ज़िन्दगी और कोडिंग

ज़िंदगी और कोडिंग | कविता | विकास नैनवाल 'अंजान'

काश
ये ज़िन्दगी होती कोडिंग सी,
होते कुछ लॉजिक
न होती ये इतनी इलोजिकल
होते कुछ फंक्शन
झट से लोड करते हम लाइब्रेरी 
और बुला लेते उन्हें
फट से करवा लेते काम जो भी चाहते उनसे

काश 
ये ज़िन्दगी होती कोडिंग सी
होती यह एक टेक्स्ट एडिटर
जिसमें दिखते लोग
जैसे वेरिएबल, कांस्टेंट
तो फट से पहचान लेते रंगों से उन्हें
कौन है जो रहेगा एक सा
और कौन है जो बदल जायेगा वक्त आने पर

काश 
ये ज़िन्दगी होती कोडिंग सी
प्यार होता बाइनरी
या वन होता, या होता शून्य
न होती कुछ उधेड़बुन
न टूटते इतने दिल क्योंकि
वो चुन न पाए किन्ही दो में से एक को
हो गए वो कंफ्यूज
था प्यार के अलग अलग स्तर
न था वो पूरी तरह लाल और
न ही था पूरी तरह काला।

काश
ये ज़िन्दगी होती कोडिंग सी
तो न होते इतने मसले
बस होते कुछ कम्पाइलर
जो बता देता कौन सा फैसला
है सही और कौन सा है गलत
कौन करेगा परेशानी 
और पहुँचायेगा आगे दुख
बस होती कुछ बग रिपोर्ट्स
पता चलता किधर करना है सुधार
फिर चलता सब खूब

पर 
नहीं है ये ज़िन्दगी कोडिंग
शायद होती तो
होती बहुत आसान लेकिन
थोड़ी बोरिंग सी भी
ये अनिश्चितताएँ ही बनाती है 
इसे इतनी रंगीन
इतनी खूबसूरत  

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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