर या सीधे पुस्तक मेले में जाकर।
ऐसे में जब एक व्हाट्सएप ग्रुप में वह मिले तो उन्होंने फिर इस पुस्तक को पढ़ने के लिए कहा। मैंने अनुपलब्धता की बात की तो उन्होंने पुस्तक डॉट ऑर्ग का लिंक मुझे थमा दिया जहाँ ये पुस्तक 150 रुपये में उपलब्ध थी। अब इतने इसरार के बाद किताब लेना तो बनता ही था। सच बताऊँ तो उन्होंने लिंक देकर मुझे कोने में धकेल सा दिया था। यही कारण था कि मैंने लिंक क्लिक किया और इस किताब को मँगवाने की प्रक्रिया शुरू की।
लिंक पर जाकर किताब ऑर्डर की तो विक्रेता जी ने बताया कि उनके पास जो संस्करण है वो 280 रुपये का है न कि 150 रुपये। 150 का पुराना संस्करण था जो कि अब आउट ऑफ प्रिन्ट चला गया है। कीमत दोगुना थी लेकिन चूँकि यहाँ तक का सफर कर लिया था तो अब किताब को खरीदना टाल ना सका और मन मसोसते हुए लगभग दोगुनी कीमत देकर किताब को ऑर्डर कर दिया। और इस तरह यह किताब मेरे संग्रह में जुड़ गई।
पुस्तक आई तो पता चला किताबघर प्रकाशन से प्रकाशित यह संस्करण हार्डकवर है। अब पुस्तक पढ़ने की बारी है। अभी तक तो मुझे यही पता है कि कथानक का कुछ हिस्सा नैनीताल में घटित होता है। बाकी किताब कैसी है यह देखना बनता है।
किताब तो जब पढ़ूँगा तब पढ़ूँगा लेकिन यहाँ इतना कहना चाहूँगा कि भगवान अगर कहीं हैं तो आशुतोष मिश्रा जी जैसा पाठक हर लेखक को दे।
किताब परिचय
आग की नदी। नहीं, नहीं यह दर्द का दरिया भी है, मौन-मंथर गति से निरंतर प्रवाहित होता हुआ। यह दो निश्छल, निरीह उगते तरुणों की सुकोमल स्नेह-गाथा ही नहीं, उभरते जीवन का स्वप्निल कटु यथार्थ भी है कहीं। वह यथार्थ, जो समय के विपरीत चलता हुआ भी, समय के साथ-साथ समय का सच प्रस्तुत करता है।
मेहा-विराग यानी विराग-मेहा का पारदर्शी, निरमल स्नेह इस कथा की भावभूमि बनकर, अनायास यह यक्ष-प्रश्न करता है-प्रणय क्या है? जीवन क्यों है? जीवन की सार्थकता किसमें है? किसलिए?
बर्नियर की भारत यात्रा
बर्नियर की भारत यात्रा के विषय में भी एक व्हाट्सएप्प समूह से ही पता चला। हुआ हूँ कि राशीद भाई ने एक लिंक ग्रुप में साझा किया और पूछा कि क्या उस लिंक से पुस्तक मँगवाना ठीक रहेगा। यह लिंक पुस्तक डॉट ऑर्ग का ही था और पुस्तक के नाम ने मेरा ध्यान आकर्षित कर दिया था। वैसे भी मुझे यात्रा वृत्तान्त पढ़ने पसंद हैं (वो अलग बात है काफी समय से ब्लॉग्स पर ही यात्रा वृत्तान्त पढ़ रहा हूँ।) तो ऐसे में एक विदेशी की नजर से भारत देखना रोचक होता। राशीद भाई को लिंक की वैधता बताने के बाद मैंने खुद उस लिंक से यह किताब ऑर्डर कर दी।
लेकिन जैसा ‘तुम्हारे लिए’ के साथ हुआ था वैसा ही इसके साथ भी हुआ। जहाँ वेबसाईट में इस पुस्तक की कीमत 55 रुपये दर्ज थी वहीं साइट के विक्रेता साहब ने बताया कि असल कीमत 110 रुपये है। साइट के विषय में पूछने के बाद यही पता चला कि वो पुराने संस्करण की कीमत है।
मुझे लगता है कि पुस्तक डॉट ऑर्ग वालों को अपनी पुस्तकों की कीमत अपडेट करनी चाहिए। ग्राहक कुछ और सोचकर ऑर्डर करता है और कुछ और कीमत मिलने पर एक अटपटी परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है। मना करते भी नहीं बनता है और इस कारण साइट के प्रति एक नकारात्मक भाव पैदा हो जाता है। ऐसे ढाबों में बैठकर खाने की फीलिंग आती है जहाँ खाने का दाम बैठने से पहले कुछ और बताया जाता है और खाने के बाद कुछ और बताया जाता है।
वहीं अगर अद्यतित (अपडेटड) कीमत उधर दर्ज हो तो वही ग्राहक उधर जाएगा जो इस कीमत पर यह पुस्तक लेना चाहता है। कम से कम ऐसी अटपटी परिस्थिति से तो उसे दो चार नहीं होना पड़ेगा।
खैर, किताब आई तो पता लगा कि फैविक्स बर्नियर एक फ़्रांसीसी यात्री थे जो कि मुगल काल में भारत आए थे और मुगल राजदरबार में कुछ वर्षों तक रहे थे। अपने इसी अनुभव को उन्होंने इस पुस्तक की शक्ल दी थी। देखना रोचक होगा कि फ़्रांसीसी यात्री की नजर में मुगल काल कैसा था?
