लाया हूँ

ग़मों की गठरी सीने में दबाकर लाया हूँ | ग़ज़ल | विकास नैनवाल 'अंजान'

ग़मों की गठरी सीने में दबाकर लाया हूँ,
अश्कों को अपने,  तबस्सुम में छुपाकर लाया हूँ

सुना, है बिकती इस जहाँ में हर एक चीज,
सो जज़्बात अपने, मैं आज उठाकर लाया हूँ

बेशर्त इश्क पर हुआ करता था कभी यकीन,
शर्तों की भट्टी से मैं खुद को जलाकर लाया हूँ

होता था दर्द कभी तेरे न मिलने से मुझे,
देख दिल को अब पत्थर सा बनाकर लाया हूँ

रोज़  की आपाधापी में इतना हूँ खोया अंजान,
रूह छोड़ कहीं, केवल जिस्म उठाकर लाया हूँ,

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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