मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #5

मच्छर मारेगा हाथी को - अ रीमा भारती फैन फिक्शन

पिछली कड़ी में आपने पढ़ा:


रीमा मुंबई से दिल्ली लैंड करती है और उसे पता चलता है कि सुनीता को किसी ने अगुवा कर लिया है। वही फिर उसकी बात सुनीता की दोस्त काम्या नारंग से होती है और वो उससे मिलने के लिए निकल पड़ती है। 

अब आगे:

5)

रीमा की बाइक कुछ दूर बढ़ी ही थी कि उसे इस बात का एहसास हो गया कि शायद कोई उसके पीछे पड़ा है। वह यह तो जान चुकी थी कि वो लोग दो या तीन गाड़ियों में थे और बारी बारी से उसके पीछे लगे थे। उसने बाइक में तेल भरवाने के बहाने एक पेट्रोल पंप के निकट लगवाई। थोड़ा तेल डलवाया और फिर काम्या को फोन लगाया। एक ही घंटी में फोन उठाया गया।
“हेल्लो, रीमा दीदी आप कब तक आ रही हैं?” काम्या ने एक ही साँस में कहा।
“काम्या,प्लान में थोड़ा बदलाव करते हैं। मैं अब तुम्हारे घर नहीं आऊँगी। एक चीज बताओ क्या तुम्हे पता है कि फीनिक्स मॉल किधर है?”
“जी दीदी।” काम्या ने जवाब दिया।
“तुम कितने देर में उधर पहुँच सकती हो?” मैंने प्रश्न किया।
“दीदी आधे घंटे में”
“ठीक है मुझे भी इतना ही वक्त लगेगा। मैं नहीं चाहती कि हम लोग तुम्हारे घर के नजदीक मिले। सुनीता के साथ जो हुआ उसके चलते हमे सावधानी से चलने की जरूरत है।”
“जी दीदी” उसने कहा।

