मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #7

मच्छर मारेगा हाथी को - अ रीमा भारती फैन फिक्शन

पिछली कड़ी में आपने पढ़ा:
सुनीता से मिलने एक व्यक्ति आता है। उस मुलाक़ात के बाद सुनीता को इस बात का विश्वास हो जाता है कि वह अब नहीं बच सकेगी। 


वहीं रीमा को काम्या ऐसी जानकारी देती है जिससे रीमा को इस मामले में आगे बढ़ने में मदद मिलती है।


अब आगे….

7)

रीमा ने बाइक कुछ दूर ही बढ़ाई थी कि उसे एक कॉल आया। उसने बाइक को साइड में लगाया और फिर कॉल उठाया:”बोलिए यादव जी? क्या प्रोग्रेस हुई है।” रीमा ने बिना वक्त गँवाए पूछा।

फोन इंस्पेक्टर यादव का था।


“मैडम। हमने आस पास के सी सी टीवी फुटेज देखे थे। कुछ ही गाड़ियाँ ऐसी निकली जिसमें की काले शीशे चढ़े थे। हमे लगा कि अपहरणकर्ताओं ने ऐसी ही गाड़ी को इस्तेमाल किया होगा। इसी सोच के तहत हमने उन गाड़ियों के विषय में जानकारी जुटानी शुरू करी तो हमे पता चला कि उनमें से एक गाड़ी एक दो दिन पहले ही चोरी हुई थी। उसी गाड़ी में शायद सुनीता को उठाया गया था।”, यादव बिना रुके कहता चला गया था।

“गाड़ी किधर मिली?” रीमा ने प्रश्न किया।

“मैडम, सुनीता के घर से पाँच दस किलोमीटर दूर। उन्होंने शायद उधर गाड़ी बदली थी।” यादव ने जवाब दिया।

“उधर सी सी टीवी कैमरा तो नहीं होंगे?” रीमा ने शंका जाहिर की।

“नहीं मैडम। उधर एक पब्लिक पार्क है तो कैमरे का सवाल ही नहीं था।”यादव की आवाज़ में हताशा झलक रही थी।

“कोई बात नहीं,यादव जी। होता है। खाली पुलिस वालों के पास ही दिमाग नहीं होता। अक्सर अपराधी ज्यादा शातिर होते हैं।” रीमा ने यादव को ढाढस बंधाते हुए कहा।

“आपके एंड पर क्या रहा?” यादव ने झिझकते हुए प्रश्न किया।

“कुछ तो मालूम चला है। लेकिन अभी कुछ पुख्ता नहीं है।” रीमा ने बात को टरकाते हुए कहा। अभी भी रीमा को लग रहा था कि जो बन्दा सुनीता के अपहरण के पीछे था उसकी पुलिस के साथ सांठ गाँठ हो सकती थी इसलिए वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी।

“हाँ एक बात है।”रीमा ने कुछ सोचकर बोला।

“जी कहिये?” यादव ने कहा।

“जब मैं काम्या से मिलने जा रही थी तब कुछ लोग मेरे पीछे पड़े थे। वो दो तीन गाड़ियों में थे। वैसे तो मुझे उम्मीद है उनकी नम्बर प्लेट नकली होंगी लेकिन फिर भी ढूँढने में क्या जाता है। एक गाड़ी वाले को मैंने रोका भी था। उधर काफी शोर शराबा भी मचाया था। हो सकता है लोकल थाने वाले भी इन्वोल्व हुए हो। मैं आपको गाड़ियों का नंबर मेसेज कर दूँगी। आप उन्हें अपने एंड से चेक कीजिये कि वह सही हैं या नहीं। आप _ के थाने से को-ऑरडिनेट करिए और पता करिए वो इन्वोल्व हुए थे या नहीं।” रीमा ने कहा।

“जी मैडम।” यादव ने कहा।

“जो चार लड़के गाड़ी में बैठे थे वो कुछ इस तरह दिखते थे।” और फिर रीमा उन चारों का हुलिया इंस्पेक्टर यादव को बताती चली गई।