क्या आपको यात्रा वृत्तान्त पढ़ना पसंद है? हाल ही मैं आपने कौन सा यात्रा-वृत्तान्त पढ़ा था?
किताब परिचय
सदियों से भारत का आकर्षण विदेशियों को लुभाता रहा है और यही कारण है कि विश्व के हर कोने से यात्री यहां भ्रमण को आते हैं। यहाँ आने वाले बहुत-से विदेशी यात्रियों ने एक इतिहासकार की दृष्टि से भारत को देखा और यहाँ के तत्कालीन शासक, शासन व्यवस्था, सांस्कृतिक, धार्मिक रीति-रिवाज, आर्थिक व सामाजिक स्थिति आदि का वर्णन किया। सत्रहवीं सदी में फ्रांस से भारत आए फैंव्किस बर्नियर ऐसे ही विदेशी यात्री थे। उस समय भारत पर मुगलों का शासन था। मुगल बादशाह, शाहजहां उस समय अपने जीवन के अन्तिम चरण में थे और उनके चारों पुत्र भावी बादशाह होने के मंसूबे बाँधने और उसके लिए उद्योग करने में जुटे हुए थे। बर्नियर ने मुगल राज्य में आठ वर्षों तक नौकरी की। उस समय के युद्ध की कई प्रधान घटनाएँ बर्नियर ने स्वयं देखी थीं।
प्रस्तुत पुस्तक में बर्नियर द्वारा लिखित यात्रा का वृत्तांत उस काल के भारत की छवि हमारे समक्ष उजागर करता है। यूँ तो हमारे इतिहासकारों ने उस काल के विषय में बहुत कुछ लिखा है, लेकिन एक विदेशी की नजर से भारत को देखने, जानने का रोमांच कुछ अलग ही है।
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तो यह थी वो किताबें जो कि मेरे संग्रह में फरवरी 2022 में जुड़ी हैं। क्या आपने हाल-फिलहाल में कुछ किताबें खरीदी हैं? अगर हाँ तो कौन सी हैं? मुझे बताना न भूलिएगा।
वह आखिरी किताब कौन सी थी जो आपको उपहार स्वरूप मिली थी? मुझे बताना न भूलिएगा।
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राइटर्स से तो बुक्स गिफ्ट में मिलती ही रहती है पर दोस्त या आम आदमी से काफी समय से नही मिली
You are lucky
जी आभार।
चर्चाअंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार…
वाह!…. क्या गजब ट्रेजिडी हो गई….. मेरी रिकॉमेंड किताब पर……….. 😂😂😂😂😂😂😂……. पत्नी से उपन्यास प्राप्ति भी शानदार अहसास होगा…. पर उन्होंने आपको सबसे बड़ा उपहार तो दे ही दिया है @किसी का पिता बना कर….. 😍😍😍😍😍😍😍😍😍
जी उपन्यास प्राप्ति का अहसास शानदार था… त्रासिदी तो हुई थी तगड़ी लेकिन आपका डर था इसलिए ले ली किताब… आपकी उपहार वाली वाली बात सही है…
हमेशा की तरह बहुत ही लाजबाब पोस्ट, विकास भाई।
जी आभार मैम…
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-03-2022) को चर्चा मंच "नारी का सम्मान" (चर्चा अंक-4364) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'