इस यात्रा वृत्तांत को शुरुआत से पढने के लिए
इधर क्लिक करें।
हम लोग पैंतालीस(45) मिनट चलने के बाद आख़िरकार किला गेट पहुँच चुके थे।
यहाँ तक आपने पिछली कड़ी में पढ़ा। अब आगे।
हम अब अंदर दाखिल हुए तो उधर लोग बाग़ पहले से मौजूद थे। मुझे ध्यान आया कि पोहा वाले भाई ने कहा था कि किला सुबह पाँच बजे खुल जाता है। उधर कुछ बच्चे थे जो क्रिकेट खेलने की तैयारी कर रहे थे और कुछ लोग अपने सुबह की सैर से वापिस आ रहे थे और कुछ सुबह की सैर को जा रहे थे। यानी आवाजाही थी। बाहर का गेट पे लिखा बोर्ड दिखा रहा था कि हम लोग गुजरी महल में प्रवेश कर रहे थे। जब आप उस गेट से अन्दर आते हैं तो एक आहाता सा आता है जिधर सामने एक छोटा सा छप्परनुमा स्ट्रक्चर है और बायें हाथ की तरफ एक और बड़ा सा गेट है। हमे इधर ही जाना था क्योंकि इधर से ही आप ऊपर मुख्य किले की तरफ जा सकते हो।
लेकिन पहले हमने बाहर ही दो तीन फोटो खींचने की सोची। पहले गेट में मौजूद सीढ़ियों से हम ऊपर तक चढ़े। उधर का हाल बेहाल था। बियर और प्लास्टिक की बोतल, जानवरों का मल और प्लास्टिक के रेपर उधर मौजूद थे। किला सभी लोगों के लिए खुला रहता है और ये उसके ही कारण था। इधर आकर थोड़ा दुःख हुआ कि अपनी धरोहर के साथ हम क्या कर रहे थे। पहले मेरा इन सब चीजों की तस्वीर उतारने का मन था लेकिन फिर सोचा तस्वीर निकाल कर क्यों खुद को और दुखी करूँ। फिर मनीष भाई छतरी में गये और उन्होंने मुझसे बाहर से उनकी फोटो लेने को कहा तो मैंने उतरकर उनकी फोटो लेनी शुरू कर दी।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDoHyqgp_4FBkhGitHrDmjv9-Zk5PHaCjd41NFQCTy67UGEcofxodvCyeklQLyDTzKeWUORSY9eEz2WD8eSptj8ITdhKtW2ZXsVWPb3F94YZ0uScuX7-0RUARkIic1SI_Mgwe8kWfaKIA/s640/IMG_1706.JPG) |
पहला गेट-जो दर्शाता है कि आगे पुरातत्व संग्राहलय है |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5gIiEvtn04U4rnNs7Qd3e-aaKTJ29XL0weNHB0lb4-C3mOGE34NSZYkrPnz20NEpTepa_1L89HlP6LU_2PnQrwTHHLKbn7urfJ3fm6c7XYo1FzIuSE1KpDdrkI5zJ_o__phb0s-1KEno/s400/IMG_1715.JPG) |
मनीष भाई |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJG3MkU4E0Xm6LpY3jwHH7h9ibgufTj3GPyMTzmOEt3zhM5p3FEdix3yI4glH9luzrdkDLp-Nwn9VGKk3fjxQDiQ8BwJ2SEOTJ6qPbC6wpEKE8kMNcqbga_bka3fFuwxXpkU0CJ2WYOZs/s640/IMG_1711.JPG) |
गुजरी महल का प्रवेश गेट और सुबह की सैर को जाते लोग |
कुछ देर तक फोटो लेने के बाद हमने भी गेट से प्रवेश किया। गुजरी महल अब एक संग्राहलय बना दिया गया है। वो बंद था। और उसके गेट के सामने कुछ लोग सुबह का आनन्द ले रहे थे। वो शायद रोज सैर के बाद इधर ही बतकही के लिए बैठते थे। संग्राहलय खुलने में अभी वक्त था तो हमने निर्णय लिया कि हम लोग इसी रास्ते में आगे बढ़ेंगे और अगर मूड हुआ तो इसे वापस आते हुए देख लेंगे।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBi_U8fWFHJY1lpevV3kx4JXersPD5EChsNow2wDKszzSY2iCu0-Rb0-uoc6vyT85o2UdzSMY01RPysKeBDAvoyrMK2ZuPror9GBZHQs3JVdi8430MJY06_xC2CC2mOpM74YFecAvmEwk/s400/IMG_1719.JPG) |
गेट पे एक लोहे की चैन बंधी थी। जाने किस काम आती होगी ये? |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5iw1Fq7K0YAoRsI2gtXisBGzgVBmgJI_bN1dN9F-gdjarDmFUJhEefYGUYN2x4cLfnU7Iz_km7hGcISVOEmDZaaRg5ViDo27LBB5R2ZlJ_bY53xmTUWXSNgNOE6txIkzcn0ia4gLKpTo/s640/IMG_1720.JPG) |
गुजरी महल के बाहर बैठे लोग और फोटो उतारते मनीष भाई |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJDIF2fKce_Ibu_sLU_LUgd8fJnwVOtBxy7KuSFjMNC6MVBGJr7pK4h5HPQTo9TP7M0EmtBHvau-pFL7Yx2CfQH48cE58aVwqUSauR8wrYjvw61XaNDeGZspb5UQA1i4liRRJ1CExwUzU/s640/IMG_1725.JPG) |
गुजरी महल की तरफ से दिखता प्रवेश दरवाजा |
अब हम आगे बढ़ रहे थे। आगे का रास्ता समतल नहीं है। आपको हल्की चढ़ाई चढ़नी होती है। सुबह का मौसम था। ठंडा वातवरण था और ऐसे में चलने में मुझे मजा आ रहा था। वैसे हम चलते हुए ही आ रहे थे लेकिन रास्ता देखकर मुझे लगा कि चलो आज व्यायामशाला(जिम) नहीं जा पाऊंगा लेकिन उसकी जरूरत ही नहीं होगी। हमारा गंतव्य स्थ्ल तो ग्वालियर किला ही था। गुजरी महल से आगे बढ़ते ही हमे एक बोर्ड दिखा। ये बोर्ड चतुर्भुज मंदिर का था। चतुर्भुज मंदिर इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि इसमें एक अभिलेख है जिसके विषय में कहा जाता है कि इसमें ही 0 का प्रयोग पहली बार संख्या के तौर पर किया गया था। मंदिर के बाहर भी शिलालेख जो मंदिर के विषय में जानकारी देता है।
चतुर्भुज मंदिर के विषय में कुछ मुख्य बातें:
१. मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है
२. इसे किले की ठोस चट्टान को तराश कर बनाया गया था
३. 876 ईसवीं में प्रतिहार राजा भोजराज के शाशन में इसे उत्खनित किया गया था
४. चतुर्भुज मंदिर के गर्भगृह में विद्यमान एक अभिलेख में ० का प्रयोग पहली बार संख्या के रूप में किया गया है
मैं जाते वक्त तो इस मंदिर में नहीं गया लेकिन वापस आते वक्त जरूर गया था। लेकिन शिलालेख मुझे दिखाई नहीं दिया था। जाते हुए मनीष भाई इस मंदिर में गये और तब तक मैं बाहर की फोटो खींचता रहा। और ऐसे ही आराम से घूमते हुए आखिर हम फोर्ट के गेट तक पहुँच ही गये। गुजरी महल से ऊपर चढ़ने की शुरुआत हमने सवा सात बजे के करीब की थी और हम किले के गेट पर सात पचपन के करीब पहुँच गये थे। रास्ते में चतुर्भुज मंदिर के अलावा कुछ और छोटे छोटे मंदिर आये। एक दिवार थी जिसमे मूर्तियों को तराशा गया था। मैंने कुछ की फोटो ली। हम आराम से चल रहे थे। हमे कोई जल्दी भी नहीं थी। हम आराम से घूमने आये थे और इस खुशनुमा मौसम से घूम रहे थे। और क्या चाहिए था?