“ठीक है मैडम।” यादव ने सब नोट करके हामी भरी।

“हाँ, मैं सब कुछ आपको नहीं बता रही हूँ इसके पीछे एक कारण यह भी है कि उन्हें मेरे बारे में सब कुछ पता था। मैं इस केस में इन्वोल्व हुई हूँ यह बात या तो केवल पुलिस जानती थी या सुनीता। इसलिए मेरा शक पुख्ता होता जा रहा है कि आपकी टीम में से किसी ने बात लीक की है। आप समझ रहे हैं न?” रीमा ने प्रश्न किया।

“जी” यादव झिझकता हुआ सा बोला।

“पेट्रोल पम्प में सी सी टीवी  कैमरा भी होगा। उसे भी चेक कर लीजियेगा। शायद उन लोगों की आइडेंटिटी के विषय में कुछ पता चले।” रीमा ने कहा।

“ठीक है,मैडम।” यादव ने हामी भरी।

“कुछ जरूरी होता है तो बताती हूँ।” रीमा ने कहकर बातचीत का अंत का सिग्नल दिया।

“ठीक है, मैडम।” यादव ने कहा और फिर सम्बन्ध विच्छेद हो गया।

***

इंस्पेक्टर यादव से बात करके मैंने उन्हें गाड़ियों के नम्बर व्हाट्सएप्प किये। तभी मैंने देखा कि रीना का मेसेज मेरे लिए आया था। वो और काम्या ठीक ठाक रीना  पहुँच गये थे।  मेरी एक चिंता दूर हो गई थी। बेचारी सुनीता ने न जाने किस मुसीबत में अपने को फँसा दिया था। मैंने रीना के मेसेज का जवाब दिया और फिर फोन को स्टैंड पर चढ़ाकर उस काम्प्लेक्स का एड्रेस डाला जहाँ से यह मामला शुरू हुआ था। अब उधर ही जाकर कुछ पता लगना था।

मैं अभी थोड़ी ही दूर बढ़ी थी कि मैंने एक गाड़ी को अपने पीछे आते देखा।

“हद है” मैं बुदबुदाई।”आखिर इन्हें पता कैसे चल रहा है कि मैं कहाँ हूँ।”

मैं सोच में पड़ गई। क्या ये लोग मेरा मोबाइल फोन ट्रेस कर रहे थे? मैंने सोचा। वैसे था तो ये गैरकानूनी लेकिन अगर पैसे हो तो किसी को भी फोड़ा जा सकता था। फिर खाली लोकेशन ही तो निकलवानी थी। खैर, अब मुझे इस चूहे बिल्ली के खेल से उकताहट हो चुकी थी। अब मैं घात लगाकर वार करना चाहती थी। इन्हें भी तो पता चले जब शेरनी घात लगाती है तो भेड़ियों की क्या गत बनती है। मैंने चलती बाइक में हैंडल पर लगे फोन पर जी पी एस बंद किया और अब एक ऐसी जगह की तलाश करने लगी जहाँ आसानी से मैं इनका भुरता बना सकती थी।

आधा एक घंटे तक इधर उधर के चक्कर लगाने के बाद मुझे एक सुनसान जगह मिली। इधर कुछ इमारत बन रही थी लेकिन अब काम अधूरा था। इमारत देख कर लग रहा था कि कोई न कोई कानूनी मसला रहा होगा जिसके कारण यह अधूरी इमारत ऐसे ही रुकी हुई थी। इमारत के चारो ओर एक पाँच छः फीट ऊंची दीवार थी जो उसे बाकी चीजों से अलग करती थी। यहाँ रास्ता भी सुनसान था। ज्यादा ट्रैफिक इधर नहीं था। यह जगह मेरे लिए उपयुक्त थी।

