‘काश’,
ये शब्द नहीं लाश है,
उन इच्छाओं की,
उस प्रेम की,
उस टूटे रिश्ते की,
जो
डर, झिझक और अहम के चलते,
न हो सके पूरे,
न बन सके दोबारा,
ऐसी लाशें,
जिन्हें ढोना होता है ताउम्र,
किसी बेताल की तरह अपने काँधे पर,
तब तक जब तक हम विचरते हैं इस दुनिया में,
किसी प्रेत की तरह
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
सुन्दर…, हृदयस्पर्शी ।
जी,शुक्रिया।
दिल को छूने वाली खुबसूरत पंक्तियाँ
जी हार्दिक आभार।
बहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे… बेहतरीन
हार्दिक आभार, संजय जी।