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjS7Yopa2ahIX-c0D1zf5bVqrKjwTRFf2AdzMotO-n4BQlAUxU-q7pWGPG-AUiBl_ox3hdatV41hKEPxQPg4_sPO_HJhALun9tZ3KnUHbh1Rh710D6dnsKlZFVb47Ayq-p6o06oosr5iVU/s640/IMG_1724.JPG) |
चतुर्भुज मंदिर को जाता रास्ता |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3VstyLlmXQmvJY7nG_ZEONG5wvg3f2r0QJSd0W7kxGgO-Kzx8X7UIIcXrvKogdxdBQk6iYbYFjGaAfofeecwpBbw04hAXILTVKmjtOOo953louDpobavxhymK-FjT2grDuNgjX-xYoOM/s640/IMG_1731.JPG) |
सुबह की सैर की तरफ जाते और सुबह की सैर से आते लोग |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj5QxcaQxvMiLdEw9YHHoem1AIAAjcsihPv2fin3kukeodtT5_PI-jcJ_UcNDBg5qQIbIm3b_A-BTMkTdZ83DpqXPLPeWuJb9Idsyr-bUb90tDj-JYk-MkJ8k0H7rSJjdN1CoeNaqlR-PI/s640/IMG_1743.JPG) |
भोली भाली लड़की खोल तेरे दिल की प्यार वाली खिड़की…. प्यार वाली खिड़की का तो पता नहीं लेकिन दीवारों पे बनी ऐसी खुली हुई खिड़कियाँ काफी थी उधर |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEits164ufePuwmoUxurJRXg4JxeuF4VxE_PUMU6a77x-howE2NLfUBQFGiYuiHRzOZgJjYNRcPnXkxc7KqVSYIuNc2ZRPHA1Z_azHrwinULohd6bu33sADurlPL1oCRmX22otPkiTWN_e4/s640/IMG_1744.JPG) |
फोटोग्राफी में मशगूल मनीष भाई |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuXFw3h4Ktaetbr-no249Lfrkho-v-OQ41MQ7DeKCefnfZGKqljHEAkTH6g8TAiBwLnGRVJek_OsAbCK0nA0HiC0yVZllJC-khesSh78gDglI3fuBzpuwqB24mhmTv6CuJsAyekSZ4u14/s640/IMG_1747.JPG) |
किले की तरफ बढ़ते हुए दीवार से ग्वालियर को देखा… कोहरे से आच्छादित शहर सुन्दर लग रहा था |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCKtYXoA6QvYcEEkw79YPE9bGxlmuaBPc1aev4Kqg6o2Rju8obp80RL9XmqobRcVuoVXZkrZbmusdpryUbLBiT7-M-5LwTZ5YH3-I2I5dCmjmvobp7hW3Bf2kyTfEhVSWtpHKNyGTrurg/s640/IMG_1755.JPG) |
चतुर्भुज मंदिर |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAWDYD3X6XmXb-TF70uQ8drmtXKVdnsKPB7SvNaRyt7RHllMN3dv3VogQo6jn6KsXhZj7xbAj2RO4pMy398dwEKuto1WO8p6VXz6i_JiN9IzJCgonPM_TkKjAbIqvKG7rf2t49OSRbDCc/s640/IMG_1773.JPG) |
किले की दीवारों पर उकेरे गये कलाकृतियाँ |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsOyJfXAruOOoyeXlLhpP73lsLHDQem9pgSOaZhzV7DcVnaxCTU0BphyphenhyphenR_q_KmhjHtPgdgcAJMig7WRy2XcWRFBmtwh4j6vYwzE2WgpJbX2PAC5tgjOp27Up6RfvXz1r09SXeUIVp_HLY/s640/IMG_1775.JPG) |
किले की दीवार और उसपे उकेरी गयी छोटी छोटी कलाकृतियाँ |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjyq_GZ13gqSm5fsQFcD_5cC9JpQVykqiqJy0hThrfLwtg4cjU-pdQeJImMo5DzvGmOJiIgEGDjYT6WUkwMUcP86F2ZmBLm6sb5Gyst6sipPCRdlpZWxTvi-34tWx_2tLBKN1_yD-QghXA/s640/IMG_1783.JPG) |
ऐसी ही कई कलाकृतियाँ उन दीवारों पर उकेरी हुई थी |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSO2qfW26P8tbWb2DdSUk563pN4egLp4EUJ2yGhxYgGLZcmZ_Yly24DjowBpYv1b9CBQ_QgdS8kQmypt45qyk4UIyaBcBOoO_0DXZomGZh7uOC7uM4yA_cHm90b7Qr06K8ob2-CMhEwQ4/s640/IMG_1787.JPG) |
रास्ते में मौजूद एक और छोटा मंदिर |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDT18v4Ywz6AvscwcngV_NVH7Dvyc1zvbLaLsE77IsG_L6PywWDGagbyGN0UmgO7yvExt_WCpXuQHkOkrSyJmkkBiS62N5HjLFUcLBs65YrfJXbevIVeW9Q44XgSs0_X_hcQx4yL7-b78/s640/IMG_1794.JPG) |
किले के निकट पहुँचकर आराम करते मनीष भाई |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhqz_jJZeZry4nSJtpTR58GEwMzGuarf66bLaemljf3N4EZIfNaOpLj6hWanIbVo9SsTbsj2qeu0ONEPvc2QJz1gm7FUWlprzN1Tn2dkg65kVBLc_-d-KWMlXBluZOIl1Y8COa5SghZKs8/s640/IMG_1808.JPG) |
किले का प्रवेश द्वार |
हम किले के प्रवेश द्वार से अन्दर घुसे तो सामने एक और संग्राहलय दिखा। संग्रहालय के सामने लिखे शिलालेख को पढ़ने पर पता चला कि कभी ये अस्पताल हुआ करता था। इसके अन्दर चार गैलरीज हैं जिनमे मौजूद चीजें प्रथम शती ई पू से लेकर 17 शती ई पू के हैं। ये चीजें ग्वालियर और आस पास की जगह से प्राप्त हुई थीं। एक संग्राहलय गुजरी महल में था और एक सामने दिख रहा था। नौ बजे के बाद ही इसे खुलना था। तब तक हम आस पास घूमने लगे। वैसे संग्राहलयों में जाने में मेरी इतनी रूचि नहीं रहती है। कुछ देर बाद मैं बोर होने लगता हूँ।