वो लोग अभी भी मेरे पीछे थे। इस सुनसान जगह पर मैं उन लोगों को आसानी से अपनी गिरफ्त में ले सकती थी। यह सोचकर मैंने बाइक इमारत  की तरफ बढ़ाई। साथ साथ मेरी नज़र उस गाड़ी पर भी थी। बैक मिरर से ही मैंने देखा कि उस गाड़ी  की एक विंडो नीचे हुई और मैं मुस्कराई। जो बात मेरे दिमाग में आई थी वही  बात उनके दिमाग में भी आई थी। वो लोग इस बार केवल नज़र रखने के इरादे से मेरे पीछे नहीं पड़े थे। इस बार वो खेलना चाहते थे।

“हम्म। चलो खेलते हैं।” मैं बुदबुदाई और मेरी बाइक अब बिल्डिंग की तरफ आड़े तिरछे तरीके से चलने लगी।

तभी पीछे से गोली चली। लेकिन तब तक मैंने अपनी बाइक को गोली की गुजरने की दिशा से अलग घुमा दिया था। बाइक चलाते हुए मैं उनका मुकाबला नहीं कर सकती थी। मैंने बाइक को आड़ा तिरछा घुमाना चालू रखा। एक गोली और चली और मैंने फिर बाइक बचा ली। जितनी देर मैं बाइक पर रहती उतनी देर उनके लिया निशाना बनी रहती। इसके बाद एक के बाद एक दो तीन गोलियाँ चली। और मैंने बाइक को छोड़ एक तरफ को छलांग लगा दी। बाइक सीधा आगे गई और कुछ दूर जाकर गिर गई।

मैं भी कई पल्टियाँ खाती हुई लुढ़क गयी थी। दूर से देखने पर लगता कि मैं गोली लगने के कारण गिरी हूँ। मैं भी यही दर्शाना चाहती थी।

गोलियाँ चलनी बंद हो गयी थी। मैंने बाइकिंग के गिर पहने थे तो मुझे चोट उतनी नहीं आई थी। कूदने से पहले मैंने टंकी में लगा अपना बैग भी ले लिया था। अब मैं पेट के बल गिरी हुई थी।

मैंने अपनी जगह से इस तरह मुँह उठाया जिससे गाडी में बैठे उन लोगों को यह न लगे की मैं ठीक थी। वो लोग अब निश्चिन्त नज़र आ रहे थे। उन्होंने गाडी रोक रखी थी। बंदूक को उन्होंने खिड़की के खींच लिया था। थोड़ी देर वो ऐसे ही रुके रहे। जब मैंने कोई हरकत नहीं करी तो उन्होंने गाड़ी शुरू की। वो खिड़की भी ऊपर कर रहे थे। मुझे लग रहा था वो मुझे मरा जानकार आगे बढ़ना चाहते थे।मैं उनका निकलना बर्दाश्त नहीं कर  सकती थी। अब इनमें से ही कोई मुझे अपने मालिक तक पहुँचाने वाला था।

मैंने अपनी बाइकिंग जैकेट के अंदर से अपनी पिस्टल निकाली और लगातार दो गोली फायर की। एक गोली मैंने गाड़ी के टायर पर मारी। और दूसरी गोली मैंने गाड़ी की खिड़की पर मारी। एक के बाद एक दो काम हुए। गाड़ी के टायर फटने की आवाज़ हुई और किसी की चिल्लाने की आवाज़ भी सुनाई दी।

निशाना अचूक था। गोली ने अपना असर दिखा दिया था। मैं मुस्कराई। मेरी बंदूक पर साइलेंसर लगा हुआ था तो गोली की जैसी आवाज़ उन लोगों की चालाई बंदूक से आई थी वैसी मेरी बंदूक से नहीं आई।

उनकी गाडी बेकार हो चुकी थी। मैंने फिर एक के बाद एक दो फायर किये। और फिर मैं अपनी जगह से लौटकर एक तरफ को बढ़ी और फि झटके से उठकर  उस अधूरी बनी इमारत की तरफ भागी। वो कहीं नहीं जाने वाले थे इसका तो मैंने बंदोबस्त कर दिया था। उनके एक साथी को खत्म करके मैंने इस बात को भी सुनिश्चित कर लिया था कि वो मेरे पीछे आने वाले थे।

