भूमिका
1)
वक्त : रात के एक बजे
जगह : एन सी आर में मौजूद एक आधे अधूरी इमारत का एक फ्लोर
‘चटाक’ – थप्पड़ की गूँज ने उस वीरान इमारत की स्तब्धता को भंग कर दिया था।
थप्पड़ इतना जोर से पड़ा था कि रीमा को अपने दाँत हिलते हुए महसूस हुये। उसका निचला होंठ फट गया था और रक्त बह निकला था। रीमा ने दाँत पीसते हुए अपने हमलावर को देखा। रीमा इस समय घुटनों के बल जमीन पर बिठाई गई थी। उसके हाथ रस्सी से बंधे हुए थे। उसके दोनों और दो मुस्टंडे बंदूक लेकर खड़े थे। दो और लोग उस कमरे के दरवाजे के बाहर पहरा दे रहे थे और दो बंदे नीचे बिल्डिंग के बाहर पहरा दे रहे थे।
यह एक खाली ईमारत थी जो प्रॉपर्टी बूम के वक्त बिल्डर ने बना तो दी थी लेकिन अब खाली पड़ी भूतों का अड्डा बन चुकी थी। बिल्डर को लगा था कि उसे इससे मुनाफा होगा लेकिन खरीदार न मिलने से उसे इतना नुकसान हो गया था। आजकल वह जेल की हवा खा रहा था और ईमारत नशेड़ियों और असामजिक गतिविधियों का अड्डा बनी हुई थी।
थप्पड़ मारने के बाद उस व्यक्ति ने रीमा को देखा और उसके चेहरे पर एक हँसी प्रकट हुई। उसके होंठ तो हँस रहे थे लेकिन उसकी आँखें इतनी भावहीन थी कि रीमा को एक पल के लिए अपने बदन में सिहरन सी महसूस हुई।
‘तो तुम हो आईएससी की नम्बर वन एजेंट।’ वह बोला। और बोलने के साथ ही उसने एक लात रीमा की छाती पर जड़ दी। रीमा को अपनी साँस रूकती सी महसूस हुई। अगर पीछे खड़े मुस्टंडे उसे न थामते तो वह पलट ही जाती।
रीमा ने किसी तरह अपनी उखड़ती साँस पर काबू पाया और फिर जबड़े भींचे उसे देखने लगी। रीमा की आँखें अंगारे बरसा रही थी। लेकिन वह व्यक्ति अपनी ताकत में मद में यह सब देख ही नहीं रहा था।
“तू मेरे से टकराने चली थी, रीमा भारती। मच्छर है तू मेरे सामने मच्छर। और इस अपराध की दुनिया में मैं एक विशालकाय हाथी हूँ। मैं जब चलता हूँ तो तेरे जैसे मच्छरों को रोंदते हुए निकल जाता हूँ। अभी भी कह रहा हूँ। जो मैं चाहता हूँ तू मुझे बता दे। तुझे जान की भीख दे दूँगा। नहीं बतायेगी तो मेरे ये आदमी तेरा वो हाल करेंगे कि तू मुझसे मौत की भीख माँगेगी।” कहते हुए उसने रीमा के माथे पर अपनी पिस्टल लगा दी।
कहते हैं मौत से पहले इनसान की ज़िन्दगी उसकी आँखों के समक्ष एक फिल्म की भाँती चलने लगती है।
रीमा के दिमाग में बस चार दिन पहले की घटना आई। चार दिन पहले वह काम्या नाम की लड़की से दिल्ली के फीनिक्स मॉल में मिली थी। और उसके बाद चीजें इतनी तेजी से घटित हुई की आज वह इस आदमी के सामने इस हालत में थी। उसके माथे पर बंदूक की नाल लगी हुई थी और कुछ ही देर में उसकी इहलीला समाप्त होने वाली थी।
तो इस तरह होगा मेरा अंत। रीमा के मन में यह ख्याल आया तो उसके होंठों पर एक बरबस एक मुस्कान सी आ गई। उसके जहन में चार दिनों की घटना किसी एच डी क्वालिटी की फिल्म की तरह चलने लगी।
क्रमशः
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #1
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #2
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #3
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #4
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #5
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #6
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #7
- मच्छर मारेगा हाथी को -अ रीमा भारती फैन फिक्शन #8
- मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #9
नमस्कार भाई,
रीमा भारती पर आप उपन्यास लिख रहे हैं, जानकर अच्छा लगा।
उम्मीद है आपकी कलम से एक बेहतरीन थ्रिलर निकलेगा।
आगामी किश्त का इंतजार है।
धन्यवाद।
Keep it up…
रीमा का नाम सुना है…आप लोगो की चैट में…इस को पढा नही है…इस फिक्शन से इनसे मुलाकात हो जाएगी..
☺️
ये तो पढ़ा हुआ है भाई, पहले भी कहीं पोस्ट किए थे आप। बढ़िया शुरुआत, थोड़े बड़े पार्ट्स पोस्ट कीजिये।
जी, इसी को आगे बढ़ा रहा हूँ। ये किया ही इसलिए है कि आगे बढ़ाया जा सके। वरना ये भी अधूरा ही रह जाता। श्रृंखला लेखन में पार्ट्स को ऐसे लिखना होता है के आगे के लिए उत्सुकता बनी रहे। ऐसे में सीरीज में कुछ ब्रेक पॉइंट्स निर्धारित किये हैं जिसके अनुसार चैप्टर को विभाजित किया है। मेरी कोशिश है कि 1000-1500 शब्दों का एक चैप्टर हो। इसे पाठक पांच मिनट में पढ़ लेगा और ज्यादा वक्त भी उसका जाया नहीं होगा। इस पार्ट में चूँकि भूमिका थी तो पहले पार्ट को ही शामिल किया क्योंकि दूसरा पार्ट बढ़ा है और वो 1500 के हिसाब में फिट नहीं बैठता। मुझे बीच में काटना पड़ता जो और खटकता।
जी शुक्रिया। कोशिश रहेगी कि एक अच्छी कहानी प्रस्तुत कर सकूँ।
जी यह उपन्यास नहीं है एक फैन फिक्शन लघु उपन्यास ही होगा। इसे दस से पन्दरह हज़ार शब्दों में निपटाने की कोशिश रहेगी मेरी।
आरम्भ बहुत अच्छा है …., हर सोमवार को प्रतीक्षा रहेगी आपकी रीमा भारती की ।
बढ़िया, अगले पार्ट का इन्तज़ार रहेगा।
होली के पावन अवसर पर आपको अशेष व अनन्त शुभकामनाएं 🙏🙏
जी, आभार।
आपको भी होली की हार्दिक बधाई, मैम।
मैंने रीना भारती को नहीं पढ़ा. पर आपका लिखा पसंद आया.
हार्दिक आभार। इसकी आठ कड़ियाँ अभी तक लिख चुका हूँ। व्यक्तिगत कारणों से बाकि की कड़ियाँ लिख नहीं पाया। जल्द ही दोबारा से शुरुआत करूँगा। उम्मीद है इस रचना की अन्य कड़ियों पर भी आपकी राय मिलेगी।
कर्वी गढ़वाली छंन शैत
Vaah Vaah Bahut badiya.
आभार…..