किले के अन्दर काफी लोग थे लेकिन उसमे पर्यटक कम नज़र आ रहे थे। अभी तो स्थानीय लोग ज्यादा दिख रहे थे जो अपनी सुबह की सैर के लिए आये थे। वो अपना सुबह का व्यायाम कर रहे थे। कुछ नव युवक दंड पेल रहे थे। कुछ सुबह की ताज़ी हवा में बतकही कर रहे थे। यानी सभी अपनी अपनी तरह से एन्जॉय कर रहे थे।
गेट से जब आप अन्दर आते हैं तो बायें हाथ में खुली जगह है जहाँ ये सब हो रहा था। वही दायें हाथ की तरफ जाते ही मान सिंह महल और अन्य कई महल थे। पहले हमने बायें हाथ की तरफ जाने की सोची। मेरा सोचना ये था कि चूँकि एंट्री इधर से है तो बाहर भी इधर से ही जायेंगे। तो पहले बायें तरफ की चीजें देख लेते और उसके बाद ही दायें तरफ की चीजें देखते और फिर बाहर निकल जाएंगे।
अभी मुझे इस किले के क्षेत्र फल का अंदाजा नहीं था। अभी तो हमारे अन्दर ऊर्जा भरपूर मात्रा में थी और चूँकि मौसम में भी ठंडक थी तो हम घूमने को आतुर थे। हम बायीं तरफ हो लिए और घूमने लगे। घूमते हुए मैंने देखा कि जैसे सबसे पहले गेट के रखरखाव में कमी थी वैसे ही इधर भी कई इलाकों में रख रखाव की कमी झलक रही थी। प्लास्टिक के रैपर और प्लास्टिक की बोतल कई जगह पड़े थे। सरकारी संस्थान इतने बड़े इलाके की सफाई रोज नहीं कर सकता और इसलिए यहाँ लोगों के सिविक सेंस की जरूरत होती है। यहाँ उचित मात्रा में कूड़ादान बने हुए हैं तो ये लोगों पर निर्भर करता है कि वो उसका इस्तेमाल करें और चीजें जहाँ न फेंके। लेकिन इस सिविक सेंस की कमी इधर काफी दिख रही थी।
किले के अन्दर कई रोड हैं। हम जब आस पास घूमते हुए बोर हो गये तो बायें तरफ की को जाने वाली एक रोड पे आगे बढ़ने लगे। इस रोड से होते हुए हम सास बहु मंदिर के समक्ष पहुंचे। उधर जाकर गार्ड भाई ने हमे बताया कि इस मंदिर समूह को देखने के लिए हमे टिकेट लेना होगा जो हमे मान सिंह महल/ मान मंदिर महल के सामने मौजूद टिकेट घर से मिलेगा। उन्होंने ही बताया कि आगे तेली का मंदिर है जिसका टिकेट भी उधर से ही मिलेगा। अब हमे वापस जाना ही पड़ा। लेकिन चूँकि हम इतने थके भी नहीं थे तो ख़ुशी-ख़ुशी वापस हो लिए।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhpxmhL69xTXHLa6jEOeFyuEAlHirYI8YjaMCH6oKE78ew0_V1HOmLyBKdVeF3LWm8FyOllk-TmlwFaZCR-RCKak6s4U0g-lyvq5km1s2DPfwG59I2cAsW8fTJpj42C3Z2tU7R84iln4mE/s640/IMG_1805.JPG) |
किले के प्रवेश द्वार से दिखता संग्राहलय |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCHSaghqANmwNJCMUpyfJzMiFRGritztfIlET2Xg6T6726hEQjX1CrRY_gKDuKUO09nNrWKM1HfI0jyWSxukoJAR28NzZMkJNBztXOesvCevhvD2L2YgxS06mcWI03FeRCDfnAyO6kdaw/s640/IMG_1810.JPG) |
छतरी और उसमे आराम करते मनीष भाई |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgX6E51IKH1SsvlyQ7NscKUeRUMUFR1EA8gff0lm_eLMkhKEeLSrBQXalT3QbiwElUqd1KHZrlxwyFPrq4x1GRSKgQVRLgA2FZcSeT5HGiuWJL_-xb16ILQooUyGShthXuM-JFDsP-lnU/s640/IMG_1814.JPG) |
मान मंदिर महल ग्राउंड से दिखता हुआ |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFw7laCe-DustqqPynEDLuXVmmYU9qBknGMHqYp0pAkSGCybcp7dxUwSz0P-HTBzsD3-hK9EZy_Gq535o7DjdkVKhWzey8GcdvtS8NmF7xqZj3FqKZjD_Q5OJhFHkeghYyGNHyHveM8ZY/s640/IMG_1822.JPG) |
किले के दीवारों के आस पास फैलाया गया कचरा |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-UvW8x722RLWJZ2GQy9v4ozqZBQo9oBJLszeEb-we_WgOYzbyU-ip02rQP5YrxOGX7Qum04qGPAQUlYkhVJb30ZR9cC0xiBmtlJgP1Y7jCa96u85lrJarQGdmI3JNpeebCE9BiKnvnLY/s640/IMG_1824.JPG) |
किले की दीवारों के आस पास फैलाया गया कचरा |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWLOe3PIg4FOyepSoqLQKlwxWejXJ8FVzA2OQgk_WbWyDvUig3z6Im_XCo3F6Kobte90u7dZ1j4R3CUkPx9an9VE7G_A2jiT7FrRZOPK0c4LG2azjg5pFzH4eQZPY5KBGyH5bPY_a6xbs/s640/IMG_1825.JPG) |
दूर से दिखता सास बहु मंदिर। हमे टिकट लेने के लिए इधर से वापस लौटना पड़ा था |
हम टिकट घर पहुंचे और पंद्रह पंद्रह के दो टिकट लिए। टिकट लेने के बाद हमने सोचा कि अब यहाँ तक आ गये हैं तो मानसिंह महल/मान मंदिर महल ही देख लें। तो हमने प्लान में बदलाव किया और ये प्लान बनाया कि हम पहले मान सिंह पैलेस और उसके बायें तरफ मौजूद महलों के समूह को देखेंगे। उनके लिए अलग टिकट लगना था। लेकिन चूँकि उधर का गेट नौ बजे के बाद ही खुलना था तो हमने सोचा कि पहले मानसिंह पैलेस ही देख लें और फिर बाद में उधर जायेंगे। ये सोचकर हम मान सिंह महल के अन्दर दाखिल होने के लिए बढ़े।
लेकिन पहले मानसिंह पैलेस के विषय में कुछ बातें:
१. मान सिंह महल को तोमर राजा मान सिंह तोमर ने 1508 ईस्वीं में बनवाया था
२. इसमें चार तल हैं जिसमे से दो तल जमीन के नीचे हैं