इमारत तक पहुँच कर मैंने अपनी धौंकनी सी चलती साँस को काबू में किया। इस बीच एक दो गोली उन्होंने मेरी तरफ चलाई लेकिन  मैंने उन्हें गच्चा दे दिया। मैंने आस पास देखा। मुझे कुछ ड्रम दिखाई दिये। इसके अलावा कुछ और उधर नहीं था। मैंने अपना काम निपटाया और फिरमैं उनके आने का इंतजार करने लगी।

काफी देर तक जब वो नहीं आये तो मैंने गेट के बार सिर निकाल कर देखा। गाड़ी के दरवाजे खुले हुए थे। अंदर एक आदमी ही दिख रहा था।  शायद यह वही था जो मेरी गोली का शिकार हुआ था। उसके अलावा गाड़ी में कि नहीं था। बाकी के तीन किधर गए? मैं यह सोच ही रही थी कि तभी मेरे पीछे से एक गोली चली जो मेरे सिर के ऊपर से गुजर कर सामने की दिवार पर टकराई।

मैं कूद कर गेट से बाहर आई। बाहर कोई नहीं था। वो लोग पीछे की दीवार से ही आये थे।

“तुम  लोग खुद को मेरे हवाले कर दो? अभी हथियार डाल दोगे तो बच जाओगे। वरना कुत्ते की मौत मिलेगी तुम्हे।” मैं चिल्लाई।

कोई कुछ नहीं बोला। मुझे देखना था वो क्या कर रहे हैं। मैं दीवार से सट कर रेंगती हुई पीछे की तरफ बढ़ने लगी।

चारो तरफ शांति थी। कहीं कोई आवाज़ नहीं हो रही थी। कौन किधर था यह मुझे समझ नहीं आ रहा था।

क्या किया जाए?

कैसे इन्हे बाहर निकालूँ। मैं यही सोचते हुए आगे बढ़ते जा रही थी कि एक व्यक्ति भागते हुए गेट से बाहर निकला और जोर से चिल्लाया – “रुक जाओ रीमा!!”

मैंने उस अपर गन तानी तो बाउंड्री की दीवार के ऊपर से एक व्यक्ति गुर्राया -”बंदूक फेंक दो रीमा। वरना जान से जाओगी।”

मैंने ऊपर देखा। वह आदमी मेरी तरफ देखकर मुस्करा रहा था। दो लोग इधर थे लेकिन एक अभी भी गायब था। दोनों की बंदूक मेरे तरफ तनी थी। एक को मारती तो दूसरा मुझे शूट कर देता।

मैंने दीवार से सटकर गलती थी। मैंने सोचा था कि मैं पीछे  की तरफ जाकर इन पर काबू पा लूँगी लेकिन वार उलटा पड़ा था।  मैंने ऊपर देखा और फिर आगे और फिर मेरी नज़र मेरी बायीं तरफ पड़ गयी। उधर से कुछ दूर पर दिवार मुड़ रही थी। उधर से एक और व्यक्ति आ रहा था।

वो आराम से चलता हुआ आया और मुस्कराकर बोला- “जो कह रहे हैं मान लो रीमा।”

अब मैं घिर चुकी थी। मौत ने तीन तरफ से घेर लिया था। एक तरफ इमारत के अन्दर जाने के लिए गेट  था लेकिन मैं गोली से तेज नहीं भाग सकती थी।