” साथ ही अपनी फोटो भी मुझे व्हाट्सप्प में भेजो। अपना फोन चेक करोगी तो पाओगी कि मैंने आलरेडी तुम्हे अपनी फोटो भेज दी है। इससे हमे एक दूसरे को पहचानने में आसानी होगी। मैंने मॉल का अड्रेस भी तुम्हे भेज दिया है।” मैंने उसे समझाया।
“ओके दीदी।” काम्या ने कहा।
“चलो मॉल में मिलते हैं।” मैंने उससे कहा और फोन काटा।
मैंने अपने बालों को साइड व्यू मिरर में चेक किया और तिरछी नज़र से पाया कि मेरे पीछे लगी हुई गाड़ियों में से एक गाड़ी उधर ही पेट्रोल पम्प के नजदीक ही खड़ी थी। काम्या के घर तो मैं अब नहीं जा सकती थी। आखिर कौन थे ये लोग और सुनीता ने खुद को किस मुसीबत में फँसा दिया था? मेरे दिमाग में यह प्रश्न घनघना रहे थे। उम्मीद थी काम्या इस मामले में कुछ रोशनी डालने में सक्षम होगी। वही मेरे पास अभी तक एक ऐसी एकलोती कड़ी थी जिससे मैं इस मामले में कुछ आगे बढ़ सकती थी। लेकिन उससे पहले मुझे इस गाड़ी को ठिकाने लगाना था। मुझे यह तो अंदाजा था कि ये तीनो गाड़ी वाले एक दूसरे के कांटेक्ट में थे। और समय समय पर अपनी लोकेशन एक दूसरे से साझा कर रहे थे। मैंने तीनो को एक साथ कभी नहीं देखा था तो मैंने अंदाजा लगा लिया था कि इन्होने कुछ ऐसा पैटर्न बनाया था कि एक बार में एक ही गाड़ी मेरा पीछा कर रही थी। अगर मैं अभी इन्हे ठिकाने लगा देती तो कुछ देर के लिए मैं इनकी नज़रों से ओझल हो सकती थी। वैसे भी मेरे लिए अभी काम्या से मिलना जरूरी था।
मैंने बाइक शुरू की और उसे लेकर जहाँ गाड़ी खड़ी थी उसके नजदीक पहुँच गई। मैंने बाइक खड़ी करी। उस गाडी के बगल में एक ठेले वाला था। मैं ऐसे जा रही थी कि गाडी वालों को लगे कि मैं ठेले के पास जा रही हूँ। मैं ठेले की तरफ बढ़ी।
ठेले के तरफ बढ़ती मैं अचानक से गाड़ी के सामने रुकी और मैंने ड्राईवर की तरफ खिड़की को खटखटाया। वे चार लोग थे और उनको मेरे से ऐसी हरकत करने की उम्मीद नहीं थी। आश्चर्य उनकी आँखों में साफ दिख रहा था। मैंने दोबारा खिड़की खटखटाई।
ड्राईवर ने खिड़की खोली।
मैं खिड़की की तरफ झुकी और मैंने ड्राईवर से पूछा- “क्या हाल हैं?”
वह मेरी इस हरकत से हकबका सा गया। “ठीक हैं” वो बोला।
“बढ़िया”, मैंने कहा और एक लाफा उसके जड़ दिया। फिर मैंने अपनी बेक पॉकेट से एक पेप्पर स्प्रे निकाला और उसे गाड़ी के ड्राईवर की आँखों में और उसके बगल वाले आदमी की आँखों में छिड़क दिया। असर तुरंत दिखा। कुछ ही देर में ड्राईवर और उसके बगल वाले व्यक्ति की हालत पस्त हो गई।वो दर्द से बिलबिला उठे।पीछे वाले दो व्यक्तियों ने बाहर निकलने की कोशिश की तो मैं पूरे जोर से चिल्लाई- “सालों लड़की का पीछा करते हो। घर में तुम्हारे माँ बहन नहीं है। मैं बताती हूँ तुम्हे।”
तभी वहाँ से गुजर रहे एक व्यक्ति से मैंने बोला- “भाई साहब जरा सौ नंबर डायल कीजियेगा।  ये लोग कब से मेरा पीछा कर रहे हैं। भद्दे भद्दे कमेन्ट कर रहे हैं।”
“घणी जवानी चढ़ री तम सारूं पै” वो हरियाणवी में उनसे मुखातिब हुआ था। “इब बताता हूँ तमे ससुरों।”