३. तीसरे तल में दो खुले प्रांगण हैं और कई कमरे हैं…साथ में कई स्तम्भ हैं
४. नीचे के तलों में झूलाघर, केसर कुंड और फाँसीघर है
५.इस महल का निर्माण किले की दीवार से सटाकर किया हुआ है
६.16 शताब्दी में जब ग्वालियर किले में मुगलों का आधिपत्य तो इस महल का उपयोग शाही जेल के तरह करने लगे
महल के प्रवेश गेट पर एक गार्ड साहब बैठे हुए थे। हम अन्दर दाखिल हुए तो अन्दर अँधेरा था। अगर लोग बाग़ और कुछ युगल पहले से मौजूद थे। नीचे तले में जाने के लिए संकीर्ण सीढियाँ थी। नीचे के तलों में दीवारों पर चमगादड़ भी थे। नीचे फाँसी घर हमने देखा। उधर खम्बे थे जिनमें मोटी मोटी बेडिया बंधी हुई थी। सीढ़ियों से जब मैं उतर रहा था तो मुझे याद है चमगादड़ों से मुझे डर भी लग रहा था। दीवारों की सीलन नथुनों में टकरा रही थी और मैं यही सोच रहा था कि कहीं चमगादड़ हमला न कर दें। ये तो शुक्र है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। हम पौने नौ बजे अन्दर दाखिल हुए होंगे और सवा नौ से कुछ मिनट पहले ही बाहर निकले। जब हम बाहर को आने लगे तभी कुछ पर्यटक गाइड के साथ अंदर आ रहे थे। लेकिन हमे तो और आगे जाना था इसलिए गाइड की बातों को सुनने का लालच छोड़ हम मान सिंह महल से बाहर आ गये और दूसरे महल समूहों की तरफ बढ़ने लगे। लेकिन उधर जाने से पहले कुछ तसवीरें।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhb8MxyUDTkz4g2ATVKGv135adbCFHO4fieB0YmTa-IKQkRc3cX8dFktGAa84R1hK1mmeN7z1kOb2wu3c3rzNof49evLiNK3dhP2DrWFyr-TNINfwHXgxMB_qG8nA5d1eeWRhS8yDjX1_U/s640/IMG_1835.JPG) |
टिकट लेते मनीष भाई |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPxMnl4zYkhIX2yVoNIx0At9mu-UgniHe-YzZZRpK2j9pnb9AVPO0WmYZ3t1pOk1qw5zbdgnsI7r7wTcKAcuRwEtGdYoQSyiXDF0rTF1GqOYQ5Yg60Y_NHl8-jsTvVV9mgijVUa01X_QI/s640/IMG_1836.JPG) |
महल की एंट्री पे रखी छोटी सी तोप |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgeJBZeCRHbEyK7svvvHn637R1bnEk1f-yYAiQgzR8UYtuNCASU98FyRAU1rkgTmEjd-L7m6fPrY5Zj2_KT0tNVo26AwfROgzKHlb0m1gqw8JQ5vJVvYOwAjTV-CYjVqk5kK4kHsCbEc6c/s640/IMG_1846.JPG) |
फोटो ग्राफ लेते मनीष भाई |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmLFxN3jXbv6Iwi6hVfIcXGgdFY9-FCHc3yHbWKq6cawVKEAJclx12JMxIPCVEQxiegsyvKwBORLUvYQrlNEjikkLqMdRRTUcHUlhjEHu6m5KYIIjiRWGFZi9lFLyVlpKPN4UxgshKpzU/s640/IMG_1851.JPG) |
नक्काशी की हुई दीवार |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgI9ImIQYsmMz5E9C7kyxocFAPQTWh-YNhhaAeKC3pyUAae5_M18q38dE8-QSt5GMTVuapeBL6vpXNSlY6rQ3165F8lglAQPHo5Xwk1bc84AQiTXn_NonOcXXhjDJU-Sar4bEtUJ5bjTE/s640/IMG_1861.JPG) |
छत पर बनी कलाकृति |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7IwPBGAN5N4SCTS_sg8V9vW4WjhAJSZpx06i8hTUMU1KwO58GGIB2vNZRPOZLCZs7w2DGnAfh6ADTS4qJ_tMRXPgAl61lVN6jEczyTNGYgBaffZg_58j82a-yOlBj1DQ5R_8_xX6bf1Y/s640/IMG_1863.JPG) |
आराम करते चमगादड़ महाशय |
मान मंदिर महल से निकलने के बाद हम उसके दायें तरफ मौजूद इमारतों के समूह की ओर बढ़ चले। सबसे पहले हमे टिकट लेना था। मनीष भाई ने टिकट लिया। कैमरा का टिकट भी इधर लगता है तो एक टिकट कैमरा का भी लिया गया। टिकट काउंटर के बगल में ही एक बोर्ड था जो दर्शाता था इधर कितने स्मारक हैं। मैंने एक नज़र इसपर फिराई और तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि ग्वालियर किला एक दिन में करने लायक जगह नहीं है। इसके लिए पूरा दो दिन तो चाहिए ही चाहिए। लेकिन चूँकि हमारे पास आज ही का दिन था तो हमे इसमें ही जितना हो सके उतना बेहतर अनुभव लेना था।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiApU9PoGEwBKTFguixl-UcYGAHdZYVdvwsB3dryrDYrjAjfViOo-wTYn3lMRttDgRW8PMfaVXl6ri-TMhNRRwS33CZcJ7PYD-ObVmozlS3OgnfNseTfVSwMbHyTMnMMEfwmv-Y4TqYcaI/s320/IMG_1883.JPG) |
टिकट लेते मनीष भाई |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhynolY-iLIXNw4DLD_8ZwWuzXc8w2udi7aO8oRMLEoD53_QPtP7vmD2YAJMwx9vxlizVaiPnYzgLJDesdhgS0reBPWhHGHCYQR6RFv-zppD4e6v3I42OmyWgGRvQw5VbDuOYS3brylgc4/s640/IMG_1882.JPG) |
स्मारकों की जानकारी देता बोर्ड |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj5lC08CZacx9Uj0ozMCS1f67D-uQC33m0OgQctEMZp0xQEZ8V2EVb86efW4n1duPFjvORWqbUXmpLxIMOUvjf6Q4E0-o1UiyOAVnfc5jRab00GY23LX91HJegVTvu5AtfznU8aqhzFrXU/s640/IMG_1889.JPG) |
निशाना साधते मनीष भाई |