“ओके।” मैंने अपने हाथ ऊपर करते हुए कहा।

मैं बंदूक उस तीसरे वाले आदमी की तरफ फेंकने वाली थी कि वह बोला- “अरे अरे!! क्या कर रही हो। कोई चलाकी नहीं चलेगी। बंदूक अपने सामने नीचे रखो।”यह व्यक्ति मुझे चालाक लग रहा था। इसने काली रंग की शर्ट और नीली रंग की जीन्स पहनी हुई थी। यही उनका लीडर भी लग रहा था।
मैंने जो उसने कहा वही किया। अभी यही करने में भलाई थी।
इतनी देर में दीवार पर चढ़ा व्यक्ति नीचे कूद गया था। इसने नीली जीन्स और सफेद शर्ट पहनी हुई  थी। वहीं दूसरी ओर तीसरा आदमी भी मेरे तरफ आ गया था।इसने लाल टी शर्ट और नीली जीन्स पहनी हुई थी। अब तीनों ने मुझे कवर किया हुआ था।
“क्या करें? उड़ा दे इसे?” तीसरे ने कहा।
“नहीं। एक दो चीजें पूछनी हैं।
“पर इसने चाटू को…”
“चाटू की मौत का हिसाब भी लेंगे इससे….” उसने कहा,”पहले पता तो चले पूरे दिन क्या किया है इसने।”
“लाली बंदूक उठा और इसकी तलाशी ले।”काले शर्ट वाले ने कहा तो सफेद शर्ट वाला मेरे नज़दीक आया। वहीं लाल टी शर्ट वाला मेरे पीछे खड़ा हो गया। उसकी बंदूक का निशाना मैं थी। यानी मैं थोड़ी भी गलत सलत हरकत करती तो मेरा मरना तय था।
लाली ने बंदूक उठाई और फिर मेरी तलाशी ली। उसे कुछ मिलना नहीं था और न ही कुछ मिला।
तलाशी लेकर वो साइड हुआ तो मैंने काली शर्ट वाले से पूछा – कौन हो तुम? क्यों मेरे पीछे पड़े हो?”
काली शर्ट वाला केवल मुस्कराया। उसने इशारा किया और सफेद शर्ट वाले ने एक घुसा मेरे पेट पर मारा।मैं दर्द से दोहरी हुई।
“तुमने काफी दौड़ भाग कर ली।” काली शर्ट वाला बोला।”सवाल हम करेंगे। तुम आराम से जवाब दो।”मैंने उसे गुस्से से देखा।
उसने कंधे उचकाए और इस बार मेरे पीछे खड़े लाल टी शर्ट वाले ने मेरी कमर पर घुसा मारा।मैं झटके से सीधी हुई।
“अब अक्ल आ गयी हो शायद।” उसने कहा।
मैं बिना भाव के उसे देखने लगी।
“पूरे दिन भर क्या किया? किससे मिली? सब बताओ?”उसने मुझसे कहा।
“बताती हूँ।”मैंने जोरो से साँस लेते हुए कहा।”पहले जरा साँस ले लूँ।”
“तो मैं सबसे पहले मिली थी….”मैं कहने लगी थी कि मेरी आवाज़ उस धमाके के अन्दर खो गई। वह धमाका जो अन्दर इमारत के कंपाउंड में हुआ था।
धमाके की आवाज़ काफी तेज थी और इस कारण एक पल के लिये तीनो लोगों का ध्यान भटका।
इससे पहले वो कुछ समझ पाते। मैं एक दम से झुकी, थोड़ा अपने बाएं तरफ हुई और एक लात लाल टी शर्ट वाले के जड़ दी। मेरी लात उसके जबड़े में पड़ी थी और इस वार से उसके हाथ को झटका लगा और बंदूक फायर हुई। गोली आगे को चली। मेरी किस्मत अच्छी थी कि गोली सीधा काली शर्ट वाले के माथे के बीच में लगी। वह कटे वृक्ष की तरह गिरा। मैंने एक पतला सा सुआ अपने बेल्ट के बीच से निकाला और उसे सफेद शर्ट वाले की तरफ फेंका। यह सुआ काफी पलता था और नोर्मल तलाशी में किसी के हत्थे नहीं चढ़ता था। बेल्ट में कुछ खांचे बने थे जिनमें यह छुपा रहता था और बेल्ट के साथ डेकोरेटिव पीस ही लगता था। ऐसे दो तीन जहर बुझे सुए मेरे पास रहते थे। मैंने निशाना उसके गले को बनाया था लेकिन निशाना चूका और सुआ उसकी बायीं आंख में घुस गया। वह दर्द से बिलबिलाने लगा। इससे पहले वो गुस्से में मेरी दिशा में फायर करता मैंने लाल शर्ट वाले,जो कि मेरी लात से दीवार की तरफ लुढ़क सा गया था, को खींचकर सफेद शर्ट वाले की तरफ धकेल दिया। दोनों टकराये और आपस में गुत्थगुत्था होकर गिर पड़े। अब जब तक वो अलग होते तब तक सफेद शर्ट वाले की इहलीला समाप्त हो जानी थी। सुए ने अपना कमाल दिखा देना था।मैं जल्दी से काली शर्ट वाले के पास गई और उन दोनों के सम्भलने से पहले मैंने उसकी बंदूक उठा दी। मैं जब पलटी तो सफेद शर्ट वाला मर चुका था।

