काश
ये ज़िन्दगी होती कोडिंग सी,
होते कुछ लॉजिक
न होती ये इतनी इलोजिकल
होते कुछ फंक्शन
झट से लोड करते हम लाइब्रेरी
और बुला लेते उन्हें
फट से करवा लेते काम जो भी चाहते उनसे
काश
ये ज़िन्दगी होती कोडिंग सी
होती यह एक टेक्स्ट एडिटर
जिसमें दिखते लोग
जैसे वेरिएबल, कांस्टेंट
तो फट से पहचान लेते रंगों से उन्हें
कौन है जो रहेगा एक सा
और कौन है जो बदल जायेगा वक्त आने पर
काश
ये ज़िन्दगी होती कोडिंग सी
प्यार होता बाइनरी
या वन होता, या होता शून्य
न होती कुछ उधेड़बुन
न टूटते इतने दिल क्योंकि
वो चुन न पाए किन्ही दो में से एक को
हो गए वो कंफ्यूज
था प्यार के अलग अलग स्तर
न था वो पूरी तरह लाल और
न ही था पूरी तरह काला।
काश
ये ज़िन्दगी होती कोडिंग सी
तो न होते इतने मसले
बस होते कुछ कम्पाइलर
जो बता देता कौन सा फैसला
है सही और कौन सा है गलत
कौन करेगा परेशानी
और पहुँचायेगा आगे दुख
बस होती कुछ बग रिपोर्ट्स
पता चलता किधर करना है सुधार
फिर चलता सब खूब
पर
नहीं है ये ज़िन्दगी कोडिंग
शायद होती तो
होती बहुत आसान लेकिन
थोड़ी बोरिंग सी भी
ये अनिश्चितताएँ ही बनाती है
इसे इतनी रंगीन
इतनी खूबसूरत
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
बहुत सुन्दर, दिल से निकले इन तरानों के लिये हार्दिक आभार…
जी शुक्रिया संजय जी।