बोर्ड से ही हमे पता था कि इधर आठ राज्य संरक्षित स्मारकों का समूह था। वे स्मारक निम्न हैं:
१.कर्ण महल
1)कर्ण महल का निर्माण तोमर वंश के दूसरे शाशक कीर्ति सिंह (1480-1486 ई०) ने करवाया था
2)कीर्ति सिंह का ही दूसरा नाम कर्ण था इसलिए महल कर्ण महल कहलाया जाने लगा
3)महल हिन्दू स्थापत्य शैली में निर्मित है।
4)महल दो मंजिला और आयताकार है।
5)महल के मध्य में पड़े स्तम्भों पर आधारित हॉल है जहाँ महाराज का दरबार लगता था
6) महल के उत्तर की तरफ हमामखाना है और दूसरी मंजिल में जाने के लिए जीना है
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhFRJj3c4_Q4GxRon3wS1mkRf_XFzr49yRq3AyNkB86RsRf1z2YOFdlsGi7Z1g07mYfHG41f3E-LXxpA3hAyqxVFy73xFbvuHYnRL1wTDypHLT0uJwSWKCC15HEV7fYhcxqKHGIcACKOYQ/s640/IMG_1894.JPG) |
काफी कोशिश की थी लेकिन पूरे फ्रैम में कर्ण महल न ला सका। जितना कटा फटा आया आपके समक्ष है |
२.विक्रम महल
1. इसका निर्माण राजा मान सिंह के पुत्र एवम उत्तराधिकारी ने करवाया था
2. ये एक शाही इमारत है
3. महल के मध्य में एक बारादरी है दोनों ओर एक एक कक्ष है
4. महल की ऊपरी मंजिल में जाने के लिए एक जीना बना है
5. महल की लम्बाई ६५ मीटर है
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgFe6D1rbhuPGJk6ax3_Ug2YzjKZ7MegfMyNUQ_kyw83HNQrOwZNaDH73a6YVHgyrXYZvjj_hSAS9Fkh6GLviVxtNaAOgDEW-nZKstjSIH6KV6TPjdccdEy10DoSQCN6TC9xkVGAU7eQU/s640/IMG_1911.JPG) |
विक्रम महल |
३.जहाँगीर महल + शाहजहाँ महल
1)जहाँगीर महल और शाह जहाँ महल एक ही परिसर में मौजूद हैं
2)जहाँगीर महल का निर्माण जहाँगीर के वक्त और शाह जहाँ महल का निर्माण शाह जहाँ के वक्त होने के कारण इन्हें इन नामों से जाना जाता है
3)महल के बीच में एक विशाल प्रांगण है। महल का एक द्वार विक्रम महल की तरफ से और दूसरा जोहर कुंड की तरफ से खुलता है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgxFaFCPzkO62gAOnwExe3-aLQTh2rtXPDl3jnmiSvB-a4Sy0P8dJPD8ed4UScPSUMqxjK_OfyxYr3xZcI1G9koUXEJONpyeM7v3nGbz2GUgFts9LQ9mq7_sqF8xN8AwORBrmJfAGjqFfw/s640/IMG_1936.JPG) |
विक्रम महल की तरफ से जहाँगीर महल और शाह जहाँ महले में प्रवेश करते हुए |
५.भीम सिंह राणा की छत्री
1. गोहद के जाट राजा भीम सिंह राणा ने सन 1754 में मुगलों से ग्वालियर किले को अपने कब्जे में लिया था
2.1756 ई में मराठों के आक्रमण के समय उनकी मृत्यु हो गयी और उस समय इस छत्री का निर्माण किया गया
3. यह छत्री बलुआ प्रस्तर(सैंड स्टोन से बनाई गयी है )
६.जौहर कुंड
1.जोहर कुंड से पानी जहाँगीर महल, शाहजहाँ महल, विक्रम महल और कर्ण महल तक पहुँचाया जाता था
2. इल्तुमिश के नेत्रित्व में जब 1232 ई में मुसलमानों से जब हमला किया तो राजपूत स्त्रियों ने इसी में जौहर किया था और इसी कारण इसका ये नाम पड़ा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0s5MMZUHioDIsd2K1yGrA6v7cOHcXrUGtyGwOq6hkGM49JmlLhxQI_xX5ULRofPmcrazWcHCvlOrCcKpwq1syl8CzkMrrqYRfIZw4sjKOVdyHwz6B7cJja-pSdP8H3Z_UZYqCrl8nij4/s640/IMG_1923.JPG) |
जौहर कुंड और भीम सिंह राणा की छत्री |
हम लोग सवा नौ बजे इधर दाखिल हुए थे और इधर से लगभग साढ़े दस पौने ग्यारह बजे के करीब निकले थे। इधर देखने के लिए इतना कुछ था कि शुरुआत के कुछ इमारतों को ध्यान से देखने के बाद हम लोग जल्दी जल्दी चीजों को देखने लगे। इन छः चीजों को देखने में ही हम काफी घूम चुके थे। एक दो जगह हमे दूर दिख रही थी लेकिन उधर जाने के लिए काफी चलना होता तो इसलिए हम अब वापस हो लिये। हमे अभी वो मंदिर भी देखने थे जिनके लिए टिकट लेने हम इस दिशा में आये थे।
हम इधर से बाहर निकले और सास बहु मंदिर की तरफ बढ़ने लगे। हमने देखा संग्राहलय भी खुल चुका था। अभी हमारा इरादा संग्राहलय देखने का नहीं था। हमारा पानी खत्म हो चुका था और हमे उधर पानी मिल सकता था तो हम संग्राहलय की तरफ बढे और उधर जाकर हमने पानी भरा और लघु शंका से निपटे। फिर हम अपनी मंजिल सास बहु मंदिर की तरफ बढ़ चले।
अभी पौने ग्यारह हो गये थे और पर्यटक आने लगे थे। साथ ही खाने पीने के सामान वालों ने भी अपनी दुकानें लगा दी थी। इन दुकानों को देख कर हमारी भूख जागृत हो गयी। मेरे केस में चाय की तलब थी। सुबह से चाय नहीं पी थी और इतना चलने के बाद चाय तो बनती थी। तो ऐसी ही एक दुकान में हम लोग बैठे। मनीष भाई ने अपने लिए मैगी का आर्डर दिया और मैंने चाय का। पहले मैं पोहा या राजमा चावल जैसा कुछ लेना चाहता था लेकिन कुछ उधर मिल नहीं रहा था। जब मैगी आई तो मनीष भाई ने चखने के लिए बोला। हम सुबह से चल ही रहे थे तो काफी भूख लग गयी थी। और इसलिए जब मैगी चखी तो फिर हम दोनों ने मिलकर तीन मैगी खायी। वैसे खा तो और भी सकते थे लेकिन चूँकि अभी और चलना था तो मैंने ज्यादा न खाने का निर्णय लिया। पेट भर जाता तो चलना दूभर हो जाता। भोजन निपटाने के बाद हम फिर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ चले। कुछ ही देर में हम सास बहु मंदिर के सामने मौजूद थे।