लाल शर्ट वाला मुझे फटी फटी आँखों से देख रहा था। मैंने बंदूक तानी और उससे बोला- अब बताओं। कौन हो? क्यों पीछा कर रहे हो।
“मैं मैं…”, वह मिमियाया।
“आगे भी बोल। या बकरे की तरह मिमियाता रहेगा।” मैं दहाड़ी।
उस पर तत्काल असर हुआ।  उसकी जबान जो अभी तक थके हुई स्लो लोकल की तरह चल रही थी अचानक राजधानी की तरह भागने लगी।”मैं कुछ नहीं जानता। हमे सुपारी सरकाई गयी थी। उसने कहना जारी रखा। तुम्हारी फ़ोटो हर एक ऐसे  बन्दे के पास पहुँचा दी गयी थी जो कि सुपारी लेते हैं। उनसे बोला गया था कि तुम दिखो तो तुम्हारा गेम बजाना  है। जो मारेगा वो रुपया पायेगा। 20 लाख की बात थी। हमारे पास कुछ काम नहीं था। सोचा एक लड़की को ही तो उड़ाना है। आसानी से बीस लाख मिल जाएगा।”
“और कितनो को तस्वीर दी है।” मैंने पूछा।
“पता नहीं कुछ कह नहीं सकता।” उसने जवाब दिया।”काम होने पर कैसे कांटेक्ट करोगे?” मैंने पूछा।”काम होने पर तुम्हारी लाश की फोटो करमा को एक नम्बर पर व्हाट्सएप्प करनी थी। फोटो मिलते ही आगे की बात पता चलती।”

“हम्म” मैं बोली।:”उन लोगों ने तुम्हे देखा है?””हाँ।” उसने कहा।

“झूठ मत बोल?” मैं  गुर्राई। और मैंने गोली चलाकर उसका एक घुटना फोड़ दिया। वह बुक्का फाड़कर चिल्लाने लगा।

“नहीं नहीं देखा…..वो चिल्लाया। उन्होंने हमे नहीं देखा है……फोटो न जाने कितनो को फॉरवर्ड हुई होगी…जो मारेगा वही ईनाम पायेगा….वह रोते रोते बोल रहा था…”

“ईनाम कैसे मिलेगा?” मैंने सवाल पूछा।

“यह तो करमा को पता था।” उसने काली शर्ट वाले की तरफ इशारा करते हुए कहा।

“हम्म …. कोई नही”मैं बोली और मैंने उसके दूसरे घुटने पर वार किया। अब तो उसके चिल्लाते हुए बुरे हाल थे।

“अब कोई भी सुपारी लेगा। उसका यही हाल होगा।”मैं बोली। “जो मेरी सुपारी लेगा। उसकी सुपारी मैं लूँगी।” मैं गुर्राई।
वह अभी भी तड़प रहा था।मैंने इतना इंतजाम तो कर लिया था कि यह आदमी अब कभी अपराध नहीं करेगा। इसने मुझ पर हमला किया था तो इसे सजा भी तगड़ी होगी।मैंने इंस्पेक्टर यादव को फोन लगाया और उनके आने का इन्तजार करने लगी।

*****

मेरे पाठकों मुझे मालूम है आप हैरान होंगे। आप यह सोच रहे होंगे कि अचानक वह धमाका कैसे हुआ जिससे बाजी मैंने पलट दी थी।

तो मेरे पाठको यह एक साधारण सी बात थी। जब भी आपको अपने दुश्मनों को हराना हो उन्हें इस बात का एहसास कराओ कि आप कमजोर हो। वो अति-विश्वास(ओवर कॉन्फिडेंस) में आपपर हमला करेंगे और आपकी चाल मे फँस जायेंगे।

