इन फिजाओं में ये क्या पड़ा हुआ है,

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इन फिजाओं में ये क्या पड़ा हुआ है,
क्यों नकाब हर चेहरे पर चढ़ा हुआ है,

दफन करने पड़ते हैं सवाल भी हमें,
ज़बाँ पर अब ताला मैंने भी जड़ा हुआ है

ये मौका वो नहीं,ये मजलिस भी वो नहीं,
देख सीना ताने हर एक खड़ा हुआ है,

लड़ने मरने को हैं तैयार अपनो से ही वो,
सच है के ये जमाना ही सड़ा हुआ है,

न वो मेरी सुने, न मैं ही सुनता हूँ उनकी,
अपने ही सोचों में हर कोई अड़ा हुआ है

फकत,बात इतनी के मोहब्बत का प्यासा हूँ,
देख न साकी,  प्याला मेरा खाली पड़ा हुआ है

गफलत थी तुझे, के तू अपनों में है अंजान,
अनजानों के बीच, तू आज भी तन्हा खड़ा हुआ है

– अंजान
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© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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