“नहीं नहीं!! हमने कुछ नहीं किया…”  पीछे की सीट में मौजूद व्यक्ति घबराये हुए बोले।
“पुलिस को आने दो सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा।” मैंने कहा।
“भाई साहब आप फोन मिलाइए।” मैंने हरियाणवी भाई से बोला।
तब तक उधर लोगों की भीड़ जमा हो गई थी।  कार में बैठे व्यक्ति वैसे ही शक्ल से मवाली दिख रहे थे तो एक व्यक्ति ने भीड़ में कहा – “ये तो दिख भी गुंडे रहे हैं। लड़कियाँ छेड़ते हैं। मारो सालों को।”
ड्राईवर क्योंकि गाड़ी चलाने के लायक नहीं बचा था तो पीछे बैठे लोगों ने उसे छोड़ भागने की कोशिश की और यही गलती कर गये। उन्हें भागता देख भीड़ ने काबू खो दिया और वो उन्हें मारने लगे। मैंने अपनी बाइक दिखाते हुए उधर ही मौजूद व्यक्ति से कहा – “भाई साहब ,मैं बाइक लगाकर आती हूँ। आप इन्हें जाने मत दीजियेगा।”
“फ़िक्र मत कीजिये मैडम। हम हैं इधर। पुलिस भी आती होगी।” उसने सीना फुलाते हुए कहा।
मैंने उसका  शुक्रियादा अदा किया और बाइक लेकर आगे बढ़ गई। एक गाड़ी का तो इंतजाम हो गया था। मैंने थोड़ी दूर जाकर बाइक साइड में की और फिर अपना मोबाइल चेक किया तो उसमें काम्या का मेसेज आ गया था। मैंने जी पी एस में फीनिक्स मॉल का एड्रेस फीड किया। फोन को बाइक के स्टैंड पर लगाया। और फिर बाइक आगे बढ़ा दी। काम्या के घर जाकर मैं उसे खतरे में नहीं डालना चाहती थी इसलिए मैंने ऐसे मॉल को चुना था जहाँ से काम्या का घर थोड़ा दूर था। अब काम्या से मिलना था और यह जानना था कि उसे क्या पता है।
                                                                           **** 
सुनीता को जब होश आया तो उसने अपने आप को एक कमरे में बंद पाया। कमरे में अँधेरा था। सुनीता ने आँखें मिचमिचाई और फिर अँधेरे में देखने का प्रयास किया। थोड़ी देर में उसकी आँखें देखने में अभ्यस्त हुई तो उसने पाया कि कमरे में एक चारपाई के सिवा एक घड़ा था जिसमें शायद पानी था। उसका गला सूख रहा था तो वह घड़े के पास गई। घड़े के मुँह पर एक मिटटी की प्लेट थी जिस पर की पानी का गिलास उल्टा लगा हुआ था। उसने गिलास उठाया,फिर प्लेट उठायी और भरे घड़े से पानी निकाला। उसने एक दो गिलास पानी पिए और फिर जाकर चारपाई में बैठ गई। सामने उसे दरवाजा दिख रहा था लेकिन उसे खोलने की उसे हिम्मत नहीं हुई।
उसे याद है कि जब वह नीचे आई थी तो इंस्पेक्टर साहब दमकल कर्मचारियों से आग के विषय में जानकारी लेने चले गये थे। एक सिपाही ने कहा था कि वो डायबिटिक है और वो थोड़ी देर में आता है। उसके जाने के बाद फिर उसके साथ एक ही सिपाही बचा था। लेकिन फिर कुछ दूरी पर झगड़ा शुरू हो गया था और एक आदमी भागता हुआ सिपाही को लेने आया था- “साहब जी साहब जी वो एक दूसरे को मार देंगे।” उसने घबराए स्वर में बोला था।
“क्या घूरता है बे?”
“तेरी तो जान ले लूंगा आज”
“अबे जा जा साले!! हाथ तो लगाकर दिखा! बड़ा आया”
ऐसे है फिकरे भीड़ के बीच से उठ रहा था।
सिपाही ने सुनीता को देखा था और सुनीता ने सिपाही को कहा था – “सर आप जाइए। मैं इधर ही हूँ।”उसके जाते ही एक सिपाही और उधर आ गया था।