जब मैं बाइक से कूदी थी तो मुझे मालूम था कि उन चारों पर अगर मुझे काबू पाना है तो उनसे दिमाग से लड़ना होगा। मैंने एक को तो मार दिया था लेकिन तीन बाकी थे। आपको याद होगा मैं बाइक से अपना बैग लेकर कूदी थी। मेरे दोस्तों उस बैग में रीना ने मेरे लिए कुछ रिमोट से डेटोनेट होने वाले बम रखे थे। जब मैं अंदर भागी थी तो मैंने एक बम सक्रिय करके  अन्दर मौजूद ड्रम में रख दिया था।

फिर मैंने अपना बैग अन्दर अधूरे बनी इमारत में फेंक दिया था। मुझे मालूम था कि वो मेरे ऊपर हमला किस तरह करेंगे। उन्होंने पीछे से ही आना था और मुझे घेरने का प्रयास करना था। उन्होंने वही लिया। जब मैं उन्हें बाहर निकालने में कामयाब हुई तो मैंने उस सक्रिय बम को डेटोनेट कर दिया। उसका रिमोट मेरे उँगली में मौजूद यह अंगूठी है। इस अंगूठी से ऐसी फ्रीक्वेंसी पर वेव्स ट्रांसमिट होती हैं कि वह बम फट जाता है। जब लाली ने मुझे मारा तो मैंने बम एक्टिवेट कर दिया और उसके बाद का हाल तो आपको पता ही है।

तो बताइए कैसी रही?

*****

आधा घंटे में इंस्पेक्टर यादव उधर पहुँच गये थे। मैंने उन्हें अकेले आने को कहा था। हमने एक चाल चलने की सोची थी। मैंने यादव को पूरी बात बताई तो वह भी राजी हो गया था। हमने सोचा था कि हम लोग उस नम्बर पर मेसेज सेंड कर देंगे। अगर लीड मिलती है तो ठीक हैं और अगर नहीं तो देखा जायेगा। तब तक के लिए इन तीनों व्यक्तियों के साथ जो हुआ उसे मुझसे नहीं जोड़ा जायेगा। मैंने फोटो खिंचवाई और उसके बाद का काम यादव के लिए छोड़कर बाइक लेकर निकल पड़ी।

मुझे हॉस्पिटल जाकर मरहम पट्टी भी करवानी थी। कुछ देर तक मुझे इस तरह रहना था कि किसी को मेरे जिंदा होने की खबर न लगे। मेरी बाइक किस्मत से अभी चल रही थी। उसे भी मरहम पट्टी की जरूरत पड़ने वाली थी। हम दोनों उधर से निकले तो शाम के छः बज गये थे।

मैं सीधे हॉस्पिटल गई और पहले अपने आपकी मरम्मत की और फिर गेराज में बाइक को ले गई। खुशकिस्मती से हम दोनों में ही ज्यादा टूट फूट नहीं हुई थी।

वहीं मुझे यादव से पता चला था कि उस तीसरे व्यक्ति कि हॉस्पिटल ले जाते हुए मौत हो गई थी।मुझे उसका कोई अफसोस नहीं था।

जब मैं अपने बिस्तर पर पहुँची तो मेरे दिमाग में दो बातें थी।

आखिर उस बिल्डिंग में क्या हुआ था? और मेरे और यादव का प्लान क्या रंग लाने वाला था?

एक दिन में काफी कुछ घट गया था।

न  जाने अगला दिन क्या लेकर आने वाला था?

मैं तो बस इन्तेजार कर सकती थी।

                                                                क्रमशः

फैन फिक्शन की सभी कड़ियाँ:

  1. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #1
  2. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #2
  3. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन  #3 
  4. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #4
  5. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #5
  6. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #6
  7. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #7
  8. मच्छर मारेगा हाथी को -अ रीमा भारती फैन फिक्शन #8
  9. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #9

 

©विकास नैनवाल ‘अंजान’ 

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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