काश!!

काश | कविता | विकास नैनवाल 'अंजान'

‘काश’,
ये शब्द नहीं लाश है,
उन इच्छाओं की,
उस प्रेम की,
उस टूटे रिश्ते की,

जो
डर, झिझक और अहम के चलते,
न हो सके पूरे,
न बन सके दोबारा,

ऐसी लाशें,
जिन्हें ढोना होता है ताउम्र,
किसी बेताल की तरह अपने काँधे पर,
तब तक जब तक हम विचरते हैं इस दुनिया में,
किसी प्रेत की तरह

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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