सुनीता ने जब हैरत से उसे देखा तो उसने कहा- “इंस्पेक्टर साहब का आदेश है आपको अकेले नहीं छोड़ना है। वो दोनों किधर हैं?”
सुनीता ने बताया।
“ड्यूटी छोड़कर उन्हें नहीं जाना चाहिए था। आप चलिए मेरे साथ जीप में। पुलिस की जीप में वो आप पर हमला करने की सोचेंगे भी नहीं।”अगर यह आम वक्त होता तो शायद सुनीता उस अनजान सिपाही के साथ जाने से बचती लेकिन वह चूँकि डरी हुई थी तो वह सहज तरीके से ही सिपाही के साथ चल दी। वो लोग जीप की तरफ ही बढे थे लेकिन जब वह उसके नज़दीक पहुँचे तो अचानक दो व्यक्तियों ने उसे दबोच दिया। फिर उसके मुँह पर एक कपड़ा रखा गया और सुनीता को अपने होश खोते महसूस हुए।

उसके बाद अब जाकर उसे होश आया था।
न जाने उसकी किस्मत में क्या लिखा था।
उसने अपनी आँखें बंद कर ली और चारपाई पर लेट गई।
                                                                      ****
रीमा ने बाइक मॉल की पार्किंग में लगाई और फिर मॉल के कोर्ट में पहुँचकर काम्या को कॉल लगाया।
“किधर हो?” रीमा ने कहा।
“जी, वो मॉल के अन्दर मौजूद एक कैफ़े है। कैफ़े कोजी के नाम से। उसी में हूँ।” काम्या ने कहा।
“ठीक है आती हूँ।” मैंने कहा और कैफ़े पहुंची।
काम्या मुझे दिखी। मैं उसके नजदीक पहुंची तो उसने कहा – “सुनीता!”
मैंने उसे चुप रहने का इशारा किया और आस पास देखा। कैफ़े में ज्यादा भीड़ नहीं थी। ज्यादातर प्रेमी युगल ही इधर दिख रहे थे और कुछ कॉर्पोरेट एग्जीक्यूटिव भी इधर मौजूद थे।कहीं कोई संदिग्ध व्यक्ति नहीं दिख रहे थे। इधर हम आराम से अपनी बात कर सकते थे।
“ठीक है।” मैंने  खुद से कहा और काम्या से बोली –  “पहले कुछ आर्डर करते हैं। कल रात से मैंने कुछ खाया नहीं है।” उसने हामी में गर्दन हिलाई।
उसने वेटर को बुलाया और मैंने एक ओम्लेट, टोस्ट और एक कॉफ़ी का आर्डर दिया। काम्या ने केवल कॉफ़ी मंगवाई।
जब तक नाश्ता आता तब तक मैं उसे अब तक घटी सभी घटनाओं से परिचित करवा चुकी थी।
वेटर आया। उसने सामान रखा और फिर चले गया।  उसके जाते ही काम्या ने कहा – “अब सुनीता का क्या होगा?”
“इंस्पेक्टर यादव उसी के ऊपर काम कर रहे हैं। वहीं मुझे जानना है कि सुनीता ने खुद को किस मुसीबत में फंसवा दिया है। वह प्रियंका को कैसे जानती है और तुम इस सबके विषय में क्या जानती हो। तुम जो भी इस विषय में जानती हो मुझे बेझिझक बताओ। कुछ भी मत छोड़ना। यह सुनीता की ज़िन्दगी और मौत का सवाल है।”, मैंने काम्या से कहा।
“हम्म” काम्या ने गहरी साँस ली और फिर जैसे बहुत सोचने के बाद उसने निर्णय लिया हो उसने कहा – “ठीक है। मुझे जो पता है मैं आपको बता देती हूँ। वैसे मुझे ज्यादा कुछ नहीं पता है लेकिन शायद जो पता है उससे आपको मदद मिले। वैसे आप प्रियंका दीदी से मिले?”
“हाँ, मेरी उससे बात हुई थी। उसने केवल यह बताया कि जब सुनीता उससे मिली तो वह डरी हुई थी। वह कुछ बताने को राजी नहीं थी क्योंकि उसे लग रहा था कि कोई उसका पीछा कर रहा है। वह प्रियंका को कुछ बताकर उसकी जान खतरे में नहीं डालना चाहती थी। उसने उसे पुलिस के पास जाने के लिए कहा था लेकिन वह इस बात के लिए राजी नहीं हुई थी। सुनीता के अनुसार पुलिस उसकी मदद नहीं कर सकती थी। फिर हारकर और उसकी हालात देखकर उसने उसे मेरा नम्बर दिया था। और उसके कुछ घंटो  बाद ही यह हादसा हो गया।”
“ओह” काम्या बोली।



मेरा नाश्ता हो चुका था।  मैंने एक और कॉफ़ी का आर्डर दिया। काम्या ने भी कॉफ़ी मंगवाई और फिर उसने कहा -“तो सुनिए मुझे क्या पता है।”

                                                               क्रमशः

फैन फिक्शन की सभी कड़ियाँ:

  1. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #1
  2. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #2
  3. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन  #3 
  4. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #4
  5. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #5
  6. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #6
  7. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #7
  8. मच्छर मारेगा हाथी को -अ रीमा भारती फैन फिक्शन #8
  9. मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #9

 

 
©विकास नैनवाल ‘अंजान’ 

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “मच्छर मारेगा हाथी को – अ रीमा भारती फैन फिक्शन #5”

  1. जी शुक्रिया। इसे सोमवार को लाने का ही विचार है। मुझे भी सोचने और दूसरे काम करने का वक्त मिल जाता है। यह पहली बार है जब इतनी नियमित तरीके से काम कर रहा हूँ। आभार आपका।

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