सास बहु मंदिर
1.ग्वालियर किले के पूर्व में स्थित दो मंदिर के समूह को सास-बहु मंदिर कहा जाता है। क्योंकि एक मंदिर छोटा और एक बड़ा है तो माना जाता है कि यही इसके नाम के पीछे कारण हैं। वैसे ऐसा सम्भव है कि इस मंदिर के नाम की उत्पत्ति सहस्त्र बाहू से हुई हो जो आगे चलकर सास बहु बन गया हो
2.मंदिर का निर्माण राजा रतनपाल द्वारा प्रारंभ किया गया जो राजा महिपाल के शाशनकाल 1093 ई में जाकर पूरा हुआ
3. दोनों ही मंदिर देखने लायक हैं क्योंकि इसमें कई खूबसूरत नक्काशी की गयी है। एक बार आने पर आप इधर काफी वक्त व्यतीत करना चाहेंगे
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNkT-kMfoulkpj8vcGLzZElzAuW43Pu54hfHkfnfHbzQTBR8ClPyIonFrOEGnSWYCxF_qWqQpOrVGDUCbIRVhwfoH8AdgwhixNlz4xEBD0QEqiXmX-tMX-ooSBCzjLh8IONK-FQp0bSUM/s640/IMG_2039.JPG) |
सास बहु मंदिर में से सास |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgxU0P6Jb7ntyDKjVmc4_IF7udTG4htp51W8OV9i5qwESp-sEb2JoGfVn_nwwKtX9DuvF3lPPU_i8U0CpYjPQOOUS1ufWJVxecSeEfhPYpRc6P1VfoNfO-Di87nE4_kQJu9Ug0KDNa0SZs/s640/IMG_2008.JPG) |
मंदिर की छत |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjJ2ovcZR1vNeKS3Wv2GaQTAy8NDYUWKXVNIUjksV42v7jA8DCCiLzxMg_KZV5PRX2ngeOi4C9jhgkWpsNHv4A5ZKHoUc9HqcPQPK_1CUEOo6OeRz9SC1KlmvRj9kwhsJ9ZU74pPu5dPc/s640/IMG_2012.JPG) |
मंदिर की दीवारों पर उकेरी गयी कलाकृतियाँ |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEin_GetfPdMv8VGCr9hvEKFW6FeUt6jA1h_h5uhNb6beou-fZQDUSA7IwDUHULJ0RrcLTvpRYtwMfn-45zqF4TcCN9raTVVzFMAeN92jfdhmZh5BlJ8RNEDakEyWGXPLcTTpgNRT3AEUho/s640/IMG_2013.JPG) |
मंदिर का अंदरूनी भाग |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_FB5mJICM_4TQyqldYeUzttOh8H3uZQBgjNh-Vd1XiysnLd4pdneJkfOUwEjW5Lpa1rrld7iIZsY9ISL1b-4R3ZzBJ3k8zSDORLbrSkQxlhKt6VSluxSCt2dOotnrAAIWkNI10qSHriA/s640/IMG_2018.JPG) |
मंदिर में मौजूद स्तम्भ |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhnLrkssI4d9dEbwKFjX_Z0rIJZrJ-lXigbbTbRhDDl9ObEGLsYD00iYQrcd6xPQfqg484UJhzKCOTz0an92irBaEmQ_7JUmxYpfVUpjktJD_es75JWbDUG1e4duXL2-9bpm-dAeF2iSvM/s640/IMG_2030.JPG) |
बहु मंदिर |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5phpJssMkVMi66MSKwFcT7JqpxJ2LcqQ2lJWOvOJCJcmIxiX_0GLRwV88NWKTc0hQHa1yaKsRL4tQHkb0muGYab6l9vBNbEJxG6M1HmVaxisFRC6H-KkIW4jVVIiIss-WF3y4HcnyZ3o/s400/IMG_1994.JPG) |
मंदिर के परिसर में मौजूद एक स्तम्भ…कभी उसके ऊपर कोई मूर्ती रही होगी जिसे आक्रमणकारियों ने तोड़ दिया |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjuqPVIKOEwX7pKt8OvadsM3bfeXsLnxBxe6WhmUbh1OpFqfiBDkitEbc4K_uSJKw-rwgwNm3cepnkRWy9QwC-HQucxOI6KihIKQQUHvDykc6ThIRYgwqhYSt4581IwHANO5CuvV9HmBo/s640/IMG_2049.JPG) |
मंदिर के अन्दर अध्यात्म को ढूँढते मनीष भाई |
सास बहु मंदिर देखने के बाद हम लोग तेली के मंदिर की तरफ बढे। इस मंदिर में संरक्षण का कार्य चल रहा था। थोड़ा समय इधर और इसके बगल के बाग़ में बिताने के बाद हम लोग वापसी के लिए बढ़ चले।
तेली का मंदिर
1.इस मंदिर का निर्माण प्रतिहार राजा मिहिरभोज के शासन काल में, तेल के व्यापारियों द्वारा दिए गये धन से हुआ था जिस कारण इसका नाम तेली का मन्दिर पड़ा
2. ३० मीटर की ऊँचाई वाला ये मंदिर ग्वालियर किले में मौजूद सभी स्मारकों में से सबसे ऊँचा है
3. मंदिर की सबसे प्रमुख बात इसकी गजपृष्ठाकार छत है जो कि द्रविड़ शैली में बनी है एवम उत्तर भारत में मुश्किल से ही देखने को मिलती है
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggFDL_XlEJvIsAJjVzJZGG4ddfONdUgyuLt92breWLhqU-txfvqo7fJ93xKni5gV4RWViNm9uJMqE-Osh2Hd3nYX3XlE3QZqeMEDgP2Y1H9oxbLEcwzvhLZ6UFR9hvJWzeo0LAgwnTNHM/s640/IMG_2058.JPG) |
तेली का मंदिर |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiII_IMj8FUvXKvn-I0-sHlFohOCCcEFg0PhqW6LHiIv5T9KPIYD9Hwj2SrmyKAzQcBme_5-KAazokdSdxlEukhapwGBSeiNQpYzB8PveoAqatw004gX-uye4XTWdI_uEnMXu5W6gLqDmM/s400/IMG_2061.JPG) |
मंदिर के बगल के बगीचे में बनी मूर्तियाँ |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjqTZO1ohbEVN6dTfmvocodyhIo9MzuXSXpadeawQE6yulk0acdO0hm9n5hKXoEjCmnSq0t-Iu979ulV-9CymbEGMCgH2YFj_XOmpi8lH4JNY2ZeHZ91s9oqWkMG16B-FLin5Ywd9BGBFA/s640/IMG_2064.JPG) |
एक और मूर्ती |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi231RL7TLM7SkU6LqmCbKgTttT-pjYIMx7iRezesJKvmKF25HzZ5QVjc8JR5of3tqX3KTJ9rxeZkYwj48pM54Y9Yhn0BN6O4PXn2fOudaJZKmQGAwyN7yHRE7wE3k8qvrLm7IscvS3pQE/s640/IMG_2068.JPG) |
बगीचे में बने कुछ स्तम्भाकार स्ट्रक्चर |
इसी किले में एक स्कूल है और एक गुरुद्वारा भी है। रास्ते में वो पड़े थे लेकिन उनमे न मेरी रूचि थी और न शायद मनीष भाई की रूचि थी। एक तालाब भी बीच में पड़ा था। साथ में कई घर भी थे जो सरकारी लोगों के लिए बने हुए थे। उन घरों को देखकर मैं सही सोच रहा था कि ये लोग इतने शांत वातावरण में रहते हैं कितने भाग्य शाली हैं ये। खैर, ऐसे ही टहलते टहलते हम लोग किले के प्रवेश द्वार के सम्मुख जो संग्रहालय था उधर पहुँच गये। उधर जाने का हमारा मन नहीं था तो हम उधर ही मौजूद काम्प्लेक्स में गये और पानी भरकर और फ्रेश होकर ही वापस आ गये। हाँ, संग्राहलय के बगल में एक और स्ट्रक्चर था जहाँ हमारा जाना रह गया था तो हम उधर भी चले गये। संग्राहलय में लिखे बोर्ड के अनुसार संग्रहालय के पूर्व में एक जेल भवन था। शायद यही वो था। बाहर काफी तेज धूप पड़ने लगी थी लेकिन इधर का वातावरण काफी ठंडा था। इसलिए हम इधर पहुंचे तो हमे थोड़ा आराम मिला। सोचने वाली बात थी कि जो जगह हमे अभी आराम दे रही थी, जब ये जेल रही होगी तो इसके विषय में सोचते ही लोगों के होश फाक्ता हो जाते रहे होंगे। खैर, हम अंदर दाखिल हुए और घूमने लगे। इसमें कुआँ भी था जिसका पानी हरा हो गया था। थोड़ी देर हम ये ही कहानी बनाते रहे कि इधर आखिर क्या होता होगा। इन कहानियों में हाथी, तांत्रिक और ऐसे ही अन्य फंतासी थीं। फिर जब कहानी बनाते बनाते ऊब गये तो बाहर निकल आये।
हम काफी थक चुके थे। ज्यादतर चीजें हमने देख ली थी। अब हमने नीचे उतरने का विचार बनाया और जैसे ऊपर आये थे वैसे उतरने लगे। बीच में थोड़ी बहुत मस्ती भी करी। मैं चतुर्भुज मंदिर भी गया जहाँ मुझे शून्य देखने को नहीं मिला। नीचे उतरते उतरते डेढ़ बज गये थे। गुजरी महल का संग्राहलय खुल चुका था लेकिन अब हमारा उसे देखने का मन नहीं था। हम जय विलास पैलेस जाने की सोची। उसके बाद हम वापस दिल्ली को निकल जाने वाले थे।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-Giqbk1hAGn545b33CRoJEG2DX6z2mUmFrYIc2Y5n_jEBeW_iEZwU14I_EhPS-cgGDRQBqwZ3AwZH7lHX9TmLDpmLZ3uUhDrRioLNd_B8RX5-I5M2KO-0L2xLbpzO3NGpBbVwNqgi-Nk/s640/IMG_2085.JPG) |
दीवार के दूसरी तरफ दिखता संग्रहालय |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfgBh9UTbGKV1rxxa8UowoG5PgeVN1qP9a4IxAVajnOPQBiQxsARaN9GdldLEWMA4ZgIvzedM3CzKnNW9AM8VM0xhSnj9hUXrhN2P1Rdev-6WD-X7FREtKOtahsRpA51vp4_IXH_7YEYA/s640/IMG_2087.JPG) |
ये इमारत संग्राहलय के बगल में मौजूद थी तो सोचा इधर भी हो लिया जाये |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjC6y07FohPeOsJfulyhSPqnjbHuvEn4ICBl8tThd6QOhv3l00j4LV2kbTJTXXcnTSH8UEd0EWdaVIz_cX1n7I-vc0K2U4mr5teCikbk349p8cfy8eYL1ISwk2V231g23JPbCEfs_WCon8/s640/IMG_2093.JPG) |
इसी इमारत में मौजूद था ये कुआँ। शायद ये कोई जेल वगेरह रही होगी |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg42m2-MbmomIVH22M1NgdGjSvErs86EfVjQSswqvAyi4mLLJepTEI1ddlxgcrWszJOHNi94uww3IuM4ixc56LEKKJiMpb3utmo7ntYa5L0KFVOHiN62-sEZeiQuhxorYX7h8Zi3eyqCiM/s640/IMG_2100.JPG) |
उतरते वक्त ये बेड़ियाँ दिखी तो सोचा थोड़ा मस्ती ही कर लें… भ्ल्लाल देव बनता मैं |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1mFMBkyxSfeQqfgRR9qtogaCEibwNMWZzu5ZxywPNe3gcJPJb0ySpRnmFBhXHFbMe1iyjOonpcciUTESMBKgsJ5v0_F4LZwkbz_lZhBkSAbHx04bOXxL9A-sT7HfCqO7Fuaew_B1KXGo/s640/IMG_2101.JPG) |
बाहुबली बनते मनीष भाई |
हमने किले गेट से विजय पैलेस के लिए एक साझा ऑटो लिया। भले ही सुबह हम लोग पैदल आये थे लेकिन अब पैदल जाने की हिम्मत नहीं बची थी। मेरे कैमरे की बैटरी भी खत्म हो चुकी थी। हम जय विलास पैलेस पहुंचे तो उधर जाकर पता चला कि उधर भी एक संग्राहलय ही है। हम इतनी ज्यादा पुरानी इमारतें और ऐतिसाहिक चीजें देख चुके थे कि अब एक और संग्राहलय देखने की हिम्मत नहीं हुई। फिर हमे आज ही दिल्ली के लिए वापस निकलना था। तो हमने संग्राहलय देखने की योजना कैंसिल की और पैलेस से बाहर निकले। फिर किसी और दिन देख लेंगे।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjaugiNw72_wWsiogdM6cCUYTsdoIcYJk6SS9yphkWM5xTephLRjAB4o3c2Yiw6lHG5fwEVb-j6mUXKrI7mnCFKnd-KN6jzPELp5d535iTGbY9XtWcTIXc_z-VGksAOxwYtJsqsOWAlHuE/s640/IMG_20171104_140117941.jpg) |
जय विलास पैलेस के तरफ जाते हुए |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQ0mWwAgIp_AD35ShdhlImA8lVUVbyjWQaHxrVsKwTLypW9wHcnBbsqDfkCbGHSq6mq98xPtUVdrsQe9ck9lQQ7B4mxd40PQhXyoT_u3mpcfQ17zzhFh07OoUYB5mx-2dzTyddMXxJ6eQ/s640/IMG_20171104_140552326.jpg) |
जय विलास पैलेस |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjg7Aj9lG6r9ugs9OwZ6-TTX3g98eo_N-GIdK9yYLTdMFSvLk3RAEJkA3JK3hBModySvdZlzDvngfOT5ID1TQ0bMTHqp2J156-4TxxA2UDA43cNhtJw37T2Czj6kRvPsXCIxkuAbhUYGok/s640/IMG_20171104_140644755.jpg) |
रोल्स रोयस कोच जो बाहर रखे हुए थे |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfWeQ7LgomDl4WC6JGgEKcUZYhAR4FWhF5-dsSIP26gJCASEIKNJZ6pd43xUo_rMq93NUZckMcxRxK6FPWAhn8P-ehNhxoXI8ghHEn9zJ8Si0OR1R90_ht1hFp_cyHQItqD2524Mhw70o/s640/IMG_20171104_140721181.jpg) |
रोल्स रोयस कोच |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikEFovmwAAJzPkHoos4i_cglt9IluKQYNIzlDqbxbUpAnbHGXBmJ2VSFh_cHaalGnMjqgVSmO1rqVuvMB5EBhlGa8hGHWz_u5TxjpraAK2E5r0Whsa7gtd_CV1tR29MDrauVMy2A5Byr0/s400/IMG_20171104_140744149.jpg) |
पैलेस के सामने सेल्फी |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjc6t-0cPquzyMIhvEllXMaU3-exQIEnigZhr16bImeAJoWzGLFefLbffK58ivmz4F9bAcFvdn07ryk_x5kxADjOBX63rZO2gpHQ4iFoQttf0JXEoneJ51ShAaylqKX9jK8o7e-IKT_Wls/s640/IMG_20171104_142245841.jpg) |
पैलेस से बाहर निकलकर चौराहे पर आये तो ये मूर्ती दिखी। आकर्षक लगी तो खींच ली। |
बाहर निकलने पर हमने एक व्यक्ति से बस स्टेशन की तरफ जाने वाले ऑटो के विषय में पूछा। उन्होंने उचित निर्देश दिए और हम उसी दिशा में आगे बढ़ने लगे। हमे दोबारा भूख लगी थी तो बस स्टेशन जाने से पहले हमने थोड़ा खाने की सोची और एक जगह पर भोजन किया।
भोजन निपटाने के बाद हमने ऑटो पकड़ा और स्टेशन की तरफ बढ़ गये। अब स्टेशन पहुंचे तो दिल्ली जाने वाली कोई गाडी नहीं बची थी। हम एक आगरा वाली गाड़ी में बैठे। कुछ देर बैठने के बाद पता चला कि वो नहीं जाएगी और हमे दूसरी में शिफ्ट किया गया। फिर दूसरी में पहुँचकर हमने अपनी सीट ली। बस में इस कारण काफी चिल्लम चिल्ली हुई। लेकिन आखिर कार हम आगरा के लिए निकल गये। आगरा तक का सफ़र जितना सोचा था उससे धीमा था। लेकिन शुक्र ये था कि बस ने ऐसी जगह उतार दिया जहाँ से रोडवेज़ की बस हमे मिल गयी और हम दिल्ली की बस में सवार हो गये। इतने सफ़र में हम दोनों ही काफी थक गये थे और इसीलिए सोते सोते कब दिल्ली आया इसका पता ही नहीं लगा। झपकियों के बीच जगहें गुजरती रही और हमने अपने आप को आखिर सराई काले खां बस स्टैंड के सामने पाया। वक्त एक या दो बजे रहेंगे। अब मेट्रो का विकल्प तो था नहीं इसलिए मनीष भाई से डिस्कस करके हमने एक गाड़ी बुक करी जिसने कि मुझे इफ्को चौक छोड़ा। और इस तरह शुक्रवार छः साढ़े छः बजे शुरू हुआ सफ़र रविवार सुबह साढ़े चार पांच बजे करीब खत्म हुआ। इस वक्त मैं अपने पी जी में था और बुरी तरह थका हुआ था।
हमने काफी भाग दौड़ की थी लेकिन मेरे पास अभी उसके लिए सोचने का वक्त नहीं था। मैंने सामान उतारा। और हाथ मुंह धोकर अपने बेड पर सो गया। नहाने का विचार उठने के बाद ही था। बेड में पड़ते ही कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला।
समाप्त !!
(वैसे अगर मैं किसी को सलाह दूंगा तो ग्वालियर किले को देखने के लिए कम से कम दो दिन अपने पास रखें। उधर देखने के लिए काफी कुछ है(इसका अंदाजा तो आप इस पोस्ट की लम्बाई को देखकर ही लगा चुके होंगे। )। एक दिन में आप पूरे किले तो ढंग से नहीं देख पाएंगे। मेरी तो ये ग्वालियर की पहली ट्रिप थी। अभी ऐसी और ट्रिप मारूंगा। क्योंकि मैं भी इधर ही हूँ और ग्वालियर ने तो जाना कहाँ है। )
इस यात्रा की सारी कड़ियाँ
बहुत बढ़िया जानकारी के साथ बढ़िया पोस्ट…
शुक्रिया, प्रतीक भाई…
शानदार है आज फिर से पढ़ा। मजेदार है यात्रा वृतांत मनोरंजक होते हैं
शानदार वर्णन
जी आभार।
वृत्तांत आपको पसंद आया ये जानकर अच्छा लगा। आभार।